Author : Soumya Bhowmick

Published on Aug 22, 2023 Updated 0 Hours ago

SDG के लिए पैसे के इंतज़ाम की ज़रूरत पर सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता है लेकिन फंड की कमी को भरने के लिए असरदार उपाय तैयार करना और उन्हें लागू करने होगा.

भविष्य के लिए पूंजी का इंतज़ाम: SDG को समृद्ध करने के उपाय!

जिस समय हम सतत (सस्टेनेबल) विकास एजेंडा 2030 के लिए आधे रास्ते को पार कर रहे हैं, अभी भी 17 सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के मामले में बहुत कुछ हासिल किया जाना बाकी है, ख़ास तौर पर कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन संघर्ष और दुनिया भर में मंडराते व्यापक आर्थिक तनाव की वजह से कई प्रकार के विकास से जुड़े उद्देश्यों की तरफ प्रगति में रुकावट आई है. इस समय SDG के लिए फंड इकट्ठा करना महत्वपूर्ण है क्योंकि हर साल वित्तीय कमी लगभग 3.3-4.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास है. कार्रवाई के योग्य नीतियों के लिए अलग-अलग तरीकों की तलाश करना ज़रूरी है जिसे निम्नलिखित पांच रास्तों के विश्लेषण के ज़रिये उजागर किया गया है. 

विभिन्न सरकारी फंडों की दबाव वाली स्थिति के बावजूद SDG को अपनाने के लिए घरेलू खर्च को सबसे महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए.

1)वैश्विक सहयोग  

साझा अनुभवों, मौजूदा क्षमताओं और संसाधनों की मजबूरी पर आधारित साउथ-साउथ कोऑपरेशन (विकासशील देशों के बीच सहयोग) की मदद नॉर्थ-साउथ अलायंस (विकसित और विकासशील देशों के बीच गठबंधन) से करने पर विचार करना चाहिए. वैश्विक आर्थिक असमानता अक्सर ग्लोबल नॉर्थ की मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन (MNC) के द्वारा ग्लोबल साउथ में स्थानीय पर्यावरण से जुड़े और सामाजिक असर पर विचार किए बिना संसाधनों और श्रम के शोषण की वजह से पैदा होती है. ऐसे में नॉर्थ-साउथ सहयोग अलग-अलग देशों के बीच पारस्परिक लाभकारी गठजोड़ को बढ़ावा देता है, वैश्विक शासन व्यवस्था के ढांचे में सबसे कम विकसित देशों (LDC) और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SID) से ज़्यादा भागीदारी की अनुमति देता है. साउथ-साउथ कोऑपरेशन के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय SDG हासिल करने के उद्देश्य से विकास से जुड़े वित्त की उपलब्धता एवं उत्पादन, नीतिगत निर्माण और फंडिंग से जुड़ी जानकारी में बदलाव के लिए इस तरह की साझेदारी की परिकल्पना करता है. इसके अलावा मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंकों की प्राथमिकता, जो अक्सर ग्लोबल नॉर्थ के शेयरधारकों के द्वारा तय की जाती है, को सार्थक प्रगति के लिए पाने वाले देशों की आवश्यकता के साथ जोड़ने की ज़रूरत है. 

2) घरेलू उपाय 

किसी भी देश का सार्वजनिक वित्त आम तौर पर कर्ज़ के बोझ, व्यापक आर्थिक तनाव और बाहरी ब्याज के भुगतान के दबावों से प्रभावित होता है. विभिन्न सरकारी फंडों की दबाव वाली स्थिति के बावजूद SDG को अपनाने के लिए घरेलू खर्च को सबसे महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए. SDG को हासिल करने के लिए घरेलू राजकोषीय उपायों में दो मुख्य दृष्टिकोण अपनाये जा सकते हैं. पहला दृष्टिकोण SDG को समर्पित घरेलू संसाधनों को जुटाने का है. इसमें टैक्स प्रशासन को मज़बूत करने, टैक्स चोरी को कम करने और खर्च को तर्कसंगत बनाने जैसे राजकोषीय सुधार शामिल हैं. दूसरा दृष्टिकोण ऐसी राजकोषीय नीतियों को विकसित करने पर ध्यान देना है जो एक तरफ SDG पर नकारात्मक असर डालने वाले उद्योगों को समर्थन न दें, वहीं दूसरी तरफ सकारात्मक असर वाले उद्योगों को बढ़ावा दें. उदाहरण के लिए, इसके तहत ऊर्जा सुधारों को सब्सिडी दी जा सकती है जबकि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल पर टैक्स लगाया जा सकता है. 

आधिकारिक विकास सहायता (ODA) को जहां कम और मध्यम आमदनी वाले देशों में सबसे कमज़ोर समुदायों पर ध्यान देना चाहिए, वहीं भारत जैसा अच्छा प्रदर्शन करने वाली विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को SDG को सालाना बजट में मिलाकर अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था से SDG के लिए फंड सुरक्षित करने की योजना बनानी चाहिए. हर विभाग विशेष SDG टारगेट के लिए ज़िम्मेदार होगा जिससे SDG पर अमल की निगरानी और समीक्षा की अनुमति होगी. हो सकता है कि  परंपरागत राजकोषीय उपाय पूरी तरह असरदार न हों क्योंकि रूढ़िवादी अर्थशास्त्र (ऑर्थोडॉक्स इकोनॉमिक्स) उस समय विकसित नहीं हुआ था जब वहनीयता (सस्टेनेबिलिटी) प्राथमिक चिंता थी. ये नीतिगत कार्यक्षमता को आसान बनाने के लिए माइक्रो एवं मैक्रो-लेवल के डेटा के उपयोग और डेटा समर्थित उपायों को लागू करने को आवश्यक बनाता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में.  

रेखाचित्र 1: SDG-एकीकृत बजटिंग के तीन स्तंभ

स्रोत: UNESCAP

3) प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी को एक सीध में रखना 

SDG वित्त कंपनियों को साझा मूल्यों के निर्माण (क्रिएशन ऑफ शेयर्ड वैल्यूज़ या CSV) के मॉडल को अपनाने की दिशा में बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है. ये मॉडल इस विचार को बढ़ावा देता है कि ‘डूइंग वेल’ और ‘डूइंग गुड’ म्युचुअली एक्सक्लूसिव (दो या दो से अधिक घटनाएं एक साथ नहीं हो सकती हैं) नहीं हैं. कंपनियां जहां काम करती है, वहां के समुदायों की सामाजिक भलाई में योगदान करते हुए कंपनियों को अपनी प्रतिस्पर्धा में सुधार करने के लिए प्रोत्साहन देकर CSV दृष्टिकोण SDG को पूरा करने में फाइनेंशियल सस्टेनेबिलिटी, आत्मनिर्भरता और स्केलेबिलिटी (पैमाने या आकार को बदलने की क्षमता) को सुनिश्चित करता है. कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के छोटे दायरे से हटकर CSV SDG से जुड़ी पहल के लिए पैसा जमा करने में एक अधिक व्यापक और प्रभावी ढांचा मुहैया कराता है. कंपनियां अलग-अलग ढंग से CSV मॉडल का समर्थन कर सकती हैं. इनमें सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादों को फिर से डिज़ाइन करना, वैल्यू चेन प्रोडक्टिविटी में संसाधनों के उपयोग एवं ऊर्जा के स्रोतों को बदलना और हुनर आधारित क्षमता निर्माण के ज़रिये स्थानीय क्लस्टर विकास को बढ़ावा देना शामिल हैं. एडिडास, BMW और हेंज़ जैसे अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंड पहले से ही साझा मूल्य की संस्कृति को विकसित करने के लिए पहल कर रहे हैं. 

रेखाचित्र 2: क्रिएशन ऑफ शेयर्ड वैल्यू

स्रोत: हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल 

लाभ को बरकरार रखते हुए सोशल वैल्यू की रचना के लिए सोशल एंटरप्रेन्योरशिप एक और तरीका है. वैश्विक स्तर पर SDG से जुड़े व्यवसाय कम-से-कम 12 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत के बाज़ार का महत्वपूर्ण अवसर पेश करते हैं. SDG वित्त को और बढ़ावा देने के लिए सरकारें एक SDG क्रेडिट ढांचा बनाने के बारे में विचार कर सकती हैं. इसमें इन्वेस्टमेंट मैनेजर को अलग-अलग सोशल एंटरप्रेन्योरशिप सेक्टर में बैलेंस्ड क्रेडिट पोर्टफोलियो बनाने की अनुमति होगी. व्यापार योग्य ये SDG क्रेडिट जहां उन कंपनियों में निवेश को प्रोत्साहन देंगे जो SDG पर सकारात्मक असर डालती हैं, वहीं महत्वपूर्ण विकास से जुड़े काम में लगी कंपनियों को कम या नकारात्मक असर वाली दूसरी कंपनियों को क्रेडिट बेचने को सक्षम बनाएंगे. इस तरह की क्रेडिट व्यवस्था को तैयार करने से SDG से जुड़ी परियोजनाओं के लिए वित्त के उद्देश्य से एक मज़बूत बाज़ार बनाने में मदद मिलेगी. 

ग्लोबल साउथ अपने जलवायु वित्त के समाधान के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में अनुकूलन पर काफी ज़्यादा निर्भर करता है लेकिन इसके बावजूद अनुकूलन की परियोजनाओं के लिए फंडिंग की ठीक-ठाक कमी है.

इसके अलावा, SDG को हासिल करने के लिए क्षमता निर्माण महत्वपूर्ण है. ये CSV मॉडल और सोशल एंटरप्रेन्योरसिप के माध्यम से SDG फाइनेंसिंग में सहायता देता है. इसमें अलग-अलग देशों और समुदायों को परिवर्तन और कमज़ोरियों से संभलने के लिए आवश्यक जानकारी और संसाधनों से लैस करना, उनके राष्ट्रीय सतत विकास की रूप-रेखा में एजेंडा 2030 के एकीकरण की सुविधा मुहैया कराना शामिल है. 

4) जलवायु अनुकूलन 

जलवायु अनुकूलन के लिए मौजूदा फंड का स्तर अलग-अलग देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के असर का प्रभावी समाधान करने के उद्देश्य से आवश्यकताओं को पूरा करने में काफी कम है. आने वाले दशक के लिए अनुकूलन के उद्देश्य से 170 अरब अमेरिकी डॉलर से लेकर 340 अरब अमेरिकी डॉलर के फंड की ज़रूरत का अनुमान है. अनुमान ये भी है कि 2050 तक ये रकम बढ़कर 565 अरब अमेरिकी डॉलर हो सकती है. अनुकूलन वित्त मुख्य रूप से ज़्यादा आमदनी वाले देशों को उनकी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए ज़िम्मेदार ठहराने पर ध्यान देता है, साथ ही इस आवश्यकता पर ज़ोर देता है कि जमा पूंजी का एक बड़ा हिस्सा केवल जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने पर निवेश करने के बदले अनुकूलन की कोशिशों के लिए आवंटित किया जाए. 

ग्लोबल साउथ अपने जलवायु वित्त के समाधान के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में अनुकूलन पर काफी ज़्यादा निर्भर करता है लेकिन इसके बावजूद अनुकूलन की परियोजनाओं के लिए फंडिंग की ठीक-ठाक कमी है. इन परियोजनाओं के साथ एक समस्या है “मुनाफे की आर्थिक दर” जो अक्सर कुल मिलाकर काफी ज़्यादा “मुनाफे की सामाजिक दर” को दिखाने में नाकाम रहती हैं. इस अंतर को दूर करने के लिए सरकारों को राजकोषीय उपाय करना चाहिए जैसे कि अनुकूलन परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक खर्च को बढ़ावा देना या प्रोत्साहन की पेशकश. जलवायु अनुकूलन की कोशिशों का समर्थन करने और उसे बढ़ावा देने के लिए डायरेक्ट ट्रांसफर, सब्सिडी या टैक्स छूट का इस्तेमाल किया जा सकता है. 

5) इनोवेटिव वित्तीय उपकरण और संस्थान 

SDG फाइनेंसिंग में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई है और सस्टेनेबिलिटी से जुड़ा निवेश 2020 में 3.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है. इनमें सस्टेनेबल फंड, ग्रीन बॉन्ड, सोशल बॉन्ड और मिक्स्ड-सस्टेनेबिलिटी बॉन्ड शामिल हैं. कोविड-19 महामारी ने SDG फंड में बढ़ोतरी को महत्वपूर्ण रफ्तार दी है, ख़ास तौर पर स्वास्थ्य से जुड़े फंड में. SDG फंड में लगातार और अच्छी तरह बंटी हुई आमदनी (इनफ्लो) को सुनिश्चित करने के लिए ये महत्वपूर्ण है कि SDG के एकीकृत और अविभाज्य स्वरूप पर विचार करते हुए इसे एक निरंतर प्रयास के तौर पर देखा जाए. विशेष रूप से SDG के लिए फंड जमा करने वाले फिक्स्ड-इनकम फाइनेंशियल इन्स्ट्रूमेंट के तौर पर वैश्विक और घरेलू अर्थव्यवस्थाओं को सस्टेनेबिलिटी बॉन्ड को बढ़ावा देना चाहिए. लेकिन आम लोग और प्राइवेट सेक्टर अक्सर ज़्यादा लाभ देने वाले वित्तीय उत्पादों में दिलचस्पी दिखाते हैं जबकि SDG प्रोजेक्ट में आर्थिक फायदा कम हो सकता है. इसके अलावा वेदर डेरिवेटिव्स या ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर इंडेक्स जैसे इनोवेटिव डेरिवेटिव इन्स्ट्रूमेंट का पता लगाने से भी विशेष SDG के असर का आकलन करने में मदद मिल सकती है.

SDG फाइनेंसिंग की ज़रूरत पर सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता है लेकिन फंड की कमी को भरने के लिए असरदार उपाय तैयार करना और उन्हें लागू करने होगा.

वैश्विक आर्थिक झटकों को लेकर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं और कम विकसित देशों की कमज़ोरी पर विचार करते हुए G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों के तहत एक विकास वित्त संस्थान (DFI) की स्थापना पर विचार किया जा सकता है. DFI का उद्देश्य दोहरा होगा: अलग-अलग स्रोतों से फंड जमा करके SDG के लिए फंड की कमी को दूर करना, उन्हें ग्लोबल साउथ की तरफ ले जाना और आर्थिक संकट के दौरान कमज़ोर क्षेत्रों का समर्थन करना. 

अंत में, SDG फाइनेंसिंग की ज़रूरत पर सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता है लेकिन फंड की कमी को भरने के लिए असरदार उपाय तैयार करना और उन्हें लागू करने होगा. ऊपर जिन तरीकों की चर्चा की गई है वो संभावित उपायों के बारे में सामान्य नज़रिया पेश करते हैं. अब सवाल लागू करने को लेकर है जिसका जवाब नीति बनाने वाले संस्थानों को ज़रूर देना चाहिए.


सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.

आर्या रॉय बर्धन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.

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