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पश्चिम एशिया में दशकों से अमेरिका ही सबसे बड़ी शक्ति के रूप में मौजूद रहा है. फिर यह मोड़ आया कैसे, आइए समझते हैं.
यह ग्लोबल ऑर्डर में बड़े बदलावों का साल रहा है. यूक्रेन वॉर के बाद दुनिया की बड़ी शक्तियों में पोलराइजेशन बढ़ा. अमेरिका और चीन के मुकाबले ने भी इस साल नया रूप लिया. हमने देखा कि चीन को लेकर अमेरिका किस तरह से सीरियस हुआ है. बाइडन सरकार ने अपनी आर्थिक नीतियों को बदला है. सेमिकंडक्टर्स और आधुनिक तकनीक चीन तक ना पहुंचे, उसके लिए कानून बनाए हैं. दूसरी ओर साल के आखिर में चीन की विदेश नीति तब एक नया मोड़ लेती दिखी, जब शी जिनपिंग ने पश्चिम एशिया (मिडल ईस्ट) का दौरा किया.
हमने देखा कि चीन को लेकर अमेरिका किस तरह से सीरियस हुआ है. बाइडन सरकार ने अपनी आर्थिक नीतियों को बदला है. सेमिकंडक्टर्स और आधुनिक तकनीक चीन तक ना पहुंचे, उसके लिए कानून बनाए हैं.
पश्चिम एशिया में दशकों से अमेरिका ही सबसे बड़ी शक्ति के रूप में मौजूद रहा है. फिर यह मोड़ आया कैसे, आइए समझते हैं.
इसीलिए चीन की नई पहल बेहद अहम है. हिंद-प्रशांत में चीन काफी अलग-थलग पड़ गया है. पश्चिमी देशों के साथ भी चीन के संबंध इस समय बहुत सार्थक नहीं दिख रहे. ऐसे में चीन के राष्ट्रपति का पश्चिम एशिया जाना संकेत दे रहा है कि वह वहां अमेरिका को चुनौती देने के लिए तैयार हैं. हालांकि सऊदी अरब और चीन के संबंध काफी सालों से धीरे-धीरे बढ़ रहे थे, लेकिन शी की हालिया यात्रा ने उसे एक तरह से अंतिम रूप दे दिया. इस रिश्ते के अभी के मोड़ तक पहुंचने की और भी इसकी कई वजहें हैं.
पश्चिमी देशों के साथ भी चीन के संबंध इस समय बहुत सार्थक नहीं दिख रहे. ऐसे में चीन के राष्ट्रपति का पश्चिम एशिया जाना संकेत दे रहा है कि वह वहां अमेरिका को चुनौती देने के लिए तैयार हैं.
हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि पश्चिम एशिया में अमेरिका का असर कम होगा, क्योंकि उसके अभी भी यूएई, सऊदी अरब और इस्राइल के साथ गहरे संबंध हैं. सिक्यॉरिटी इश्यूज में भी उनकी अमेरिका के ऊपर बहुत ज्यादा निर्भरता है. लेकिन चीन ने इस विजिट के बाद एक बार फिर बता दिया है कि अमेरिका को चैलेंज करने के लिए वह पश्चिम एशिया में तैयार खड़ा है.
भारत के लिए अच्छी बात यह है कि अमेरिका के साथ उसके अच्छे संबंध हैं. पश्चिम एशिया में जो बदलाव हो रहे हैं, उससे भी वह जुड़ा हुआ है.
चीन का यह कदम भारत के लिए भी बड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले कुछ सालों से पश्चिम एशिया के देशों के साथ भारत के संबंध व्यापक हुए हैं. हमने देखा कि जब कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाया गया तो सऊदी अरब या यूएई की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई. दोनों ही देश भारत के साथ बहुत ही कोऑपरेटिव तरीके से आगे बढ़ रहे हैं. सऊदी अरब भारत में भी निवेश कर रहा है. भारत भी खाड़ी देशों से काफी तेल और गैस खरीदता है. भारत के लिए अच्छी बात यह है कि अमेरिका के साथ उसके अच्छे संबंध हैं. पश्चिम एशिया में जो बदलाव हो रहे हैं, उससे भी वह जुड़ा हुआ है. वह इस्राइल, यूएई और यूएस के I2U2 प्लैटफॉर्म में है. भारत का रोल पश्चिम एशिया में बढ़ता जा रहा है, लेकिन अगर चीन का प्रभाव ऐसे ही वहां बढ़ता रहा तो भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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