Published on May 20, 2017 Updated 0 Hours ago

यह भारत द्वारा जवाबी कार्रवाई करने और सीमा पर तनाव या दबाव बढ़ने का डर है जिसे पाकिस्तानी सेना ने बमबारी की धमकियों के पीछे छुपा रखा है। भारत को इसी डर का लाभ उठाने की जरूरत है।

पाक सेना के मंसूबों पर पानी फेरने की जरुरत

भारत सरकार वर्तमान में जब इस पर विचार कर रही है कि पाकिस्‍तानी सेना के हाल के भड़काऊ कदमों का मुंहतोड जवाब किस प्रकार दिया जाए, यह ध्‍यान में रखा जाना चाहिए कि उसी प्रकार की जवाबी कार्रवाई एक क्षणिक कार्रवाई साबित होगी। मुख्‍य बात पाकिस्‍तान की सेना को यकीन दिला देने की है कि भारत कदम उठाने में कोई संकोच नहीं करेगा और पाकिस्‍तान की सेना दबाव बढ़ाने के मुकाबले में जीत नहीं पाएगी। हालांकि सैन्‍य कार्रवाई दोनों ही पक्षों के लिए पीड़ादायी होगी और जैसा कि किसी भी सैन्‍य कार्रवाई में हमेशा यह अनिश्चितता होती है, पाकिस्‍तानी सेना के नेतृत्‍व ने बार-बार यह प्रदर्शित किया है कि आगे बढ़ने की उसकी ध‍मकियां उसके वास्‍तविक व्‍यवहार से मेल नहीं खाती हैं, जो अब पहले से कहीं ज्‍यादा सतर्क हो गई है। पाकिस्‍तानी सेना का नेतृत्‍व वास्‍तव में अपनी लफ्फाजी की तुलना में कहीं ज्‍यादा आशंकित है और यह चीज भारत को प्रतिरोध का एक ऐसा अवसर प्रदान करती है जिसका पुरजोर लाभ उठाए जाने की जरूरत है।

पाकिस्‍तानी सेना की हरकतों को रोकने के लिए भारत के पास जो एकमात्र वास्‍तविक विकल्‍प है, वह है उस पर दबाव बढ़ाना। कूटनीति एक हद तक ही उपयोगी साबित हो सकती है और भारत के लिहाज से यह महत्‍वपूर्ण है कि वह दुनिया के अन्‍य देशों के सामने अपना मामला स्‍पष्‍ट रूप से रखे। लेकिन कूटनीति आतंकवाद की समस्‍या से निजात नहीं दिला सकती। भारत के लिए यह उम्‍मीद करना बेवकूफी होगी कि देश में आने वाले किसी भी विदेशी नेता का इस बारे में एक और द्विपक्षीय बयान पाकिस्‍तानी सेना की सोची समझी नीति को बदल देगा। यहां तक कि ऐसे देश भी, जो पाकिस्‍तान की समस्‍या को लेकर भारत से सहमत हैं, इस मामले में कुछ भी नहीं करेंगे क्‍योंकि यह उनकी समस्‍या नहीं है। इस मामले में वे भारत से अलग नहीं हैं: क्‍योंकि ऐसा नहीं है कि भारत भी किसी अन्‍य देश की आतंकवाद की समस्‍या में उनकी कोई मदद करेगा।

पाकिस्‍तानी सेना की हरकतों को रोकने के लिए भारत के पास जो एकमात्र वास्‍तविक विकल्‍प है, वह है उस पर दबाव बढ़ाना। कूटनीति एक हद तक ही उपयोगी साबित हो सकती है और भारत के लिहाज से यह महत्‍वपूर्ण है कि वह दुनिया के अन्‍य देशों के सामने अपना मामला स्‍पष्‍ट रूप से रखे। लेकिन कूटनीति आतंकवाद की समस्‍या से निजात नहीं दिला सकती।

कूटनीति का दूसरा पहलू, पाकिस्‍तान के साथ द्विपक्षीय कूटनीति, भी इसका कोई समाधान प्रस्‍तुत नहीं करता। सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि हालांकि भारत को बातचीत के लिए हमेशा अपने दरवाजे खुले रखने चाहिए, यह उम्‍मीद करना बेमानी होगी कि पाकिस्‍तान के नागरिक नेतृत्‍व के साथ द्विपक्षीय कूटनीति से कश्‍मीर समस्‍या का समाधान होगा, क्‍योंकि पाकिस्‍तान के नागरिक नेतृत्‍व का पाकिस्‍तान की सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है, विशेष कर, जब मामला भारत या कश्‍मीर से जुड़ा हो। यह एक सर्वविदित तथ्य है जो बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट है और अक्‍सर प्रदर्शित होता रहा है।

इसके अलावा, ऐसा कोई जादुई समाधान नहीं है कि कोई अज्ञात ताकत सामने आकर कश्‍मीर समस्‍या या भारत-पाकिस्‍तान की समस्‍या का हल कर दे। और बेशक, ये समस्‍याएं एक ही जैसी भी नहीं हैं। भारत-पाकिस्‍तान समस्‍या की जड़ क्षेत्र में शक्ति के असंतुलन में छुपी हुई है। और ये समस्‍याएं कश्‍मीर की समस्‍या के समाधान के बाद भी बनी रहेंगी। हालांकि यहां मैं यह नहीं कहना चाहता कि कम से कम कश्‍मीर समस्‍या के समाधान के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही, किसी भी प्रकार के अतिक्रमण की सूरत में बातचीतों या पाकिस्तान के साथ खेल या अन्‍य पारस्‍परिक संबंधों को भी समाप्‍त कर देना भी बेवकूफी होगी क्‍योंकि ऐसे सारे कदम केवल भारत की बेचारगी ही दिखाते हैं, उसकी ताकत या विश्‍वास को प्रदर्शित नहीं करते। भारत को हमेशा पाकिस्‍तान के साथ बातचीत या संवाद के लिए तैयार रहना चाहिए, भले ही इसके साथ-साथ वह पाकिस्‍तान की सेना द्वारा किए जाने वाले प्रत्‍येक हमले का जोरदार प्रत्‍युत्‍तर भी देता रहे।

इसकी वजह यह है कि पाकिस्‍तान की सेना ही भारत के खिलाफ आतंकवाद के बलपूर्वक इस्‍तेमाल पर नियंत्रण रखती है और इसलिए भारत की दबावपूर्ण नीति का जोर पाकिस्‍तान की सेना पर होना चाहिए। भारत का लक्ष्‍य यह होना चाहिए कि वह धमकी देने के जरिये पाकिस्‍तानी सेना को आतंकवाद को एक मुफ्त में इस्‍तेमाल होने वाला विकल्‍प बनने से रोके और अगर जरुरत पड़े तो ऐसे बर्ताव के लिए पाकिस्‍तानी सेना को इसकी बहुत भारी कीमत चुकाने को मजबूर करे।

अभी तक, भारत का सैन्‍य प्रत्‍युत्‍तर पाकिस्‍तानी सेना, जोकि उसकी भारत नीति का एकमात्र मध्‍यस्‍थ बना हुआ है, को पर्याप्‍त दबाव में ला पाने में विफल रहा है। तनाव बढ़ने का भारत का अतिरंजित डर इसमें एक गंभीर बाधा बना हुआ है। पिछले वर्ष के सर्जिकल हमले से पहले तक, तनाव बढ़ने का दबाव उसके ऊपर इतना अधिक था कि, इसने सैन्‍य प्रत्‍युतर को उस वक्‍त भी स्‍वीकार नहीं किया जब सैन्‍य प्रत्‍युतर दिया गया। इसलिए ऐसी जवाबी कार्रवाई को खुले आम स्‍वीकार कर लेना अपने आप में एक बड़ी बात थी और उल्‍लेखनीय उपलब्धि थी। लेकिन यहां यह स्‍वीकार करना भी आवश्‍यक है कि ये हमले (स्‍ट्राइक) सीमा पर उठाए गए दूसरे कदमों से बहुत अलग नहीं थे, जो भारतीय सेना समय-समय पर पहले भी उठाती रही है। इससे भी ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण बात यह है कि सितंबर, 2016 के दौरान, किए गए जवाबी हमले एक सुविचारित और सावधानीपूर्वक की गई कार्रवाई थी और इसकी रूपरेखा संभवत: यह संदेश देने के लिए भी बनाई गई प्रतीत होती है कि भारत अब और ज्‍यादा तनाव नहीं बढ़ाना चाहता जैसाकि मैंने उस वक्‍त भी इंगित किया था। भारतीय हमला हल्‍का था और उसका लक्ष्‍य केवल आतंकवादी थे न कि पाकिस्‍तानी सेना। भारतीय सेना ने पाकिस्‍तानी क्षेत्रों पर कब्‍जा करने की उसी प्रकार कोई कोशिश नहीं की जैसे पहले के हमलों में भी उसने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया था। ये जवाबी हमले केवल पिछले भारतीय व्‍यवहार की तुलना में जोरदार थे, न कि खुद पाकिस्‍तानी कार्रवाईयों के संबंध में। इस पर गौर करते हुए कि पाकिस्‍तान ने सीधे भारतीय सेना के शिविर पर हमले का आदेश दिया था जिसमें 17 भारतीय जवानों की मौत हुई थी भारत के जवाबी हमले को और अधिक धारदार होना चाहिए था। लेकिन सर्जिकल स्‍ट्राइक के सीमित लक्ष्‍य की बात साफ जाहिर थी कि क्‍योंकि भारत पहले ही नीति में एक उल्‍लेखनीय बदलाव कर रहा था और वह स्‍ट्राइक को प्रचारित करने के द्वारा इसका समाधान करने का संकेत दे रहा था। लेकिन इस बार ऐसे सीमित प्रत्‍युत्‍तर से बात नहीं बनेगी दबाव बढ़ाने का लक्ष्‍य पाकिस्‍तान के व्‍यवहार के लिहाज से होना चाहिए न कि भारतीय व्‍यवहार की मानक अपेक्षाओं के अनुरूप।

तनाव बढ़ने का भारत का अतिरंजित डर इसमें एक गंभीर बाधा बना हुआ है। पिछले वर्ष के सर्जिकल हमले से पहले तक, तनाव बढ़ने का दबाव उसके ऊपर इतना अधिक था कि, इसने सैन्‍य प्रत्‍युत्‍तर को उस वक्‍त भी स्‍वीकार नहीं किया जब सैन्‍य प्रत्‍युत्‍तर दिया गया।

कदम बढ़ाने के प्रति भारतीय टालमटोल दो वजहों से आश्‍चर्यजनक है। पहला, यह है कि शुद्ध रूप से यह एक मजबूत देश है जिसके पास दबाव बढ़ाने का विकल्‍प है। भारत की पारंपरिक सैन्‍य श्रेष्‍ठता बहुत अधिक नहीं भी हो सकती है, खासकर, न केवल इस तथ्‍य को देखते हुए कि भारत का जीडीपी पाकिस्‍तान के जीडीपी की तुलना में लगभग आठ गुना बड़ा है और भारत का सैन्‍य बजट लगभग सात गुना अधिक है, बल्कि इस लिहाज से भी कि भारत स्‍पष्‍ट रूप से एक अधिक मजबूत पक्ष है। और इसलिए विशिष्‍ट क्षेत्रीय लक्ष्‍यों (उदाहरण के लिए हाजी पीर दर्रे) पर हमलों के लिहाज से भारत की वर्तमान श्रेष्‍ठता पर्याप्‍त होनी चाहिए, खासकर इसलिए कि भारत को सामरिक आश्‍चर्य पैदा (प्राप्‍त) करने में सक्षम होना चाहिए। पाकिस्‍तानी सेना को यह अंदाजा तो हो सकता है कि भारत नियंत्रण रेखा के पास हमले की तैयारी कर रहा है लेकिन उसे यह अनुमान नहीं होगा कि यह हमला कहां होगा। संक्षेप में, मजबूत पक्ष के पास अधिक विकल्‍प हैं और गलती करने की ज्‍यादा गुंजाइश भी, भारत को हमेशा यह याद रखने की जरूरत है।

दूसरी बात यह है कि पाकिस्‍तान द्वारा दबाव बढ़ाये जाने की तमाम लफ्फाजियों के बावजूद, पाक सरकार ने हर बार दबाव न बढ़ाने की बात की है। कारगिल में, जब भारत ने अपनी वायु सेना तैनात की तो पाकिस्‍तान ने शिकायत की और युद्ध का माहौल पैदा करने के खतरों से आगाह किया लेकिन उसने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की और पाक सेना ने अपनी उत्‍तरी लाइट इन्‍फैन्‍ट्री (एनएलआई) टुकड़ी भंग कर दी। इसी प्रकार, 2016 में, भारत के सर्जिकल हमलों के खिलाफ पाक सेना ने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की जबकि उसकी तरफ से लगभग दो दशकों से इस तरह की धमकियां दी जाती रहीं हैं। इसी बीच, बार-बार तोपों से गोली बारी होती रही है और सीमा पार छापेमारी की जाती रही है लेकिन पाकिस्‍तानी सेना ने कभी भी इनका प्रत्‍युत्‍तर नहीं दिया है। अगर पाकिस्‍तान वाकई हमला करने का इच्‍छुक रहा होता तो उसके पास इसके कई अवसर थे। पाकिस्‍तानी सेना ने अभी तक कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की है तो इससे यही संकेत मिलता है पाकिस्‍तानी सेना के प्रमुख यह जानते है कि अगर जवाबी कार्रवाई हुई तो उसे भारी और बेहिसाब नुकसान उठाना पड़ेगा। हो सकता है भारतीय सेना इतनी अधिक मजबूत न हो कि उसे पाकिस्‍तान पर आसानी से जीत हासिल हो जाए लेकिन पाकिस्‍तान जीत जाएगा, यह तो बस अकल्‍पनीय ही है।

मुख्‍य मुद्दा यही है। चूंकि पाकिस्‍तानी सेना विजयी नहीं हो सकती, इसलिए जवाबी कार्रवाई करने या तनाव या दबाव बढ़ाने में उसकी अधिक दिलचस्‍पी नहीं है। भारत और पाकिस्‍तान के बीच तनाव से संबंधित अधिकांश बहस इसी अनुमान पर है कि पाकिस्‍तान सेना इस प्रकार की छिटपुट कार्रवाइयों और हमलों की बहुत हद तक अनदेखी करती रहेगी जब तक मामला परमाणु शक्ति के स्‍तर तक नहीं पहुंच जाता है। लेकिन इनमें से हर कदम एक महंगा और अविवेकपूर्ण दांव होगा, और पाकिस्‍तानी सेना का नेतृत्व अविवेकी नहीं है। वे दो बार दांव लगा चुके हैं। ऑपरेशन ग्रैंड स्‍लाम एवं कारगिल ऐसे ही मामले थे लेकिन जब उनके आरंभिक दांव विफल हो गए तो उन्‍होंने इसे बढ़ाने या इसमें तेजी लाने की कोई कोशिश नहीं की बल्कि आरामपूर्वक इससे दूर होकर कोई नई चाल चलने के बारे में सोचने लगे।

पाकिस्‍तानी सेना का बर्ताव पूरी तरह युक्ति संगत है, इसे पूरी तरह स्‍वीकृति मिली हुई है और इसकी घरेलू वैधता भारत के खिलाफ इस्‍लामी गणराज्‍य के रक्षक की इसकी भूमिका पर आधारित है। अगर यह अपनी बुनियादी जिम्‍मेदारी नहीं निभा पाती तो इसकी घरेलू वैधता को नुकसान पहुंचेगा और साथ ही राष्‍ट्रीय राजनीति, अर्थव्‍यवस्‍था एवं समाज में इसकी तथाक‍थित साख को भी बट्टा लगेगा। इसलिए, पाकिस्‍तान ने जानबूझकर कारगिल युद्ध में एनएलआई टुकडियों को अपना बताने से परहेज किया था। उसने यह मानने से भी मना किया था कि भारत ने पिछले वर्ष जवाबी कार्रवाई की थी। सबसे महत्‍वपूर्ण बात है कि पाकिस्‍तानी सेना भारतीय सेना के हाथों पराजित होने से खौफजदा है अपनी लफ्फाजियों के बावजूद वह तनाव बढ़ाने से डरती है क्‍योंकि उसे भय है कि तनाव में इजाफा लड़ाई और उसकी शिकस्‍त की वास्‍तविक संभावना से जुड़ी है। बहुत हद तक हाका युद्ध नृत्‍य की तरह ही, पाकिस्‍तान की धमकियां केवल डराने भर के लिए हैं, यह उसके व्‍यवहार की वास्‍तविक परिचायक नहीं है।

तनाव बढ़ने का यही खौफ है जिसे पाकिस्‍तानी सेना ने बमबारी की धमकियों के पीछे छुपा रखा है जिसका भारत को लाभ उठाने की आवश्‍यकता है। यह भारत को एक स्‍पष्‍ट लाभ की स्थिति में ला खड़ा करता है। लेकिन इसके लिए भारत को पाकिस्‍तानी सेना के नेतृत्‍व के वास्‍तविक व्‍यवहार को भी देखने की आवश्‍यकता है, बजाये यह मान लेने के कि पाकिस्‍तानी सरकार की लफ्फाजी उस बात का संकेतक है कि वे किस प्रकार बर्ताव करेंगे।

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