Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 27, 2024 Updated 0 Hours ago

प्रधानमंत्री के तौर पर फूमियो किशिदा ने जापान का ध्यान क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक लचीलेपन पर केंद्रित करते हुए शिंजो आबे की विरासत को बरक़रार रखा है. इसके साथ साथ उन्होंने आमदनी की असमानता को ठीक करने और कूटनीतिक संबंध सुधारने के लिए नए क़दम भी लागू किए हैं.

मज़बूत बुनियाद पर भविष्य का निर्माण: आबे के बाद के दौर में किशिदा का कार्यकाल

Source Image: Government of Japan

16 जून 2024 को ओकिनावा प्रीफेक्चर में हुए हाल के विधानसभा चुनावों में कॉन्स्टिट्यूशन डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान (CDP) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी समेत सत्ताधारी वर्ग ने 48 में से 20 सीटें जीतीं थीं. वहीं लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP), कोमीतो और निप्पॉन इशिन नो काई समेत सभी विपक्षी दलों ने 28 सीटों पर जीत हासिल की. LDP ने अपने ऊपर हाल ही में लगे घूस की रक़म लेने के घोटाले जैसे तमाम दाग़ छुपाने के अभियान पर ज़ोर दिया, जो ऐसा लगता है कि कामयाब रहा. क्योंकि LDP के उम्मीदवारों ने सभी 20 की 20 सीटें जीत लीं. ओकिनावा के विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री फ़ुमियो किशिदा की सरकार के लिए काफ़ी अहम थे. क्योंकि भ्रष्टाचार का पैसा लेने के आरोप लगने के बाद, उनकी पार्टी ने कई स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में हार का सामना किया था. ओकिनावा के नतीजे, विपक्षी दल की उस मांग के बीच आए हैं, जिसमें वो किशिदा की लोकप्रियता और जनादेश तय करने के लिए मध्यावधि चुनाव कराने की मांग कर रहे थे. विपक्षी दलों का आरोप है कि घूस की रक़म लेने के आरोपों की वजह से सत्ताधारी LDP पर जनता का भरोसा कम हो गया है. LDP के कार्यकाली महासचिव तोमोमी इनाडा ने राजनीतिक फंडिंग के नियमों में सख़्ती लाने के एक प्रस्तावित विधेयक पर ज़ोर दिया, जिसे अन्य राजनीतिक दलों से भी समर्थन मिल रहा है, ताकि घूस लेने के ऐसे घोटाले फिर न हों. वहीं, स्थानीय मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़, फ़ुमियो किशिदा, मध्यावधि चुनावों को सितंबर के बाद के लिए टाल सकते हैं, जब LDP में नेतृत्व का चुनाव होना है.

 फ़ुमियो किशिदा, मध्यावधि चुनावों को सितंबर के बाद के लिए टाल सकते हैं, जब LDP में नेतृत्व का चुनाव होना है.

किशिदा का दौर 

 

इन बदलावों ने प्रधानमंत्री के तौर पर फ़ुमियो किशिदा के कार्यकाल की चुनौतियों को और बढ़ा दिया है. किशिदा का कार्यकाल, उनके पूर्ववर्ती शिंजो आबे की नीतियों की विरासत को आगे बढ़ाने के साथ साथ उसमें धीरे धीरे बदलाव लाने वाला भी रहा है. किशिदा ने शिंजो आबे की विरासत की बुनियाद को आगे बढ़ाने की कोशिश की है, ख़ास तौर से विदेश नीति और आर्थिक रणनीति के मामले में. इसके साथ साथ उन्होंने आमदनी के पुनर्वितरण और आर्थिक असमानताओं से निपटने के लिए कुछ नए क़दम भी उठाए हैं. हालांकि, किशिदा की सरकार, जनता के घटते समर्थन और पार्टी के भीतर चल रहे टकरावों की शिकार रही है. 

 

फ़ुमियो किशिदा ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर जापान की भूमिका को लेकर शिंजो आबे के विज़न के बुनियादी पहलुओं को बनाए रखा है. जिसका ज़ोर विशेष रूप से मुक्त एवं खुले हिंद प्रशांत (FOIP) और उदारवादी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा पर रहा है, ताकि जापान क्षेत्रीय राजनीति का एक अहम खिलाड़ी बना रहे. किशिदा की सरकार ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे प्रमुख साझीदारों के साथ जापान के गठबंधन को मज़बूत बनाया है, ताकि इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करने के लिए स्थापित किए गए ढांचे को ठोस आकार दिया जा सके. कुल मिलाकर, किशिदा ने शिंजो आबे के कार्यकाल की स्थिर कूटनीति को आगे बढ़ाने के साथ साथ ख़ुद को अपने पूर्ववर्ती से बहुत सधे हुए तरीक़े से अलग भी किया है.

 

शिंजो आबे और फ़ुमियो किशिदा, दोनों ही 1993 में पहली बार जापान की संसद यानी डाइट पहुंचे थे. प्रधानमंत्री के तौर पर शिंजो आबे के पहले कार्यकाल में 2006 से 2007 के दौरान किशिदा, ओकिनावा और उत्तरी इलाक़ों के मामले के प्रभारी राज्य मंत्री रहे थे. 2015 या फिर 2018 में एक नरमपंथी प्रतिद्वंदी के तौर पर किशिदा के चुनाव न लड़ने और सुगा की सरकार से दूर रखे जाने की वजह से उनका राजनीतिक करियर अनिश्चित नज़र आ रहा था. 2012 में जब शिंजो आबे सत्ता में लौटे, तो उन्होंने किशिदा को विदेश मंत्री नियुक्त किया. दूसरे विश्व युद्ध के बाद के दौर में किशिदा, जापान के सबसे लंबे कार्यकाल वाले विदेश मंत्री रहे. वो 2017 से 2020 के दौरान लेफ्ट डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के नीतिगत कार्यालय के अध्यक्ष भी रहे और इस तरह ख़ुद को एक संभावित वारिस के तौर पर पेश किया. 2020 में शिंजो आबे, योशिहिदे सुगा को समर्थन दे रहे थे. फिर भी उनके इस्तीफ़ा देने की वजह से शिंजो आबे को किशिदा का समर्थन करना पड़ा. पहले दौर के मतदान में सनाए तकाइची को शिकस्त देने के बाद किशिदा पार्टी के नेता चुने गए. परमाणु शक्ति और विदेशी मामलों को लेकर किशिदा के नरमपंथी रवैये की वजह से LDP के नेताओं और प्रमुख गुटों ने उन्हें पूरा समर्थन दिया. नवउदारवादी नीतियों को ख़त्म करने को लेकर किशिदा का रुख़, शिंजो आबे से कोई ख़ास दूरी बनाने वाला नहीं था. इससे संकेत मिला कि वो आबे की आर्थिक रणनीतियों से ख़ुद को अलग करने के बजाय उन्हें जारी रखने पर ज़ोर देंगे. विदेश और आर्थिक नीतियों में शिंजो आबे के रास्ते पर चलने के बावजूद, फ़ुमियो किशिदा का सियासी तौर तरीक़ा और मिज़ाज, आबे से काफ़ी अलग रहा है.

 किशिदा ने अपने कार्यकाल में शिंजो आबे की नीतियों की रफ़्तार बनाए रखने की कोशिश की है, जिसे ‘आबेनॉमिक्स’ कहा जाता है. इस नीति में जापान की अर्थव्यवस्था में नई जान डालने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन, मौद्रिक नीति में रियायतों और संरचनात्मक सुधारों पर ज़ोर दिया जा रहा है.

किशिदा ने अपने कार्यकाल में शिंजो आबे की नीतियों की रफ़्तार बनाए रखने की कोशिश की है, जिसे ‘आबेनॉमिक्स’ कहा जाता है. इस नीति में जापान की अर्थव्यवस्था में नई जान डालने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन, मौद्रिक नीति में रियायतों और संरचनात्मक सुधारों पर ज़ोर दिया जा रहा है. किशिदा ने सरकार के ख़र्च को बढ़ाने को लेकर काफ़ी मज़बूत प्रतिबद्धता दिखाई है, ख़ास तौर से कोविड-19 महामारी की वजह से पैदा हुई चुनौतियों से निपटने के मामले में. उनकी सरकार ने डिजिटल परिवर्तन और हरित विकास को भी प्राथमिकता दी है, जो जापान की अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण की शिंजो आबे की पहलों का ही अक़्स है. हालांकि, किशिदा ने ख़ुद को आबे से अलग दिखाने की भी कोशिश की है, और इसके लिए उन्होंने आमदनी के पुनर्वितरण और आर्थिक असमानता से निपटने पर ज़ोर दिया है. इस तरह से उन्होंने अपने पूर्ववर्ती आबे की आर्थिक नीतियों में एक नया आयाम भी जोड़ा है.

 

विदेशी संबंधों को लेकर किशिदा का रवैया कूटनीति और आक्रामकता के व्यवहारिक तालमेल का रहा है. उनका मानना है कि जापान को दक्षिणी पूर्वी एशिया और हिंद प्रशांत क्षेत्र में ‘ज़्यादा बड़ी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए’ और अधिक आक्रामक रुख़ अपनाना चाहिए. किशिदा ने दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों से संवाद और जापान की सामरिक साझेदारियां बढ़ाने की आबे की नीतियों को आगे बढ़ाया है. किशिदा के प्रशासन ने दक्षिण कोरिया के साथ रिश्ते सुधारकर उन्हें मज़बूती देने की कोशिश भी की है. इस तरह उन्होंने क्षेत्रीय सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के लिए एकजुट मोर्चा तैयार करने की अहमियत को स्वीकार किया है. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद किशिदा ने निर्णायक और त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए इस आक्रमण की निंदा की और रूस पर प्रतिबंधों को भी लागू किया. किशिदा का ये रुख़, क्रीमिया पर रूस के क़ब्जे़ के बाद शिंजो आबे के सावधानी भरे रुख़ से अलग था. ऐसा करके किशिदा ने दिखाया कि वो अंतरराष्ट्रीय नियमों की रक्षा के लिए साहसिक फ़ैसले लेने को तैयार हैं. क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर जापान की मज़बूत प्रतिबद्धता जताते हुए, किशिदा, नैटो की बैठक में हिस्सा लेने वाले जापान के पहले प्रधानमंत्री बने. शिंजो आबे के कार्यकाल के दौरान ऑस्ट्रेलिया के साथ जापान के संबंधों में काफ़ी सुधार आया था. ख़ास तौर से प्रधानमंत्री टोनी एबॉट के दौर में. इसकी वजह से दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता भी हुआ. शिंजो आबे ने क्वाड को लेकर प्रतिबद्धता जताई थी, जो भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक क्षेत्रीय संगठन है. ये हिंद प्रशांत क्षेत्र में लोकतंत्र को मज़बूती देने का एक अहम प्रयास था. किशिदा भी क्वाड और अन्य देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाने पर ज़ोर दे रहे हैं. स्वतंत्र और खुले हिंद प्रशांत (FOIP) की पहल को बढ़ावा देकर किशिदा, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस के साथ मज़बूत बनाने में भी सफ़ल रहे हैं.

 दक्षिणी चीन सागर में बढ़ते तनाव और सेंकाकू द्वीपों को लेकर विवाद के बीच किशिदा ने चीन को लेकर सख़्त नीतियों पर अमल किया है और जापान के ऐसी क्षमताएं हासिल करने को समर्थन दिया है, ताकि उनका देश अपनी क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए पड़ोसी देशों तक निशाना लगा सके.

रक्षा नीति के मामले में किशिदा ने जापान की सैन्य क्षमताओं को मज़बूती देकर और दोस्त देशों के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ाते हुए, आबे की विरासत को आगे बढ़ाया है. किशिदा ने जापान के नरमपंथी संविधान की नई व्याख्या को भी समर्थन दिया है, ताकि अधिक सक्रिय रक्षात्मक रुख़ अपनाया जा सके. दक्षिणी चीन सागर में बढ़ते तनाव और सेंकाकू द्वीपों को लेकर विवाद के बीच किशिदा ने चीन को लेकर सख़्त नीतियों पर अमल किया है और जापान के ऐसी क्षमताएं हासिल करने को समर्थन दिया है, ताकि उनका देश अपनी क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए पड़ोसी देशों तक निशाना लगा सके.

 

निष्कर्ष

 

इन निरंतरताओं के बावजूद, किशिदा ने अधिक समावेशी और आम सहमति वाला रुख़ अपनाकर अपने नेतृत्व के तौर तरीक़े को आबे से अलग दिखाने का भी प्रयास किया है. उन्होंने क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक लचीलेपन को लेकर जापान के सामरिक रुख़ को बनाए रखते हुए, शिंजो आबे की विरासत को ही आगे बढ़ाया है. पर, साथ ही साथ उन्होंने आमदनी की असमानता से निपटने और कूटनीति संबंध बेहतर बनाने को लेकर अपनी पहलें भी की हैं. ऐसे में उनका कार्यकाल अपने पूर्ववर्ती आबे की उपलब्धियों को बनाए रखते हुए, नई भू-राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों के मुताबिक़ जापान को ढालने का प्रतीक बना है.

 

किशिदा ने पार्टी के भ्रष्टाचार का पैसा लेने के स्कैंडल से निपटने के लिए निर्णायक क़दम उठाए हैं और आबे के समर्थक अधिकारियों पर जुर्माने लगाए हैं. आज जब घरेलू राजनीतिक चुनौतियां किशिदा के नेतृत्व का इम्तिहान ले रही हैं और अपने कार्यकाल की नीतियों और पहलों को लागू करने की उनकी क्षमताओं पर सवाल खड़े कर रही हैं. तो ये नीतियां भी दिखाती हैं कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किशिदा को एक नाज़ुक संतुलन बनाए रखने की ज़रूरत है.े



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