Published on Nov 15, 2023 Updated 0 Hours ago

वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन की दिशा लिथियम की खोज को लेकर चीन के साथ अफ्रीका की बातचीत के असर से तय हो सकती है.

चीन, अफ्रीका और लिथियम की भू-राजनीति

‘सफेद सोना’ कहा जाने वाला लिथियम आधुनिक तकनीक और उद्योग के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. रिचार्ज होने वाली लिथियम आधारित बैटरी इलेक्ट्रिक कार चलाने और सौर एवं पवन ऊर्जा के भंडारण के लिए ज़रूरी हैं. अपने अधिक ऊर्जा घनत्व और लंबी उम्र के लिए जानी जाने वाली लिथियम-आयन बैटरी का इस्तेमाल कंज़्यूमर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे कि स्मार्टफोन और लैपटॉप में भी होता है. जैसे-जैसे दुनिया स्वच्छ और सतत ऊर्जा की तरफ आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे लिथियम की आसानी से उपलब्धता निश्चित रूप से भविष्य में अलग-अलग नवीकरणीय (रिन्यूएबल) ऊर्जा परियोजनाओं को लागू करने के मामले में असर और क्षमता को निर्धारित करेगी.

पश्चिमी देशों की सरकारें और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां इस यथास्थिति को चुनौती दे रही हैं और लिथियम को लेकर प्रभुत्व की इस लड़ाई के मामले में अफ्रीका निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है.

इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल में तेज़ी से लिथियम के खनन पर दबाव पड़ रहा है. सच्चाई ये है कि 2030 तक लिथियम के लिए मांग पांच गुना से ज़्यादा बढ़ने की उम्मीद है. मौजूदा समय में 80 प्रतिशत से ज़्यादा लिथियम का खनन ऑस्ट्रेलिया और तीन लैटिन अमेरिकी देशों- चिली, अर्जेंटीना और बोलिविया- में होता है और बाद में प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) के लिए इनका निर्यात चीन किया जाता है.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान चीन ने कई प्रकार के खनिज जैसे कि कोबाल्ट, लिथियम और कई अन्य दुर्लभ धातुओं (रेयर अर्थ मेटल्स) की सप्लाई चेन पर एकाधिकार हासिल कर लिया है. हालांकि पश्चिमी देशों की सरकारें और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां इस यथास्थिति को चुनौती दे रही हैं और लिथियम को लेकर प्रभुत्व की इस लड़ाई के मामले में अफ्रीका निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है. इस संबंध में नामीबिया की सरकार और चीन की खदान कंपनी के बीच चल रहा विवाद अफ्रीकी देशों के द्वारा अपने प्रचुर खनिज संसाधनों के उपयोग के लिए खनन नीतियों, निर्यात रेगुलेशन और रणनीति को विकसित करने के महत्व और ज़रूरत पर ज़ोर देकर एक उदाहरण पेश करता है.

नामीबिया में क्या हुआ?

कोहेरो लिथियम खदान नामीबिया की राजधानी विंडहोक से लगभग 250 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है. नामीबिया की सरकार और चीन की खनन कंपनी शिनफेंग के बीच लंबे समय से शिनफेंग के खनन अधिकारों को लेकर विवाद चल रहा है. अक्टूबर 2022 में शिनफेंग पर गलत ढंग से लिथियम बाहर भेजने का आरोप लगाते हुए नामीबिया की सरकार ने कोहेरो खदान में शिनफेंग के काम-काज को रोक दिया. लेकिन शिनफेंग के मुताबिक उसने सिर्फ 75,000 मीट्रिक टन लिथियम अयस्क चीन में अपने मुख्यालय भेजा था जिसका उद्देश्य नामीबिया में एक लिथियम प्रोसेसिंग प्लांट के डिज़ाइन का परीक्षण करना था. बाद में शिनफेंग ने सरकारी आदेश को नज़रअंदाज़ करते हुए अपना सामान्य काम-काज जारी रखा.

अप्रैल 2023 में नामीबिया के खनन मंत्री टॉम अलवींडो ने एक बार फिर शिनफेंग पर लाइसेंस हासिल करने में गैर-कानूनी तरीके इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए उसके खनन लाइसेंस को रद्द कर दिया. लेकिन जब चीन की इस कंपनी ने मंत्री के फैसले को नामीबिया हाई कोर्ट में चुनौती दी तो कोर्ट ने पाया कि खनन का लाइसेंस रद्द नहीं करना चाहिए था. कोर्ट ने ये भी कहा कि मंत्री ने लाइसेंस रद्द करने में उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया था और इसलिए लाइसेंस रद्द करने का निर्णय सही नहीं है.

इसके बाद जून 2023 में नामीबिया ने बिना प्रोसेस किए लिथियम और दूसरे महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात को पूरी तरह रोकने का फैसला लिया. इस कदम का मक़सद घरेलू प्रसंस्करण में समर्थन प्रदान करना और स्वच्छ ऊर्जा तकनीक में इस्तेमाल होने वाली धातुओं की बढ़ती मांग का फायदा उठाना था. बेशक नामीबिया को इस फैसले के लिए पड़ोसी देश ज़िम्बाब्वे ने प्रेरित किया. ज़िम्बाब्वे ने बिना प्रोसेस किए लिथियम के निर्यात पर पिछले साल दिसंबर में रोक लगाई थी जिसका उद्देश्य अवैध खनन को रोकना और घरेलू प्रसंस्करण को बढ़ावा देना था.

इस कदम का मक़सद घरेलू प्रसंस्करण में समर्थन प्रदान करना और स्वच्छ ऊर्जा तकनीक में इस्तेमाल होने वाली धातुओं की बढ़ती मांग का फायदा उठाना था. बेशक नामीबिया को इस फैसले के लिए पड़ोसी देश ज़िम्बाब्वे ने प्रेरित किया.

इसके बावजूद शिनफेंग ने एक बार फिर सरकार की पाबंदी का विरोध करने का फैसला लिया और बिना प्रोसेस किए लिथियम को चीन भेजने का काम जारी रखा. नामीबिया सरकार ने शिनफेंग को रोकने के लिए 19 अक्टूबर को अपनी पुलिस फोर्स को आदेश दिया कि वो खदान से लिथियम ले जाने वाले किसी भी ट्रक को रोके. वैसे तो बिना प्रोसेस किए लिथियम को चीन भेजना सरकार के आदेश का उल्लंघन है लेकिन नामीबिया की सरकार के द्वारा पुलिस का इस्तेमाल करना चीन को गुस्सा दिला सकता है और देश में खनन के भविष्य को ख़तरे में डाल सकता है.

अपने लिथियम उद्योग को विकसित करने में अफ्रीका के सामने चुनौतियां

अफ्रीका के पास दुनिया में प्राकृतिक लिथियम अयस्क का लगभग 5 प्रतिशत भंडार है. हालांकि कुछ चुनिंदा देशों के पास ही अच्छी मात्रा में लिथियम का भंडार है. इनमें डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, घाना, माली, ज़िम्बाब्वे और नामीबिया शामिल हैं. लिथियम के मामले में समृद्ध ये अफ्रीकी देश लिथियम के प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग उद्योग के आकार को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं ताकि बैटरी सामग्री के लिए वैश्विक मांग में बढ़ोतरी से लाभ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हासिल कर सकें.

हालांकि, अफ्रीका के किसी भी देश में बड़े पैमाने पर लिथियम प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना करने के लिए बिजली, रसायन और लिथियम की नियमित सप्लाई की ज़रूरत पड़ेगी. लिथियम के प्रसंस्करण में एक और महत्वपूर्ण रुकावट है परिवहन के बुनियादी ढांचे का लगभग नहीं होना. इसके अलावा अस्थिर राजनीति और भ्रष्टाचार का मुद्दा भी है. साथ ही, वैश्विक राजनीति और कमोडिटी का बाज़ार अप्रत्याशित है. 2022 में लिथियम हाइड्रोक्साइड की कीमत में बढ़ोतरी हुई और ये दिसंबर में बहुत ज़्यादा बढ़कर 80,000 अमेरिकी डॉलर प्रति टन हो गया. उस समय से ये गिरकर 55,000 अमेरिकी डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया है. कीमत में इस कमी के जवाब में पश्चिमी देशों के कई निवेशक अपना निवेश कम करने की योजना बना रहे हैं. अंत में, लिथियम की कमी की आशंका को देखते हुए कुछ निवेशक सोडियम-आयन बैटरी जैसा विकल्प विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं.

लिथियम के मामले में अफ्रीका के आगे बढ़ने में चीन का फैक्टर

लिथियम की रिफाइनिंग के मामले में चीन दुनिया का अग्रणी देश है और वो ज़्यादातर लिथियम सप्लाई चेन को नियंत्रित करता है. विडंबना है कि चीन भले ही नई ऊर्जा से चलने वाली ज़्यादातर गाड़ियों का निर्माण करता है लेकिन उसके पास दुनिया के लिथियम भंडार का केवल एक छोटा सा हिस्सा है. सच्चाई ये है कि चीन के पास दुनिया के लिथियम भंडार का केवल 7 प्रतिशत हिस्सा है. फिर भी चीन दुनिया में लिथियम का सबसे बड़ा आयातक, रिफाइनर और उपभोक्ता है. वो 70 प्रतिशत लिथियम कंपाउंड की ख़रीदारी करता है और दुनिया में लिथियम उत्पादन के 70 प्रतिशत की सप्लाई करता है. चीन ये सप्लाई मुख्य रूप से अपने घरेलू लिथियम बैटरी के उत्पादकों को करता है.

चूंकि चीन अपने कच्चे माल के लगभग दो-तिहाई हिस्से के लिए आयात पर निर्भर है, इसलिए 2018 से दुनिया भर में चीन बड़े लिथियम खदानों को ख़रीदने के लिए तेज़ी से खर्च कर रहा है. पिछले कुछ वर्षों में चीन ने ऑस्ट्रेलिया में दो खदान, कनाडा में तीन, अर्जेंटीना में दो, ज़िम्बाब्वे में एक और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में एक खदान का अधिग्रहण किया है. कुछ अनुमानों के मुताबिक़ 2025 तक बैटरी बनाने के लिए 7,05,000 टन प्रोसेस्ड लिथियम दुनिया भर में चीन के नियंत्रण वाले खदानों से आएगा जो कि 2022 में सिर्फ 1,94,000 टन था.

अफ्रीका की बात करें तो नामीबिया या ज़िम्बाब्वे जैसे देश अगर घरेलू स्तर पर लिथियम की छोटी मात्रा को प्रोसेस कर भी लें तब भी उन्हें अपने उत्पाद को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक ले जाने के लिए अच्छे हाईवे की ज़रूरत होगी. अफ्रीका में ज़्यादातर बंदरगाह लिथियम के खदानों से दूर हैं. इसके अलावा ज़िम्बाब्वे जैसे लैंडलॉक्ड (जहां समुद्र नहीं है) देश को बंदरगाह तक पहुंचने के लिए किसी देश की सीमा को पार करना होगा. अगर अफ्रीकी देश लिथियम के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र बनने की इच्छा रखते हैं तो उन्हें हर हाल में सीमा पार इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक पर ध्यान देने की शुरुआत करनी होगी. अगर ज़रूरी लॉजिस्टिक मौजूद है तो उसी इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल अलग-अलग प्रकार के व्यवसायों, जिनमें कृषि व्यवसाय शामिल है, को शुरू करने में किया जा सकता है और इस तरह लाखों नई नौकरियां पैदा की जा सकती हैं.

हालांकि इन बुनियादी ढांचों के निर्माण पर बहुत ज़्यादा पैसा खर्च करना होगा. चीन शायद दुनिया में इकलौता ऐसा देश है जो इतनी जल्दी इतनी बड़ी रक़म का निवेश कर सकता है. वास्तव में पश्चिमी देशों के विकास एवं व्यावसायिक बैंकों की तुलना में चीन की कंपनियों के द्वारा जोखिम वाली परियोजनाओं में निवेश करने की संभावना बहुत ज़्यादा है.

अफ्रीका के किसी भी देश में बड़े पैमाने पर लिथियम प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना करने के लिए बिजली, रसायन और लिथियम की नियमित सप्लाई की ज़रूरत पड़ेगी.

कुछ अनुमानों के मुताबिक 2030 तक अफ्रीका दुनिया में लिथियम की मांग का पांचवां हिस्सा मुहैया करा सकता है. निश्चित रूप से अफ्रीका अलग-अलग देशों की अलग-अलग कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धी बाज़ार के बिना लिथियम की मांग में इस तेज़ी का फायदा नहीं उठा सकता है. इसलिए ऐसा प्रतिस्पर्धी बाज़ार अफ्रीका के लिए शुभ संकेत होगा जहां चीन की अलग-अलग कंपनियों के साथ-साथ दूसरे विकसित देशों जैसे कि कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की कंपनियों के बीच मुकाबला हो.

आगे का रास्ता

अपने लिथियम उद्योग को विकसित करने के सफर में अफ्रीका एक चौराहे पर खड़ा है. एक फलता-फूलता लिथियम उद्योग बेशक अफ्रीका की समृद्धि में योगदान करेगा. चीन कई वर्षों से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव समेत अलग-अलग पहल के ज़रिए लिथियम और अन्य महत्वपूर्ण खनिजों की नियमित आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए काम कर रहा है. अमेरिका और यूरोप के अधिकारी जहां अफ्रीका में सहयोग बढ़ा रहे हैं और आवश्यक खनिजों की सूची बना रहे हैं, वहीं चीन के कारोबारी महत्वपूर्ण खनिज जुटाने के लिए अफ्रीका में खदान ख़रीद रहे हैं और खनिज को प्रोसेस करने के लिए अपने देश में रिफाइनरी का निर्माण कर रहे हैं. अपने लिथियम उद्योग को विकसित करने के लिए अफ्रीका को निश्चित रूप से चीन के निवेश की ज़रूरत होगी, कम-से-कम अगले कुछ वर्षों के लिए जब तक दूसरे देश इस होड़ में शामिल नहीं होते हैं.

यहीं पर विरोधाभास है. अगर अफ्रीका अपने लिथियम उद्योग का फायदा उठाना चाहता है तो उसे अपना प्रदर्शन सुधारना होगा और ड्रैगन को काबू में करना सीखना होगा. नामीबिया में मौजूदा विवाद चीन के साथ बेहतर तोल-मोल करने के उद्देश्य से लिथियम का उत्पादन करने वाले अफ्रीका के दूसरे देशों के लिए एक उदाहरण बन सकता है. वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन की राह लिथियम की खोज को लेकर चीन और दूसरे विकसित देशों के साथ अफ्रीका की बातचीत के असर से तय हो सकती है.

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