Published on Jan 09, 2023 Updated 0 Hours ago

नेपाल  में हुई “कम्युनिस्टों की जीत” के बावजूद, चीनी रणनीतिक सर्कल के बीच इस नए गठबंधन सरकार की स्थिरता को लेकर आशंका बरकरार हैं.

नेपाल के चुनावी परिणाम के उपरांत की चीनी प्रतिक्रिया

चाहे भले ही मौजूद कोविड संकट की वजह से बर्बाद हुए या फिर नेपाली राजनीति की जटिलता से घिरे होने की वजह से, चीनी इंटरनेट सर्कल में हो रहे वार्ता और बहस के माध्यम से नेपाली चुनाव परिणाम को लेकर शांत हो रखी चीनी प्रतिक्रिया, दृष्टव्य हैं.   

पूर्णत्याह, चीनी समीक्षक इस बात से एकमत हैं कि 2022 में सम्पन्न हुए नेपाली चुनाव के परिणाम,चीन के लिए एक सकारात्मक प्रगति है, चूंकि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (सीपीएन, यूनाइटेड मार्क्सिस्टलेनिनिस्ट और सीपीएन-माओइस्ट) ने पुनः संगठित होकर और भी मजबूती के साथ नेपाली राजनीतिक शक्ति को, कम से कम अगले कुछ वर्षों तक, अपने कब्जे में लिए हैं. कुछ लोग इसे सीधे तौर पर अमेरिका के लिए एकरणनैतिक पराजयमान रहे हैं, जिनका हाल के दिनों में इस हिमालयन राष्ट्र में, यूएस $ 500 मिलियन मिलेननीयम चैलेंज कॉर्पोरेशन (एमसीसी) कम्पैक्ट पर हस्ताक्षर या यूएस स्टेट पार्ट्नर्शिप प्रोग्राम (एसपीपी) आदि, को सफलतापूर्वक विफल किए जाने से, सड़क निर्माण के प्रयास को काफी धक्का लगा हैं. पिछले कुछ महीनों से चीन नेपाल वार्ता के मध्य, नेपाल में अमेरिकी इनरोड का मुद्दा काफी प्रासंगिक रहा है, जहां चीनी समीक्षक नेपाल में पनप रहे इस राजनैतिक विकल्प ( ज्यादातर पश्चिम-शिक्षित नेपाली युवाओं से प्रेरित) के ट्रेंड की गंभीरता से चिंतित हैं, और उसके अलावे नेपाली मीडिया के कुछ भाग पर भी अमेरिकी लॉबिस्ट होने, नेपाल में पश्चिमी तौर तरीके वाली डेमोक्रेसी और साम्यवाद के प्रति उमड़ता विरोध का आरोप लगाया है. यूएस पर ऐसे भी आरोप लग रहे हैं कि अपने रणनीतिक जरूरतों की पूर्ति के लिए, अमेरिका नेपाल के शीर्ष पर किसी कमजोर और गैर साम्यवादी राष्ट्रपति को बिठाने के प्रयास में काफी सख्त लॉबिंग कर रही हैं.  

इस नजरिए से अगर देखा जाए तो, चीनी खेमा इस बात से राहत महसूस कर रहा होगा कि साम्यवादी पार्टियों के प्रभुत्व से दबी इस नयी सरकार का पुनः सत्ता पर काबिज हो गई हैं, और इस वजह से नेपाली सोसाइटी और राजनीति में साम्यवाद की अपील दृढ़ रहेगी और किसी प्रकार की अमेरिकी वैल्यू अथवा सिद्धांतों से हिलेगी नहीं. वे इस बात पर भी बहस कर रहे है कि लेफ्ट विंग राजनैतिक दलों के पुनः नेपाली सत्ता में वापस आने और पूर्व नेपाली प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की हार के बाद, काँग्रेस पार्टी की अगुवाई वाली शासनरत पार्टी गठबंधन  बिखरने के उपरांत एमसीसी का मुद्दा फिर से उठेगा और अपने अम्लीकरण की प्रक्रिया में पुनः उसे नई परेशानियों से दो चार होना पड़ेगा. सारांश में, नेपाल में उत्पन्न नई स्थिति के बाद, चीनी समीक्षकों का ऐसा मानना है कि अमेरिकियों को अपनी नेपाली रणनीति में बदलाव करने पड़ेंगे.    

चीनी समीक्षकों के अनुसार, नेपाली कांग्रेस की असफलता, भारत के लिए भी एक बुरा समाचार हैं.इस बात की बहस हैं कि दोनों ही नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओइस्ट सेंटर) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनाइटेड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) मूल साम्यवादी पार्टियां हैं, जो की आनुवंशिक तौर पर सीपीसी के निकट और मनोवैज्ञानिक तौर पर न्यू दिल्ली अथवा वाशिंगटन से ऊपर बीजिंग की दिलचस्पी को वरीयता देते हैं. हो सकता है की भले ही पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली नेपाल में चीन की सबसे बड़ी पूंजी होंगे, चीनी समीक्षकों ने ये भी ध्यान दिया है कि नवनियुक्त प्रधानमंत्री भी किसीप्रो-चीनसे कम नहीं हैं. उन्होंने इस बात की ओर इशारा करते हुए कहा कि पहली बार 2008 में वो प्रचंड ही थे जिन्होंने सबसे पहले प्रधानमंत्री बनने के उपरांत भारत यात्रा के डिप्लोमेटिक परंपरा को बदला था, ध्यान दिलाते हुए उन्होंने कहा, जब नए नेपाली अधिकारियों ने अपनी गद्दी संभाली. कोई आश्चर्य नहीं, जब सत्ता से बाहर थे के बावजूद, मार्च 2022 में चीनी विदेश मंत्री वांग यी के काठमांडू यात्रा के दौरान उन्होंने भी शिरकत की थी. इसलिए एक तरीके से, बीजिंग के नजरिए से अगर माना जाए तो, प्रचंड के लिए ये एक बेहतरपारितोषिक वापसीका समय है.  

उस नजरिए से अगर देखा जाए तो, चीनी जोर इस बार, चीन-नेपाल रेलवे को फास्ट ट्रैक करने पर होगा,जो की फिलहाल अपने शुरुआती दौर पर ही हैं. इस बात की रिपोर्ट हैं कि चीनी एक्सपर्ट पहले से नेपाल यात्रा कर रहे है ताकि उसके शुरुआती रिसर्च वर्क की जा सके. भारत के प्रति नेपाल की निर्भरता को कम करने में मदद” “उनकी संप्रभुता की रक्षाआदि के नाम पर, चीन अपने बेल्ट और रोड प्लान में तेजी लाना चाहता हैं, और प्रस्तावित चीन-नेपाल-भारत कॉरिडोर में भी आपेक्षिक गति लाना चाहती है. विभिन्न कान्ट्रवर्सी से घिरी चीनी बीआरआई को ये ना सिर्फ एक सकारात्मक पब्लिसिटी प्रदान करेगी, बल्कि ये प्रभावशाली तरीके से बढ़ते भारत के लिए भी एक कडा संदेश होगा. दूसरी तरफ, चूंकि चीन-भारत के विवादास्पद सीमा पर व्याप्त तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा हैं,तो हो सकता है चीन,नेपाल की नवनियुक्त सरकार पर भारत के साथ के अपने पुराने विवादग्रस्त सीमा मुद्दों को पुनः हवा देने के लिए दबाव बना सकता हैं ताकि चीन की स्थिति, जिसे चीनी अनलाइन सर्कल में इस्तेमाल किए जाने वाले गाली “3डी打印 (3डी प्रिंटिंग)” कहते हैं, जिसके माने है ... भारत पर तीनों जगहों (चीन, पाकिस्तान और नेपाल) की तरफ से आक्रमण / प्रताड़ित करना (印度)   

जीत के बाद आगे की राह 

हालांकि, नेपाल में मिली तमामसाम्यवादी जीतके जोश के बावजूद, बहु-राजनीतिक दलों के समन्वय से नेपाल में नवगठित गठबंधन सरकार की स्थिरता को लेकर चीनी रणनीतिक खेमे/ हल्कों में अब भी आशंकाएं व्याप्त है. ये एक चिंतापूर्ण सोचनीय विषय हैं कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब प्रचंड और ओली नें आपस में 2.5 + 2.5 साल के सत्ता में साझेदारी समझौता किया हो. उन्होंने 2017 के आम चुनाव में भी ऐसे ही एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, और उन्होंने अपनी अपनी पार्टियों का विलय करके कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल का गठन किया था. हालांकि, उसके बाद से हुए विकास के तहत, हमेशा ऐसे किसी गठबंधन की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े किए है. इसलिए इस नजरिए से, चीनी समीक्षकों का मानना है कि प्रचंड का उद्भव महजरेत का किलाभर है. चीनी समीक्षा के अनुसार, नेपाली की राजनीतिक स्थिरता अगले पांच वर्षों में एक निम्न संभावनाओं वाली घटना साबित होने वाली है, जहां विभिन्न गठबंधन टूटेगा और फिर एकीकृत होंगी, और क्रमशः एक के बाद एक, नए प्रधानमंत्री तैयार करेगी. ये कुछ ऐसा है जिससे चीनी खेमे में चिंता व्याप्त हैं, चूंकि उनको ऐसा विश्वास हैं कि ऐसी कोई भी स्थिति, अमेरिका और भारत समेत, अन्य बाहरी ताकतों कोछेड़छाड़ और हस्तक्षेप करनेकी स्वतंत्रता प्रदान करेगी. ऐसी स्थिति में, चीनी खेमे को इस बात की चिंता हैं कि बहुमत से प्राप्त जीत के बावजूद, किस प्रकार से नेपाली कम्युनिस्ट, चीन के मुताबिक अपना प्रदर्शन दे पाएगी

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.