Author : Lydia Powell

Expert Speak Terra Nova
Published on May 21, 2024 Updated 0 Hours ago

वैश्विक स्तर पर चीन नवीकरणीय ऊर्जा में अपना उल्लेखनीय योगदान दे रहा है. इसके बावज़ूद, पश्चिमी देश चीन की इस महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करने के बजाए, निम्न-कार्बन उत्सर्जन ऊर्जा सेक्टर में बढ़ते चीनी निवेश और उसकी विनिर्माण क्षमताओं को सुरक्षा के लिहाज़ से गंभीर ख़तरा मानते हैं.

इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण में चीन का वर्चस्व और वैश्विक स्तर पर मची भू-राजनीतिक उथल-पुथल!

यह चाइना क्रॉनिकल्स सीरीज़ का 157वां लेख है.


चीन का निम्न-कार्बन ऊर्जा प्रौद्योगिकी मूल्य श्रृंखलाओं पर वर्चस्व क़ायम है और इसको लेकर कोई संदेह भी नहीं है, क्योंकि आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. वैश्विक स्तर पर सोलर PVs यानी सोलर फोटोवोल्टिक सामग्री, विंड सिस्टम और बैटरियों जैसी ज़्यादातर व्यापक पैमाने पर निर्मित होने वाली लो-कार्बन टेक्नोलॉजियों की कम से कम 60 प्रतिशत विनिर्माण क्षमता चीन के पास है, जबकि इलेक्ट्रोलाइज़र मैन्युफैक्चरिंग (हाइड्रोजन उत्पादन) सेक्टर में चीन की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है. इसके अलावा नवीकरणीय ऊर्जा (RE) के उपभोग एवं सोलर विंड एनर्जी उत्पादन में भी चीन दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है. वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा की खपत एवं उत्पादन दोनों में ही चीन की हिस्सेदारी 30 से 35 प्रतिशत है. ज़ाहिर है कि नवीकरणीय ऊर्जा की वैश्विक हिस्सेदारी बढ़ाने में चीन का उल्लेखनीय योगदान है और यह कहीं कहीं जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए भी बेहद अहम है. लेकिन तमाम राष्ट्रों द्वारा चीन के इस योगदान की अनदेखी की जा रही है और ऐसा करने वालों में अमेरिका एवं उसके सहयोगी पश्चिमी देश एवं कुछ विकासशील देश शामिल हैं. इन राष्ट्रों के मुताबिक़ निम्न कार्बन एनर्जी सेक्टर और उसमें भी ख़ास तौर पर इलेक्ट्रिक वाहन (EV) सेक्टर में चीन का बढ़ता निवेश एवं उसकी बढ़ती विनिर्माण क्षमताएं सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक बहुत बड़ा ख़तरा हैं. इसके साथ ही इन देशों को यह भी लगता है कि ईवी सेक्टर में चीन के बढ़ते दबदबे से उनके स्थापित ऑटोमोबाइल उद्योगों और घरेलू स्तर पर नौकरियों पर भी व्यापक रूप से ख़तरा पैदा हो गया है.

 

इलेक्ट्रिक वाहन आपूर्ति श्रृंखला

वर्ष 2023 के आंकड़ों पर नज़र डालें तो वैश्विक स्तर पर कारों की बिक्री में चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों का योगदान 65 फीसदी था, जबकि EV की बिक्री में 95 प्रतिशत हिस्सेदारी थी. इलेक्ट्रिक व्हीकल की बिक्री में इनकी अलग-अलग हिस्सेदारी की बात करें, तो वैश्विक स्तर पर कुल EV बिक्री में चीन की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत, यूरोप की 25 प्रतिशत और अमेरिका की 10 प्रतिशत थी. इसके अलावा, वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर ईवी में उपयोग के लिए कुल बैटरी उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी 83 फीसदी से अधिक थी, जबकि कुल इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण में चीन की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत थी और इस प्रकार से इन सेक्टरों में चीन का दबदबा था. जबकि कुल वैश्विक EV निर्माण क्षमता में यूरोप और अमेरिका का हिस्सा लगभग 13 प्रतिशत था. जहां तक ईवी में इस्तेमाल होने वाली बैटरियों को बनाने के लिए ज़रूरी महत्वपूर्ण खनिजों के खनन का मसला है, तो यह किसी एक जगह पर केंद्रित नहीं है, बल्कि दुनिया के अलग-अलग इलाक़ों में फैला हुआ है. लेकिन महत्वपूर्ण खनिजों को छोड़कर EV मूल्य श्रृंखला के बाक़ी हिस्सों पर चीन का ज़बरदस्त नियंत्रण बना हुआ है, जो कि एक बड़ी चिंता का मुद्दा है. इतना ही नहीं, बैटरी निर्माण के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ज़्यादातर खनिजों को संसाधित करने में चीन का दबदबा बना हुआ है. वैश्विक स्तर पर कुल लिथियम की 65 प्रतिशत से अधिक, निकल की 35 फीसदी से अधिक, कोबाल्ट की 75 प्रतिशत से अधिक, उच्च गुणवत्ता वाले मैंगनीज की 90 फीसदी से अधिक और ग्रेफाइट की लगभग 100 फीसदी प्रोसेसिंग चीन द्वारा की जाती है. पूरी दुनिया में वर्ष 2030 तक बैटरी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए जो भी योजनाएं बनाई जा रही है हैं, उनमें से 70 प्रतिशत उत्पादन इकाइयों को चीन में स्थापित किए जाने की योजना है. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर बैटरी रीसाइक्लिंग की जो वर्तमान क्षमता है, उसमें से आधी चीन में है. हालांकि, जिस प्रकार से चीन द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा में वर्ष 2025 तक 3 टेरावाट प्रति वर्ष (TWh/वर्ष) की अतिरिक्त क्षमता हासिल करने एवं वर्ष 2030 तक 4.7 TWh/वर्ष (कुल अतिरिक्त क्षमता का 75 प्रतिशत) हासिल करने का ऐलान किया गया है, उससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले वर्षों में वैश्विक स्तर पर चीन इस क्षेत्र में अग्रणी बना रहेगा, लेकिन पूरी दुनिया में उसकी कुल हिस्सेदारी में कुछ हद तक कमी ज़रूर सकती है.

 इन राष्ट्रों के मुताबिक़ निम्न कार्बन एनर्जी सेक्टर और उसमें भी ख़ास तौर पर इलेक्ट्रिक वाहन (EV) सेक्टर में चीन का बढ़ता निवेश एवं उसकी बढ़ती विनिर्माण क्षमताएं सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक बहुत बड़ा ख़तरा हैं. 

चीन विश्व का एक सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी निर्यातक देश है. जिस तरह से ईवी आपूर्ति श्रृंखला के ज़्यादातर हिस्सों में चीन का दबदबा बना हुआ है, उस लिहाज़ से देखा जाए तो अमेरिका एवं यूरोप की तुलना में चीन की बैटरी उत्पादन मूल्य श्रृंखला ज़्यादा समन्वित और संगठित है. बैटरी में उपयोग की जाने वाली कैथोड और एनोड सामग्री के निर्माण में चीन दुनिया का शीर्ष देश है. दुनिया में कैथोड (बैटरी का नकारात्मक टर्मिनल) एक्टिव निर्माण की जितनी भी क्षमता है, उसका लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा चीन में स्थापित है, जबकि एनोड (बैटरी का सकारात्मक टर्मिनल) सक्रिय सामग्री की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता का 97 प्रतिशत से अधिक चीन के पास है. लिथियम फेरस फॉस्फेट (LFP) से बनने वाली बैटरी का लगभग 100 फीसदी उत्पादन चीन में होता है, यानी इसके लिए पूरी दुनिया चीन पर ही निर्भर है. इसके अलावा, लिथियम निकल मैंगनीज कोबाल्ट ऑक्साइड (NMC) और अन्य निकल-आधारित बैटरी उत्पादन क्षमता में चीन की वैश्विक हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से अधिक है. इस लिहाज़ से देखा जाए तो चीन में स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर होने वाला बैटरी उत्पादन चीन, यूरोप और अमेरिका में ईवी सेक्टर की बैटरी की ज़रूरत को पूरा कर सकता है. ज़ाहिर है कि यूरोप अपनी ईवी बैटरी ज़रूरत का 20 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आयात करता है, जबकि अमेरिका 30 फीसदी से अधिक हिस्सा का आयात करता है.

 

चीन में बैटरी उत्पादन की लागत बहुत कम है और पूरी दुनिया में इस मामले में चीन का कोई मुक़ाबला नहीं है. बैटरी सेल के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली चीज़ों की लागत एक समान होने के बावज़ूद अमेरिका में बैटरी सेल का उत्पादन करना चीन की तुलना में कम से कम 20 प्रतिशत अधिक महंगा है. वास्तविकता यह है कि चीनी बैटरी निर्माताओं के लिए सामग्री की लागत इसलिए कम है, क्योंकि आपूर्ति श्रृंखला पर चीन का लगभग पूरा नियंत्रण है. इसके अलावा, ज़्यादातर चीनी बैटरियां लिथियम फेरस फॉस्फेट से बनाई जाती है और इनकी उत्पादन लागत लिथियम निकल मैंगनीज कोबाल्ट ऑक्साइड से निर्मित बैटरियों की तुलना में क़रीब 20 प्रतिशत कम होती है.

 देखा जाए तो चीन में स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर होने वाला बैटरी उत्पादन चीन, यूरोप और अमेरिका में ईवी सेक्टर की बैटरी की ज़रूरत को पूरा कर सकता है. 

चीन द्वारा वर्ष 2023 में अपनी अधिकतम बैटरी सेल (कैथोड और एनोड को छोड़कर) उत्पादन क्षमता का 40 प्रतिशत से भी कम उपयोग किया था. चीन की कैथोड और एनोड उत्पादन के लिए स्थापित क्षमता 2023 में वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक व्हीकल सेल की मांग से क़रीब 4 गुना और 9 गुना अधिक थी. चीन द्वारा जिस तरह की औद्योगिक नीतियों और रणनीतियों को अमल में लाया गया है, उसी की वजह से उसकी EV मूल्य श्रृंखला मज़बूती के साथ विकसित हुई है और चीन पूरी दुनिया में ईवी एवं बैटरी उत्पादन के मालमे में शीर्ष पर पहुंच गया है. चीन द्वारा पूर्व में इसी प्रकार की नीतियों और रणनीतियों को इस्पात और सोलर उद्योग के विकास में लागू किया जा चुका है. चीन में जो भी चोटी की EV निर्माता कंपनियां हैं, उनके द्वारा वर्ष 2023 में अपनी कुल उत्पादन क्षमता का 70 प्रतिशत से भी कम उपयोग किया गया. इस कारण से चीनी ईवी निर्माता कंपनियों की आय में कमी दर्ज़ की गई है और इसी के चलते वे अब चीन के बाहर दूसरे देशों के बाज़ारों में भी हाथ-पैर मार रही हैं. दुनिया में कारों के लिए तीन शीर्ष बाज़ारों में अमेरिका और यूरोप शामिल हैं और ज़ाहिर तौर पर चीनी ईवी कंपनियां अब इन्हीं देशों में अपने लिए बिजनेस की संभावनाएं तलाश रही हैं.

 

औद्योगिक नीति के अनुरूप विदेश नीति

मई 2024 में मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़ अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा चीन के इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैक्स 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने की तैयारी की जा रही है. इससे पहले अमेरिका ने मार्च के महीने में चीनी EVs को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया था. अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने अप्रैल में चीन का दौरा किया था. इस दौरान येलेन ने EV उत्पादन में चीन की अत्यधिक क्षमता के मुद्दे को उठाया था और ग्रीन एनर्जी सेक्टरों में चीन के अतिरिक्त उत्पादन की भी आलोचना की थी, इसके साथ ही उन्होंने इसे अमेरिका के ईवी और सोलर उद्योग के लिए ख़तरा बताया था. मई में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यूरोप यात्रा के दौरान, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष ने इस मुद्दे पर ध्यान खींचा था और आपत्ति जताई थी कि जिस प्रकार से चीन द्वारा अपनी औद्योगिक वस्तुओं का बहुत अधिक उत्पादन किया जा रहा है और उन्हें यूरोप के बाज़ारों में पहुंचाया जा रहा है, यह कतई ठीक नहीं है और यूरोपीय देश ऐसा नहीं होने दे सकते हैं.

 

अमेरिका ने अपने इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट यानी मुद्रास्फ़ीति न्यूनीकरण अधिनियम (IRA) में स्वच्छ वाहन (या इलेक्ट्रिक वाहन) टैक्स क्रेडिट का प्रावधान किया है. यानी औद्योगिक सेक्टर को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए क्रेडिट, अनुदान और कर्ज़ देने का प्रावधान किया है. इस एक्ट के अंतर्गत अमेरिका ने अपनी औद्योगिक नीति में बदलाव किए हैं और मित्र सहयोगी देशों को ईवी आपूर्ति श्रृंखलाओं की स्थापना के लिए व्यापक स्तर पर वित्तीय मदद दी गई है, साथ ही चीन पर निर्भरता को कम करने के लिए सहयोगी राष्ट्रो में आपूर्ति श्रृंखलाओं का पता लगाने के प्रयास किए गए हैं. इतना ही नहीं, चीन और दूसरे ऐसे देश जो अमेरिका की मित्र सूची में शामिल नहीं है, उनके महत्वपूर्ण खनिजों और बैटरी उत्पादों का उपयोग अगर EVs में किया जाता है, तो उसे अमेरिका में अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. अमेरिका का यह नया फरमान बैटरी सामग्री के मामले में वर्ष 2024 से और महत्वपूर्ण मिनरल्स के मामले में वर्ष 2025 से लागू होगा. IRA के अंतर्गत अमेरिका द्वारा जो भी मानक निर्धारित किए गए हैं, उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रमुखता दी गई है, यानी ऐसे किसी भी उत्पाद के आयात पर सख़्ती का प्रावधान किया गया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा हो. चीन और यूरोपियन यूनियन IRA या CHIPS अधिनियम से पहले ही अपनी तमाम प्रमुख औद्योगिक नीतियां पेश कर चुके हैं. चीन के पास तो स्थानीय स्तर पर यानी अपने देश में ईवी और बैटरी उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए पहले से ही व्यापक नीतियां मौज़ूद हैं. वहीं, यूरोपीय संघ ने ग्रीन न्यू डील नीति के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहन के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की कोशिश की है, साथ ही ईवी के आयात पर तमाम तरह के टैक्स लगाने का प्रावधान किया है. यूरोपीय संघ अपनी ग्रीन न्यू डील के अंतर्गत चीन से होने वाले बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (BEVs) के आयात की छानबीन भी कर रहा है.

 

 

जिस प्रकार से अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा ख़ास तौर पर ईवी को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताते हुए अपनी औद्योगिक नीतियों में बदलाव किया गया है, उससे देखा जाए तो कम कार्बन उत्सर्जन वाले वाहनों की निर्माण लागत में बढ़ोतरी ही होगी. ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के लिहाज़ से देखें, तो एनर्जी सेक्टर का इसमें लगभग तीन-चौथाई योगदान है. इतना ही नहीं, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों पर लगाम लगाने के लिए ऊर्जा सेक्टर को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करना बेहद अहम है. वाहनों को बिजली या बैटरी से चलाने पर केवल कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन को कम किया जा सकता है, बल्कि स्थानीय स्तर पर, विशेष रूप से शहरी इलाक़ों में वायु प्रदूषण पर भी रोक लगाई जा सकती है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के मुताबिक़ अगर 2023 तक सभी आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाली कारों एवं स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल यानी शक्तिशाली इंजन वाले हाइब्रिड ईवी की जगह पर सिर्फ़ बैटरी से चलने वाली ईवी (BEVs) की बिक्री होती, तो ये गाड़ियां जब तक चलाई जातीं, तब तक वैश्विक स्तर पर इनसे 770 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम होता. यह आंकड़ा वर्ष 2022 में भारत के कुल CO2 उत्सर्जन के एक चौथाई से थोड़ा ज़्यादा है. दुनिया के तीन ऐसे क्षेत्रों में जहां लगभग तीन-चौथाई कारों की बिक्री होती है, वहां के देशों द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर किफ़ायती इलेक्ट्रिक वाहनों के बिजनेस में रुकावटें पैदा की जा रही हैं. ज़ाहिर है कि ऐसा करने से केवल बिना बिक्री वाले EVs की संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है, बल्कि इससे भू-राजनीतिक टकराव में भी इजाफ़ा हो सकता है और वाहनों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने की कोशिशों को भी धक्का लग सकता है.

 IRA के अंतर्गत अमेरिका द्वारा जो भी मानक निर्धारित किए गए हैं, उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रमुखता दी गई है, यानी ऐसे किसी भी उत्पाद के आयात पर सख़्ती का प्रावधान किया गया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा हो. 

देखा जाए तो राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेकर अपने देश की कंपनियों को फायदा पहुंचाने की कोशिश किसी भी तरीक़े से ठीक नहीं है. 1960 और 1970 के दशक में तेल उत्पादन को लेकर भी इसी तरह के बेतुके तर्क दिए गए थे. तब अमेरिका में छोटे हाई-कॉस्ट तेल उत्पादकों का कहना था कि आयातित तेल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है. जबकि विश्व की बड़ी तेल उत्पादक कंपनियों का कहना था कि सस्ता आयातित तेल राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करता है. उस समय, काफ़ी बहस के बाद आख़िरकार बड़ी तेल कंपनियों की जीत हुई थी, क्योंकि किफ़ायती आयातित तेल अमेरिका में औद्योगिक उत्पादन और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाला साबित हुआ था. वर्तमान दौर में जब टेक्नोलॉजी ने ऊर्जा को एक रणनीतिक वस्तु यानी किसी देश की अर्थव्यवस्था या सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन में तब्दील कर दिया है, तब वही पुराने तर्क इलेक्ट्रिक वाहनों के संदर्भ में भी दिए जा रहे हैं. आज कई देशों ख़ासकर अमेरिका और यूरोप द्वारा कहा जा रहा कि घरेलू स्तर पर ईवी निर्माण को बढ़ावा देने से ही स्थानीय नौकरियों को बरक़रार रखा जा सकता है और इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मज़बूती मिलेगी. जबकि वास्तविकता यह है कि अगर किफ़ायती EVs को बढ़ावा दिया जाता है, तो इससे सिर्फ़ सड़क परिवहन से होने वाला कार्बन उत्सर्जन कम होगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुक़सान पर भी लगाम लगेगी और इस प्रकार से राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मज़बूती मिलेगी.


लिडिया पॉवेल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.

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