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Published on May 18, 2024 Updated 0 Hours ago

चीन द्वारा अपनी सेना के पुनर्गठन के ज़रिए अपनी अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्र की क्षमताओं की असमानता को दूर करने की कोशिशों से भारत के मुक़ाबले उसकी क्षमताओं में इज़ाफ़ा हो रहा है, जिसके भारत के लिए दूरगामी परिणाम होंगे

सैन्य सुधार: चीन ने PLASSF को ISF से बदला - भारत के लिए क्या है इसके मायने?

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स (PLASSF) को भंग कर दिया गया है. 2015 में चीन ने शी जिनपिंग के नेतृत्व में, पीपुल्स लिबरेशन आर्मा रॉकेट फोर्स (PLARF) के साथ-साथ PLASSF के गठन का एलान किया था. ये दोनों ही चीन के नए सैन्य बल थे. उससे पहले जब चीन ने अपनी सेना का पुनर्गठन किया था, तब PLARF सेकेंड आर्टिलरी फोर्स (SAF) कही जाती थी. हालांकि, हालिया बदलाव में इस बल के साथ कोई छेड़खानी नहीं की गई है और अभी भी उसके पास कमान के अधिकार हैं. इन दो नई सेवाओं के अलावा, अब चूंकि सिर्फ़ PLARF ही बची है और उसके साथ पांच थिएटर कमान (TCs) हैं, जिनकी स्थापना 2015-16 में की गई थी. PLASSF एक एकीकृत सेवा थी, जो चीन की सेना के अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और मनोवैज्ञानिक युद्ध की क्षमताओं को इकट्ठा करती थी, और अब उसकी जगह इन्फॉर्मेशन सपोर्ट फोर्स (ISF) का गठन किया गया है. शी जिनपिंग ने कहा कि ये नया सैन्य बल ‘… पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की बिल्कुल नई सामरिक शाखा होगी और सूचना व्यवस्था का नेटवर्क विकसित करने और उसे संचालित करने में ये आपसी तालमेल बिठाने का प्रमुख आधार बनेगी.’ शी जिनपिंग ने ये भी कहा कि इससे PLA को ‘आधुनिक युद्ध लड़ने और जीतने में सहायता मिलेगी’.

 

बदलाव की वज़ह

 

आख़िर PLASSF को भंग करने और उसकी जगह इन्फॉर्मेशन सपोर्ट फोर्स (ISF) के गठन की क्या वजह रही? इसके लिए तीन आम तर्क दिए जा रहे हैं. पहला तो ये है कि PLASSF एक सामरिक बल था, जिसे केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) की अधिक निगरानी और नियंत्रण में रखा जाना था. CMC चीन में राजनीतिक और सैन्य निर्णय लेने वाली सबसे बड़ी संस्था है, जिसकी कमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के हाथ में है. अफसरशाही की इस बाधा का एक दूसरा और इससे जुड़ा हुआ कारण PLASSF की अपनी इस हद तक जड़ता थी, जिसकी वजह से थिएटर कमानों को इसके संसाधनों या संपत्तियों के इस्तेमाल की मंज़ूरी लेनी पड़ती थी. इससे कार्रवाई करने में देर होने का अंदेशा था. क्योंकि PLASSF के पास थिएटर कमानों के बराबर का ही दर्जा और अधिकार था. कुल मिलाकर, ये बदलाव अत्यधिक नियंत्रण को सीमित करने की ज़रूरत से भी जुड़ा था. इस बदलाव के पीछे एक तीसरा और आख़िरी कारण रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का अनुभव था, जिसने चीन को ये साफ़ तौर पर दिखा दिया है कि साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और अंतरिक्ष के संसाधनों को कुशलता से छोड़ना ज़रूरी है. यही वजह है कि युद्ध क्षेत्र में असरदार क्रियान्वयन के लिहाज़ से ये बदलाव किए गए हैं.

 

PLASSF एक सामरिक बल था, जिसे केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) की अधिक निगरानी और नियंत्रण में रखा जाना था.

PLASSF के विघटन के जो भी स्पष्ट कारण रहे हों. पर, नए इन्फॉर्मेशन सपोर्ट फ़ोर्स (ISF) के जो तत्व हैं वो नेटवर्क इन्फ़ॉर्मेशन सिस्टम और कम्युनिकेशन सपोर्ट के हैं, जिन्हें संभावित नेटवर्क डिफेंस का सहयोग प्राप्त है. ISF का मुख्य मक़सद बाहरी घुसपैठ और हमलों से चीन के नेटवर्क की हिफ़ाज़त करना है. इसके अतिरिक्त पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की साइबर स्पेस फ़ोर्स और एरोस्पेस फ़ोर्स का भी गठन किया गया है, जिससे PLA के बलों की संख्या अब चार हो गई है, जिनमें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी लॉजिस्टिक्स सपोर्ट फोर्स (PLALSF) भी शामिल है. इसकी स्थापना मौजूदा बदलाव से पहले की गई थी. अब चीन की भौगोलिक सीमाओं की हिफ़ाज़त और विदेश में अभियानों समेत आक्रमण करने के लिहाज़ से अहम थिएटर कमान, अपनी हर शाखा की सेवाएं अधिक कुशलता और आसानी से ले सकेंगी. जो बात स्पष्ट नहीं है, वो ये कि क्या इन बलों में अतिरिक्त डिविज़नें बनाई गई हैं. जैसे कि साइबर वारफेयर (CW) ऐंड इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (EW) और शायद साइबर फोर्स नई शाखा होगी जिसका काम साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्धों को एकीकृत तरीक़े से संचालित करना होगा, और जिसके संसाधनों को थिएटर कमान भी इस्तेमाल कर सकेंगी. CW-EW को सामूहिक तौर पर लागू करने का काम अब और अधिक स्पष्ट होगा, ख़ास तौर से जिसे चीन के लोग ‘इंटेलिजिसाइज़्ड वॉरफेयर’ कहते हैं, और जिसमें युद्ध करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वचालित संसाधनों का अधिक इस्तेमाल किया जाएगा.

 

भारत के लिए इसके मायने

 

आज हम जिन बदलावों की बात कर रहे हैं, वो ज़्यादातर कमान और कंट्रोल (C2) से और थिएटर कमानों के लिए उन क्षमताओं और संसाधनों तक आसान पहुंच से जुड़े हैं, जो पहले PLASSF के नियंत्रण में थे. इस पुनर्गठन का मक़सद, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और अंतरिक्ष में पलटवार की क्षमताओं को बहुआयामी अभियानों में प्रभावी तरीक़े से उपयोग करने की कोशिशों से जुड़ा है. हालिया बदलाव से पहले भी चीन ने अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्र में अपनी क्षमताएं बढ़ाने में काफ़ी निवेश किया था. ये बात चीन के 2024 के रक्षा बजट से ज़ाहिर होती है, जिसमें चीन ने अपनी कम आर्थिक प्रगति के बावजूद 7.2 प्रतिशत का इज़ाफ़ा किया था. अब भारत को चाहिए कि वो ज़्यादा सतर्क और तैयार रहे कि साइबर हथियारों, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और अंतरिक्ष के क्षेत्र में चीन की मौजूदा ताक़त को बढ़ाने में काफ़ी मात्रा में निवेश किया गया है, ताकि संयुक्त अभियान चलाए जा सकें, और PLASSF को भंग करने का चीन की अंतरिक्ष, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की ताक़त से सीधे तौर पर कोई वास्ता नहीं है. निश्चित रूप से ताइवान पर हमले की नीयत से चीन, अमेरिका के साथ अपनी साइबर और अंतरिक्ष क्षमताओं की खाई को पाटने की कोशिश कर रहा है. इन नई क्षमताओं को बड़ी आसानी से चीन की सेना की पश्चिमी थिएटर कमान के भारत के ख़िलाफ़ आक्रामक और रक्षात्मक सैन्य अभियानों में आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. इसकी वजह साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और अंतरिक्ष के संसाधनों को कहीं से भी इस्तेमाल करने की ख़ूबी है. अमेरिका की बराबरी करने या उसे पीछे छोड़ देने की चीन की कोशिशों ने अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्रों में उसके और भारत के बीच की खाई को काफ़ी बढ़ा दिया है. 

 अब भारत को चाहिए कि वो ज़्यादा सतर्क और तैयार रहे कि साइबर हथियारों, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और अंतरिक्ष के क्षेत्र में चीन की मौजूदा ताक़त को बढ़ाने में काफ़ी मात्रा में निवेश किया गया है, ताकि संयुक्त अभियान चलाए जा सकें

इसका सबसे प्रमुख उदाहरण हमने भारत को अमेरिका से मिली सहायता के तौर पर देखा था, जब चीन के सैनिकों ने दिसंबर 2022 में तवांग सेक्टर के यांगत्से इलाक़े पर हमला किया था. वैसे तो भारत ने इस घुसपैठ को पीछे धकेल दिया था. लेकिन भारत के पास अंतरिक्ष के संसाधनों की कमी साफ़ तौर पर दिखी थी और भारत इसमें जीत इसी वजह से हासिल कर सका था, क्योंकि अमेरिका ने अपनी अंतरिक्ष से निगरानी के कहीं बेहतर संसाधनों से भारत की मदद की थी. कम से कम अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत और चीन की ताक़त में काफ़ी बड़ा फ़ासला है, और इससे पता चलता है कि चीन के अंतरिक्ष के सैन्य संसाधनों के विकल्प किस हद तक तैयार किए जा सकते हैं.

 

चीन द्वारा ISF के साथ साथ साइबर एवं अंतरिक्ष के लिए अलग बल का गठन करने के भारत के ऊपर दूसरे प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं. जैसे कि थिएटर कमान और विशेष रूप से चीन की पश्चिमी थिएटर कमान (WTC) के मामले में जिसके पास भारत और चीन की सीमा पर ज़मीनी और हवाई अभियान चलाने की ज़िम्मेदारी है. अब चीन की वेस्टर्न थिएटर कमान, नए बनाए गए ISF, साइबर फोर्स और एरोस्पेस फोर्स के संसाधनों का ज़्यादा आसानी से इस्तेमाल कर सकती है. यहां ये बात भी याद रखनी चाहिए कि चीन की वेस्टर्न थिएटर कमान के पास पहले से ही साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के संसाधन मौजूद रहे होंगे. लेकिन, पूर्ववर्ती PLASSF में इतनी जड़ता थी कि वो इन संसाधनों को थिएटर कमान देने से कतराती थी. चीन द्वारा PLASSF को अलग अलग सैन्य बलों में विभाजित करने का एक नतीजा ये भी निकल सकता है कि इससे चीन की सेना में अधिक लचीलापन आएगा. ऐसे में भारत के सैन्य योजनाकारों को इस बात पर ध्यान देना होगा कि वो किस तरह अंतरिक्ष, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के साथ साथ मनोवैज्ञानिक अभियान चलाने के संसाधनों को गुपचुप तरीक़े से तैनात कर सकते हैं; वो एक दूसरे से कहां टकराते हैं; कहां पर ये संसाधन आपस में मिलकर एक दूसरे की क्षमता बढ़ाने के साथ साथ पारंपरिक सैन्य अभियानों को भी ताक़तवर बनाने का काम करते हैं.

 चीन द्वारा ISF के साथ साथ साइबर एवं अंतरिक्ष के लिए अलग बल का गठन करने के भारत के ऊपर दूसरे प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं. जैसे कि थिएटर कमान और विशेष रूप से चीन की पश्चिमी थिएटर कमान (WTC) के मामले में जिसके पास भारत और चीन की सीमा पर ज़मीनी और हवाई अभियान चलाने की ज़िम्मेदारी है.

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) एक और क्षेत्र है, जिस पर भारत को ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है. क्योंकि चीन ने ‘इंटेलिजेंसिसाइज़्ड वारफेयर’ को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है. AI से चीन के गोपनीय जानकारी जुटाने और साइबर युद्ध की क्षमताओं को और प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी. इस मामले में एक और अहम बात ये है कि शी जिनपिंग के नेतृत्व का PLASSF को विघटित करने के फ़ैसले को हमें अंतिम निर्णय नहीं मान लेना चाहिए. इस सैन्य बल को चीन किसी और नाम से फिर ज़िंदा कर सकता है, और इसकी कुछ ज़िम्मेदारियों को आने वाले समय में शायद किसी नई सेवा के हवाले कर दिया जाए. चीन के नेतृत्व द्वारा अपने यहां की सेना में जो संगठनात्मक बदलाव किए हैं, उनसे भारत के सैन्य योजनाकारों और रणनीतिकारों के लिए सबक़ लेने वाली जो सबसे अहम बात है, वो ये है कि प्रयोग करना, लचीला रुख़ अपनाना और वक़्त के मुताबिक़ ख़ुद को ढालना काफ़ी अहम है. क्योंकि हाल के दिनों में चीन ने रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध जैसे अनुभवों से काफ़ी कुछ सीखा और फिर अपने अंदर नई परिस्थितियों के अनुरूप बदलाव भी किए.

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