Published on Nov 03, 2022 Updated 0 Hours ago

जहां तक चीन की कूटनीति की आगे की योजना की बात है, तो पिछली बहुत सी बातों को बरकरार रखा गया है. हालांकि 20वीं पार्टी कांग्रेस में चीन की कूटनीति में जो बदलाव किए गए हैं, वो मौजूदा अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक माहौल को लेकर चिंता को ज़ाहिर करते हैं.

#China: 20वीं पार्टी कांग्रेस और चीन की कूटनीति के भविष्य का सफ़र

हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के 20वें राष्ट्रीय सम्मेलन में एक रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट की तमाम ख़ास बातों में से एक चीन की विदेश नीति या कूटनीति को लेकर उनके विचार भी थे. इसमें कहा गया था कि पिछले एक दशक के दौरान चीन ने ‘चीन की अपनी विशेषताओं वाली बड़े देश की कूटनीति को व्यापक स्तर पर बढ़ावा दिया है. मानवता के साझे भविष्य वाले एक समुदाय के निर्माण को प्रोत्साहन दिया है. नए तरह के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के निर्माण को हौसला दिया है और वैश्विक प्रशासन व्यवस्था के सुधार और निर्माण में सक्रिय रूप से भागीदारी निभाई है.’ राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसी बात को और आगे बढ़ाते हुए ज़ोर देकर कहा था कि, ‘चीन एक साझा भविष्य वाले वैश्विक समुदाय को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है.’ और ‘वो शांति के लिए एक स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ाने का मज़बूत इरादा रखता है.’ शी जिनपिंग ने हर तरह की दादागीरी और ताक़त की राजनीति, शीत युद्ध वाली मानसिकता, अन्य देशों के अंदरूनी मामलों में दख़लंदाज़ी और दोहरे मापदंडों के ख़िलाफ़ भी अपने विचार व्यक्त किए.

पिछले कुछ महीनों से अंतरराष्ट्रीय माहौल में चल रही उठा-पटक को लेकर चीन में चिंता बढ़ती जा रही है. चीन के आकलन के मुताबिक़ मौजूदा अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक हालात, ’77 साल पहले ख़त्म हुए दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सबसे भयंकर और उथल-पुथल भरे हैं’.

अगर हम शी जिनपिंग द्वारा कही गई बातों के भीतर छुपे अर्थ का पता लगाना चाहते हैं, तो ये समझना ज़ररी है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास में एक असरदार विदेश नीति तैयार करने के लिए तीन बातों को अहम माना जाता रहा है: 1) अंतरराष्ट्रीय हालात का सटीक आकलन; 2) घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मामलों के रिश्तों के पेंच से सही तरीक़े से निपटना, और 3) अपने साथ साथ दुश्मन की भी अच्छी जानकारी रखना. इसका मतलब ये है कि अपने साथ साथ दुश्मन की ताक़त और कमज़ोरियों की भी सही जानकारी होनी चाहिए.

पिछले कुछ महीनों से अंतरराष्ट्रीय माहौल में चल रही उठा-पटक को लेकर चीन में चिंता बढ़ती जा रही है. चीन के आकलन के मुताबिक़ मौजूदा अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक हालात, ’77 साल पहले ख़त्म हुए दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सबसे भयंकर और उथल-पुथल भरे हैं’. ये तर्क दिया जा रहा है कि विश्व व्यवस्था में इस वक़्त बड़े पैमाने पर उठा-पटक हो रही है. बदलाव आ रहे हैं और नए तालमेल बिठाए जा रहे हैं. इस दौरान सत्ता का संतुलन साफ़ तौर पर चीन के पक्ष में झुकता दिख रहा है. इसी वजह से ये अंतहीन चुनौतियों और बढ़ते जोख़िमों का युग बन गया है; ये दौर अस्थिरता और अनिश्चितता वाला है जहां खेमेबंदी की राजनीति और शीत युद्ध वाली मानसिकता फिर से सिर उठा रही है; इकतरफ़ावाद और संरक्षणवाद बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा है; और शांति, विकास, भरोसे और प्रशासन की कमी लगातार बढ़ती जा रही है.

चीन के कुछ पर्यवेक्षकों का ये अनुमान भी है कि पार्टी कांग्रेस से ठीक पहले, देश के नेतृत्व द्वारा लिए गए कुछ अहम सामरिक निर्णय या फ़ैसले आने वाले वर्षों में चीन की कूटनीति की राह तय करेंगे.

इसी पृष्ठभूमि में चीन के भीतर हाल के महीनों में एक सवाल बार-बार उठ रहा है: ‘सदी में अब तक नहीं देखे गए बदलावों के बीच में क्या चीन के विकास के लिहाज़ से अहम सामरिक मौक़ों वाले दौर का वजूद अभी भी बना हुआ है?’ 24 जून 2022 को राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वैश्विक विकास पर एक उच्च स्तरीय संवाद के दौरान, कुछ हद तक इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की थी. तब उन्होंने कहा था कि, ‘चीन का विकास अभी भी अहम सामरिक मौक़ों के दौर से गुज़र रहा है. लेकिन, अवसर हों या चुनौतियां, दोनों ही मामलों में बदलाव और नई परिस्थितियां देखी जा रही हैं.’ अब इस नए युग में ‘चीन की अपनी विशेषताओं वाली बड़ी ताक़त वाली कूटनीति’ कैसी होनी चाहिए? इससे चीन को अपने शताब्दी के दूसरे लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल सकती है- ‘2049 तक एक आधुनिक समाजवादी देश का निर्माण जो समृद्ध, मज़बूत, लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक रूप से उन्नत और सौहार्द से भरपूर हो’- और चीनी राष्ट्र के महान पुनर्जागरण का लक्ष्य हासिल कर सके. ये सवाल बहुत अहम मुद्दों से जुड़ा हुआ है, जिसकी चीन के सामरिक हलकों में बहुत चर्चा और परिचर्चा हो रही है. 

स्वतंत्र विदेश नीति

इस संदर्भ में 20वीं पार्टी कांग्रेस में पेश की गई रिपोर्ट के हवाले से चीन के सामरिक विशेषज्ञों ने चीन की कूटनीति के कुछ स्थायी तत्वों और कुछ बदलावों पर ध्यान दिया है. चीन की शांति, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों, बाहरी दुनिया के लिए ख़ुद को खोलने की बुनियादी राष्ट्रीय नीति और वैश्विक प्रशासन व्यवस्था में सुधार और निर्माण में भागीदारी- ये चीन की स्वतंत्र विदेश की नीति के स्थायी तत्व हैं, जिनका ज़िक्र रिपोर्ट में किया गया है. चीन की कूटनीति के इन तत्वों को अलग अलग अंतरराष्ट्रीय अवसरों पर भी घोषित किया गया है. हालांक वैश्विक विकास की पहल और वैश्विक सुरक्षा की पहल के रूप में दो नए पहलू हैं, जिनका इस रिपोर्ट में पहली बार ज़िक्र किया गया है.

चीन के कुछ पर्यवेक्षकों का ये अनुमान भी है कि पार्टी कांग्रेस से ठीक पहले, देश के नेतृत्व द्वारा लिए गए कुछ अहम सामरिक निर्णय या फ़ैसले आने वाले वर्षों में चीन की कूटनीति की राह तय करेंगे. इन सामरिक फ़ैसलों में राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के राष्ट्राध्यक्षों की 22वीं बैठक में ख़ुद शिरकत करना; शंघाई सहयोग संगठन में शामिल हुए 10 देशों के नेताओं से शी जिनपिंग की द्विपक्षीय मुलाक़ात; चीन- रूस और मंगोलिया के बीच त्रिपक्षीय बैठक में शामिल होना; कज़ाख़िस्तान और उज़्बेकिस्तान की राजकीय यात्रा करना; चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव को सक्रियता से आगे बढ़ाना, वैश्विक सुरक्षा और वैश्विक विकास की पहल करना; और प्रासंगिक देशों के साथ परियोजनाओं और सहयोग के समझौतों से जुड़े दस्तावेज़ों पर दस्तख़त करना शामिल है. इसके अलावा, इस सूची में अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया (AUKUS) के बीच हुए परमाणु पनडुब्बी के समझौते का अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी द्वारा विरोध करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास करना भी शामिल है. इन बातों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति द्वारा लिए गए ऐतिहासिक फ़ैसलों में गिना जा रहा है, जिनके ज़रिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के बीच तालमेल बिठाया जाएगा और चीन की विशेषताओं वाली बड़ी ताक़त वाली कूटनीति को नई दिशा देते हुए उसके लिए नई परिस्थिति का निर्माण किया जाएगा. इसके अलावा, आगे चलकर जब चीन अपने ‘दोस्तों के एक घेरे’ का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है, तो ऐसा लगता है कि रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकॉनमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट (RCEP), कॉम्प्रिहेंसिव ऐंड प्रोग्रेसिव ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) और डिजिटल इकॉनमी पार्टनरशिप (DEP) के समझौते चीन के कूटनीतिक एजेंडे में सबसे ऊपर होंगे.

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Author

Antara Ghosal Singh

Antara Ghosal Singh

Antara Ghosal Singh is a Fellow at the Strategic Studies Programme at Observer Research Foundation, New Delhi. Her area of research includes China-India relations, China-India-US ...

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