Published on Nov 26, 2021 Updated 0 Hours ago

बीएसएफ़ की पुलिस-शक्तियों को बढ़ाने से सीमा सुरक्षा बेहतर होगी या फिर यह बीएसएफ का अपनी मुख्य ज़िम्मेदारियों से ध्यान भटकाने वाला क़दम साबित होगा?

Border Security Force: बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र बढ़ाये जाना और उसका अर्थ?

गृह मंत्रालय (Home Ministry of India) ने 11 अक्टूबर 2021 के एक नोटिस के जरिये पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में सीमा सुरक्षा बला (BSF) का अधिकार क्षेत्र बढ़ा दिया है. इन राज्यों में उसे अंतरराष्ट्रीय सीमा (International Border)से 50 किलोमीटर के दायरे में तलाशी लेने, जब्ती और गिरफ्तारी का अधिकारी मिल गया है. इससे पहले यह दायरा 15 किलोमीटर का था. वहीं गुजरात में इस दायरे को घटाकर 80 से 50 किलोमीटर किया गया है. राजस्थान, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में बीएसएफ की शक्तियों को जस का तस रखा गया है. ऐसा करने की जो वजह बतायी जा रही है, वह है एकरूपता लाना, और साथ ही सीमा के आर-पार सक्रिय अपराधियों की बदली हुई रणनीति के मद्देनज़र सीमा पर सुरक्षा को बढ़ाना.

बीएसएफ को पहली बार पुलिस की शक्तियां बीएसएफ अधिनियम 1968 की धारा 139 के प्रावधानों के तहत 1969 में दी गयीं. इसके बाद 1973 में, और फिर सात साल पहले 3 जुलाई 2014 को इसमें कुछ संशोधन अधिसूचित किये गये. 

बीएसएफ को पहली बार पुलिस की शक्तियां बीएसएफ अधिनियम 1968 की धारा 139 के प्रावधानों के तहत 1969 में दी गयीं. इसके बाद 1973 में, और फिर सात साल पहले 3 जुलाई 2014 को इसमें कुछ संशोधन अधिसूचित किये गये. सीमावर्ती क्षेत्रों में भौगोलिक संरचना, आबादी की बनावट (पॉपुलेशन कम्पोजीशन), अपराध के पैटर्न जैसी ख़ास परिस्थितियों के साथ ही वहां पुलिस की मौजूदगी और उसकी प्रभावशीलता के मद्देनज़र इन शक्तियों को अनिवार्य माना जाता है. इन परिस्थितियों के एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होने के कारण, तय किये गये अधिकार क्षेत्र भी अनिवार्य रूप से अलग-अलग इलाकों के लिए अलग-अलग थे. इसलिए एकरूपता की बात ज़मीनी हक़ीक़त के ख़िलाफ़ बैठती है और एक तरह से यह हर मर्ज़ की एक दवा जैसा है.

गुजरात और राजस्थान के सुदूर सीमावर्ती इलाकों में जहां जनसंख्या घनत्व कम है और सीमा से काफी दूर तक किसी तरह के आबादी केंद्रों की मौजूदगी नहीं है, तथा पुलिस की मौजूदगी बेहद सीमित है- वहां बीएसएफ ही कानून लागू कराने वाली इकलौती एजेंसी के रूप में मौजूद है. ऐसे में यह ज़रूरी था कि इन दो राज्यों में बीएसएफ को पुलिस की शक्तियां प्रदान की जाएं. यहां तक कि बीएसएफ की सीमा चौकियां (बीओपी) भी इन राज्यों में सीमा से काफी दूर स्थित थीं (बाद में इन्हें सीमा के और नज़दीक लाया गया). पुलिस की शक्तियों ने बीएसएफ को सीमा पर सक्रिय उन अपराधियों का पीछा करने और उन्हें दबोचने में सक्षम बनाया, जो बीएसएफ की गश्त को चकमा देकर बच निकल सकते थे. इन शक्तियों ने यह सुनिश्चित किया कि इलाके में पुलिस की अनुपस्थिति या उसके आने में देरी के चलते अपराधी पकड़े जाने से बच न सकें. आबादी कम होने की वजह से, ज़रूरत पड़ने पर बीएसएफ के लिए तलाशी अभियान चलाना आसान था.

घनत्व वाले राज्य और बीएसएफ

पश्चिम बंगाल, असम, और पंजाब काफी ज्य़ादा जनसंख्या घनत्व वाले राज्य हैं, साथ ही वहां पुलिस की सशक्त मौजूदगी और बेहतर बुनियादी ढांचा है. ऐसे में, इन राज्यों में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को सीमा से 15 किलोमीटर दूर तक ही सीमित रखा गया था. बीते 50 सालों में सीमावर्ती इलाकों में जनसंख्या घनत्व दो से तीन गुना तक बढ़ चुका है. पुलिस की मौजूदगी बढ़ी है, और नतीजतन उसकी प्रभावशीलता भी बढ़ी है. लिहाज़ा, इन तीन राज्यों में सीमा पर बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाकर 50 किलोमीटर तक करना उचित नहीं है. और, अगर स्थानीय पुलिस के साथ करीबी तालमेल न बिठाया गया, तो यह भ्रम की स्थिति पैदा कर सकता है. बहुत से मौकों पर, करीबी तालमेल संभव भी नहीं हो सकता, ख़ासकर अपराधियों की सरगर्मी से तलाश के मामले में तेज़ और गोपनीयता की ज़रूरत के चलते. तालमेल का अभाव बहुत ही खराब स्थितियां पैदा कर सकता है, क्योंकि दो अलग-अलग सरकारों द्वारा नियंत्रित दो बलों का एक-साथ अधिकार क्षेत्र होना इलाके पर क़ब्ज़े की लड़ाइयों का कारण बन सकता है, ख़ासकर जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हों.

 बीते 50 सालों में सीमावर्ती इलाकों में जनसंख्या घनत्व दो से तीन गुना तक बढ़ चुका है. पुलिस की मौजूदगी बढ़ी है, और नतीजतन उसकी प्रभावशीलता भी बढ़ी है. लिहाज़ा, इन तीन राज्यों में सीमा पर बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाकर 50 किलोमीटर तक करना उचित नहीं है. 

इसके अलावा, इन शक्तियों का बीएसएफ द्वारा स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि पंजाब और पश्चिम बंगाल में ‘सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम’ (अफस्पा) लागू नहीं है. लिहाज़ा, बीएसएफ बिना वारंट के तलाशी या ज़ब्ती अभियान नहीं चला सकता. इस तरह, इन तीन राज्यों में अधिकार क्षेत्र बढ़ाने के लिए एकरूपता कोई उचित तर्क नहीं है.

अधिकार क्षेत्र बढ़ाने का बीएसएफ के असल काम पर विपरीत असर पड़ेगा, क्योंकि भीतरी इलाकों में अभियान चलाने के लिए उसे सीमा चौकियों पर तैनात जवानों को हटाना पड़ेगा. चौकियों पर जवानों की तादाद कम करना सीमा पर खतरा बढ़ा सकता है. कोई यह सकता है कि महज़ अधिकार क्षेत्र बढ़ाने की बुनियाद पर इस तरह का तर्क व्यर्थ है. यह सही है कि संसाधनों, साधनों, पक्की खुफिया सूचना, भीतरी इलाकों की अच्छे से जानकारी के अभाव और पुलिस प्रक्रियाओं के चलते बीएसएफ ने शायद ही कभी अतीत में इन अधिकारों का स्वतंत्र ढंग से इस्तेमाल किया है (इसमें पश्चिम बंगाल संभवत: अपवाद है). मगर, अतीत में पूर्वी राज्यों में खुफ़िया सूचना आधारित स्वतंत्र अभियानों के दौरान जवानों पर हमले की घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं.

तकनीकी तौर पर बीएसएफ हो मज़बूत

इसके बजाय, बीएसएफ का ध्यान दुश्मन द्वारा सुरंगों और ड्रोन का इस्तेमाल कर विकसित किये जा रहे तरीकों से निपटने के लिए अपनी क्षमता बढ़ाने पर होना चाहिए. इसके लिए बीएसएफ को सीमा पर ही इन्हें खोज निकालने की तकनीक को शामिल करना चाहिए. ड्रोन से भीतरी इलाक़े में गिरायी गयी चीज़ को उठाने आये दुश्मन के सहयोगियों को खोजने और दबोचने में पुलिस बेहतर ढंग से सक्षम होगी, क्योंकि सीमा पर तैनात बीएसएफ के मुक़ाबले पुलिस की मौजूदगी संभावित स्थल के ज़्यादा करीब होगी. इसी तरह, सुरंग के खुलने की जगह सीमा के काफ़ी नज़दीक होने के कारण, बीएसएफ को मिली पुलिस की अतिरिक्त शक्तियां बेमतलब हैं.

अधिकार क्षेत्र में विस्तार के बजाय, तकनीक को शामिल कर बीएसएफ की ख़ुफ़िया शाखा को मज़बूत करना और सीमा के आर-पार सक्रिय अपराधियों के बारे में सूचनाएं जमा करने पर केंद्रित काम सौंपना- सीमा सुरक्षा को बढ़ाने में ज्यादा कारगर होगा. तीनों सघन आबादी वाले राज्यों में, सीमा से 50 किलोमीटर तक के बड़े इलाके में ख़ुफ़िया सूचनाओं के संग्रह के लिए राज्य और केंद्रीय ख़ुफ़िया एजेंसियां शायद बेहतर तालमेल कर सकती हैं, और उन सूचनाओं पर स्थानीय पुलिस द्वारा कार्रवाई की जा सकती है, बजाय कि बीएसएफ को सीमा चौकियों से हटाकर लाने के.

बीएसएफ की असल ताक़त है सीमा की रखवाली. वह पुलिस के कामों को अंजाम देने के लिए प्रशिक्षित नहीं है. इन कामों के लिए बीएसएफ को प्रशिक्षित करने की ज़रूरत, बदले में, उसके मुख्य काम के लिए प्रशिक्षण पर ज़ोर को कम कर देगी जिसके विपरीत नतीजे होंगे. इस तरह, बढ़ी हुई शक्तियों का इस्तेमाल अंतत: बीएसफ की क्षमताओं को कम करेगा और उसे एक प्रथम-श्रेणी के सीमा प्रहरी बल से एक तृतीय-श्रेणी के पुलिस बल में बदल देगा. यह ज़िक्र करना अहम है कि उत्तर प्रदेश और बिहार अत्यधिक संवदेनशील हैं. नेपाल की साथ इन राज्यों की खुली सीमाओं का पाकिस्तान बार-बार इस्तेमाल भारत के विभिन्न हिस्सों में आतंकवाद को खाद-पानी देने के लिए करता रहा है. अगर शक्तियां बढ़ाने की ज़रूरत लग ही रही थी, तो उन तीन राज्यों में बीएसएफ की शक्तियां बढ़ाने के बजाय, इन सीमाओं पर तैनात सीमा सशस्त्र बल (एसएसबी) की शक्तियां बढ़ाना ज़्यादा अहम था. तार्किक रूप से देखें तो, पश्चिम बंगाल और असम में तैनात एसएसबी को वहां तैनात बीएसएफ जैसी शक्तियां ही मिलनी चाहिए.

यह कहना पर्याप्त होगा कि बीएसफ को दी गयीं बढ़ी हुई शक्तियों को लागू करने में व्यावहारिक कठिनाइयां हैं और इससे सुरक्षा शायद ही बढ़े. तलाशी, ज़ब्ती और गिरफ़्तारी करने में बीएसएफ किसी तरह से पुलिस से बेहतर नहीं है. सरकार को शायद राज्य पुलिस को सशक्त बनाने और सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल बेहतर करने पर ध्यान देना चाहिए.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.