Published on Sep 20, 2023 Updated 0 Hours ago

कैम्प डेविड शिखर सम्मेलन की सफलता, महाशक्तियों के बीच बढ़ती होड़ के बीच कोरिया, जापान और अमेरिका की साझेदारी के लचीलेपन पर निर्भर करेगी.

फिर चर्चा में कैंप डेविड: हिंद-प्रशांत को लेकर अमेरिका ने दोहराई प्रतिबद्धता

अमेरिका के मैरीलैंड में स्थित कैंप डेविड पिछले कई दशकों से अमेरिकी राष्ट्रपतियों के लिए कठिन कूटनीतिक वार्ताओं का केंद्र बना रहा है. कैटॉक्टिन माउंटेन पार्क की ये पथरीली जगह, तब से ही अमेरिकी राष्ट्रपतियों के लिए मुश्किल वार्ताएं करने का ठिकाना रहा है, जब मई 1943 में फ्रेंकलिन डेलानो  रूज़वेल्ट ने राष्ट्रपति की इस आरामगाह में नॉरमंडी के हमले की योजना बनाने के लिए विंस्टन चर्चिल से मुलाक़ात की थी. इस जगह से जुड़ी सबसे प्रतीकात्मक उपलब्धि 1978 में हुआ कैंप डेविड समझौता था. तब अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने 13 दिनों की ख़ुफ़िया बातचीत के बाद, इज़राइल के प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन और मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल-सादात के बीच शांति समझौता कराया था.

18 अगस्त को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कैम्प डेविड को एक बार फिर मुश्किल समझौते करने के ठिकाने के तौर पर स्थापित किया, जब उन्होंने जापान और दक्षिण कोरिया के साथ एक नई त्रिपक्षीय संधि की. इस तरह जो बाइडेन, एशिया प्रशांत के दो बेहद पेचीदा रिश्ते वाले देशों को वार्ता की मेज पर बिठाने में सफलता प्राप्त की.

18 अगस्त को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कैम्प डेविड को एक बार फिर मुश्किल समझौते करने के ठिकाने के तौर पर स्थापित किया, जब उन्होंने जापान और दक्षिण कोरिया के साथ एक नई त्रिपक्षीय संधि की. इस तरह जो बाइडेन, एशिया प्रशांत के दो बेहद पेचीदा रिश्ते वाले देशों को वार्ता की मेज पर बिठाने में सफलता प्राप्त की. इस बैठक की राजनीतिक और प्रतीकात्मक अहमियत बहुत अलग है, क्योंकि ये तीन देशों के नेताओं के बीच अलग से हुआ पहला शिखर सम्मेलन था. हालांकि, तीनों देशों के अधिकारियों के बीच 2022 में पचास बार और 2023 में अब तक 18 बार बैठकें हो चुकी हैं. लेकिन, कैम्प डेविड में अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के नेताओं का शिखर सम्मेलन उन उपायों और गतिविधियों को नई रफ़्तार देने वाला है, जिसे बाइडेन प्रशासन ने शुरू किया है, ताकि उत्तरी पूर्वी एशिया और हिंद प्रशांत की व्यापक भू-राजनीति में अमेरिका की स्थिति मज़बूत कर सकें.

अमेरिका के मक़सद

तीनों देशों के नेताओं के बीच बैठक और अमेरिका के नेतृत्व में जापान और दक्षिण कोरिया को एक साथ लाना, हिंद प्रशांत के लिए ठोस और भावनात्मक दोनों ही कारणों से अहम है. जहां तक त्रिपक्षीय समझौते की कुछ विशेष बातें हैं, तो तीनों देशों के बीच सालाना बहुआयामी युद्ध अभ्यास पर सहमति बनी है, जिससे उत्तरी पूर्वी एशिया में सैन्य सहयोग बढ़ेगा. और, चीन, रूस और उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ अभूतपूर्व रूप से एकजुट मोर्चेबंदी की जा सकेगी. तीनों देशों के बीच सैन्य सहयोग का मुख्य स्तंभ बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस का वादा, कई वर्षों के लिए त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास की योजना, साइबर सुरक्षा के लिए एक त्रिपक्षीय कार्यकारी समूह और तीनों देशों के बीच नई स्थापित की गई हॉटलाइन के ज़रिए सूचना का आदान-प्रदान करे आपसी तालमेल से समय पर प्रतिक्रिया देना है.

इस सम्मेलन में सुरक्षा और रक्षा संबंधी पहलुओं के साथ साथ तीनों देश, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में किसी तरह की बाधा आने की पूर्व में जानकारी देने की व्यवस्था बनाने पर भी सहमत हुए हैं.

इस त्रिपक्षीय सहयोग का एक और घोषित लक्ष्य, हिंद प्रशांत में आपूर्ति श्रृंखलाओं में अचानक खलल पड़ने की चुनौती से निपटने के लिए आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है. इस सम्मेलन में सुरक्षा और रक्षा संबंधी पहलुओं के साथ साथ तीनों देश, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में किसी तरह की बाधा आने की पूर्व में जानकारी देने की व्यवस्था बनाने पर भी सहमत हुए हैं. तीनों देश ये लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सप्लाई चेन अर्ली वार्निंग सिस्टम पायलट की स्थापना करेंगे, जिससे महामारी जैसे संकटों के दौरान वो समय से सक्रिय क़दम उठाकर इन चुनौतियों का सामना कर सकें. इससे जुड़ा एक और वादा ये है कि तीनों देश आपसी सहयोग को G-7 की अगुवाई वाले पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड इन्वेस्टमेंट (PGII) को मदद देने में भी इस्तेमाल करेंगे. PGII का लक्ष्य अच्छे मूलभूत ढांचे और भरोसेमंद  संचार तकनीक के मामले में क्षेत्रीय विकास के लिए अतिरिक्त फंड जुटाकर वित्तीय संस्थानों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है. इससे हिंद प्रशांत क्षेत्र के ग़रीब और मध्यम आमदनी वाले देशों को वित्तीय विकल्प उपलब्ध होंगे, ताकि वो मूलभूत ढांचे और स्वास्थ्य क्षेत्र में अपनी कमियों को दूर कर सकें- ख़ास तौर से कैंसर की लड़ाई में आपसी सहयोग से रिसर्च करना. PGII का सबसे अहम पहलू तो शायद, दूरगामी अवधि में हिंद प्रशांत क्षेत्र में BRI का मुक़ाबला करना है. आख़िर में, इस त्रिपक्षीय सहयोग में तीनों देशों की प्रयोगशालाओं के बीच अपनी तरह का पहला सहयोग शुरू करने की कल्पना भी की गई है, जिसमें क्रिटिकल एंड  इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज  पर ज़ोर दिया जाएगा. ये पहल जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका के बीच त्रिपक्षीय साझेदारी को क्वाड देशों के उस लक्ष्य से जोड़ती है, जिसके तहत दोनों समूहों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जाना है.

इस त्रिपक्षीय सहयोग के ज़रिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में तीनों देशों के हितों को इन तीन बड़ी पहलों के ज़रिए जोड़ने की कोशिश की गई है: पहला ब्लू पैसिफिक में साझेदारी, दूसरा पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड इन्वेस्टमेंट (PGII) और तीसरा फ्रेंड्स ऑफ मेकॉन्ग . चूंकि, बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका, हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी अग्रणी भूमिका को दोबारा जीवित करने में जुटा है. ऐसे में प्रशांत क्षेत्र के अपने सहयोगियों को भरोसा देना, उनकी सरकार हिंद प्रशांत नीति का एक महत्वपूर्ण तत्व है. तकनीकी प्रतिबंधों, ताइवान की सामरिक सुरक्षा करने वाले क़दमों और चीन के मुक़ाबले में बहुक्षेत्रीय, ‘निवेश तालमेल और प्रतिद्वंदिता’ की रणनीति जैसी चीन के ख़िलाफ़ एक के बाद एक मज़बूत नीतियों से अमेरिका ने चीन के साथ दूरगामी होड़ शुरू कर दी है, जिसमें वो चीन से बहुआयामी ख़तरे का सामना कर रहा है. इसीलिए चीन से निपटने की उसकी रणनीति का अहम पहलू, हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए बहुआयामी नीति अपनाना है, जिसके अंतर्गत अमेरिका के लिए कई छोटे छोटे समूहों के साथ तालमेल बिठाना अहम हो गया है. इस संदर्भ में तीनों नेताओं के बीच एक वार्षिक हिंद प्रशांत संवाद की स्थापना पर महत्वपूर्ण सहमति बनी है. सदस्य देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि वो संबंधित सहायक सचिवों के बीच एक सालाना हिंद प्रशांत संवाद शुरू करेंगे, जिसका लक्ष्य हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी व्यक्तिगत रणनीतियों को मिलकर लागू करना होगा. ये संवाद प्रशांत क्षेत्र के द्वीपों और दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के साथ साझेदारी विकसित करने पर ख़ास तौर से ज़ोर देगा.

जापान और दक्षिण कोरिया के बीच अचानक तालमेल

ये बैठक जापान और दक्षिण कोरिया की नज़र में तीन कारणों से बहुत महत्वपूर्ण रही है. पहला, शिखर सम्मेलन की अगुवाई करके अमेरिका ने जता दिया है कि वो इस त्रिपक्षीय साझेदारी को कितनी अहमियत देता है. चूंकि ये शिखर सम्मेलन किसी और आयोजन के साथ नहीं किया गया, इससे उत्तरी पूर्वी एशिया और हिंद प्रशांत के व्यापक क्षेत्र में शांति और स्थिरता को लेकर अमेरिका की प्रतिबद्धता रेखांकित होती है. क्योंकि, ये सम्मेलन हमेशा उथल-पुथल मचाने वाले उत्तर कोरिया के बार बार परमाणु मिसाइलों के परीक्षण के बीच हुआ है; रूस अविश्वसनीय और युद्ध के लिए तत्पर दिख रहा है ; और चीन द्वारा पूरी ताक़त से क्षेत्र और विशेष रूप से ताइवान जलसंधि और साउथ चाइना सी में यथास्थिति को इकतरफ़ा तरीक़े से बदलने के प्रयास कर रहा है. वैसे तो तीनों देशों के बीच सुरक्षा का औपचारिक समझौता नहीं है. लेकिन, उनके बीच आपसी सुरक्षा संधियां मौजूद हैं. उत्तर कोरिया की शैतानी, रूस की अविश्वसनीयता  और चीन की आक्रामक हरकतों के बीच, जापान और दक्षिण कोरिया के लिए त्रिपक्षीय समझौते के अंतर्गत अमेरिका की मज़बूत मौजूदगी, भरोसा जगाने वाली है.

जापान और दक्षिण कोरिया द्वारा आपसी संबंध सुधारने की कोशिशों की वजह से उत्तरी कोरिया की भू-राजनीति में बड़ा बदलाव आ रहा है. दोनों देशों ने बारह साल के अंतराल के बाद इस साल मार्च में पहला साझा शिखर सम्मेलन किया था.

दूसरा, जापान और दक्षिण कोरिया द्वारा आपसी संबंध सुधारने की कोशिशों की वजह से उत्तरी कोरिया की भू-राजनीति में बड़ा बदलाव आ रहा है. दोनों देशों ने बारह साल के अंतराल के बाद इस साल मार्च में पहला साझा शिखर सम्मेलन किया था. और अब दोनों देश मिलकर ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनके रिश्ते, कोरियाई प्रायद्वीप पर जापान के क़ब्ज़े के ऐतिहासिक असर से आगे बढ़ सकें. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के नेतृत्व में दोनों पड़ोसी देशों ने सहयोग के पारंपरिक माध्यमों को फिर से ज़िंदा किया है और सहयोग के नए मौक़े भी तलाश किए हैं. दोनों देशों के संबधों में हो रहे इस सुधार को अमेरिका द्वारा त्रिपक्षीय वार्ता को बढ़ावा देने से और ताक़त मिली है.

तीसरा, पिछले कई बरसों से उत्तरी पूर्वी एशिया में चीन को सामरिक बढ़त का आधार जापान और दक्षिण कोरिया के कटु संबंध रहे थे. दोनों देश इस क्षेत्र में अमेरिका के सबसे अहम साझीदार रहे हैं. ऐसे में कैम्प डेविड में हुई बैठक ने इस आयाम को बुनियादी तौर पर बदल दिया है. इससे पुराने समीकरणों से अलग हटकर चलने की कोशिश दिखाई देती है, जिससे जापान और दक्षिण कोरिया के बीच सामरिक सहयोग को लेकर जताई जाने वाली सारी आशंकाएं दूर हो गई हैं. ऐसे में उम्मीद के मुताबिक़ चीन ने कैम्प डेविड के शिखर सम्मेलन से एक नए शीत युद्ध के आग़ाज़ की आशंका जताते हुए कहा है कि इससे जापान और दक्षिण कोरिया, दोनों को बहुत नुक़सान होगा.

विचारों का निष्कर्ष

अभी तो कैम्प डेविड का शिखर सम्मेलन तीनों देशों के बीच एक वार्षिक आयोजन बनने की संभावना दिख रही है. क्योंकि अमेरिका इस साझेदारी को मज़बूत करने और संस्थागत बनाने पर ज़ोर दे रहा है. हालांकि, कैम्प डेविड सम्मेलन की असली सफलता तो तब होगी जब आने वाले वर्षों में चीन के साथ हर देश के पेचीदा रिश्तों के कारण इस क्षेत्र में बढ़ते तनावों के बीच ये साझेदारी मज़बूत और टिकाई बनी रहती है. चीन, रूस और उत्तर कोरिया के त्रिकोण की मज़बूती से, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका की इस त्रिपक्षीय साझेदारी को सबसे ज़्यादा चुनौती मिलेगी. अमेरिका के लिए उत्तरी पूर्वी एशिया में एक नई त्रिपक्षीय रूप-रेखा, हिंद प्रशांत क्षेत्र में गठबंधनों को मज़बूत बनाने के उसके व्यापक लक्ष्यों से मेल खाती है. ये त्रिपक्षीय ढांचा, अमेरिका की हिंद प्रशांत नीति में बताए गए मक़सद पूरे करता है, जिसमें कहा गया है कि, ‘हम अपनी भूमिका का आधुनिकीकरण और क्षमताओं का विस्तार कर रहे हैं, ताकि अपने हितों की रक्षा कर सकें और अमेरिकी इलाक़ों और अपने सहयोगियों और साझेदारियों के ख़िलाफ़ आक्रामकता का मुक़ाबला कर सकें.’ जापान और दक्षिण कोरिया को अमेरिका के इस बढ़े हुए सुरक्षा ढांचे से फ़ायदा होगा, क्योंकि अमेरिका की बढ़ी हुई भूमिका सेत प्रशांत क्षेत्र के दक्षिण से लेकर सुदूर पूर्व तक सुरक्षा का कवच बनेगा. अगर AUKUS गठबंधन ने चीन से दूरगामी ख़तरों पर ज़ोर देते हुए अमेरिका के सामरिक गठबंधनों पर ज़ोर दिया था, तो कैम्प डेविड का त्रिपक्षीय सम्मेलन , इस क्षेत्र में उसके हितों को साधने की ज़िम्मेदारी सुरक्षा के तमाम साझेदारों के बीच बांटकर, प्रशांत क्षेत्र में उसके गठबंधनों के दूसरे पहलुओं को मज़बूती देगा.

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