Published on Aug 13, 2022 Updated 0 Hours ago

चीन की सेनाओं ने हाल ही में जो युद्धाभ्यास किया, उसका मक़सद ये अंदाज़ा लगाना था कि हमला करने पर ताइवान किस तरह से पलटवार करेगा.

ताइवान के जलसंधि (स्ट्रेट) क्षेत्र में चीन की सैन्य शक्ति की नुमाइश!

अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद, ग़ुस्से से भरे चीन ने ताइवान के आस-पास के समुद्री इलाक़े में उकसाने वाले सैनिक युद्धाभ्यास किए. नैंसी पेलोसी ने चीन की तमाम चेतावनियों और धमकियों को दरकिनार करते हुए पिछले हफ़्ते ताइवान का दौरा किया था. चीन, ताइवान को अपना एक सूबा मानता है. ताइवान पहुंचकर नैंसी पेलोसी ने ट्वीट किया कि अमेरिका, ताइवान के ऊर्जावान लोकतंत्र के समर्थन के लिए पहले जैसा ही प्रतिबद्ध है और ‘हिंद प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र एवं खुले क्षेत्र के रूप में बढ़ावा देने के साझा हितों को लेकर भी ताइवान और अमेरिका साथ-साथ हैं.’ पेलोसी के ताइवान से किए गए इन ट्वीट से चीन और भी चिढ़ गया.

नैंसी पेलोसी ने चीन की तमाम चेतावनियों और धमकियों को दरकिनार करते हुए पिछले हफ़्ते ताइवान का दौरा किया था. चीन, ताइवान को अपना एक सूबा मानता है. ताइवान पहुंचकर नैंसी पेलोसी ने ट्वीट किया कि अमेरिका, ताइवान के ऊर्जावान लोकतंत्र के समर्थन के लिए पहले जैसा ही प्रतिबद्ध है

अपनी पहले की हरकतों से आगे बढ़ते हुए इस बार चीन ने ताइवान के मुख्य द्वीप के बेहद क़रीब पर सैनिक युद्धाभ्यास किए. इस बार के युद्धाभ्यास के दौरान चीन की सेनाओं ने ताइवान के चार प्रमुख मोर्चों पर दबाव बनाने की कोशिश की. इस दौरान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने;

  1. ताइवान के मुख्य द्वीप के इर्द-गिर्द कई संयुक्त युद्धाभ्यास किए
  2. ताइवान के उत्तरी, दक्षिणी पश्चिमी और दक्षिणी पूर्वी द्वीपों के बेहद क़रीब भी चीन ने साझा हवाई और नौसैनिक अभ्यास किए.
  3. इस दौरान चीन की सेनाओं ने बड़े पैमाने पर गोलीबारी की. 
  4. युद्धाभ्यास के दौरान चीन की सेनाओं ने पारंपरिक हथियारों से लैस मिसाइलें भी दाग़ीं.

चीन के युद्धक विमानों और नौसैनिक जहाज़ों ने चीन और ताइवान को अलग करने वाले समुद्री क्षेत्र के बीच की रेखा को पार किया और ताइवान के तट के बेहद पास आकर युद्धाभ्यास किया. ये कुछ वैसा ही युद्धाभ्यास था, जैसे चीन की सेनाओं ने चारों तरफ़ से घेरकर ताइवान पर हमला किया हो- संभावना इस बात की है कि चीन की सेनाओं ने ताइवान पर आक्रमण की तैयारी के लिए ये सैनिक अभ्यास किए.

चीन के इस बार के युद्धाभ्यास, ताइवान जलसंधि 1995-1996 के दौरान पैदा हुए पिछले बेहद गंभीर संकट से बिल्कुल अलग थे. हालांकि PLA ने पिछली बार भी बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास किए थे. लेकिन, वो इस बार की तुलना में बेहद सीमित थे.

1995-1996 का ताइवान जलसंधि संकट

चीन के इस बार के युद्धाभ्यास, ताइवान जलसंधि 1995-1996 के दौरान पैदा हुए पिछले बेहद गंभीर संकट से बिल्कुल अलग थे. हालांकि PLA ने पिछली बार भी बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास किए थे. लेकिन, वो इस बार की तुलना में बेहद सीमित थे. उस वक़्त पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने ताइवान को निशाना बनाकर किए गए सैनिक अभ्यास के दौरान राजधानी बीजिंग में ख़ास इसी मक़सद से एक युद्धाभ्यास मुख्यालय बनाया था. उस वक़्त इस मुख्यालय का मक़सद, युद्ध अभ्यास में शामिल सेना के विभिन्न अंगों के बीत तालमेल बैठाना था. उस युद्धाभ्यास में नानजिंग और गुआंगझोऊ के पूर्व सैन्य क्षेत्रों की टुकड़ियां भी शामिल हुई थीं. हालांकि, तब चीन ने ताइवान से सीधी टक्कर से बचने की पुरज़ोर कोशिश की थी. उस दौरान चीन की सेनाओं ने युद्धाभ्यास करने, हथियार चलाने और मिसाइलें छोड़ने के लिए ताइवान के मुख्य द्वीप से बहुत दूर के इलाक़े चुने थे.

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ताइवान जलसंधि के 1995-96 के संकट और मौजूदा संकट (4-7 अगस्त 2022) के दौरान चीन की गतिविधियों की तुलना करने वाला नक़्शा

स्रोत: डुआन डैंग

हालांकि, 1995-96 के युद्धाभ्यास के दौरान भी चीन ने गोलीबारी करके और मिसाइलें दाग़कर, ताइवान को उकसाने की कोशिश की थी. लेकिन, उस दौरान चीन ने ये सावधानी बरती थी कि हालात ज़्यादा न बिगड़ जाएं. उस संकट के दौरान अमेरिका ने इस क़दर सख़्ती दिखाई थी कि चीन ने अपने तत्कालीन उप विदेश मंत्री लियू हुआक़ियु को मार्च 1996 में अमेरिका ये संदेश लेकर भेजा था कि उसका ताइवान पर आक्रमण करने का कोई इरादा नहीं है. चीन की सेनाएं तो बस इसलिए युद्धाभ्यास कर रही हैं, ताकि ताइवान को स्वतंत्रता की घोषणा करने से रोका जा सके.

1995 में इस संकट के शुरुआती दिनों में तो अमेरिका ने निश्चित रूप से दुविधा वाला रुख़ अपनाया था. इससे चीन को ये संदेश गया था कि ताइवान की रक्षा का अमेरिका का इरादा बहुत मज़बूत नहीं है. इससे चीन के हौसले और बढ़ गए थे और उसके बाद चीन ने साल 1996 की शुरुआत में और भी आक्रामक तरीक़े से ताइवान की तरफ़ मिसाइलें दाग़ीं और गोलीबारी की. लेकिन इस बार, यानी 1996 की शुरुआत के साथ ही अमेरिका की प्रतिक्रिया में भी बेहद सख़्ती आ गई थी. और उसने ताइवान की हिफ़ाज़त के लिए नौसेना के दो एयरक्राफ्ट कैरियर और उनके बेड़े के और जहाज़ ताइवान के पास तैनात कर दिए थे. इससे चीन भी हैरान रह गया था और उसने अमेरिका की इस प्रतिक्रिया को अतिउत्साह में दिया गया जवाब क़रार दिया था.

मौजूदा संकट किस रूप में ख़त्म होता है, ये तो बाद की बात है. मगर ये बात बिल्कुल तय है कि अगले एक दशक के दौरान इस मामले में चीन की क्षमता में लगातार इज़ाफ़ा ही होना है. रोटरी विंग वाले विमानों का इस्तेमाल हवाई हमले करने के लिए होता है.

1996 में चीन को ये बात अच्छे से मालूम थी कि अगर उसने ताइवान पर हमला किया और जंग हुई, तो वो निश्चित रूप से अमेरिका से हार जाएगा. इसी वजह से चीन ने और आक्रमक रुख़ दिखाने के बजाय अपने क़दम पीछे खींच लिए थे. लेकिन, मौजूदा हालात बिल्कुल अलग हैं. आज जब चीन और अमेरिका की सेनाओं के बीच फ़ासला काफ़ी कम हो चुका है, तो अबकी बार चीन के बजाय अमेरिका ने नैंसी पेलोसी के दौरे को लेकर चीन के कठोर रुख़ को बेवजह का विवाद खड़ा करने की कोशिश बताया.

चीन को बढ़त क्यों है?

मौजूदा संकट के दौरान, चीन के पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. नई मिसाइलें और दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है. चीन ने अपनी वायुसेना में भी दर्जनों लड़ाकू विमान और दूसरे विमान शामिल किए हैं, जिनका मक़सद ताइवान की वायुसेना के F-16 विमानों और उस क्षेत्र में सक्रिय अमेरिकी लड़ाकू विमानों पर हावी होना है. 1990 के दशक के मध्य में चीन के पास न तो हवाई हमले की क्षमता थी और न ही थल और समुद्री रास्ते से हमले की ताक़त थी. लेकिन, आज उसके पास इसके सारे संसाधान मौजूद हैं.

पिछले एक दशक के दौरान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने रोटरी विंग विमान विकसित करने और उन्हें अपनी वायुसेना में शामिल करने के मामले में काफ़ी प्रगति कर ली है. मौजूदा संकट किस रूप में ख़त्म होता है, ये तो बाद की बात है. मगर ये बात बिल्कुल तय है कि अगले एक दशक के दौरान इस मामले में चीन की क्षमता में लगातार इज़ाफ़ा ही होना है. रोटरी विंग वाले विमानों का इस्तेमाल हवाई हमले करने के लिए होता है. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने ये विमान उड़ाने और हमले करने के लिए काफ़ी पायलटों को प्रक्षिक्षण देकर तैयार किया है.

इन युद्धाभ्यासों का एक मक़सद हमले की सूरत में ताइवान के जवाब का अंदाज़ा लगाना भी था.

पिछले एक दशक के दौरान चीन के फिक्स्ड विंग विमानों की क्षमता में भी काफ़ी सुधार आया है और इस दौरान उन्होंने कई युद्धाभ्यासों में शिरकत भी की है. हालांकि हवाई हमलों के मामले में चीन की क्षमता में अभी सुधार हो ही रहा है. लेकिन, आज भी चीन के पास जो क्षमता है, उससे ताइवान की वायुसेना को बड़ी चुनौती के लिए तैयार रहना होगा. क्योंकि, इस बार के युद्धाभ्यासों के दौरान चीन की वायुसेना ने ताइवान की एयर डिफेंस क्षमताओं पर हावी होने का लक्ष्य हासिल करने की कोशिश की थी. अगर चीन के पास सटीक निशाना लगा सकने वाली हवाई हमले की ऐसी क्षमता हो जाए, जिसमें दुश्मन की एयर डिफेंस क्षमताओं पर हावी होने की ताक़त हो, तो चीन के लिए ताइवान पर आक्रमण करके उस पर जीत हासिल करना आसान हो जाएगा. चीन ऐसी क्षमता हासिल करने के लिए बेक़रार है, ताकि वो बहुत कम लागत और नुक़सान से अपना लक्ष्य हासिल कर सके.

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, चीन की सेनाओं ने मौजूदा युद्धाभ्यास के दौरान अभूतपूर्व संख्या में अपने सैनिक और साज़-ओ-सामान ताइवान के बेहद क़रीब इकट्ठे किए थे, उनका मक़सद बिना युद्ध किए ही अपनी क्षमताओं का आकलन करना था. इन युद्धाभ्यासों का एक मक़सद हमले की सूरत में ताइवान के जवाब का अंदाज़ा लगाना भी था. चीन के युद्ध अभ्यास के जवाब में ताइवान के मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने जैसी प्रतिक्रिया दी होगी, उससे चीन के सैन्य योजनाकारों को इस बात का अंदाज़ा लगाने में आसानी हुई होगी कि उन्हें ताइवान के एयर डिफेंस के रडारों पर हावी होने के लिए क्या करना होगा और ताइवान की सेनाएं अपनी हिफ़ाज़त के लिए किन इलाक़ों में ज़्यादा मोर्चेबंदी करेंगी. 1995-96 के ताइवान संकट के दौरान जहां मसाइल परीक्षण और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की तमाम शाखाओं के बीच महीनों तक तालमेल बनाने की कोशिश की गई थी. वहीं, हालिया युद्ध अभ्यास बेहद सीमित समय के लिए हुए थे और इनका मक़सद असल मायनों में युद्ध के दौरान, PLA के सामने आने वाली चुनौतियों का अंदाज़ा लगाना था. इससे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को वास्तविक युद्ध की बेहतर तैयारी का मौक़ा मिलेगा, जिसका आग़ाज़ शायद बहुत ज़्यादा दिन दूर नहीं है.

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