Author : Sauradeep Bag

Published on Oct 31, 2023 Updated 0 Hours ago

पश्चिम एशिया और यूरोप में हाल के संघर्षों ने क्रिप्टोकरेंसी और वैश्विक मामलों के बीच जटिल संबंधों की तरफ ध्यान खींचा है. 

बुलेट और बिटकॉइन: युद्ध के लिए पैसे का इंतज़ाम

भू-राजनीति के लगातार विकसित हो रहे क्षेत्र में क्रिप्टोकरेंसी की भूमिका एक ऐसे नैरेटिव की है जो जटिलताओं में रंगी है. ख़ास तौर पर मौजूदा विश्व व्यवस्था में लगातार गतिविधियों और उथल-पुथल की स्थिति को देखते हुए ये नैरेटिव अक्सर चिंता पैदा करता है, उम्मीद नहीं. रूस-यूक्रेन संघर्ष ने क्रिप्टोकरेंसी और वैश्विक मामलों के बीच जटिल संबंधों की तरफ ध्यान आकर्षित किया जो कि स्पष्ट संबंध से दूर है. इसी तरह के रुझान का उदय इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में हो रहा है. वर्तमान में चल रहा और तेज़ होता इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष महत्वपूर्ण सवाल सामने रखता है: इस तरह की विवादास्पद कार्रवाई के पीछे वित्तीय तौर-तरीका क्या है? और कितनी गहराई से क्रिप्टोकरेंसी इस तरह की जटिल पहेली में शामिल है? 

यूक्रेन में युद्ध के दौरान क्रिप्टोकरेंसी को मुख्य भूमिका निभाते हुए देखा गया. यूक्रेन के समर्थन में चल रही मुहिम के लिए 212 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा कीमत के क्रिप्टो डोनेशन मिले. इसमें यूक्रेन सरकार को सीधे मिले 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल हैं.

युद्ध के मैदान में डिजिटल कॉइन 

यूक्रेन में युद्ध के दौरान क्रिप्टोकरेंसी को मुख्य भूमिका निभाते हुए देखा गया. यूक्रेन के समर्थन में चल रही मुहिम के लिए 212 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा कीमत के क्रिप्टो डोनेशन मिले. इसमें यूक्रेन सरकार को सीधे मिले 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल हैं. इस फंड ने युद्ध से जुड़ी अलग-अलग ज़रूरतों का समर्थन किया है. इनमें सुरक्षा उपकरण से लेकर मेडिकल सप्लाई तक शामिल हैं. इसकी वजह क्रिप्टोकरेंसी का तेज़ और विकेंद्रित स्वरूप है. 

इसी तरह हमास के द्वारा इज़रायल पर पिछले दिनों के हमले के पीछे फंडिंग के स्रोत की परत खोलने से क्रिप्टोकरेंसी की भूमिका सुर्खियों में आई है. छानबीन से पता चला है कि इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में सक्रिय संगठनों, जिनमें हमास, फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद और हिज़बुल्लाह शामिल हैं, को काफी मात्रा में क्रिप्टोकरेंसी मिली है. इन खुलासों ने सवाल खड़े किए हैं कि  क्रिप्टोकरेंसी इन संगठनों को उनके अभियानों में किस हद तक मदद कर रही है. 

एक व्यापक विश्लेषण से पता चला है कि फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद को अगस्त 2021 और इस साल जून के बीच 93 मिलियन अमेरिकी डॉलर क्रिप्टोकरेंसी के रूप में मिले हैं. ये रकम हैरान करने वाली है. इस बीच, हमास अगस्त 2021 और जून 2023 के बीच 41 मिलियन अमेरिकी डॉलर क्रिप्टोकरेंसी के रूप में हासिल करने में कामयाब रहा. 

जनवरी 2019 में हमास ने अपनी सैन्य शाखा अल-क़ासम ब्रिगेड (AQB) के ज़रिए फंड जुटाने के लिए क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल शुरू किया. उसने अपनी सैन्य गतिविधियों के समर्थन के लिए सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू किया. शुरू में बिटकॉइन के रूप में मामूली डोनेशन मिला, कुछ महीनों को मिलाकर महज़ कुछ हज़ार डॉलर ही मिले. फिर उसने सोशल मीडिया पर बिटकॉइन से जुड़े इन्फोग्राफिक्स और डोनेशन का एड्रेस शेयर किया. इसके बाद सिर्फ एक दिन में उसे लगभग 900 अमेरिकी डॉलर डॉलर मिले. हालांकि इस फंड का स्रोत अनवेरिफाइड बना रहा. ज़्यादातर डोनेशन छोटी रकम के थे, कुछ ही डोनेशन बड़े थे. फिर हमास ने एक और बिटकॉइन एड्रेस पोस्ट किया जिसके बाद एक हफ्ते से भी कम समय में 2,500 अमेरिकी डॉलर के बराबर बिटकॉइन डोनेशन के रूप में मिले. 

2021 की गर्मी में इज़रायल के साथ बढ़ते संघर्ष के बीच अल-क़ासम ब्रिगेड ने क्रिप्टो के रूप में डोनेशन में काफी तेज़ी का अनुभव किया. कुछ ही दिनों के भीतर उसने 73,000 अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा जमा कर लिए.

क्रिप्टो एसेट्स की तरफ कदम उठाने के पीछे हमास के द्वारा वैकल्पिक फंड जुटाने के तरीकों की तलाश करने की प्रेरणा थी. ये ख़ास तौर पर इसलिए भी था क्योंकि अतीत में आतंकवाद को वित्तपोषण के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई के तहत परंपरागत बैंकिंग और पैसे भेजने के तौर-तरीकों के इस्तेमाल पर निशाना साधा गया था. हमास लोगों तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया पर बहुत ज़्यादा निर्भर था, ख़ास तौर पर दिसंबर 2018 में इज़रायली डिफेंस फोर्स के द्वारा एयरस्ट्राइक के बाद उसके टेलीविज़न स्टेशन के लगभग पूरी तरह प्रसारण बंद करने और वित्तीय संकट की वजह से. बिटकॉइन की क्राउडफंडिंग के लिए कम लागत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण फायदा था.   

2021 की गर्मी में इज़रायल के साथ बढ़ते संघर्ष के बीच अल-क़ासम ब्रिगेड ने क्रिप्टो के रूप में डोनेशन में काफी तेज़ी का अनुभव किया. कुछ ही दिनों के भीतर उसने 73,000 अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा जमा कर लिए. जुलाई 2021 तक अल-क़ासम ब्रिगेड के वॉलेट में 7.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर क्रिप्टो एसेट्स थे. इनमें बिटकॉइन, टेथर स्टेबलकॉइन और दूसरी क्रिप्टोकरेंसी जैसे कि एथर, ट्रोन और डॉजकॉइन शामिल थे. 

हालांकि, इज़रायल ने AQB के द्वारा नियंत्रित किए जाने वाले 84 क्रिप्टो वॉलेट की पहचान कर ली. इसकी वजह से AQB के पास मौजूद फंड को ज़ब्त करने का आदेश जारी किया गया. इसके नतीजतन अप्रैल 2023 में हमास ने क्रिप्टो डोनेशन को रोकने के अपने फैसले का एलान किया. उसने अपनी गतिविधियों की फंडिंग के लिए क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग की कमज़ोरी को स्वीकार किया क्योंकि ब्लॉकचेन की पारदर्शिता की वजह से अवैध फंड की निगरानी की जा सकती है और इस तरह आतंकी समूहों के पास मौजूद फंड को सफलतापूर्वक ज़ब्त किया जा सकता है. 

लगभग उसी समय फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ), जो कि इस क्षेत्र में अमेरिका के द्वारा प्रतिबंधित एक और आतंकवादी संगठन है, के द्वारा किए जाने वाले क्रिप्टो लेन-देन में भी कमी आई. इससे पता चलता है कि फिलिस्तीन और इज़रायल के बीच संघर्ष में शामिल समूहों ने फंड इकट्ठा करने के टूल के तौर पर क्रिप्टोकरेंसी को छोड़ दिया क्योंकि उन्हें इसके उपयोग के साथ जुड़े जोखिम का एहसास हो गया. 

AQB ने भी लाखों डॉलर की क्रिप्टोकरेंसी ट्रांसफर को महसूस किया जिनमें बिटकॉइन, टेथर स्टेबलकॉइन और यहां तक कि डॉजकॉइन भी शामिल हैं. हमास के शासन के दौरान आर्थिक रूप से  गज़ा के अलग-थलग होने के बावजूद इन समूहों के लिए फंडिंग कई स्रोतों से आई है जिनमें खाड़ी क्षेत्र के प्राइवेट डोनर शामिल हैं. इसके अलावा ईरान एक प्रमुख वित्तीय समर्थक है जिसने एक अनुमान के मुताबिक हर साल 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद मुहैया कराई है. क़तर और तुर्किए ने भी हमास का वित्तीय समर्थन किया है. इस तरह इन समूहों की फंडिंग के तौर-तरीके का बहुआयामी स्वरूप और भी स्पष्ट होता है. 

इन संगठनों के द्वारा क्रिप्टोकरेंसी को अपनाना आतंकवाद की फंडिंग से जुड़ी चुनौतियों में मुश्किलों को और भी बढ़ाता है. इसके कारण इस बदलते परिदृश्य का समाधान करने की मौजूदा कोशिश ज़रूरी हो जाती है. अक्सर इस तरह के लेन-देन का रास्ता भ्रामक रूप से घुमावदार होता है. 

भारत तक पैसे के लेन-देन का पीछा

दिलचस्प बात ये है कि 2022 में भारत में क्रिप्टो की एक लूट ने हमास के साथ चौंका देने वाले रिश्ते को उजागर किया. लूट के बाद शुरुआती दिनों में ये केस लगभग 30 लाख रुपये के बराबर क्रिप्टोकरेंसी- बिटकॉइन, एथेरियम और बिटकॉइन कैश- के सवालिया ट्रांसफर के इर्द-गिर्द घूम रहा था. ये सभी रक़म मूल रूप से भारत में क्रिप्टोकरेंसी वॉलेट में थी. 

दिलचस्प बात ये है कि 2022 में भारत में क्रिप्टो की एक लूट ने हमास के साथ चौंका देने वाले रिश्ते को उजागर किया. लूट के बाद शुरुआती दिनों में ये केस लगभग 30 लाख रुपये के बराबर क्रिप्टोकरेंसी- बिटकॉइन, एथेरियम और बिटकॉइन कैश- के सवालिया ट्रांसफर के इर्द-गिर्द घूम रहा था.

जांच करने वालों ने जब क्रिप्टोकरेंसी की गहराई से छानबीन की तो अप्रत्याशित खुलासे हुए. इसका पीछा करने पर वो AQB से जुड़े वॉलेट तक पहुंचे. दिलचस्प बात ये है कि अतीत में कुछ वॉलेट की छानबीन इज़रायल के नेशनल ब्यूरो फॉर काउंटर-टेरर फाइनेंसिंग ने भी की थी जिसकी वजह से कोई कसर नहीं बची थी. 

तुरंत कदम उठाते हुए इज़रायल ने निर्णायक फैसला लिया और हमास से जुड़े क्रिप्टोकरेंसी खातों को फ्रीज़ कर दिया और उसमें मौजूद फंड को सरकारी खज़ाने में डाल दिया. ध्यान देने की बात है कि क्रिप्टोकरेंसी जहां हमास के लिए फंड जुटाने का पसंदीदा तरीका है, वहीं इस संगठन ने छानबीन में तेज़ी आने के बाद पिछले दिनों बिटकॉइन डोनेशन को स्वीकार नहीं करने का फैसला लिया है. 

दोधारी तलवार 

क्रिप्टोकरेंसी और वैश्विक संघर्षों के एक जगह मेल ने इस नये-नवेले वित्तीय परिदृश्य के दोहरे चरित्र को साफ किया है. एक तरफ, यूक्रेन संघर्ष ने आपात स्थिति में तेज़ी से फंड जुटाने को आसान बनाने और विकेंद्रित वित्त (डिसेंट्रलाइज़्ड फाइनेंस), नन-फंजिबल टोकन एवं विकेंद्रित स्वायत्त संगठनों की संभावना को बढ़ावा देने में क्रिप्टो की उल्लेखनीय फुर्ती को दिखाया है. लेकिन इस अच्छे पहलू को संभावित रूप से जघन्य उद्देश्यों के लिए क्रिप्टो को स्वीकार करने वाले रूस समर्थक संस्थानों के द्वारा नुकसान पहुंचाया गया है. 

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष बहुआयामी है और इसमें राष्ट्रीयता, राजनीति, क्षेत्र, संस्कृति और धर्म से जुड़े मुद्दे गहराई से शामिल हैं. जैसे-जैसे दुनिया इन पेचीदगियों का सामना कर रही है, सुरक्षा और इनोवेशन के बीच चल रही ये रस्साकशी आगे बढ़ती जा रही है.


सौरादीप बाग ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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