Author : Ayjaz Wani

Published on Nov 17, 2022 Updated 0 Hours ago

मध्य एशिया पर बढ़ते नियंत्रण के साथ-साथ दुनिया में चीन का दबदबा जमाने की शी की हसरत परवान चढ़ती जा रही है.

Chinese influence over Central Asia: मध्य एशिया पर चीन का बढ़ता प्रभाव

ये द चाइना क्रॉनिकल्स श्रृंखला का 136वां लेख है. 


शी (Xi Jinping) की हुकूमत में अल्पसंख्यकों पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) का रुख़ सख़्त होता चला गया. हालांकि वैश्विक संगठनों और चीनी अल्पसख्यकों के साथ मज़बूत ताल्लुक़ात रखने वाले मुल्कों (ख़ासतौर से मध्य एशिया) में चीन का ये क़दम उल्टा पड़ सकता था. शी की तानाशाही हुकूमत में शिनजियांग (Xinjiang) के मुसलमान, CCP का पहला निशाना बन गए. उनपर हाईटेक तरीक़े से निगरानी रखी जा रही है और उन्हें मानवाधिकार (human rights) के गंभीर उल्लंघनों का सामना करना पड़ रहा है. अपना विवादित इतिहास समेटे शिनजियांग इलाक़े का मध्य एशिया (Middle Asia) के साथ ठोस सांस्कृतिक रिश्ता रहा है. शी की हुकूमत में चीन (China) की ओर से बढ़ते आर्थिक शोषण और स्थानीय वीगर मुस्लिमों को हाशिए पर डालने की क़वायदों के चलते इस इलाक़े में अलगाववाद और केंद्रीय सत्ता से छिटककर दूर जाने की प्रवृति को ख़ूब हवा मिली है.

2001 में उज़्बेकिस्तान के प्रवेश के साथ शंघाई फ़ाइव, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में तब्दील हो गया. SCO, चीन का पहला बहुपक्षीय संगठन था और उसने विदेश व्यापार से जुड़ी अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने और अशांत शिनजियांग प्रांत की सुरक्षा के लिए इसका भरपूर इस्तेमाल किया.

  

चीन और मध्य एशिया

सोवियत संघ के विघटन के बाद मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) को चीन ने शिनजियांग की सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद अहम समझा. यूरेशिया, यूरोप और रूसी बाज़ारों तक पैठ बनाने के लिए शिनजियांग, चीन का प्रवेश द्वार बन गया. ले. ज. लियु याझोऊ के मुताबिक मध्य एशियाई गणराज्यों में हाइड्रोकार्बन के समृद्ध संसाधन “आज चीनी लोगों के लिए ईश्वर की ओर से दी गई बेशक़ीमती सौगात” है. चीन ने इस इलाक़े में प्राचीन सिल्क रूट को फिर से ज़िंदा करने के लिए अपनी क़वायद तेज़ कर दी. इस कड़ी में पाइपलाइनों, रेलवे संपर्कों और सड़कों का निर्माण किया गया. भरोसा पैदा करने वाले उपायों के ज़रिए अनिश्चित सरहदों की समस्या के समाधान के लिए चीन ने 1996 में रूस की मदद से शंघाई फ़ाइव का गठन किया. 2001 में उज़्बेकिस्तान के प्रवेश के साथ शंघाई फ़ाइव, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में तब्दील हो गया. SCO, चीन का पहला बहुपक्षीय संगठन था और उसने विदेश व्यापार से जुड़ी अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने और अशांत शिनजियांग प्रांत की सुरक्षा के लिए इसका भरपूर इस्तेमाल किया. SCO के मंच के ज़रिए चीन ने मध्य एशियाई गणराज्यों को वीगर संगठनों पर प्रतिबंध लगाने और इलाक़े में वीगर कार्यकर्ताओं की गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए रज़ामंद कर लिया.

 मध्य एशिया में वीगरों की आबादी तीन लाख से भी ज़्यादा है. दूसरी ओर शिनजियांग के इलाक़े में 1,810,507 कज़ाख़, 196,320 किर्गी और कई उज़्बेकों समेत वीगरों की एक बड़ी तादाद रहती है. इन अल्पसंख्यकों पर चीन के अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले कार्यकर्ताओं को या तो जेल में डाल दिया गया या उन्हें ये इलाक़ा छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया.

चीन ने अपनी सरज़मीं तक तेल और गैस लाने के लिए पाइपलाइन तैयार किए और मध्य एशियाई बाज़ारों को अपने सस्ते विनिर्मित उत्पादों से पाट दिया. चीन ने साम्यवादी नेतृत्व वाले मध्य एशियाई देशों को लोचदार शर्तों के तहत ऋण और निवेश भी मुहैया करवाए. किर्गिस्तान ने उससे साख के तौर पर 1994 में 74 लाख अमेरिकी डॉलर और 1998 में 1.47 करोड़ अमेरिकी डॉलर की रकम उधार ली. 2005 में उज़्बेकिस्तान ने चीन से 60 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया. 2009 में चीन ने कज़ाख़स्तान के साथ तेल सौदे को लेकर 10 अरब अमेरिकी डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसके अलावा उसने SCO की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्थाओं की मदद के लिए संगठन को 10 अरब डॉलर का कर्ज़ भी उपलब्ध करवाया. इसी तरह 2011 में चीन ने तुर्कमेनिस्तान को 4.1 अरब अमेरिकी डॉलर के ऋण की मंज़ूरी दी. चीन ने इस इलाक़े में सियासी रसूख़ रखने वाले तबक़े तक अपनी पैठ बना ली. उसने अपने साम्राज्यवादी हित साधने के मक़सद से एक सामाजिक वर्ग तैयार करने के लिए भ्रष्ट तौर-तरीक़ों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया. 

मध्य एशिया के लिए शी की रणनीति

शी को चीन के भीतर अपने मंसूबों और नए सिरे से तैयार अपनी विदेश नीति का अच्छे से एहसास था. अपनी क़वायदों को अंजाम देने से पहले शी ने विदेश नीति के मोर्चे पर तमाम क़दम उठाकर उनकी नींव रखी. उन्होंने बीजिंग के हितों को केंद्र में रखकर कई वैश्विक संगठन तैयार किए. इनमें एशियन इंफ़्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) शामिल हैं. इसके अलावा उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में चीन का रुतबा और मज़बूत कर लिया. 

मध्य एशिया में चीन ने सामरिक रूप से अहम ताजिकिस्तान के वाख़ान गलियारे में एक सैन्य अड्डा स्थापित किया. ये इलाक़ा चीन की “पश्चिम की ओर रुख़ करने की रणनीति” का एक अहम केंद्र बन गया. सितंबर 2013 में शी ने कज़ाख़स्तान में “सदी की परियोजना” के तौर पर BRI के आग़ाज़ का एलान किया. चीन को वैश्विक खिलाड़ी बनाने के महत्वाकांक्षी अभियान में शी ने BRI को एक बहुआयामी रणनीति के तौर पर इस्तेमाल किया है. अपनी सरज़मी में तैयार वस्तुओं को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाने और BRI में हिस्सेदार देशों पर अपने आर्थिक दबदबे का अंतरराष्ट्रीय संगठनों में लाभ उठाने के लिए चीन ने भरपूर जुगत लगाई है. मध्य एशियाई देशों के लिए BRI, अपनी भौगोलिक रुकावटों से पार पाकर महादेशीय संपर्क वाली परियोजनाओं से जुड़ने का मौक़ा था. इस तरह वो वैश्विक व्यापार में एक बार फिर केंद्रीय भूमिका हासिल कर सकते थे.  

शी ने चीनी विदेश नीति को लेकर डेंग शियाओपिंग के सतर्कता भरे रुख़ को अलविदा कह दिया. साथ ही “अपनी क्षमताओं को छिपाने और मौक़े का इंतज़ार करने” की उनकी नीति का भी त्याग कर दिया. इसके उलट, शी वैश्विक स्तर पर चीन का दबदबा क़ायम करने की जुगत लगा रहे हैं, जिसका बुनियादी उसूल एकाधिकारवाद है.

2014 से शी ने शिनजियांग क्षेत्र में अपना शिकंजा मज़बूत कर लिया है. इस कड़ी में मानव अधिकारों की धज्जियां उड़ाने वाली अनेक नीतियां लागू की गईं. इलाक़े में निगरानी गतिविधियां भी बढ़ा दी गई. CCP ने 10 लाख से भी ज़्यादा मुसलमानों (वीगरों, कज़ाखों और उज़्बेकों समेत) को बंदी बनाने के लिए 1200 से भी ज़्यादा हिरासती केंद्र तैयार किए. इन मुस्लिम नागरिकों को नक़ाब पहनने या लंबी दाढ़ी उगाने जैसे थोथे बहाने बनाकर हिरासत में ले लिया गया. मध्य एशिया में वीगरों की आबादी तीन लाख से भी ज़्यादा है. दूसरी ओर शिनजियांग के इलाक़े में 1,810,507 कज़ाख़, 196,320 किर्गी और कई उज़्बेकों समेत वीगरों की एक बड़ी तादाद रहती है. इन अल्पसंख्यकों पर चीन के अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले कार्यकर्ताओं को या तो जेल में डाल दिया गया या उन्हें ये इलाक़ा छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया. अपनी नस्ली बिरादरी पर चीन के ज़ुल्मोसितम पर मध्य एशियाई देशों में उभरते असंतोष पर क़ाबू पाने के लिए चीन ने BRI के तहत अपने आर्थिक रसूख़ और मध्य एशिया में अपने निवेश को हथियार बनाया. चीन की यातनाओं से बचने के लिए शिनजियांग से पलायन कर चुके अनेक वीगरों और कज़ाख़ मुस्लिमों को मध्य एशियाई देशों ने पकड़कर वापस चीन भेज दिया. 

वैश्विक मंचों पर शी की मदद

शिनजियांग और अल्पसंख्यकों के दूसरे इलाक़ों में इन नीतियों का वैश्विक मंचों पर बचाव करने में मध्य एशियाई देशों ने शी की भरपूर मदद की है. इस साल अक्टूबर में अमेरिका की अगुवाई में लोकतांत्रिक देशों के प्रमुख समूह ने शिनजियांग में मानव अधिकारों की स्थिति पर बहस के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में मसौदा प्रस्ताव रखा. हालांकि UNHRC की 47-सदस्यीय परिषद ने अमेरिकी अगुवाई वाले इस मसौदा प्रस्ताव को नामंज़ूर कर दिया. महज़ 17 सदस्यों ने इसके हक़ में मतदान किया जबकि 19 ने इसका विरोध किया. अतीत में कज़ाख़स्तान और उज़्बेकिस्तान वीगर मसले पर वैश्विक मंचों में होने वाले मतदान में हिस्सा नहीं लेते थे. वो शिनजियांग में चीन की कार्रवाइयों का समर्थन किया करते थे. इस दफ़ा उन्होंने भी मसौदा प्रस्ताव के ख़िलाफ़ मतदान किया. दरअसल, सितंबर में SCO शिखर सम्मेलन के दौरान शी ने इन दोनों मुल्कों का दौरा किया था. मध्य एशिया के इन दो विशाल देशों का चीन की मदद करने से जुड़ा ताज़ा क़दम इसी दौरे के बाद सामने आया. कोविड-19 के प्रकोप के बाद अपने पहले विदेशी दौरे में शी ने उज़्बेकिस्तान और किर्गिस्तान के साथ 4.1 अरब अमेरिकी डॉलर के एक नए रेल-सड़क सौदे पर दस्तख़त किए थे.

शी ने चीनी विदेश नीति को लेकर डेंग शियाओपिंग के सतर्कता भरे रुख़ को अलविदा कह दिया. साथ ही “अपनी क्षमताओं को छिपाने और मौक़े का इंतज़ार करने” की उनकी नीति का भी त्याग कर दिया. इसके उलट, शी वैश्विक स्तर पर चीन का दबदबा क़ायम करने की जुगत लगा रहे हैं, जिसका बुनियादी उसूल एकाधिकारवाद है. इसको लेकर अमेरिका और पश्चिमी जगत की धारणा नकारात्मक है. शी के मातहत चीनी राज्यसत्ता के अड़ियल रुख़ के चलते पश्चिम के लोकतांत्रिक देश रणनीतिक मोर्चे पर दबाव की नीति अपनाने पर मजबूर हो गए हैं. 

23 अक्टूबर को शी ने अपने वफ़ादारों का भीतरी गुट मज़बूत करते हुए राष्ट्रपति के तौर पर ऐतिहासिक रूप से तीसरा कार्यकाल सुरक्षित कर लिया. हालांकि शी को तीसरे कार्यकाल में व्यापार, प्रौद्योगिकी, शिनजियांग में मानव अधिकारों, तिब्बत और ताइवान पर मतभेदों से जुड़े मसलों पर अमेरिका और पश्चिम के साथ लाज़िमी तौर पर टकराव का सामना करना होगा. अमेरिका और चीन के बीच तेज़ हुई रस्साकशी को बाइडेन प्रशासन “निर्णायक दशक” क़रार दे रहा है. उधर चीन इसे ब्लैकमेल करने, नकेल कसने और ख़ुद का रास्ता रोकने की बाहरी क़वायद के तौर पर देखता है. रूस-यूक्रेन युद्ध ने मध्य एशियाई गणराज्यों में क्षेत्रीय अखंडता, व्यापार और रूस के ज़रिए आवागमन के रास्तों को लेकर कई चिंताओं को हवा दे दी है. यहां तक कि मध्य एशिया के कुछ देशों ने चीन की आलोचना करते हुए यूक्रेन को मानवतावादी मदद भी पहुंचाई है. ज़ाहिर है, भूराजनीतिक और भूसामरिक स्तर पर इस वक़्त हालात चुनौतीपूर्ण और टकराव भरे हैं. ऐसे में भौगोलिक रूप से मध्य एशिया की केंद्रीय स्थिति और रूस की घटती ताक़त, शी को इस इलाक़े में और दबदबा क़ायम करने में मददगार साबित होगी. 

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