Published on Feb 17, 2021 Updated 0 Hours ago

कम कार्बन उत्सर्जन वाले शहरों का निर्माण,  पर्यावरण से संबंधित सरकारी नीतियों में आमूलचूल बदलाव की मांग करता है, विशेष रूप से भूमि उपयोग, आवास, शहरी गतिशीलता और जल दक्षता के संबंध में

शहरों के कार्बन उत्सर्जन पर लगाम: महामारी के बाद 2021 में पटरी पर लौटने का मंत्र

साल 2020 की विदाई के साथ, दुनिया भर में शहर अभी भी कोविड-19 की महामारी और इसके प्रभावों के साथ जूझ रहे हैं और उनसे निपटने की रणनीति बना रहे हैं. इस संबंध में साल 2021 में दबाव केवल विकास की दिशा में ‘बेहतर’ रूप से आगे बढ़ने और संबंधित ढांचा खड़ा करने का नहीं है, बल्कि ‘सही’ चुनाव का भी है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने महामारी और शहरों पर होने वाले इस के प्रभाव का ज़िक्र करते हुए कहा है कि शहर, महामारी के प्रभाव को झेलने में सबसे आगे हैं, और उन्हें ही इस से जुड़े क़ारगर हल खोजने होंगे. 

‘सही’ की परिभाषा के रूप में ज़ोर, हरित और टिकाऊ तौर तरीक़ों पर है, जो महामारी के चलते अस्त व्यस्त हुई व्यवस्था को इसी दृष्टिकोण के साथ पटरी पर लाने का काम कर सकें. इस दृष्टिकोण को पारिस्थितिकीय अर्थव्यवस्थाओं के विकास और डीकार्बोनाइज़ेशन यानी कार्बन उत्सर्जन को कम करने वाली प्रक्रियाओं को अपनाने के ज़रिए परिभाषित किया जा सकता है. शहरों को डीकोर्बोनाइज़ करने यानी शहरी इलाक़ों में कार्बन उत्सर्जन को कम करना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा शहरी विकास को इस ढर्रे पर ढाला जा सकता है कि वह प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर कम से कम टिके हों और निर्मित पर्यावरण (built environment) के माध्यम से कम से कम कार्बन उत्पन्न करें.

शहरी इलाक़ों में कार्बन उत्सर्जन को कम करना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा शहरी विकास को इस ढर्रे पर ढाला जा सकता है कि वह प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर कम से कम टिके हों

पेरिस समझौते के अंतर्गत तय किए गए लक्ष्य, जो कि कोविड-19 से जूझ रहे विश्व के चलते हाशिये पर धकेल दिए गए थे अब वापसी कर रहे हैं और शहरों और जलवायु से जुड़े हर एजेंडे के केंद्र में होंगे व उन्हें तेज़ी से आगे बढ़ाएंगे. दुनिया भर में शहर दुनिया की दो-तिहाई ऊर्जा की खपत करते हैं, और वैश्विक स्तर पर कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन के 70 प्रतिशत से अधिक के लिए ज़िम्मेदार हैं. इस प्रक्रिया को और शहरों के कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित किया जाना ज़रूरी है. दूसरी चुनौती वैश्विक तापमान के बढ़ने की प्रक्रिया व उसकी सीमाओं को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की प्रतिबद्धता को पूरा करना है. शहरों में उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों का एक तिहाई हिस्सा इमारतों से आता है, और न्यूयॉर्क, लंदन और टोक्यो जैसे शहरों में, यह 70 प्रतिशत तक जा सकता है. 

कम कार्बन उत्सर्जन वाले शहरों का निर्माण, निर्मित पर्यावरण से संबंधित सरकारी नीतियों में एक बदलाव की मांग करता है, विशेष रूप से भूमि उपयोग, आवास, शहरी गतिशीलता और जल दक्षता के संबंध में. इसके लिए तीन स्तरों पर काम करने वाले दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता होगी. पहला, पर्याप्त डेटा इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना और इस डेटा तक पहुंच में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है. दूसरा, नौकरशाही की सभी पारंपरिक बाधाओं को दूर करने के लिए समावेशीता को स्थापित करना, निर्बाध प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करना और इन से संबंधित क्षमता को बढ़ाना है. तीसरा, नगरपालिका स्तर पर सार्वजनिक समर्थन और आम भागीदारी के साथ समाज में नीचे की ओर से ऊपर तक होने वाले बदलावों को एकीकृत करना व सुनिश्चित करना है.

नौकरशाही और सरकारी नीतियों में हो समन्वय

भारत के शहरों के लिए यह ज़रूरी है कि डेटा से संबंधित मज़बूत ढांचे का निर्माण हो, निगरानी प्रक्रिया चुस्त हो और इस डेटा के विश्लेषण के लिए एक तंत्र सुनिश्चित किया जा सके, जो जलवायु प्रतिबद्धताओं को निर्धारित करने में मदद करेगा. इस तरह की रूपरेखा शहरों के स्तर पर, उप-राष्ट्रीय कार्रवाई के साथ एक एकीकृत राष्ट्रीय रणनीति का आधार बनेगी. देश में औद्योगिक प्रदूषण के लिए खुले डेटा स्रोतों की उपलब्धता को लेकर ओआरएफ की ओर से किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि देश भर के विभिन्न प्रदूषक उद्योगों के निरंतर उत्सर्जन के लिए ऑनलाइन, 4,000 अपशिष्ट निगरानी प्रणालियां मौजूद होने के बावजूद, संबंधित डेटा अधिकतर अप्राप्य है या अपारदर्शी है. इस के चलते सकारात्मक नतीजे प्राप्त करने और निवेश से संबंधित निर्णयों को लेकर असंगति पैदा हुई है. निर्मित वातावरण में कार्बन उपयोग की गणना करने के लिए शहरों के उत्सर्जन से संबंधित खुले डेटाबेस और कैलकुलेटर का निर्माण करने की तत्काल आवश्यकता है, ताकि यह आकलन किया जा सके कि शहरों का कार्बन उत्सर्जन स्तर क्या है.

भारत के शहरों के लिए यह ज़रूरी है कि डेटा से संबंधित मज़बूत ढांचे का निर्माण हो, निगरानी प्रक्रिया चुस्त हो और इस डेटा के विश्लेषण के लिए एक तंत्र सुनिश्चित किया जा सके, जो जलवायु प्रतिबद्धताओं को निर्धारित करने में मदद करेगा. 

नौकरशाही में नीतियों को बनाने या तोड़ने की ताक़त होती है. सरकार के लिए ज़रूरी है कि वह अपने पारंपरिक तौर-तरीकों से दूर हटकर और प्रशासनिक प्रणाली में तारतम्य बैठाते हुए, क्षमता निर्माण और कौशल विकास को बढ़ाने की दिशा में काम करे. सामग्री, वाहन और ऊर्जा की गहरी समझ, प्रौद्योगिकी, लोगों और अर्थव्यवस्था के बीच सही संतुलन प्राप्त करने के लिए सटीक शब्दावली, सहायक रिपोर्टिंग और मजबूत ढांचे के निर्माण में मदद करेगी.

कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया द्वारा सामने रखा गया स्टेप कोड, फ्रंटलाइन आर्किटेक्ट्स और इंजीनियरों को निर्मित पर्यावरण से संबंधित नवीनतम ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में प्रशिक्षित करता है, जिस से उन्हें प्रोजेक्ट चैंपियन बनाया जाता है. नीदरलैंड, जो कि डीकार्बोनाइज़ेशन यानी कार्बन उत्सर्जन को कम करने वाली प्रक्रियाओं को अपनाने के वादे में सबसे आगे है, ने अपनी नगर पालिकाओं और प्रांतों को डच समझौते के केंद्र में रखा है. यह इमारतों को गर्म करने के लिए प्राकृतिक गैस और बॉयलर सिस्टम पर अपनी निर्भरता को कम कर रहा है, और अधिकाधिक रूप से जलवायु के अनुकूल प्रौद्योगिकियों और ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की दिशा में काम कर रहा है. नगरपालिका सरकारें जहां एक ओर स्थानीय स्तर पर और पड़ोस के इलाक़ों में योजना और समन्वय का काम देखती हैं वहीं प्रांतीय स्तर पर जलवायु से जुड़े क्षेत्रीय सहयोग के मुद्दों को देखा जाता है. यह काम ज़िला-उन्मुख दृष्टिकोण के माध्यम से किया जाता है, जो क्षेत्रीय ऊर्जा रणनीतियों के साथ मिलकर काम करती हैं. विश्व स्तर पर, केवल बड़े शहर जो वैश्विक नेटवर्क का हिस्सा हैं, इन प्रक्रियाओं में शामिल हैं. भारत के लिए चुनौती अपने दृष्टिकोण को विकेंद्रीकृत करना और यह सुनिश्चित करना होगा कि छोटे और मध्यम आकार के शहर जिस तर्ज पर शहरीकरण कर रहे हैं उस के केंद्र में विकेंद्रीकरण को रखना होगा साथ ही इस प्रक्रिया में ज्ञान और प्रौद्योगिकी के विनिमय को भी शामिल करना होगा.

नगरपालिका सरकारें जहां एक ओर स्थानीय स्तर पर और पड़ोस के इलाक़ों में योजना और समन्वय का काम देखती हैं वहीं प्रांतीय स्तर पर जलवायु से जुड़े क्षेत्रीय सहयोग के मुद्दों को देखा जाता है. 

जबकि नीतियों और प्रौद्योगिकियों को तैयार किया जा सकता है, और भारत के हरित सपनों से मेल खाने के लिए धन भी उपलब्ध होगा, यह लोगों की भागीदारी, व्यवहार परिवर्तन और राजनीतिक सक्रियता ही है, जो शहरों के लिए महामारी के बाद के भविष्य की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण साबित होगी.


यह लेख 2021 से क्या अपेक्षा करेंश्रृंखला का हिस्सा है. 

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