Author : Nandan Dawda

Expert Speak Urban Futures
Published on Apr 16, 2025 Updated 0 Hours ago


यात्रा की शुरुआत से अंत तक कुशल सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध कराने की पहेली पब्लिक बाइक शेयरिंग से हल हो सकती है, लेकिन योजना की कमी, असमान नीति और कमज़ोर बुनियादी ढांचा ऐसा होने नहीं दे रहे.

भारत में पब्लिक बाइक शेयरिंग के लिए चुनौतियां और अवसर

Image Source: Getty

भारतीय शहरों में टिकाऊ परिवहन योजना और विकास को आगे बढ़ाने के लिए एकीकृत मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली (IMTS) एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में काम करती है. IMTS का अर्थ है- बस, रेलगाड़ी, ऑटो, साइकिल जैसे सभी परिवहन साधनों से बिना रुकावट यात्रा सुनिश्चित कराने वाला तंत्र. परंपरागत रूप से, राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (NUTP), जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM) और स्मार्ट सिटीज मिशन जैसी नीतियां व आर्थिक सहायताएं मल्टीमॉडल परिवहन तंत्र में बिना मोटर वाली गाड़ियों (NMT) का महत्व बताती रही हैं, ताकि यात्रा की शुरुआत से अंत तक की सभी चुनौतियों का समाधान हो सके. इन योजनाओं में, ट्रांजिट स्टेशनों (वह स्टेशन, जहां लोग बस, रेलगाड़ी, मेट्रो या अन्य परिवहन साधनों का एक साथ उपयोग करते हैं) पर पब्लिक बाइक शेयरिंग, यानी PBS (इसमें लोग कुछ दूरी की यात्राएं पूरी करने के लिए साइकिल का उपयोग करते हैं) की योजना, डिजाइन और क्रियान्वयन सुनिश्चित की गई है, जो भारतीय शहरों में विभिन्न शहरी स्थानीय निकायों (ULB) द्वारा किए गए महत्वपूर्ण प्रयास हैं.

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MOHUA) ने PBS को ‘एक बेहतर गुणवत्ता वाली साइकिल-आधारित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के रूप में परिभाषित किया है, जिसमें स्टेशनों के नज़दीक रखी गई साइकिलों का उपयोग कम दूरी के लिए किया जाता है’. इसी तरह, वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (WRI) ने PBS को ‘एक लचीली सार्वजनिक परिवहन सेवा के रूप में परिभाषित किया है, जिसमें साइकिल किराये पर देने वाले स्टेशनों का एक मज़बूत नेटवर्क बनाए जाने’ की बात कही गई है. इसमें ‘उपयोगकर्ता किसी भी स्टेशन से साइकिल ले सकते हैं और इसे किसी दूसरे स्टेशन पर वापस कर सकते हैं’. इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसपोर्टेशन ऐंड डेवलपमेंट पॉलिसी (ITDP) ने PBS को ‘एक ऐसा तंत्र बताया है, जहां कोई भी व्यक्ति एक स्थान पर साइकिल ले सकता है और इसे दूसरे स्थान पर जमा कर सकता है, जिससे दोनों स्थानों के बीच सीधा मानव-संचालित परिहवन होता है.’

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MOHUA) ने PBS को ‘एक बेहतर गुणवत्ता वाली साइकिल-आधारित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के रूप में परिभाषित किया है, जिसमें स्टेशनों के नज़दीक रखी गई साइकिलों का उपयोग कम दूरी के लिए किया जाता है’.

भले ही अलग-अलग संस्थाएं इसके लिए अलग-अलग शब्दों का प्रयोग करती हैं, जैसे कि बाइक शेयर, PBS या साइकिल शेयर- लेकिन सभी परिभाषाओं के बुनियादी सिद्धांतों में कोई अंतर नहीं है. मुख्य रूप से इस व्यवस्था में तीन प्रमुख विशेषताओं पर ज़ोर है- साझा उपयोग, कई जगहों पर साइकिलों की उपलब्धता और लोगों का अपनी क्षमता का इस्तेमाल करते हुए बिना रुकावट यात्रा करना. हालांकि, ऐसी व्यवस्थाओं के निर्माण और संचालन के लिए पर्याप्त आर्थिक निवेश की ज़रूरत होती है, पर शहरी परिवहन में इनकी प्रभावशीलता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए यह देखना ज़रूरी है कि यात्रा की शुरुआत से अंत तक की कनेक्टिविटी से जुड़ी चुनौतियों का इनमें किस तरह से समाधान किया गया है.

 

भारत में पीबीएस प्रणाली

बाइक-शेयरिंग की शुरुआत यूरोपीय देशों से हुई है, लेकिन अपनी उल्लेखनीय सफलता के कारण इसने पूरी दुनिया में जगह बना ली है. 2020 के अंत तक विश्व में लगभग 2,008 बाइक-शेयरिंग सिस्टम चल रहे थे. भारत में, कई जगहों पर ‘स्मार्ट सिटीज मिशन’ और अन्य सरकारी प्रयासों के तहत ऐसी योजनाओं को अपनाया गया है, ताकि आने-जाने की टिकाऊ व्यवस्था बनाई जा सके. सूची 1 में 27 भारतीय शहरों का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिन्होंने बाइक-शेयरिंग सिस्टम लागू किए हैं.

 

सूची 1- भारत में सार्वजनिक बाइक शेयरिंग सिस्टम

City Name Population (in millions) Fleet size No. of docking stations Name of system/operator Year of Inaugural
Delhi NCR 11 2250 145 Smart bike, Mobycy, Yulu, Green ride, Planet bike Dec 2008
Bangalore 8.4 3000 250 Yulu, ATCAG, Lezonet, Bounce Dec 2017
Mumbai 12.4 200 50 PEDL, Yulu Dec 2017
Hyderabad 6.8 200 15 Smart bike Feb 2019
Chennai 4.6 1000 20 Smart bike Feb 2019
Bhopal 1.8 1000 50 Chartered bike June 2017
Mysore 1.0 550 55 Trin- Trin June 2009
Ahmedabad 5.5 200 10 Mybyk May 2013
Karnal 0.3 250 17 Sanjhi cycle Aug 2017
Visakhapatnam 1.8 100 5 Hexi Jun 2018
Bhubaneswar 0.9 2000 400 Hexi bike, Yana, Yulu Nov 2018
Nashik 1.4 1000 100 Hexi bike Oct 2018
Thane 1.8 500 50 Government Aug 2018
Jaipur 3.1 200 20 Pink Pedel Jun 2017
Surat 4.5 1160 65 Chartered bike Feb 2019
Chandigarh 1.1 1250 155 Smart bike Dec 2020
Rajkot 1.3 230 20 Government Aug 2018
Gandhinagar 0.3 100 10 G Bike March 2016
Pune 7.4 1000 Dockless Zoomcar, OFO, Mybycy Dec 2017
Nagpur 2.4 400 35 Bounce Mar 2018
Kochi 2.1 200 16 Hexi Oct 2019
Vadodara 1.8 50 5 Hexi bike Jan 2019
Vijayawada 1.2 40 2 Lona Dec 2019
Udaipur 0.5 100 15 MyByk Dec 2019
Panchkula 0.2 200 20 Yana Aug 2019
Ranchi 1.4 175 21 Chartered bike Feb 2019

स्रोत- : Pavan Kumar Machavarapu et.al (2024)

 

पश्चिमी देशों में बाइक-शेयरिंग सिस्टम काफी लोकप्रिय है. हालांकि, एशिया में, विशेष तौर पर भारत जैसे विकासशील देशों में, यह अब भी अपनी शुरुआती अवस्था में है. इसके अलावा, पश्चिमी देशों के परिवहन मॉडल की नकल एशिया में करने से विकासशील देशों को मनमाफिक नतीजे नहीं मिल सकते. ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां के शहरों में परिवहन की एक समान व्यवस्था नहीं है. भूमि-उपयोग का अलग-अलग पैटर्न, शहरों में उच्च जनसंख्या घनत्व, यातायात सुरक्षा के अलग-अलग स्तर, बुनियादी ढांचों की सीमाएं और कानून लागू करने संबंधी विसंगतियां कुछ ऐसी वज़ह हैं, जिनके कारण विकासशील और विकसित देशों के शहरों में अंतर दिखता है.

 

चुनौतियां

भले ही, भारतीय शहरों में PBS की व्यवस्था की गई है, लेकिन कई चुनौतियों के कारण इस पर लोगों का बहुत भरोसा नहीं जम सका है. आम लोगों में सीमित स्वीकृति, संचालन संबंधी कमियां, सरकार द्वारा पर्याप्त आर्थिक मदद न करना और सिस्टम संबंधी अन्य गड़बड़ियां इसके सामने मुंह बाए खड़ी हैं। भारत में PBS की राह में महत्वपूर्ण बाधाएं इस प्रकार हैं-

व्यावसायिक मॉडल- भारत में PBS अपनाने में उल्लेखनीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, ख़ासकर संचालन से लेकर आर्थिक स्थिरता तक. इसको लेकर कई व्यावसायिक ढांचे उभरे हैं, जिनमें से प्रत्येक की अलग-अलग प्रासंगिकता है. व्यावहारिकता अंतर वित्तपोषण (VGF) मॉडल, जिसका उदाहरण मैसूर की ‘ट्रिन-ट्रिन’ बाइक सेवा है, लागतों की भरपाई के लिए सरकारी या अंतरराष्ट्रीय मददों पर निर्भर है. हालांकि, प्रदर्शन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) से ऑपरेटरों को बचा लेने के कारण, इसमें सेवा की गुणवत्ता अक्सर प्रभावित होती है. भोपाल व चंडीगढ़ में VGF के साथ विज्ञापन अधिकार भी दिए गए हैं, यानी ऑपरेटरों को विज्ञापन जुटाने की अनुमति देकर उनकी लागत को संतुलित बनाने का प्रयास किया गया है, फिर भी सुलभ साधन उपलब्ध कराने के बजाय इसमें व्यवसाय पर ज़्यादा ज़ोर है.

भारत में एक व्यावहारिक शहरी परिवहन के रूप में PBS इसलिए भी प्रभावी नहीं हो पा रहा, क्योंकि समय पर इसके उपलब्ध होने और इसकी आसान पहुंच को कम प्राथमिकता देने जैसी चुनौतियां इसके सामने हैं.

इसी तरह, ओपेन परमिट वाले मॉडल में, जो अहमदाबाद और बेंगलुरु में लागू किया गया है, कई ऑपरेटरों को परमिट मिल जाता है, जिससे प्रतिस्पर्धा को तो बढ़ावा मिलता है. मगर, जब चाहे, तब संचालन बंद करने की सुविधा और आर्थिक दिक्कतें इसके विस्तार को रोकने का काम करती हैं. इंदौर में शुरू किए गए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) वाले मॉडल में सेवा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए ऑपरेटरों को प्रोत्साहित करते हुए पूंजीगत ख़र्च को साझा करने की व्यवस्था की गई है, जो कहीं अधिक संतुलित नज़रिया है. वैसे, भारत में एक आशाजनक, लेकिन अब तक महत्वहीन माना जाने वाला कॉरपोरेट-प्रायोजित मॉडल भी है, जो न्यूयॉर्क की सिटी बाइक की तरह है और जिसमें निजी निवेश व ब्रांडिंग करने संबंधी अधिकारों को महत्व दिया जाता है. हालांकि, प्रत्येक मॉडल में आर्थिक मुश्किलों से लेकर निरंतर सेवा सुनिश्चित कराने तक की कई चुनौतियां हैं. इसीलिए, भारतीय शहरों में यदि PBS को स्थायी बनाना है, तो हमें नीति के मोर्चे पर काम करना होगा.

नियमन- भारत में बैटरी से चलने वाली गाड़ियों (BOV) से जुड़े नियम केंद्रीय मोटर वाहन नियम (CMVR), 1989 में दिए गए हैं. हालांकि, PBS में उपयोग किए जाने वाले इलेक्ट्रिक स्कूटर और साइकिल को उल्लेखनीय छूट दी गई है, बशर्ते वे ख़ास तकनीकी मानकों का पालन करें, जैसे- मोटर की शक्ति 0.25 किलोवाट से अधिक न हो, उसकी अधिकतम गति 25 किलोमीटर प्रति घंटा से ज़्यादा न हो या उसमें पेडल वाला ऐसा सिस्टम लगा हो कि 25 किलोमीटर से अधिक गति होने पर उसका पावर कम कर दे. इस छूट के कारण इन गाड़ियों को पंजीकरण, लाइसेंस, रोड टैक्स और बीमा से छूट मिल जाती है, जबकि ये नियम भले पारंपरिक साइकिल के लिए उचित हो सकते हैं, लेकिन ई-बाइक और ई-स्कूटर में जो गति-क्षमताएं होती हैं, उसे देखते हुए सुरक्षा संबंधी नियम आवश्यक हैं. इतना ही नहीं, ई-मोबिलिटी (इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल करके आवागमन करना) चूंकि शुरुआती अवस्था में है, इसलिए इससे जुड़े हितधारक, ख़ासतौर से स्टार्ट-अप, किसी तरह के कानूनी संशोधनों के विरोधी हैं, जिस कारण इसके विस्तार की राह में बाधाएं पैदा हो सकती हैं. फिर भी, सेगवे और मोटराइज्ड बोर्ड जैसे विकसित बैटरी-चालित उपकरणों का बढ़ता उपयोग एक व्यापक और स्पष्ट नियमन ढांचे की ज़रूरत बताता है. इस तरह की किसी कानूनी व्यवस्था के न रहने से लंबे समय में नियमों से जुड़ी जटिलताएं बढ़ सकती हैं, जबकि तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देने और आम लोगों की सुरक्षा के बीच एक विवेकपूर्ण संतुलन की ज़रूरत होती है.

योजना और निर्माण- दुनिया भर में PBS तभी सफल हुई है, जब सवारियों की संख्या बढ़ाने के प्रयास किए गए और इसका नेटवर्क व्यापक बनाया गया. भारतीय शहरों में काफी हद तक छोटे दायरे वाली परियोजनाओं पर काम होता रहा है, जिससे उनकी पहुंच और प्रभावशीलता सिमटकर रह गई है. भारत में एक व्यावहारिक शहरी परिवहन के रूप में PBS इसलिए भी प्रभावी नहीं हो पा रहा, क्योंकि समय पर इसके उपलब्ध होने और इसकी आसान पहुंच को कम प्राथमिकता देने जैसी चुनौतियां इसके सामने हैं. एक बड़ी दिक्क़त साइकिल के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है, जो रोज़ाना के आवागमन में PBS को शामिल करने से रोकती है और सुरक्षा चिंताएं पैदा करती हैं. इसके अलावा, भारत की विषम जलवायु परिस्थितियों, जिसकी विशेषता अत्यधिक गर्मी, भारी वर्षा और ज़्यादा आर्द्रता है, साइकिल को एक विश्वसनीय परिवहन साधन बनने से रोकती है. ऐसे में, भारतीय शहरों में PBS की पहुंच को बढ़ाने के लिए व्यापक शहरी नियोजन, बुनियादी ढांचे में पर्याप्त निवेश और उपयोगकर्ता की सुविधा व सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाली नीतियों को लागू करने सहित रणनीतिक प्रयास करने की ज़रूरत है.

 

निष्कर्ष

साफ़ है, एक अच्छी साइकिलिंग नीति और दूरदर्शी सोच का अभाव भारतीय शहरों में PBS के सामने एक बड़ी चुनौती है. अकेले यह व्यवस्था देश में साइकिलिंग क्रांति नहीं ला सकती. इसे एक व्यापक शहरी परिवहन ढांचे में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि यह व्यवस्था टिकाऊ आवागमन पर ज़ोर देती है. संबंधित संस्थानों की सहायता से और लगातार आर्थिक मदद देकर शहरों को इसे ज़मीन पर उतारना चाहिए.

भारत में PBS  से जुड़ी चुनौतियों और आर्थिक जोखिमों को देखते हुए निजी खिलाड़ियों को लाने का चलन बढ़ रहा है. हालांकि, इसकी सार्वजनिक प्रकृति को देखते हुए, इसे दूसरे परिवहन साधनों के साथ जोड़ने के लिए सरकारी निवेश और नेतृत्व की ज़रूरत है. उचित योजना वाली PBS व्यवस्था यात्रा की शुरुआत से अंत तक कनेक्टिविटी देने वाला एक महत्वपूर्ण साधन बन सकती है, जिससे समग्र सार्वजनिक परिवहन को लेकर लोगों में रुझान बढ़ेगा. भारतीय शहरों में PBS के माध्यम से औसतन दो से चार किलोमीटर तक की यात्रा की जाती है, छोटी मोटर वाली साइकिल चलाने से इसमें विस्तार हो सकता है, बशर्ते पर्याप्त स्टेशन बनाए जाएं और गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा तैयार हो.

शहरों को भी धैर्य का परिचय देना चाहिए. PBS तभी सफल हो सकता है, जब उसकी लगातार निगरानी की जाए, बीच-बीच में सुधार के उपाय किए जाएं और उस पर लंबे समय तक भरोसा किया जाए. इसलिए, चल रही योजनाओं का विश्लेषण करके राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर के नीति-निर्माताएं अपनी रणनीति सुधारने का काम कर सकते हैं और भारत में PBS की कल्पना को साकार कर सकते हैं.


(नंदन एच दावड़ा आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में अर्बन स्टडीज प्रोग्राम में फेलो हैं)

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