Author : Sukrit Kumar

Published on May 23, 2019 Updated 0 Hours ago

यह लेख चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस और ब्रिटेन के अपने-अपने दावे का तथ्यात्मक विश्लेषण करता है। इसके अलावा इस द्वीपसमूह पर ब्रिटेन के परिपेक्ष्य में ऐतिहासिक विवरण देने के साथ-साथ अमेरिका के लिए डिएगो गार्सिया के सामरिक महत्व को रेखांकित करता है। यह द्वीपसमूह पर मॉरीशस के दावों की जाँच करता है और चागोस समुद्री संरक्षित क्षेत्र (मरीन प्रोटेक्शन एरिया) को समझने का प्रयास करता है। यह लेख इस द्वीप समूह का हल ढूंढने की भी कोशिश करता है।

चागोस या डिएगो गार्सिया: क्या है मॉरीशस के सर्वोत्तम हित?

परिचय

संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत ने चागोस द्वीपसमूह की सम्प्रभुता पर मॉरीशस के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि ब्रिटेन को इस द्वीपसमूह से अपना नियंत्रण जल्द से जल्द ख़त्म कर देना चाहिए।[i] इस द्वीपसमूह की सम्प्रभुता को लेकर ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच चला आ रहा एक पुराना विवाद है। इसमें पाया गया कि मॉरीशस के हिस्से वाला चागोस द्वीपसमूह में, अमेरिका द्वारा पट्टे पर लिया गया डिएगो गार्सिया द्वीप गैरकानूनी था। हालांकि हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा बहुमत से लिया गया ये निर्णय केवल सलाह है, लेकिन न्यायाधीशों की स्पष्ट तौर पर यह घोषणा विश्व मंच पर ब्रिटेन की प्रतिष्ठा के लिए अपमानजनक है। 2017 में संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को लेकर 94 देशों ने मॉरीशस के पक्ष में वोट दिया, केवल 15 देशों ने ब्रिटेन के पक्ष में वोट किया, तक़रीबन 65 देशों ने किसी को वोट नहीं किया।[2]

द्वीपीय अवस्थिति

हिंद महासागर के केंद्र में स्थित चागोस द्वीपसमूह में लगभग 60 द्वीपसमूह और सात एटोल शामिल है।[3] इसका सबसे बड़ा द्वीप डिएगो गार्सिया है। यह द्वीपसमूह बहुत छोटा है जिसका क्षेत्रफल महज 60 वर्ग किलोमीटर और 698 किलोमीटर लंबी तटरेखा है। लगभग 5,44,000 वर्ग किलोमीटर का अपवर्जित आर्थिक क्षेत्र है।[4]

चागोस द्वीपसमूह और मॉरीशस गणराज्य दोनों हिंद महासागर में स्थित हैं। इन दोनों द्वीपों के बीच की निकटतम दूरी लगभग 1700 किलोमीटर की है। यह द्वीपसमूह मॉरीशस के मुख्य द्वीप से लगभग 2,200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो वर्तमान समय में ब्रिटेन के नियंत्रण में ब्रिटिश इंडियन ओशन टेरिटरी के नाम से भी उल्लेखित है। चागोस द्वीपसमूह, हिंद महासागर के मध्य में स्थित है, जो पश्चिम में अफ्रीकी मुख्य भूमि के तट से और पूर्व में दक्षिण-पूर्व एशिया से लगभग सामान दूरी पर है। इस द्वीप के पश्चिम में सोमालिया का तट और इसके पूर्व में सुमात्रा का तट स्थित है, दोनों लगभग 1,500 समुद्री मील दूर हैं। चागोस द्वीपसमूह, भारतीय उप-महाद्वीप के दक्षिण से लगभग 1,000 समुद्री मील की दूरी पर स्थित है।[5]

स्रोत: इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस

द्वीपसमूह का संक्षिप्त इतिहास

मॉरिशस पर सबसे पहले 1638 और 1710  के बीच डच का कब्ज़ा था। 1715 से लेकर 1810 तक यह फ्रांस का उपनिवेश रहा। उस समय इसका इस्तेमाल नारियल और मछली पकड़ने के लिए किया जाता था। 1814 में पेरिस संधि[6] के तहत फ्रांस ने मॉरीशस, चागोस द्वीपसमूह और सेशेल्स ब्रिटेन को सौंप दिया था। इसके बाद 3 दिसम्बर 1810 से लेकर 12 मार्च 1968 तक तकरीबन 157 साल तक यह ब्रिटेन का उपनिवेश रहा। फ़्रांसीसी औपनिवेशिक शासन की अवधि के दौरान, चागोस द्वीपसमूह मॉरीशस की कॉलोनी के हिस्से के रूप में प्रशासित हुआ करता था। मॉरिशस को 1968 में ब्रिटेन से आजादी मिली थी। लेकिन उससे पहले ही 1965 में ब्रिटेन ने मॉरिशस से चागोस द्वीप समूह को अलग कर दिया था। ब्रिटेन ने डिएगो गार्सिया को नौसैनिक अड्डे के निर्माण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को पट्टे पर देने के लिए सहमति व्यक्त की। समझौते ने अमेरिकी सशस्त्र बलों को 50 वर्षों तक रक्षा उद्देश्यों के लिए चागोस में किसी भी द्वीप का उपयोग करने की अनुमति दे दी। 2016 में, ब्रिटेन ने पट्टे की अवधि को और 20 साल बढ़ा दिया है।[7] डिएगो गार्सिया को हिन्द महासागर में अमेरिका की रणनीति के मूल में माना जाता है।[8] चूकि अमेरिका की यह शर्त थी कि इस द्वीप पर आबादी नहीं होनी चाहिए इसलिए ब्रिटेन ने इस द्वीप पर रह रहे लोगों को जबरन निष्कासित किया जिनमे से ज्यादातर विस्थापित चागोसियन मॉरीशस और सेशेल्स में जा बसे।[9]

इस द्वीप समूह की कुछ प्रमुख घटनाओं के कालानुक्रम निम्नलिखित है-

  • वर्ष 1773 में, यह क्षेत्र फ्रांस का उपनिवेश था। फ्रांस ने वृक्षारोपण के जरिये डिएगो गार्सिया पर अपना उपनिवेश स्थापित किया।
  • 1814 में, नेपोलियन काल के युद्ध के अंत के बाद, चागोस के साथ-साथ मॉरीशस और सेशेल्स को पेरिस संधि के माध्यम से ग्रेट ब्रिटेन को सौंप दिया गया था।
  • 1965 में, मॉरीशस को स्वतंत्रता प्रदान करने से पहले, ब्रिटेन ने ब्रिटिश इंडियन ओशन टेरिटरी का निर्माण करते हुए मॉरीशस से चागोस द्वीपसमूह को अलग कर दिया था।
  • ब्रिटेन ने अमेरिका के साथ 1966 में एक सैन्य समझौता किया इस समझौते के तहत ब्रिटेन ने डिएगो गार्सिया द्वीप को अमेरिकी रक्षा उद्देश्यों के लिए दे दिया था। बदले में ब्रिटेन को अमेरिका से पोलारिस मिसाइलों की खरीद पर छूट मिली।
  • 1971 में, इस द्वीप पर रह रहे लगभग 1,500 लोगों को जबरन निष्कासित किया गया क्योंकि अमेरिका की यह शर्त थी कि इस द्वीप पर आबादी नहीं होनी चाहिए। इसके बाद खाद्य आपूर्ति प्रतिबंधित कर दिया गया था जिस कारण अधिकांश को मॉरीशस या सेशेल्स में जाने के लिए विवश होना पड़ा।
  • 1978 में, मॉरीशस में रह रहे चागोसियन शरणार्थियों को मुआवजा दिया गया था और उन्हें अपने घरों पर वापस नहीं आने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर करवाये गए थे।
  • 2002 में, कुछ चागोसियन को ब्रिटिश पासपोर्ट दिए गए जिससे ज्यादातर लोगों ने? मॉरीशस से जाकर क्रॉली (ब्रिटेन) में बस गए।
  • दिसंबर 2012 में, यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स ने निष्कासन को लेकर ब्रिटेन के खिलाफ फैसला लिया और चागोस द्वीपसमूह पर उसके दावे को खारिज कर दिया।
  • फरवरी 2019 में, संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का कहना है कि ब्रिटेन को जल्द से जल्द, चागोस द्वीपसमूह पर से अपना नियंत्रण समाप्त कर देना चाहिए, क्योंकि उस समय तक उन्होंने मॉरिशस के साथ विघटन की प्रक्रिया को कानूनन पूरी नहीं किय थे।[10]

डिएगो गार्सिया का सामरिक लाभ

सुदूर, सुरक्षित और हिन्द महासागर में केंद्रीय स्थिति होने के कारण अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से यह द्वीप काफी महत्वपूर्ण है। इस द्वीप से भारत के दक्षिणी तट की लम्बाई 970 समुद्री मील, श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम भाग से 925 समुद्री मील, हॉरमुज जलडमरूमध्य से 2,200 समुद्री मील दूर और मलक्का जलडमरूमध्य के मुहाने से 1600 समुद्री मील दूर है। इस द्वीप को पट्टे पर लेने के लिए अमेरिका ने कोई धन ब्रिटेन को नहीं चुकाया था, लेकिन बदले में ब्रिटेन को पोलारिस परमाणु मिसाइलों की खरीदारी में 14 मिलियन अमेरिकी डॉलर के छूट की पेशकश की थी।[11] यह द्वीप अभी तक भूमि आधारित हमले से अपेक्षाकृत प्रतिरक्षित है। स्थानीय आबादी न होने के कारण, पिछले पांच दशकों से यह बेस स्थानीय राजनैतिक संघर्षों से अछूता रहा है।

हिन्द महासागर में अमेरिका की उपस्थिति 1960 और 1970 के दशक में उस समय आकार लेती गयी जब ब्रिटेन ने इस क्षेत्र से अपनी स्वेज के पूर्व[12] (ईस्ट ऑफ़ स्वेज) की नीति के तहत हटने का फैसला लिया। इसके साथ ही साथ पूर्वी अफ्रीका और दक्षिण एशिया में सोवियत रूस का प्रभाव बढ़ने लगा था। 1960 के दशक की शुरुआत में, अमरीकी सैनिकों को हिन्द महासागर में एक सैन्य-तंत्र की आवश्यकता महसूस हुई जो आकस्मिक संचालन को सुविधाजनक बना सके। इन आवश्यकताओं में जहाजों और विमानों के लिए एक संचार स्टेशन, लंबी दूरी की टोही विमान की मेजबानी करने में सक्षम एक हवाई क्षेत्र और एक आपूर्ति डिपो शामिल था। रणनीतिक रूप से यह द्वीप पूर्वी अफ्रीका, पूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया के मध्य में स्थित होने के कारण अमरीकी नौ सैनिकों के लिए एक चौकी (आउटपोस्ट) प्रदान करता है। इस द्वीप पर 1700 सैन्यकर्मी और 1500 नागरिक कॉन्ट्रैक्टर्स है, इसमें 50 ब्रिटिश सैनिक शामिल है। इस द्वीप का उपयोग अमेरिकी नौसेना और वायु सेना द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है। 1991 के खाड़ी युद्ध में, 1998 के इराक युद्ध में और 2001 के दौरान अफगानिस्तान में कई हवाई अभियानों को डिएगो गार्सिया से ही संचालित किया गया था। शीत युद्ध के दौरान, डिएगो गार्सिया संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए बेहद मूल्यवान था जो पूर्ववर्ती सोवियत रूस (यूएसएसआर) की गतिविधियों की निगरानी करता था।[13] शीत युद्ध के बाद, अमेरिका अब इसे अपने सुरक्षा और विदेश नीति के दृष्टिकोण से हिंद महासागर क्षेत्र में अन्य नौसैनिक गतिविधियों की निगरानी और आतंक के खिलाफ युद्ध के लिए महत्वपूर्ण बताता है। रणनीतिक रूप से यह पूर्वी अफ्रीका, पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के मध्य में स्थित है। यह द्वीप 14 मील लम्बा और 4 मील चौड़ा एक विश बोन के आकर का कोरल एटोल है।

हिंद महासागर क्षेत्र में डिएगो गार्सिया की स्थिति के लिए मानचित्र में देखें।

स्रोत: शार्क अटैक्स सर्वाइवर्स

चागोस को क्यों नहीं देना चाहता ब्रिटेन?

दरअसल इस क्षेत्र के प्रमुख प्राकृतिक संसाधन नारियल और मछली है। इस द्वीप से ब्रिटिश सरकार को वाणिज्यिक मछली पकड़ने का लाइसेंस वितरण करने से लगभग $ 2 मिलियन की वार्षिक आय होती है। हालाँकि अक्टूबर 2010 से लाइसेंस नहीं दिए गए है।[14] सभी आर्थिक गतिविधियाँ डिएगो गार्सिया द्वीप से केंद्रित होती है। इस द्वीप पर संयुक्त रूप से ब्रिटिश-अमेरिकी सैन्य सुविधाये मौजूद है। इस द्वीप पर निर्माण परियोजनाओं और विभिन्न सेवाओं को यूके, मॉरीशस, फिलीपींस और अमेरिका के सैन्य और अनुबंध कर्मचारियों द्वारा किया जाता है।

क्या है विवाद का कारण?

चागोस द्वीपसमूह को लेकर ब्रिटेन और मॉरिशस के बीच प्रमुख रूप से तीन मुद्दों को लेकर विवाद रहे है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण इस द्वीपसमूह की सम्प्रभुता है जिसको लेकर ब्रिटेन और मॉरीशस अपने-अपने दावे करते रहे है। दूसरा कारण चागोस द्वीपवासियों के विस्थापन की वैधता को लेकर है, ज ब्रिटेन द्वारा इस द्वीपसमूह पर नियंत्रण करने के दौरान जबरन द्वीपवासियों को अपनी पैतृक भूमि से बेदख़ल कर दिया गया था।[15] तीसरा, 1 अप्रैल 2010 में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas) की स्थापना पर विवाद है इस प्रस्ताव के अनुसार 200 समुद्री मील के आर्थिक अपवर्जित सामुद्रिक क्षेत्र (डिएगो गार्सिया को छोड़कर) के दायरे को नियंत्रित करता है, जिसमे मछली पकड़ना और किसी भी प्रकार की सामुद्रिक गतिविधियाँ निषिद्ध मानी जायेंगी है।[16] हालांकि, मॉरीशस ने समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के प्रावधान को चुनौती देते हुए कहा कि यह 1982 में बने समुद्री आधारित कानून 1982 का उल्लंघन है। इसके अलावा ब्रिटेन ऐसा करने के लिए तटीय राज्य नहीं है।

मॉरीशस और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय

मॉरीशस सरकार ने चागोस द्वीप समूह पर अपने सम्प्रभुता का दावा करते हुए यह तर्क दिया कि मॉरीशस को अवैध रूप से अलग किया गया क्योकि यह स्वतंत्रता के पहले हमारा था। मॉरीशस ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र महासभा में रखते हुए यह तर्क दिया कि यह मुद्दा संकल्प 1514 / XV का उलंघन करता है।[17] मॉरीशस चाहता है कि इसके लिए तुरंत कदम उठाये जाने चाहिए। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से आगे बढ़ने की पहल हुई है तो मॉरीशस को उन सभी 94 देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों को एक व्यक्तिगत पत्र लिखना चाहिए, जिन्होंने जून 2017 में अपने वोट के माध्यम से मॉरिशस का समर्थन किया था।  मॉरीशस को उन देशों से भी संपर्क करना चाहिए जो किसी कारणवश रुक गए हैं और वोट के दौरान अनुपस्थित थे। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के इस सलाह से ब्रिटेन में रह रहे चागोसियन की मिली जुली राय है लेकिन मॉरीशस में रह रहे चागोसियन इस फैसले से ख़ुश दिखते है और वे ब्रिटेन की सम्प्रभुता के बजाय मॉरीशस के तहत जाना चाहते है। इस मुद्दे को लेकर मॉरीशस को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया सहित, सभी मोर्चे पर गति को बनाये रखने की जरुरत है। इसके साथ ही साथ इस मुद्दे को जीवंत रखने के लिए जरूरत है कि ब्रिटेन को सभी राजनैतिक दलों के साथ संपर्क करना चाहिए। मॉरीशस को पुनर्वास प्रक्रिया पर काम शुरू करने और तत्काल, मध्यम और लंबी अवधि के लिए रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है। वही यू.के. चागोस सपोर्ट एसोसिएशन के वाइस चेयरमैन स्टीफन डोनली का मानना है कि यह एक ऐसा मामला है, जिस पर चागोसियन लोगों के साथ चर्चा करनी चाहिए।[18]

भारतीय दृष्टिकोण

भारत ने हमेशा से ही विघटन की प्रक्रिया का समर्थन किया है, और उन देशों की संप्रभुता को आसानी से स्वीकार किया है जो तत्कालीन उपनिवेश थे। भारत ने 94 अन्य देशों के साथ, 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित प्रस्ताव में मॉरीशस के पक्ष में मतदान किया। हिंद महासागर में चीन के नौसेना की बढ़ती मौजूदगी के साथ-साथ चागोस मुद्दे से संबंधित घटनाक्रमों में भारत की भू-राजनीतिक और सुरक्षात्मक निहितार्थ हैं। जहां तक भारत का संबंध है, पूरे हिन्द महासागर क्षेत्र में प्रमुख शक्तियों के बीच किसी भी संघर्ष का भारत के रणनीतिक हित पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। भारत का मॉरीशस के साथ प्रमुख रूप से मित्रवत संबंध है और अमेरिका तथा ब्रिटेन के साथ बढ़ती नजदीकियां है। हालाँकि, यह पूर्व कई वर्षों में विकसित हुआ है, और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। परंपरागत रूप से, भारत हिन्द महासागर क्षेत्र में बड़ी शक्तियों के प्रतिद्वंद्विता का विरोध करता रहा है। हालांकि, बढ़ते भारत-यूएसए रणनीतिक संबंधों के संदर्भ में, भारत संयुक्त राज्य अमेरिका की मांगों का विरोध नहीं कर सकता है लेकिन यह मॉरीशस के साथ अपनी दोस्ती को खतरे में नहीं डाल सकता है। इस संबंध में, भारत, मॉरीशस, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच एक बाध्यकारी ताकत के रूप में कार्य कर सकता है।[19]

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में स्थायी हित ही प्रमुख होते है, यहां न तो कोई स्थायी मित्र होता है और न ही कोई स्थायी हित होते है और यह सभी राज्यों पर लागू होता है। लेकिन मॉरीशस को इस यह भी ध्यान में रखना होगा कि वह बाकी दुनिया से अलग-थलग नहीं हैं और उन देशों के हितों को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है जो मॉरीशस का इस मुद्दे पर हमेशा से समर्थन करते आ रहे है। मॉरीशस को अपनी नीति का निर्धारण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि डिएगो गार्सिया या चागोस में से उसका सर्वोत्तम हित क्या है? इसके बाद ही उसे अपनी अगली कार्रवाही को स्पष्ट और परिभाषित करना चाहिए।

इस मुद्दे को अमेरिका और ब्रिटेन के दृष्टिकोण से देखना चाहिए जो दोनों आतंकवाद, समुद्री डकैती, आदि से उत्पन्न खतरों के खिलाफ डिएगो गार्सिया बेस को पश्चिमी हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं और इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए इस क्षेत्र के नियंत्रण को अपने विदेश नीति के लिए अपरिहार्य बताते है। इसलिए इसे छोड़ देने की संभावना बहुत दूरस्थ प्रतीत होती है लेकिन अन्तराष्ट्रीय संबंध कभी स्थिर नहीं होते ये हमेशा नयी घटनाओं और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते है।

डेविड स्नोसेल, मॉरीशस के पूर्व ब्रिटिश उच्चायुक्त और चागोस द्वीप समूह ऑल पार्टी संसदीय समूह के समन्वयक, का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा पूरी तरह से चागोस के मुद्दे पर अपने राय पर कायम रहेगी और इसके निपटारे के लिए ब्रिटेन पर दबाव बनाये रखेगी।

ब्रिटेन यह कहता आ रहा है कि उसे द्वीप को लेकर अपनी संप्रभुता के बारे में कोई संदेह नहीं है, लेकिन उसने यह भी कहा है कि जब इन द्वीपों की रक्षा उद्देश्यों की दृष्टि से आवश्यकता नहीं होगी तब वह मॉरीशस को लौटा देगा।[20] ब्रिटेन चागोस द्वीपसमूह के विवाद को हल करने के लिए भारत की मदद की उम्मीद रखता है। जनवरी 2017 में ब्रिटिश विदेश सचिव बोरिस जॉनसन ने नई दिल्ली में अपनी बैठक के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इस मुद्दे को उठाया था। हालांकि भारतीय पक्ष द्वारा कोई आश्वासन नहीं दिया गया था।[21]

निष्कर्ष

चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस की संप्रभुता के मुद्दे को केवल कूटनीति और बातचीत के माध्यम से ही हल किया जा सकता है। मॉरीशस को ब्रिटेन और अमेरिका के साथ पहले की तरह सहयोगी बना रहना चाहिए। ब्रिटेन, मॉरीशस और अमेरिका को डिएगो गार्सिया पर अमेरिकी अड्डे के सम्बन्ध में भविष्य के लिए एक अलग से समझौते करना चाहिए। सामुद्रिक सुरक्षा के विशेषज्ञ, अभिजीत सिंह कहते है कि, “इस समस्या के समाधान तक पहुंचने के लिए मॉरीशस और ब्रिटेन को एक दूसरे के साथ बातचीत, समझौते और विचार-विमर्श करने के लिए आगे आना चाहिए, जैसा कि सभी राजनैतिक विवादों में होता है”। इसके लिए भारत की किसी प्रकार की जरुरत पड़ती है तो हम वो सुविधा देने को तैयार है। यह भारत की एक दुविधा ही है कि भू-राजनीतिक दृष्टि से हम मॉरीशस के साथ है लेकिन सामरिक परिपेक्ष्य से हमारे हित अमेरिका के साथ है।


नोट्स एवं सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

[1] Marlise Simons, "U.N. Court Tells Britain to End Control of Chagos Islands, Home to U.S. Air Base", New York Times, Feb. 25,2019.

[2] Owen Bowcott. "EU members abstain as Britain defeated in UN vote on Chagos Islands". The Guardian, Jun 23, 2017.

[3] "British Indian Ocean Territory". www.cia.gov.

[4] North Sea Marine Cluster. "Managing Marine Protected Areas" (PDF). NSMC. Archived from the original (PDF) on 30 May 2013. P. 7.

[5] International Court of Justice, "Legal Consequences of the Separation of the Chagos Archipelago from Mauritius in 1965", 15 Feb, 1018, P 19.

[6] “Mauritius: From Conquests to Naval Battles, Piracy and a Long-Awaited Independence”, Ancient Origins, Dec 1, 2017.

[7] Padma Rao Sundarji, "Diego Garcia belongs to Mauritius, not to the UK", Hundustan Times, March 20, 2019.

[8] Andrew S Erickson, Ladwig C. Walter III, and Justin D. Mikolay. "Diego Garcia and the United States' Emerging Indian Ocean Strategy." Asian Security 6, no. 3 (2010): 214-237.

[9] Lyn Gardner, "Stolen island: the shameful story of Diego Garcia hits the stage", The Guardian, Feb 15 2012.

[10] “UN court rejects UK's claim of sovereignty over Chagos Islands", The Guardian, Feb 25 2019.

[11] Anjelina Patrick, "Military activities in Chagos Archipelago: Concerns, Impacts and way forward", National Maritime Foundation, December 14, 2016.

[12] Pickering, Jeffrey, Britain's withdrawal from East of Suez, (Springer, 1998); P.1

[13] David Vine, Island of shame: The secret history of the US military base on Diego Garcia. (Princeton University Press, 2011); P 185.

[14] "House of Commons Hansard Written Answers for 21 June 2004 (pt 13)". Publications.parliament.uk. 20 Nov,2013.

[15] Sandra J.T.M. Evers & Marry Kooy, "Redundancy on The Instalment Plan: Chagossians And The Right To Be Called a People" in  Eviction from the Chagos Islands: displacement and struggle for identity against two world powers, ed Sandra J.T.M. Evers & Marry Kooy (Lieden: Hoitei Publishing 2011), P .1

[16] "Mauritius to reiterate its conditions for renewed talks with UK on Chagos”, Afrique Avenir, May 14, 2010.

[17] "Legal Consequences of the Separation of the Chagos Archipelago from Mauritius in 1965", International Court of Justice, 25 Feb, 2019.

[18] Vidya Ram, "U.K. seeks Indian help in resolving Chagos Archipelago dispute", The Hindu, 20 Jan, 2017.

[19] Priyanjoli Ghosh and Joshy M. Paul, "Chagos Archipelago Verdict of International Court of Justice: An Indian Perspective", National Maritime Foundation, New Delhi, P 3.

[20] "Time for UK to Leave Chagos Archipelago". Real clear world. July 12, 2012.

[21] Ibid no. 18.

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