कश्मीर घाटी में अशांति फैलाने के पाकिस्तान के अड़ियल प्रयासों से निपटने के लिए भारत को टेक्नोलॉजी का प्रभावी इस्तेमाल करने वाली एक नई आतंक-निरोधी रणनीति तैयार करनी होगी.
अनंतनाग एनकाउंटर से ये बात साबित हुई है कि शहरी वातावरणों में सुरक्षा बलों का सामना कर पाने में नाकाम रहने वाले आतंकी अब उनसे भिड़ने के लिए कश्मीर के घने जंगलों का सहारा ले रहे हैं.
अनंतनाग एनकाउंटर से ये बात साबित हुई है कि शहरी वातावरणों में सुरक्षा बलों का सामना कर पाने में नाकाम रहने वाले आतंकी अब उनसे भिड़ने के लिए कश्मीर के घने जंगलों का सहारा ले रहे हैं. ख़ासतौर से 2020 के बाद से ये रुझान दिखाई देने लगा है, जब आतंकवादी समूह अपनी गतिविधियों को घाटी से दूर पीर पंजाल श्रेणियों में पुंछ और राजौरी के जंगली इलाक़ों में ले गए. उसके बाद से पिछले तीन वर्षों में आतंक-निरोधी अभियानों में पांच पैरा ट्रूपर्स समेत 26 सैनिकों की जान जा चुकी है.
सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले दो सालों में घुसपैठ की कामयाब कोशिशों में भी भारी गिरावट दर्ज की है. 2021 में घुसपैठ की 31 कोशिशें कामयाब रही थीं, 2022 में इसकी संख्या घटकर आठ रह गई. घुसपैठ की कोशिशों के दौरान मारे गए आतंकवादियों की संख्या 2021 में छह थी, जो 2022 में बढ़कर 16 हो गई.
सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले दो सालों में घुसपैठ की कामयाब कोशिशों में भी भारी गिरावट दर्ज की है. 2021 में घुसपैठ की 31 कोशिशें कामयाब रही थीं, 2022 में इसकी संख्या घटकर आठ रह गई. घुसपैठ की कोशिशों के दौरान मारे गए आतंकवादियों की संख्या 2021 में छह थी, जो 2022 में बढ़कर 16 हो गई. 2023 में सुरक्षा बलों को नियंत्रण रेखा (LoC) से घुसपैठ की कोशिश कर रहे 26 आतंकवादियों को ढेर करने में कामयाबी मिली है. जम्मू-कश्मीर पुलिस के ताज़ा-तरीन आंकड़ों के मुताबिक फ़िलहाल राज्य में 81 सक्रिय आतंकवादी हैं, जिनमें से 33 स्थानीय और 48 विदेशी हैं. दक्षिण कश्मीर वो इलाक़ा है जहां बड़ी तादाद में सक्रिय आतंकवादी मौजूद हैं. यहां कुल 56 आतंकवादी सक्रिय हैं, जिनमें 28 विदेशी और स्थानीय आतंकी शामिल हैं.
इन घटनाक्रमों ने आतंकी तंज़ीमों (संगठनों) को अपना तौर-तरीक़ा और ठिकाना बदलने के लिए मजबूर कर दिया है.
कश्मीर से पीर पंजाल
यहां ये ग़ौर करना ज़रूरी है कि इस साल मारे गए 31 आतंकवादियों को पीर पंजाल के दक्षिणी इलाक़े में ढेर किया गया है. ये इलाक़ा पाकिस्तान की सीमा पर है और नियंत्रण रेखा के साथ लगा है. पाकिस्तानी आतंकवादियों की मौजूदगी में भारी बढ़ोतरी (ख़ासतौर से पीर पंजाल के घने जंगलों में) आतंकवाद को ज़िंदा रखने और कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय तवज्जो बरक़रार रखने की चाल है. ऐसा लगता है कि ये आतंकी गुरिल्ला तरक़ीबों का इस्तेमाल कर रहे हैं. जिसके तहत वो सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के बाद पीर पंजाल इलाक़े के घने जंगलों में वापस लौट जाते हैं और अगले हमले के लिए दोबारा एकजुट होते हैं.
नियंत्रण रेखा के पार से आने वाले आतंकवादी एक ही जातीयता और ज़ुबान साझा करते हैं, जिससे वो स्थानीय परिवेश में आसानी से घुल-मिल जाते हैं, इससे सुरक्षा बलों के लिए उनकी पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है. एक और बात, समतल ज़मीन और सड़कों के स्थापित जाल वाले कश्मीर घाटी के उलट पीर पंजाल के दक्षिणी इलाक़े में परिवहन व्यवस्था ठीक तरह से विकसित नहीं है.
इन समूहों ने अपनी आतंकी सोच और दुष्प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए X, टेलीग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का बड़ी होशियारी से उपयोग किया है.
एक ऐसे वक़्त में जब सुरक्षा एजेंसियां पीर पंजाल के दक्षिण में आतंक-निरोधी रणनीतियां तैयार करने में कड़ी मशक्कत कर रही हैं, उन्हें एक नए ख़तरे से जूझना पड़ रहा है. वो ख़तरा है- दुष्प्रचार. जब अनंतनाग में मुठभेड़ चल रही थी, तब भी कुछ मीडिया समूहों ने ऐसे कड़े आरोप लगाए कि मुठभेड़ में शामिल आतंकियों के पास सैनिकों की आवाजाही के बारे में विस्तृत जानकारी मौजूद थी. उनका कहना था कि ये सूचनाएं उन्हें पाकिस्तानी क़ब्ज़े वाले कश्मीर में बैठे आतंकी आका मुहैया करा रहे थे- जो अंदर के किसी सूत्र का हाथ होने का इशारा करते हैं. एक स्थानीय न्यूज़ एजेंसी द्वारा अपलोड किए गए वीडियो में आरोप लगाया गया कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट आदिल मुश्ताक़ (जिन्हें हाल ही में गिरफ़्तार और निलंबित किया गया था) इन सूचनाओं को लीक करने में शामिल रहे थे. ऐसी ख़बरें फैलने के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस को सामने आकर इन अफ़वाहों का ख़ंडन करना पड़ा. पुलिस ने सेवानिवृत सुरक्षा अधिकारियों से झूठी ख़बरों का प्रचार करने से परहेज़ करने को कहा है. वीडियो को सुरक्षा एजेंसियों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश के तौर पर देखा गया.
वर्चुअल आतंकी समूहों का उभार
वर्चुअल आतंकी समूहों के उभार के तौर पर एक और अहम रुझान देखा गया है. ज़ाहिर तौर पर इस तरह का कोई पिछला इतिहास नहीं रहा है. पिछले तीन सालों में द रेज़िस्टेंस फ्रंट (TRF), जम्मू कश्मीर गज़नवी फोर्स, और पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट (PAAF) जैसे समूह सामने आए हैं. ये कुछ और नहीं बल्कि लश्कर-ए-तैयबा और अन्य आतंकी संगठनों के मुखौटा संगठन हैं. मिसाल के तौर पर TRF ज़्यादातर लश्कर-ए-तैयबा के फंडिंग स्रोतों का इस्तेमाल करता है. जबकि PAAF जैश-ए-मोहम्मद का मुखौटा है, जो फ़रवरी 2019 में हुए घातक लेथपोरा (पुलवामा) आत्मघाती हमलों के लिए ज़िम्मेदार था. इन समूहों ने अपनी आतंकी सोच और दुष्प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए X, टेलीग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का बड़ी होशियारी से उपयोग किया है. इस सिलसिले में ये तमाम समूह, प्राथमिक रूप से कश्मीर घाटी को मुस्लिम-अल्पसंख्यक इलाक़े में तब्दील करने की कथित साज़िश जैसे मसलों पर तवज्जो देते रहे हैं. इन्होंने स्थानीय लोगों को विशेष पुलिस अधिकारियों (SPOs) के तौर पर काम करने के ख़िलाफ़ चेतावनी भी दी है.
निष्कर्ष
जम्मू-कश्मीर में सामान्य हालात की बहाली के बीच ऊपर के घटनाक्रम रावलपिंडी और इस्लामाबाद द्वारा कश्मीर घाटी में अशांति फैलाने के दृढ़ प्रयासों का संकेत देते हैं. लगातार फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की जांच-पड़ताल के दायरे में रहने के चलते पाकिस्तान ने नए-नए समूह तैयार करने का रास्ता चुना है, जिससे उसकी धरती पर फल-फूल रहे भारत-विरोधी आतंकी समूहों से ध्यान हट जाएगा और कश्मीर के उग्रवाद को स्थानीय समस्या के तौर पर दर्शाया जा सकेगा. भारत को आतंक-निरोध की एक नई रणनीति तैयार करनी होगी जो टेक्नोलॉजी का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने के साथ-साथ दुष्प्रचार और सुरक्षा एजेंसियों में दरार पैदा करके आतंकवाद को बढ़ावा देने में मीडिया की भूमिका की निगरानी और प्रतिकार करती हो.
एजाज़ वानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
समीर पाटील ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
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Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
Dr Sameer Patil is Senior Fellow, Centre for Security, Strategy and Technology and Deputy Director, ORF Mumbai. His work focuses on the intersection of technology ...