Published on Jun 21, 2022 Updated 0 Hours ago

CCP में दूसरे प्रतिद्वंदियों के उभरने से शी की दीर्घकालिक संभावनाओं पर सवाल खड़े हो गए हैं.

#China: शीर्ष पर वर्चस्व क़ायम करने की रस्साकशी से बेपर्दा हुई चीनी व्यवस्था में व्याप्त दरारें!

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व की तुलना किसी झील में हंसों के झुंड के साथ की जाती रही है. इन पक्षियों की वजह से झील की सतह पर शायद ही कोई हलचल मचती है. वो अपना स्थान बदले बिना तैरती भी रह सकती हैं. हालांकि, वो तैरते रहने के लिए सतह के नीचे ज़बरदस्त रूप से पैर मारते रहते हैं. कोविड-19 महामारी के बीच सियासी परिदृश्य में प्रधानमंत्री ली केकियांग के उभार और उपप्रधानमंत्री सुन चुनलुन (सबसे ऊंचे पद पर आसीन महिला अधिकारी) जैसे दूसरी कतार के नेताओं के उदय से CCP में महासचिव शी जिनपिंग के सियासी भविष्य को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है.

कोविड-19 महामारी के बीच सियासी परिदृश्य में प्रधानमंत्री ली केकियांग के उभार और उपप्रधानमंत्री सुन चुनलुन (सबसे ऊंचे पद पर आसीन महिला अधिकारी) जैसे दूसरी कतार के नेताओं के उदय से CCP में महासचिव शी जिनपिंग के सियासी भविष्य को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है. 

शी जिनपिंग और ली केकियांग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की पांचवीं पीढ़ी के नेताओं में शुमार हैं. इन नेताओं को 2012 में हुई 18वीं पार्टी कांग्रेस में अगले दशक के लिए क्रमश: चीन के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के तौर पर आगे बढ़ाया गया था. तब ऐसी ख़बरें आई थीं कि इन दोनों नेताओं की तरक़्क़ी दिए जाने की ये क़वायद उस समय पार्टी के  दो प्रमुख धड़ों के बीच के समझौते का नतीजा थी. शंघाई गुट की अगुवाई जियांग ज़ेमिन कर रहे थे जबकि कम्युनिस्ट यूथ लीग (CCYL) से जुड़े धड़े का नेतृत्व हु जिंताओ के हाथों में था. शी और ली क्रमश: इन्हीं दोनों गुटों से ताल्लुक़ रखते थे.

शी ने 2012 में CCP के महासचिव का कामकाज संभाला था. उसके बाद से उन्होंने बेहद होशियारी से अपने इर्द-गिर्द सत्ता का केंद्रीकरण करने की पूरी जुगत भिड़ा रखी है. इस क़वायद की शुरुआत उन्होंने अपने संभावित प्रतिद्वंदियों और उत्तराधिकारियों के सफ़ाए के साथ की थी. इसके लिए उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का सहारा लिया. 2018 में उन्होंने राष्ट्रपति के तौर पर अधिकतम दो कार्यकाल के प्रचलित नियम को ख़त्म कर दिया. देंग शियाओपिंग ने 1980 के दशक में ये पाबंदी लगाई थी. 2022 के पार्टी कांग्रेस की तैयारियों के दौरान नेतृत्व के स्तर पर अहम परिवर्तनों का ऐलान किया गया. उस दौरान चीन की सरकारी मीडिया ने शी की हैसियत को आगे बढ़ाने के लिए एक नए नारे- ‘Two Establishes’ यानी ‘दो स्थापित करते हैं’- को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया. ये जुमला चीन के “केंद्रीय” नेता के तौर पर शी के रुतबे को स्थापित करता है और उनके सियासी सिद्धांत को स्थापित करता है. 2018 में देश के संविधान में इन सिद्धांतों को शामिल किया गया था. “केंद्रीय नेता” का दर्जा शी को एक अनूठा ओहदा देता है. साथ ही उनको किसी प्रकार की चुनौती नहीं दिए जाने का संदेश भी देता है. लिहाज़ा ऐसा लगता है कि CCP के वरिष्ठ अधिकारी शी के दबदबे को स्वीकार करते हुए उसके हिसाब से ढलने लगे हैं.

नारे का मक़सद

ऊपर बताए गए नारे की शुरुआत इतिहास से जुड़े एक प्रस्ताव के ज़रिए हुई थी. नवंबर 2021 में पार्टी के ढेरों शीर्ष अधिकारियों द्वारा इसे मंज़ूरी दी गई थी. इससे शी का रुतबा स्थापित हो गया और वो माओत्से तुंग और देंग शियाओपिंग के बराबर के दर्जे पर पहुंच गए. 100 साल पहले पार्टी की स्थापना के बाद से ये इस तरह का तीसरा प्रस्ताव था. इस प्रस्ताव में पार्टी की उपलब्धियों (ख़ासतौर से शी के सत्ता संभालने के बाद) का हिसाब-क़िताब पेश किया गया.

चीन की सरकारी मीडिया ने शी की हैसियत को आगे बढ़ाने के लिए एक नए नारे- ‘Two Establishes’ यानी ‘दो स्थापित करते हैं’- को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया. ये जुमला चीन के “केंद्रीय” नेता के तौर पर शी के रुतबे को स्थापित करता है और उनके सियासी सिद्धांत को स्थापित करता है. 

सत्ता के केंद्रीकरण ने ली केकियांग (आम तौर पर दूसरे दर्जा रखने वाले) को चीनी सियासत में अपेक्षाकृत अप्रासंगिक बना दिया. ली को किनारे लगाने की शी की क़वायद 2013 में ही स्पष्ट रूप से सामने आ गई थी. उस साल शी ने ख़ुद को ही पार्टी की अगुवाई वाले छोटे समूह (LSG) का अध्यक्ष घोषित कर दिया. पार्टी का ये समूह अर्थव्यवस्था और वित्त के मसलों पर विचार करता है. उस समय तक प्रधानमंत्री को इस समूह का अगुवा बनाए जाने की रवायत रही थी. प्रधानमंत्री ली केंद्र सरकार के कई LSGs की अगुवाई करते हैं. बहरहाल पार्टी के LSGs बेहिसाब रसूख़ का प्रदर्शन करते हैं. केंद्र सरकार के LSGs के मुक़ाबले पार्टी के LSGs के पास व्यापक तौर पर फ़ैसले लेने के अधिकार होते हैं. एक और अहम बात ये है कि पार्टी के LSGs ने शी के मातहत और भी ज़्यादा अहमियत हासिल कर ली है. एक ही मसले पर सरकारी निकायों द्वारा लिए गए ज़्यादातर फ़ैसलों के ऊपर पार्टी LSGs के फ़ैसले ही मान्य होते हैं. इस नज़रिए से किसी भी मौजूदा LSGs से ली केकियांग की ग़ैर-मौजूदगी नीति-निर्माण और शासन-प्रशासन में उनकी भूमिका और कद को बौना करने के प्रयासों का संकेत देते हैं.

CCP पर अपनी पकड़ मज़बूत बनाने के बाद शी जिनपिंग इसी साल होने वाले पार्टी के 20वें कांग्रेस में राष्ट्रपति के तौर पर अभूतपूर्व रूप से तीसरे कार्यकाल की जुगत भिड़ा रहे हैं. हाल तक मोटे तौर पर इस बात पर रज़ामंदी थी कि शी अपनी क़वायद में बेरोकटोक कामयाब हो जाएंगे. प्रधानमंत्री ली के कार्यकाल के 10 साल पूरे हो जाने के बाद उनके रिटायर होने के आसार जताए जा रहे थे. ऐसे में माना जा रहा था कि शी जिनपिंग शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर अपनी सत्ता को और भी ज़्यादा मज़बूत बनाने में कामयाब हो जाएंगे. बहरहाल नीतियों से हासिल नतीजों से शी की सत्ता के दरार बेपर्दा हो रहे हैं. बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों से लेकर प्रॉपर्टी डेवलपर्स पर सख़्त लगाम लगाने की नीति ने आर्थिक विकास पर बुरा असर डाला है. यूक्रेन पर रूसी हमले के पहले शी और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने “बिना किसी हद वाली” दोस्ती का ऐलान  किया. चीनी विदेश मंत्री वांग ई ने रूस को “सबसे अहम सामरिक भागीदार” बताया है. इस क़रार ने पश्चिम और चीन के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है. शीत युद्ध के दौरान (नाम के लिए साम्यवादी गुट में होने के बावजूद) चीन पश्चिमी दुनिया से बेहतरीन सौदेबाज़ियां करने में कामयाब रहा था. इन्हीं की बदौलत वो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के मुकाम तक पहुंच पाया. कुछ टीकाकार इस संदर्भ में तौर-तरीक़ा बदलने की क़वायद देखते हैं. नामकरण/नामपद्धति (nomenklatura) की व्यवस्था के तहत साम्यवादी देशों में सार्वजनिक जीवन पर प्रभाव डालने की क्षमता रखने वाले महत्वपूर्ण पदों पर पार्टी के सदस्यों की भर्ती होती रही है. इससे पार्टी को राजनीतिक और आर्थिक मसलों में नीतियां बनाने में सहूलियत हो जाती है. कम्युनिस्ट पार्टी की व्यवस्था में नियमों की पालना पर काफ़ी ज़ोर दिया जाता है. ऐसे में सर्वोच्च नेता के ख़िलाफ़ तो छोड़िए काफ़ी कम लोग ही प्रचलित विमर्श को चुनौती देने का साहस जुटा पाते हैं. इसके बावजूद जब कभी पार्टी के नेतृत्व को चुनौती दी जाती है तब पार्टी के भीतर पुनर्विचार की शुरुआत होती है. स्टेट काउंसिल (ली केकियांग की अगुवाई वाली चीनी कैबिनेट) से मान्यता प्राप्त स्कॉलर और शंघाई पब्लिक पॉलिसी रिसर्च एसोसिएशन के चेयरमैन हु वेई की सलाह को इसी संदर्भ में देखे जाने की दरकार है. उनके मुताबिक चीन को ख़ुद को पुतिन से दूर कर लेना चाहिए. हु के विचारों ने चीन के शैक्षणिक जगत में एक बहस छेड़ दी, लेकिन क्या वो महज़ ली के लिए हालातों का जायज़ा ले रहे थे?

डिजिटल सेक्टर को समर्थन

हाल की दो मुख्य घटनाओं से टीकाकारों के बीच अटकलों का दौर शुरू हो गया है. उनका विचार है कि 20वीं पार्टी कांग्रेस के नज़दीक आते ही शायद अब प्रधानमंत्री ली आख़िरकार राष्ट्रपति शी की छाया से बाहर निकलने लगे हैं. इस सिलसिले में पहली मिसाल देश के आर्थिक हालातों को लेकर प्रधानमंत्री ली केकियांग की साफ़ नज़र आने वाली सक्रियता है. 19 मई को आर्थिक वृदि्ध को स्थिरता देने से जुड़े यूनान सम्मेलन में 12 प्रांतों के सरकारी अधिकारियों ने हिस्सा लिया था. इस जमावड़े में ली ने कोविड नियंत्रण उपायों का आर्थिक और सामाजिक विकास की क़वायद से तालमेल बिठाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. शिन्हुआ की ख़बरों के मुताबिक ली ने “कोविड 19 नियंत्रण के उपायों का आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ और ज़्यादा कार्यकुशल तरीक़े से तालमेल स्थापित करने की अहमियत पर बल दिया. इसके साथ ही व्यापक नियमन की प्रक्रिया को तेज़ करने की भी अहमियत बताई.” उन्होंने स्थानीय सरकारों को “अर्थव्यवस्था को तेज़ी से पटरी पर लाने” के लिए तमाम ज़रूरी क़दम उठाने के निर्देश दिए.

शी की सत्ता के दरार बेपर्दा हो रहे हैं. बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों से लेकर प्रॉपर्टी डेवलपर्स पर सख़्त लगाम लगाने की नीति ने आर्थिक विकास पर बुरा असर डाला है. यूक्रेन पर रूसी हमले के पहले शी और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने “बिना किसी हद वाली” दोस्ती का ऐलान  किया. 

बैठक में उन्होंने प्लेटफॉर्म इकोनॉमी और डिजिटल सेक्टर को समर्थन देने का वचन भी दिया. ये बात ख़ासतौर से अहम है. दरअसल राष्ट्रपति शी ने कथित रूप से ‘पूंजी के बेतरतीब विस्तार’ के इल्ज़ाम में टेक सेक्टर के ख़िलाफ़ कार्रवाइयों की मुहिम छेड़ रखी है. 26 मई को तक़रीबन एक लाख लोगों के साथ टेलीकॉन्फ़्रेंसिंग के दौरान ली ने देश में ऊंची बेरोज़गारी और सुस्त आर्थिक विकास दर की ओर इशारा करते हुए अधिकारियों को अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए क़दम उठाने को कहा. इस सम्मेलन में पार्टी से जुड़े लोग भी शामिल हुए थे. इन बयानों को कुछ लोगों ने ली की ओर से शी की ज़ीरो-कोविड नीति के प्रति एक तरह की ख़िलाफ़त के तौर पर देखा. ग़ौरतलब है कि शी की कोविड नीति को हाल ही में सार्वजनिक रूप से भी विरोध का सामना करना पड़ा है.

निष्कर्ष

पर्यवेक्षकों को एक और घटनाक्रम अहम लगी है. दरअसल सरकारी मीडिया (पीपुल्स डेली) में शी की बजाए ली को सामान्य से ज़्यादा जगह मिलने लगी है. पर्यवेक्षक इस पर ये दलील दे रहे हैं कि शी से जुड़े कवरेज की ग़ैर-मौजूदगी या उसमें आई गिरावट को ली को दी जा रही ज़्यादा कवरेज से जोड़कर देखे जाने की ज़रूरत है. टीकाकारों का मानना है कि इससे शी के मुक़ाबले ली के बढ़ते प्रभाव की झलक मिलती है.

सरकारी मीडिया (पीपुल्स डेली) में शी की बजाए ली को सामान्य से ज़्यादा जगह मिलने लगी है. पर्यवेक्षक इस पर ये दलील दे रहे हैं कि शी से जुड़े कवरेज की ग़ैर-मौजूदगी या उसमें आई गिरावट को ली को दी जा रही ज़्यादा कवरेज से जोड़कर देखे जाने की ज़रूरत है. टीकाकारों का मानना है कि इससे शी के मुक़ाबले ली के बढ़ते प्रभाव की झलक मिलती है. 

बेशक़ CCP में क्रांतिकारी सत्ता संघर्ष की संभावना ख़्याली पुलाव हो सकती है, लेकिन इस घटनाक्रम से एक ही शख़्स के हाथों में तक़रीबन समूची सत्ता के केंद्रीकरण के बारे में काफ़ी कुछ बातें सामने आती हैं. एक व्यक्ति की हुकूमत और नीति-निर्माण पर उसके प्रभावों से जुड़ी अनिश्चितताओं का अनुभव करने के बाद डेंग ने चीन में सामूहिक नेतृत्व को आगे किया था. इसके लिए संस्थाओं के स्वरूप वाली प्रणाली तैयार की गई थी, जो एक दूसरे पर लगाम रखती हैं. साथ ही डेंग ने सियासी उत्तराधिकार की व्यवस्था को संस्थागत रूप दे दिया. इसके तहत एक नेता के हाथ में 10 साल के लिए ही देश की बागडोर थमाए जाने का प्रावधान किया गया. ऐसा लगता है कि कार्यकाल की सीमा को हटाकर और भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों के ज़रिए प्रतिद्वंदियों की छंटाई करके शी ने एक तरह का जाल तैयार कर दिया है. ऐसे में हो सकता है कि शी के प्रतिद्वंदी नीतिगत मोर्चे पर उनके लड़खड़ाने की राह देख रहे हैं.

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