Published on Nov 13, 2017 Updated 0 Hours ago

क्या वाम मोर्चे के सत्ता पर काबिज होने में के बाद देश एक बार फिर से तानाशाही की ओर धकेला जा सकता है?

गठबंधन राजनीति: नेपाल की राजनीति में नया मोड़

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी माओइस्ट का समर्थक झंडा लहरा रहा है।

 कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनीफाइड मार्क्सवादी-लेनिनिस्ट (सीपीएन-यूएमएल) द्वारा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओइस्ट सेंटर (सीपीएन-एमसी) और नया शक्ति पार्टी, नेपाल के साथ 4 अक्टूबर 2017 को गठजोड़ किए जाने के बाद से नेपाल के राजनीतिक विकास में एक नया मोड़ आ गया है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि प्रांतीय और संघीय इकाइयों के आगामी चुनाव संपन्न होने के बाद यह गठबंधन आखिरकार तीन बड़ी कम्युनिस्ट पार्टियों के एक पार्टी में विलय के रूप में सामने आएगा। इस घटनाक्रम से नेपाल की राजनीति में वामपंथी धड़े के और मजबूत होने की संभावना है।

मधेश-आधारित राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल (आरजेपीएन) के कुछ प्रभावशाली अवसरवादी नेताओं के आगामी चुनाव सीपीएन-यूएमएल के चुनाव चिन्ह सूर्य के साथ लड़ने के हाल के फैसले ने वाम मोर्चे का हौसला और भी बढ़ा दिया है।

इनमें से कुछ घटनाक्रमों की वजह से राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में की हलचल मच गई है। जब देश 26 नवम्बर और 7 दिसम्बर को होने वाले प्रांतीय और संघीय स्तर के चुनावों की तैयारियों में जुटा है, ऐसे मौके पर किसी ने भी इस तरह के बदलाव की अपेक्षा नहीं की थी। इससे पहले स्थानीय निकायों के चुनाव 14 मई, 14 जून और 18 सितम्बर 2017 को तीन चरणों में संपन्न कराए जा चुके हैं।

नेपाल की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी नेपाली कांग्रेस (एनसी) ने भी इसके जवाब में मधेश केंद्रित दो पार्टियों-आरजेपीएन और फेडरल सोशलिस्ट फोरम — नेपाल (एफएसएफएन) सहित, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी — नेपाल (आरपीएनएन) और नेपाल डेमोक्रेटिक फोरम जैसी समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिलकर लोकतांत्रिक गठबंधन बनाने का फैसला किया है।

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, बिजय कुमार गच्छादार की अगुवाई वाले नेपाल डेमोक्रेटिक फोरम का 9 अक्टूबर, 2017 को एनसी में विलय हो गया। उसी दिन कमल थापा के नेतृत्व वाली आरपीपीएन भी शेर बहादुर देउबा की सरकार में शामिल हो गयी। इस घटनाक्रम के बाद गच्छादार को एनसी का नया महासचिव बनाया गया, जबकि कमल थापा देश के नए उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बन चुके हैं। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि देउबा अपनी कैबिनेट से सीपीएन-एमसी के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर सकते हैं, क्योंकि यह पार्टी अब मुख्य विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल के साथ चुनावी गठजोड़ का चुकी है।

एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम मेंकम्युनिस्ट गठबंधन बनने के फौरन बाद 6 अक्टूबर 2017 को आपस में चुनावी गठबंधन करने वाली आरजेपीएन और एफएसएफएन भी सीटों के बंटवारे में उचित तालमेल बैठाने या एजस्टमेंट किए जाने पर एनसी के नेतृत्व वाले लोकतांत्रिक गठबंधन में शामिल होने के लिए बेहद उत्साहित हैं।

आरजेपीएन और एफएसएफएन चाहती हैं कि एनसी प्रांतीय चुनावों में उन्हें 330 सीटों में से 131 सीटे दें और संघीय चुनावों में 165 सीटों में से एक-तिहायी सीटे दे। अगर सीटों का बंटवारा इस तरह किया गया, तो आरजेपीएन/एफएसएफएन लोकतांत्रिक गठबंधन में शामिल हो सकती हैं।

कुछ हलकों में हालांकि ऐसी आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि आरजेपीएन/एफएसएफएन के एनसी की अगुवाई वाले लोकतांत्रिक गठबंधन में शामिल होने से मधेश एजेंडा कहीं गुम हो जाएगा। एनसी ने 2015-16 में सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एमसी के साथ मिलकर मौजूदा संविधान के खिलाफ मधेश आंदोलन को कुचलने में अहम भूमिका निभाई थी। तराई में राजनीतिक जागरूकता के स्तर को देखते हुए, ऐसा नहीं लगता कि आरजेपीएन/एफएसएफएन अपने मुख्य एजेंडे से पीछे हटने का दुस्साहस कर सकती हैं। लेकिन अगर वे ऐसा करती हैं, तो वे केवल कट्टरपंथी तत्वों को ही प्रोत्साहन देंगी।

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दीवार पर लिखे मधेशी राष्ट्रीय मुक्ती मोर्चा के नारे

गठबंधन करना नेपाली राजनीति में नयी संस्कृति है। एक सबसे महत्वपूर्ण कारक या फैक्टर नेपाल में कम्युनिस्ट ताकतों का एकजुट होना है, जो हाल में संपन्न स्थानीय इकाइयों के चुनावों का परिणाम है। सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एमसी दोनों ने मिलकर ग्राम परिषदों/नगर निगमों के अध्यक्षों/मेयर की कुल 753 सीटों में से 401 सीटे (53 प्रतिशत) जीती हैं। यह स्पष्ट हो चुका है कि कम्युनिस्ट ताकतें आगामी चुनावों में आसानी से एनसी सहित लोकतांत्रिक और दूसरी ताकतों को पछाड़ सकती हैं और इस तरह यदि वे एकजुट हो जाएं, तो केंद्र और प्रांतीय स्तरों की सत्ता पर कब्जा जमा सकती हैं।

देश में हालांकि ऐसी अटकलें जोरों पर हैं कि कम्युनिस्ट गठबंधन हमारे किसी एक पड़ोसी की दिमागी उपज हैठीक उसी तरह जैसे लोकतांत्रिक गठबंधन दूसरे पड़ोसी की दिमागी उपज है।

केवल समय और भविष्य में इन गठबंधनों का व्यवहार ही यह साबित करेगा कि वे बाहरी ताकतों द्वारा संचालित हो रही थीं या नहीं। लेकिन यदि वाम गठबंधन एक पड़ोसी द्वारा और लोकतांत्रिक गठबंधन दूसरे पड़ोसी द्वारा संचालित किया जा रहा है, तो यह विनाशकारी हो सकता है। ऐसे हालात में देश दीर्घकालिक राजनीतिक अस्थिरता के गर्त में धकेला जा सकता है।

सीपीएन-एमसी के अध्यक्ष पुष्प कमल दहाल का यह नजरिया है कि गठबंधन बनाने से नई राजनीतिक संस्कृति की स्थापना के जरिए देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है। दूसरी ओर, एनसी के वरिष्ठ नेता राम चंद्र पौडेल ने इस कदम की आलोचना की है, क्योंकि इससे देश में तबाही आ सकती है। मधेश आधारित राजनीतिक पार्टियों के नेताओं सहित पार्टी के अन्य नेता भी इस कदम की समान रूप से आलोचना कर रहे हैं। एनसी के महासचिव शशांक कोइराला और आरपीपी नेता कमल थापा का कहना है कि कम्युनिस्ट गठबंधन की ओर से प्रस्तुत चुनौती का सामना करने के लिए लोकतांत्रिक गठबंधन को नेपाल को फिर से हिंदु राष्ट्र बनाने का मामला उठाना चाहिए।

प्रांतीय और संघीय चुनाव संपन्न हो जाने के बाद ही दोनों गठबंधनों की वास्तविक ताकत का फैसला हो सकेगा। लेकिन एक बात तो तय है — ऐसे घटनाक्रम से देश धीरे-धीरे दो या तीन दलीय शासन की ओर बढ़ेगा। ऊपर से देखने पर ऐसा लगता है कि इससे देश में राजनीतिक ​स्थिरता सुनिश्चित हो सकेगी। ऐसी भी आशंका है कि वाम मोर्चे द्वारा लोकतांत्रिक साधनों के जरिए सत्ता पर काबिज होने में सफलता पाने के बाद देश एक बार फिर से तानाशाही की ओर धकेला जा सकता है। ऐसे तत्व हो चुकी कम्युनिस्ट विचारधारा को लागू करने की कोशिश तक कर सकते हैं, जिसमें मधेशी, जनजातियों, दलितों और अन्य वंचित वर्गों की आवाज कुचल दी जाएगी। एक अन्य जोखिम सेना का है, जो देश में कम्युनिस्ट विचारधारा को इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर सकती।

ऐसे गठबंधनों के साथ ही देश में सभी तरह की अनिश्चितताएं हो सकती हैं। यदि गठबंधन करने वाली ताकतों ने राष्ट्र हित में काम किया, तो उसका परिणाम जनता के लिए अच्छा हो सकता है, क्योंकि ऐसे में देश पर शासन करने वाली दो या तीन पार्टियां होंगी। लेकिन यदि वे विदेशी ताकतों के हाथ का खिलौना बन गईं, तो देश में गंभीर संघर्षों का दौर छिड़ सकता है।

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