Author : K. Yhome

Published on Aug 14, 2019 Updated 0 Hours ago

इस क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता तेज हो गई है, इसलिए म्यांमार द्वारा इस प्रतिस्पर्धा से लाभ उठाए जाने की संभावना है.

चीन-म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर की ओर बढ़ते कदम

पिछले महीने यानी अप्रैल 2019 में जब चीन के बेल्ट एंड रोड फोरम (बीआरएफ) की दूसरी बैठक आयोजित की गई थी तो उसमें म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की ने भी शिरकत की थी. इस बैठक में एक खास बात यह रही थी कि चीन-म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर (सीएमईसी) के लिए आपसी सहयोग को मजबूत करने के उद्देश्‍य से तीन सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए थे. सीएमईसी दरअसल बेल्ट एवं रोड पहल (बीआरआई) का अभिन्न हिस्‍सा है. ये हाल के वर्षों में सीएमईसी पर चीन और म्यांमार के बीच हुए एमओयू की श्रृंखला में नवीनतम एमओयू थे.

आंतरिक एवं बाह्य चुनौतियों से निपटने में चीन पर म्यांमार की बढ़ती निर्भरता और म्यांमार की रणनीतिक अनिवार्यताओं से लाभ उठाने संबंधी चीन की विशिष्‍ट क्षमता दरअसल मौजूदा द्विपक्षीय रिश्ते को निरंतर प्रतिबिंबित करने वाली विशेषता रही है. चीन अपनी साझा सीमाओं पर म्यांमार के जातीय संघर्षों को नियंत्रण में रखने और रोहिंग्याओं के खिलाफ अत्याचार के मामले में संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार का बचाव करने के लिए म्यांमार सरकार को राजनीतिक एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता रहा है.

वर्ष 2011 में म्यांमार द्वारा राजनीतिक सुधारों का आगाज करने के तुरंत बाद ही चीन और म्यांमार के आपसी संबंधों में एक मुश्किल दौर आ गया था. चीन से समर्थन प्राप्‍त माइट्सोन बांध का निर्माण कार्य रोक दिए जाने और चीन-म्यांमार सीमाओं पर जातीय संघर्ष तेज हो जाने प्रेरित के कारण चीन में शरणार्थियों का आगमन बढ़ जाने से दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो गई. इसके बाद के वर्षों में म्यांमार की जातीय शांति प्रक्रिया में पश्चिमी देशों की बढ़ती भागीदारी पर चिंता जताए जाने और बीआरआई को आगे बढ़ाने की इच्छा ने चीन को म्यांमार सरकार के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिए किया.

इसके बाद जब आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) वर्ष 2016 के आरंभ में सत्ता में आई, तो उनके पारस्‍परिक संबंध काफी प्रगाढ़ हो गए. संयोगवश इसी दौरान, विशेषकर अगस्त 2017 के बाद रोहिंग्या संकट से निपटने के तौर-तरीकों को लेकर म्यांमार को अंतरराष्ट्रीय स्‍तर पर घोर निंदा का सामना करना पड़ा. इन प्रतिकूल हालातों में चीन ने रोहिंग्या संकट और जातीय शांति प्रक्रिया पर म्यांमार सरकार के हितों से स्‍वयं को जोड़ते हुए उसका खुलकर साथ दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि चीन जहां एक ओर अन्य बाहरी ताकतों की भूमिका को कम करने में कामयाब हो गया, वहीं दूसरी ओर उसने म्यांमार में रणनीतिक एवं सामरिक परियोजनाओं की कमान अपने हाथों में ले ली.

चीन एवं म्यांमार ने मई 2017 में ‘सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट की रूपरेखा और 21वीं सदी की समुद्री सिल्क रोड पहल’ के अंतर्गत सहयोग से संबंधित एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर उस समय हस्ताक्षर किए थे जब आंग सान सू की चीन के बीआरआई की पहली बैठक में शामिल हुई थीं. इसके पांच माह बाद ‘सीएमईसी’ का प्रस्ताव किया गया था और सितंबर 2018 में ‘वाई-आकार’ वाले गलियारे (कॉरिडोर) के लिए एक आधिकारिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, ताकि चीन के कुनमिंग को पहले माण्डले से जोड़ा जा सके और फिर इसका विस्‍तार क्रमशः पूर्व और पश्चिम में यांगून एवं क्याउकपू तक किया जा सके.

मार्च 2018 में माण्‍डले-तिग्यिंग-म्यूज एक्सप्रेसवे परियोजना और क्याउकपू- नेपी ताव राजमार्ग परियोजना के निर्माण के उद्देश्‍य से व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिए एक और सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए थे. एमओयू पर हस्ताक्षर करने के समय इस तथ्‍य का उल्‍लेख नहीं किया गया था कि ये परियोजनाएं बीआरआई का हिस्सा हैं, लेकिन अब इन्‍हें सीएमईसी के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है. जुलाई 2018 में म्यांमार ने म्यांमार-चीन सीमा पर तीन आर्थिक सहयोग जोन को मंजूरी दी जिनमें से एक कचिन राज्य में और दूसरा शान राज्य में है. इससे पहले वर्ष 2016 में सीमा व्यापार जोन को बीआरआई के हिस्‍से के रूप में स्थापित करने का समझौता हुआ था और मई 2017 में एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे.

अगस्त 2018 में म्यांमार ने गहरे समुद्र वाले बंदरगाह क्याउकपू पर फिर से बातचीत. वर्ष 2015 में पिछली थीन सीन सरकार और चीन की सरकार के स्वामित्व वाले सिटिक समूह के बीच 7.3 अरब अमेरिकी डॉलर की परियोजना के बारे में सहमति हुई थी. हालांकि, म्यांमार सरकार ने इस परियोजना का आकार घटाकर महज 1.3 अरब अमेरिकी डॉलर का ही सौदा करने का फैसला किया जिसमें केवल दो जेटी होंगी और जिसका विस्‍तार बाद में आवश्यकता पड़ने पर किया जा सकता है.

इसके अलावा, चीन-म्यांमार हाई-स्पीड रेल परियोजना या कुनमिंग-क्याउकपू रेलवे (जिसे वर्ष 2014 में छोड़ दिया गया था) पर नए सिरे से काम उस समय शुरू किया गया था, जब दोनों देशों ने केंद्रीय म्यांमार में म्‍यूज को माण्डले से जोड़ने वाली रेल लाइन का व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिए अक्टूबर 2018 में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. नवंबर 2018 में चीन और म्यांमार ने यांगून में अपनी पहली विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग बैठक आयोजित की जहां इन दोनों देशों ने सीएमईसी के हिस्से के रूप में एक संयुक्त रडार और उपग्रह संचार प्रयोगशाला की स्थापना की. म्यांमार का परिवहन एवं संचार मंत्रालय दिसंबर 2018 से ही देश में 5जी नेटवर्क शुरू करने के लिए हुआवे के साथ मिलकर काम करता रहा है.

बीआरआई का हिस्सा होने या न होने के सवाल से कहीं आगे बढ़ते हुए म्यांमार सरकार जातीय शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संरक्षित करने के उद्देश्‍य से चीन का समर्थन हासिल करने के लिए बेहतरीन राजनयिक संतुलन साधने की कोशिश करती नज़र आती है. म्यांमार इसके बदले में चीन की बीआरआई परियोजनाओं का हिस्सा बनने के लिए तैयार है जो उसे पारस्परिक रूप से फ़ायदेमंद, लेकिन गैर-बाध्यकारी प्रतीत होती हैं. पिछले दो वर्षों में किए गए ज़्यादातर सौदे दरअसल एमओयू हैं जिनका कोई कानूनी आधार नहीं है.

चीन की नाराज़गी मोल लिए बिना म्‍यांमार के बुनियादी ढांचागत विकास में और भी अधिक देशों की भागीदारी को सुदृढ़ करना एक चुनौती होगी.

इस उद्देश्‍य की पूर्ति‍ के लिए म्‍यांमार भी प्रमुख ताक़तों के बीच बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का लाभ उठाता रहा है, ताकि बीआरआई के खिलाफ बचाव (हेजिंग) सुनिश्चित किया जा सके. बंदरगाह सौदे पर फिर से बातचीत के दौरान म्यांमार ने अमेरिका और अन्य देशों से मदद मांगी थी और सहायता पाई भी थी. अमेरिकी विशेषज्ञों की एक टीम ने ‘बेहतर सौदा’ करने में म्यांमार की मदद की थी. चूंकि इस क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता तेज हो गई है, इसलिए म्यांमार द्वारा इस प्रतिस्पर्धा से लाभ उठाए जाने की संभावना है.

म्यांमार वैकल्पिक बुनियादी ढांचागत विकास पहलों से लाभान्वित होता रहा है. जापान और भारत दरअसल म्यांमार में प्रमुख बंदरगाह, रेलवे एवं राजमार्ग परियोजनाओं से जुड़े रहे हैं और इसके साथ ही वे क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में सहयोग करते रहे हैं. चीन की नाराज़गी मोल लिए बिना म्‍यांमार के बुनियादी ढांचागत विकास में और भी अधिक देशों की भागीदारी को सुदृढ़ करना एक चुनौती होगी.

देश में आंतरिक तौर पर चीन की मेगा परियोजनाओं के बढ़ते विरोध का मतलब यही है कि म्यांमार के राजनीतिक नेतृत्व को अपनी घरेलू राजनीतिक वैधता से समझौता किए बिना ही चीन के दबाव से निपटना होगा. पिछले महीने आंग सान सू की के चीन दौरे से ठीक पहले म्यांमार में चीन से समर्थन प्राप्‍त माइट्सोन बांध के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था. माइट्सोन बांध परियोजना की बढ़ती अलोकप्रियता को देखते हुए म्यांमार के राजनीतिक नेतृत्व के पास सीएमईसी परियोजनाओं के लिए गारंटी के बदले में इस परियोजना को त्‍यागने के अलावा कोई और विकल्प संभवत: नहीं रह जाएगा. रणनीतिक दृष्टि से ‘सीएमईसी’ चीन के लिए कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, अत: दोनों ही पक्ष इससे उबरने के लिए इस तरह की संभावनाओं पर विचार कर सकते हैं.

बीआरएफ में आंग सान सू की का भाषण म्यांमार के राजनीतिक नेतृत्व की ओर से म्यांमार के लोगों की चिंताओं को दर्शाने की इच्छा को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि बीआरआई परियोजनाओं को ‘न केवल आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद होना चाहिए, बल्कि सामाजिक एवं पर्यावरणीय दृष्टि से जवाबदेह भी होना चाहिए, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परियोजनाओं को निश्चित तौर पर स्थानीय लोगों का विश्वास एवं समर्थन जीतना चाहिए’. अगले साल होने वाले आम चुनावों को ध्‍यान में रखते हुए म्यांमार के सियासी नेतागण लोगों से अपनी बढ़ती दूरी या विरक्ति को कम-से-कम करने की अथक कोशिश करेंगे और फि‍र उसके अनुसार ही चीन के साथ पारस्‍परिक संबंधों का आकलन किया जाएगा.

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