Published on Jun 17, 2022 Updated 27 Days ago

अफ़गानिस्तान,अफ़गानी धरती पर पाकिस्तान के साथ षड्यंत्र में बीजिंग की बढ़ती रुचि उपमहाद्वीप में बढ़ते तनाव को जोड़ती है, अमेरिकी सेना के हटने के बाद सीमापार आतंकवाद पर चिंता बढ़ गयी है.

अफ़गान की धरती पर साज़िश? काबुल में चीन और पाकिस्तान की मिलीभगत

अफ़गान सरकार ने जनवरी महीने में एक 10 सदस्यीय चीनी जासूस सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया था जो दिसंबर २०२० में कथित तौर पर हक्कानी नेटवर्क के संपर्क में था. माना जाता है कि यह जासूसी नेटवर्क चीनी खुफिया एजेंसी और राज्य सुरक्षा मंत्रालय से जुड़ा हुआ था- कहा जाता है कि इसे चीनी सरकार द्वारा 10 दिसंबर 2020 के आसपास निर्वासित किया गया था. जबकि अफ़गानिस्तान में उनकी गुप्त गतिविधियों का ब्यौरा अघोषित बना हुआ है, लेकिन विभिन्न भारतीय मीडिया रिपोर्टों में हक्क़ानी नेटवर्क और तालिबान दोनों के सदस्यों के साथ मिलने के संकेत मिले थे. हालांकि चीन, जासूसी के आरोप में अफ़गानिस्तान से चीनी नागरिकों को वापस भेजने से इनकार करता रहा है, लेकिन अफ़गानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनडीएस) के प्रमुख ने अफ़गान संसद को “चीनी नेटवर्क” में से कुछ व्यक्तियों की गिरफ्त़ारी की पुष्टि की थी. कुछ रिपोर्टों का सुझाव है की इस जासूसी नेटवर्क का उद्देश्य अफ़गान क्षेत्र में ETIM कार्यकारी को ट्रैक करने के लिए एक नकली पूर्व तुर्किस्तान इस्लामी आंदोलन (ETIM) मॉड्यूल बनाने का था. ईटीआईएम, जिसका पहले तालिबान के समर्थन से भला हुआ है, उसे लेकर चीन ने अक्सर शिनजियांग प्रांत के लिए सुरक्षा खतरे का हवाला दिया है. 

यह घटनाक्रम अफ़गानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के बग़ैर चीन की चिंताओं पर नज़र डालने लायक है. 

अफगानिस्तान में चीन का रणनीतिक फायदा

चीन काबुल में अपनी राजनयिक और आर्थिक दोनों हितों का लगातार विस्तार करने में लगा है. बीजिंग के लिए संसाधन समृद्ध अफ़गानिस्तान में अपनी जड़ों का प्रसार करना एक स्वाभाविक बढ़त रही है, मगर इस क्षेत्र में स्थिरता स्थापित करने से ज्य़ादा महत्वपूर्ण नहीं है. झिंजियांग स्वायत्त क्षेत्र (XAR) के लिए अपनी भौगोलिक निकटता को ध्यान में रखते हुए, तालिबान के साथ एक घनिष्ठ संबंध को आगे बढ़ाना बीजिंग के सर्वोत्तम सुरक्षा हितों में है, जबकि आधिकारिक तौर पर अफ़गान शांति प्रक्रिया के प्रति वो अपना समर्थन जताता रहा है. चीन इस क्षेत्र में अपने सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए तालिबान और उदारवादी अफ़गान नेतृत्व दोनों के साथ काम करने में रुचि व्यक्त करते हुए शांति प्रक्रिया में लगा हुआ है. तालिबान के प्रतिनिधियों को सितंबर २०१९ में बीजिंग आमंत्रित किया गया था, क्योंकि चीन खुद को एक ऐसे खिलाड़ी के रूप में देखता है जो वार्ता के लिए सभी पक्षों के साथ मिलकर सहयोग करता है. अभी तक चीन अपने दो महत्वपूर्ण रणनीतिक हितों के बावजूद अंतर-अफ़गान बातचीत के मौके पर उम्मीद टिकाये हुए है.

बीजिंग के लिए संसाधन समृद्ध अफ़गानिस्तान में अपनी जड़ों का प्रसार करना एक स्वाभाविक बढ़त रही है, मगर इस क्षेत्र में स्थिरता स्थापित करने से ज्य़ादा महत्वपूर्ण नहीं है.

पहला फायदा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं और अफ़गानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों में निवेश के रूप में अफ़गानिस्तान के साथ पूर्वकथित आर्थिक जुड़ाव है. आर्थिक हितों के बावजूद, बीजिंग ने जिस हद तक अफ़गान राज्य की स्थिरता और क्षमता में योगदान दिया है, उसकी तुलना में उसे   काफी कम फायदा मिला है, जिसमें उनके औद्योगिक अनुबंध भी शामिल है. चीन अफ़गान संघर्ष के मूल कारणों मे कम रूचि लेता है, उसका इस देश से जुड़ाव पूरी तरह से अपनी ख़ुद की रणनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए होता है.

बीजिंग की दूसरी प्रमुख रुचि अफ़गानिस्तान के साथ सुरक्षा संबंध है, जो शिनजियांग में किसी भी अलगाववाद या उपद्रव का मुकाबला करने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. पिछले कुछ वर्षों में चीन ने अपनी सुरक्षा संबंधों को बढ़ाने का प्रयास किया है. चीन के सैन्य समर्थन के रिपोर्टों में अफ़गान सरकार को लाखों डॉलर की सैन्य सहायता देना, अफ़गान क्षेत्र पर चीनी सैन्य अड्डा स्थापित करना और अफ़गान सैनिकों को प्रशिक्षण देना शामिल है. दोनों देशों के बीच ये सैन्य संबंध कितनी गहरी है इसकी सही-सही कोई जानकारी न होने के बावजूद,  चीन के द्वारा किये गए सभी सुरक्षा प्रयास काफी हद तक उसके अपने संभावित खतरों और शीनजियांग प्रांत में मुमकिन सीमापार प्रभावों के खिलाफ़ लिया गया है. चीन के द्वारा लिये गये कदमों का अफ़गान की सुरक्षा स्थिति किसी तरह के सुधार को लेकर उठाया गया कदम नहीं है.  

अक्सर, शिनजियांग की आबादी पर अपनी कार्रवाई का औचित्य जताने के लिए चीन को एक कारण के रूप में, चीन  ETIM जो एक Uighur संप्रदायवादी आंदोलन है, उसे एक सक्रिय संगठित आतंकी समूह के रूप में प्रचारित करना पड़ता है. ETIM इस क्षेत्र में कई हमलों के लिए ज़िम्मेदार है. हक़ीकत में, इस बात के काफी कम सबूत है कि ईटीआईएम का अस्तित्व इस समय चीन के कहेनुसार मौजूद है जबकि, अमेरिका ने उसे 19 सालों तक आतंकी संगठन के सूची में रखने के बाद हटा दिया है. अमेरिका ने दावा किया है कि एक दशक से अधिक समय से इस समूह की ओर से जारी आतंकी अभियानों का कोई सबूत नहीं मिला है.

अगर ETIM वास्तव में निष्क्रिय है, तो बीजिंग दिखावे के रूप में इस सिंडिकेट का इस्तेमाल Uighur अप्रवासियों का पता लगाने और उनके चारों ओर एक झूठी कहानी गढ़ने में इस्तेमाल कर सकता है

चीन ने प्रतिवाद किया की ईटीआईएम को आतंकी संगठन के रूप में चिन्हित करना शिनजियांग में चीन के आतंकवाद विरोधी गतिविधियों के लिए ज़रूरी है. इसे सफल बनाने के लिए चीन ने ईटीआईएम के सदस्यों को जड़ से मिटाने के मक़सद से अफ़गानिस्तान में एक जासूसी सिंडिकेट को भेजकर मामले को अपने हाथों में लेने की कोशिश की थी. अगर ETIM वास्तव में निष्क्रिय है, तो बीजिंग दिखावे के रूप में इस सिंडिकेट का इस्तेमाल Uighur अप्रवासियों का पता लगाने और उनके चारों ओर एक झूठी कहानी गढ़ने में इस्तेमाल कर सकता है, ताकि भविष्य में वो शीनजियांग प्रांत में किये जा रहे दमन को सही ठहरा सके.

हालांकि, क्या ईटीआईएम को लेकर चीन के दावे बढ़ा-चढ़ा कर बताये गए? ये तय है, इस पर्दाफाश का मक़सद, इस जासूसी अभियान का जो कथित उद्देश्य बताया गया है उससे कहीं ज़्यादा है. 

व्यापक मंशा और पर्दाफाश पर चिंता

बीजिंग को अपने जासूसों को बचाने और इस स्थिति से खुद को उबारने के लिए औपचारिक माफी मांगने के लिए कहा गया था. हालांकि, यह घटना सीसीपी के लिए शर्मिंदगी की बात है, लेकिन उसकी अपनी भी चिंतायें हैं. चीन अफ़गानिस्तान के प्रति अपने दृष्टिकोण में अक्सर पाकिस्तान की तरफ़ झुकने के लिए जाना जाता है. चीन और पाकिस्तान दोनों ही अफ़गान धरती पर षड्यंत्र करते रहे हैं, जो बिल्कुल भी आश्चर्य की बात नहीं है लेकिन चिंतित करने की बात ज़रूर है. पाकिस्तान-अफ़गानिस्तान संबंधों में एकता बीजिंग के लिए एक माकूल स्थिती है, वहीं हक्कानी नेटवर्क के सदस्यों के साथ चीनी गुप्त कार्यकर्ताओं की भागीदारी तुरंत पाकिस्तानी आईएसआई को प्रकरण में लाती है. अफ़गान क्षेत्र में पाकिस्तान की डीप स्टेट के साथ चीनी भागीदारी इस बात पर प्रकाश डालती है कि चीन-पाकिस्तान संबंध अफ़गानिस्तान में किस हद तक फैल चुके हैं. और आपसी सहयोग और समझदारी के माध्यम से अपने-अपने प्रमुख हितों को संबोधित कर रहे हैं. चीन तालिबान के साथ संबंधों को बनाए रखने के अलावा चीन-अफ़गान द्विपक्षीय लेन-देन के मामले में भी काफी हद तक पाकिस्तान पर निर्भर है. बीजिंग हर हाल में अफ़गानिस्तान में हर हाल में पाकिस्तान का साथ चाहता ताकि वो उसकी मदद से वहां किसी भी तरह की अस्थिरता पैदा करने वाली ताकतों और समूहों से निपट सके. ख़ासकर शिनजियांग के साथ लगे 90 किमी की सीमा पर जुड़ने के लिए उसे पाकिस्तान की मदद की ज़रूरत  है. अफगानिस्तान में सक्रिय कोई भी अस्थिर ताकत, शिनजियांग प्रांत और पड़ोस में चल रहे बीआरआई परियोजनाओं के लिए चीन की योजनाओं को विफल करने की क्षमता रखता है.

मौजूदा समय में चीन और भारत के संबंध जिस दौर से गुज़र रहे हैं उसके अनुसार भी अफ़गानिस्तान में भारत के प्रभाव में कटौती करना चीन-पाकिस्तान संबंधों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो चुका है.

अफ़गानिस्तान में जिस तरह से ये दोनों ताकत एक दूसरे के साथ हाथ मिला रही है उसपर चिंता होना लाज़मी है, खासकर तब जब हम पाकिस्तान के द्वारा हक्क़ानी नेटवर्क और तालिबान को व्यवस्थित रूप से समर्थन देने के इतिहास पर एक नज़र डालते हैं, जो भारत के साथ संघर्ष के मामले में पाकिस्तान द्वारा अपनाई गई एक प्रमुख सामरिक नीति रही है. अफ़गान की धरती पर पाकिस्तान के साथ मिलकर साज़िश रचने में बीजिंग की बढ़ती रुचि उपमहाद्वीप में बढ़ते तनाव के माहौल को और गंभीर बनाती है. अमेरिकी सेना के हटने के बाद उपमाद्वीप में सीमापार आतंकवाद बढ़ने की आशंका लगादार बढ़ी है. मौजूदा समय में चीन और भारत के संबंध जिस दौर से गुज़र रहे हैं उसके अनुसार भी अफ़गानिस्तान में भारत के प्रभाव में कटौती करना चीन-पाकिस्तान संबंधों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो चुका है. हालांकि, अफ़गानिस्तान को लेकर चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ता भरोसा इस क्षेत्र के मुश्किल इतिहास को देखते हुए, बिना टूट की संभावना के बग़ैर सोचा नहीं जा सकता है. इसके अलावा, अमेरिका और चीन के बीच गोलीबारी में फंसे पाकिस्तान को आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय मंच पर कठिन फैसलों का सामना करना पड़ता रहेगा.

इस समय जो बात स्पष्ट देखी गई है वो है चीन का अफ़गानिस्तान के साथ रणनीतिक संबंधों में बढ़ती रूचि, जो पहले उदासीन हुआ करती थी. हालांकि, उसी दौरान जिस तरह से जासूसी सिंडिकेट का भांडाफोड़ हुआ और उसे सिर्फ़ माफी के बाद वापस भेज दिया गया, साथ ही अफ़गानिस्तान में चीन की बढ़ती भागीदारी की नई नीति ने सामिरक नीति को एक अजीब मोड़ पर ला खड़ा कर दिया है.

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