Author : Derek Grossman

Published on Mar 09, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन दक्षिण एशिया से हाल फिलहाल में नहीं निकलेगा. ऐसे में भारत को इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने के लिए अपनी तरह की सोच समझ रखने वालों के साथ बढ़चढ़ कर और तारतम्य में काम करना होगा.

दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए,‘साम-दाम-दंड-भेद’ की नीति अपना रहा है चीन

भारत भले ही इस बात से हताश हो लेकिन, दक्षिण एशिया में चीन का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. मुख्य रूप से नई दिल्ली को प्राथमिकता देने वाले प्रमुख देश बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका अब तेज़ी से एक वैकल्पिक शक्ति के रूप में बीजिंग का रुख कर रहे हैं, जो उनकी ज़रूरतों को पूरा करने में मदद कर रहा है. चीन ने चालाकी से अपने स्वयं के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिए, कूटनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा उपकरणों को तैनात किया है, जिसमें मुख्य रूप से भू-स्थानिक लाभ प्रदान करने के इच्छुक देशों को सहयोग करने जैसे पक्ष शामिल हैं.

चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने जुलाई 2019 में बांग्लादेश का दौरा किया और प्रधानमंत्री शेख हसीना से मुलाकात की. दोनों नेताओं ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से बांग्लादेश के आर्थिक विकास की आवश्यकता पर अपनी चर्चा केंद्रित की. संभावना है कि चीन भविष्य में पायरा में पावर हब के ज़रिए पोर्ट तक पहुंच प्राप्त कर लाभ उठाने की कोशिश करेगा. दरअसल, 2016 में चीनी नौसेना ने अपनी पहली बंदरगाह यात्रा की और 2017 में फिर से चटगांव पहुंच गई. जून में, चीनी बाज़ार को 97 फीसदी बांग्लादेशी उत्पादों के लिए खोला. इसके अलावा 250 मिलियन के सौदे के तहत बांग्लादेश में एक नए हवाई अड्डे का टर्मिनल बनाया गया, जो भारत को पछाड़ कर की गई एक गतिविधि थी. अक्तूबर में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने संकेत दिया था कि वह चीन और बांग्लादेश संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए तैयार हैं.

चीन ने चालाकी से अपने स्वयं के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिए, कूटनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा उपकरणों को तैनात किया है, जिसमें मुख्य रूप से भू-स्थानिक लाभ प्रदान करने के इच्छुक देशों को सहयोग करने जैसे पक्ष शामिल हैं.

साल 2018 के अंत में एक आश्चर्यजनक चुनाव परिणाम के बाद, चीन ने मालदीव में अब्दुल्ला यामीन जैसे अपने पसंदीदा मज़बूत खिलाड़ी को खो दिया. हालांकि, चीन और मालदीव के संबंध राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलीह के कार्यकाल में सौहार्दपूर्ण बने हुए हैं, भले ही माले ने एक बार फिर नई दिल्ली को प्राथमिकता देने की कार्रवाई. भारत के लिए समस्या यह है कि मालदीव ने बीआरआई में हिस्सेदारी के लिए बड़े पैमाने पर कर्ज़ लिया है. विशेष रूप से, चीन-मालदीव मैत्री पुल (China-Maldives Friendship Bridge) के पूरा होने, हवाई अड्डे के विस्तार सहित कई अन्य परियोजनाओं ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों और समीकरणों के लिहाज़ से मालदीव को संभावित रूप से अस्थिर और ख़तरनाक स्थिति में डाल दिया है. एक अनुमान के मुताबिक, 2021 में माले, बीजिंग को 53 प्रतिशत सरकारी राजस्व का भुगतान करेगा. यह देखते हुए कि मालदीव हिंद महासागर में संचार की रेखाओं का फैलाव कर रहा है, जिसके माध्यम से लगभग 80 प्रतिशत ऊर्जा आयात और 50 प्रतिशत व्यापार के रास्ते, मालदीव को भारत पर निर्भर कर सकते हैं.

भारत के लिए चिंता का सबब बना नेपाल

नेपाल को लेकर भी भारत लगातार चिंतित है. साल 2019 में चेन्नई में शी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दूसरा अनौपचारिक शिखर सम्मेलन होने के बाद, शी जिनपिंग सीधे काठमांडू गए और 23 वर्षों में नेपाल की यात्रा करने वाले पहले चीनी प्रमुख बने. वहां की अपनी यात्रा के दौरान, चीन के साथ नेपाल के संबंधों को बेहतर बनाने और चीन के माध्यम से नेपाल में विकास करने के लिए चीन ने 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए, खासकर ट्रांस-हिमालयन मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क (Trans-Himalayan Multi-Dimensional Connectivity Network) के माध्यम से. दोनों देशों ने इस बात को स्वीकार किया कि तिब्बत “चीन के आंतरिक मामलों” का हिस्सा है. हाल ही में, इस महीने, चीन और नेपाल ने अंततः माउंट एवरेस्ट के लिए एक नई ऊंचाई पर सहमति व्यक्त की, जो हिमालय में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ चल रहे चीन-भारत के तनाव के बीच उनकी बढ़ती मानसिकता का प्रतीक है. प्रतीकवाद से इतर, चीन-नेपाल रक्षा संबंध भी लगातार मज़बूत हो रहे हैं. चीन के रक्षा-मंत्री, वी फेंग ने पिछले महीने के अंत में अपनी यात्रा के दौरान नेपाल में क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा में मदद करने का वादा किया था- जो भारत-नेपाल सीमा विवादों के मद्देनज़र लगाया गया एक निशाना था.

प्रतीकवाद से इतर, चीन-नेपाल रक्षा संबंध भी लगातार मज़बूत हो रहे हैं. चीन के रक्षा-मंत्री, वी फेंग ने पिछले महीने के अंत में अपनी यात्रा के दौरान नेपाल में क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा में मदद करने का वादा किया था- जो भारत-नेपाल सीमा विवादों के मद्देनज़र लगाया गया एक निशाना था.

अंत में, श्रीलंका में, राजपक्षे भाईयों की वापसी- राष्ट्रपति के रूप में गोतबया और प्रधानमंत्री के रूप में महिंदा- शायद भारत के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगा. अतीत में, राजपक्षे नई दिल्ली और विशेष रूप से चीनी बुनियादी ढांचे के निवेश पर बीजिंग के पक्ष में थे. दरअसल, उन्होंने कोलंबो सिटी बंदरगाह परियोजना को बीआरआई के माध्यम से संचालित किया, जिसने श्रीलंका पर ऋण को बढ़ाया है. इसके बाद दक्षिण में हंबनटोटा बंदरगाह और हिंद महासागर के महत्वपूर्ण समुद्री गलियारों पर चीन का स्वामित्व पैदा हुआ. इस तरह की रिपोर्ट्स सामने आने के बाद कि राजपक्षे इस बार हंबनटोटा बंदरगाह सौदे पर फिर से सौदेबाज़ी की कोशिश कर सकते हैं, महिंद्रा ने चीनी राज्य द्वारा संचालित मीडिया के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि उनकी टिप्पणी को संदर्भ से बाहर कर देखा गया है और ऐसी कोई योजना नहीं बनाई गई है. दरअसल, पिछले महीने तक, राजपक्षे बीआरआई पर दोहरी नीति अपनाते हुए दिखाई दिए, इसके बावजूद कि सितंबर में हुए एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान गोतबाया और मोदी के बीच संबंधों को बढ़ावा देने की बात की गई.

चीन दक्षिण एशिया से हाल फिलहाल में नहीं निकलेगा. ऐसे में भारत को इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने के लिए अपनी तरह की सोच समझ रखने वालों के साथ बढ़चढ़ कर और तारतम्य में काम करना होगा. ऐसे में, भारत को ऑस्ट्रेलिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका (क्वाड के संदर्भ के भीतर) जैसे भागीदारों के साथ मिलकर इस क्षेत्र में चीन की सफलताओं को और जटिल व प्रबल करना होगा.

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