Author : Meghna Bal

Published on Nov 23, 2017 Updated 0 Hours ago

चीन के सर्वाधिक आकर्षक ऑनलाइन प्रयोग उसके पारंपरिक प्रौद्योगिकी क्षेत्र की सीमाओं से परे हो रहे हैं।  

चीन में अभिनव उत्‍पादों का बूम: भारत के लिए सबक

यह इस सीरीज में 38वां हिस्‍सा है द चाइना क्रोनिकल्स


वक्‍त बदलने के साथ ही चीन में तकनीकी विकास का परिदृश्‍य भी पूरी तरह से बदल गया है। अभी हाल तक चीन के तकनीकी विकास की गाथा मौलिक अभिनव खोज करने के बजाय मुख्‍यत: उत्‍कृष्‍ट विदेशी उत्‍पादों का सहज रूपांतरण या अनुकूलन करने की घटनाओं या कदमों को बयां करती थी। चीन की ज्‍यादातर टॉप प्रौद्योगिकी कंपनियों के पश्चिमी समकक्ष थे। चीन की दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा दरअसल अमेजन और ईबे का एक संकर या मिश्रण (हाइब्रिड) थी। वहीं, गूगल को कड़ी टक्‍कर देने के लिए चीन ने अपना सर्च इंजन बैदू लांच किया। उधर, फेसबुक ने अपना चीनी समकक्ष टेनसेंट में पाया।

अब हम अभिनव विचारों के इस प्रवाह को बिल्‍कुल विपरीत दिशा में देख रहे हैं। चीन का प्रभाव अब दुनिया भर में अनेक प्रौद्योगिकी कार्यक्षेत्रों में फैल गया है। चीन द्वारा स्वदेश में विकसित किए गए उस मेतू एप की नकल अब अमेरिका समेत पूरी दुनिया में उभर रही हैं जो सेल्फी को और भी ज्‍यादा आकर्षक बना देता है। अमेरिका के कई स्टार्टअप ‘मांग पर साइकिल किराये पर उपलब्‍ध कराने’ वाले चीनी मॉडल की भी नकल कर रहे हैं। इसी तरह डेटिंग एप टिंडर ने ‘मू’ नामक एक चीनी एप से प्रेरणा ली है। अभी हाल ही में चीन के क्यूआर कोड मानक को क्‍यूआर कोड भुगतान के लिए वैश्विक उद्योग मानक के रूप में स्‍वीकार कर लिया गया है। यहां तक कि भारत में चीनी स्मार्टफोन 50 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के साथ बड़े पैमाने पर छा गए हैं। [1]

चीन का प्रभाव अब दुनिया भर में अनेक प्रौद्योगिकी कार्यक्षेत्रों में फैल गया है। चीन द्वारा स्वदेश में विकसित किए गए उस मेतू एप की नकल अब अमेरिका समेत पूरी दुनिया में उभर रही हैं जो सेल्फी को और भी ज्‍यादा आकर्षक बना देता है।

इसके अतिरिक्त, चीन के सर्वाधिक आकर्षक ऑनलाइन प्रयोग उसके पारंपरिक प्रौद्योगिकी क्षेत्र की सीमाओं से परे हो रहे हैं। ‘वास्तविक अर्थव्यवस्था’ से जुड़े उद्योगों जैसे कि बैंकिंग, रियल एस्टेट, निर्माण और कृषि क्षेत्रों की कंपनियां ऐसे नए वाणिज्यिक आदर्श मूलरूप सृजित कर रही हैं जो डेटा विज्ञान और औद्योगिक इंटरनेट पर आधारित हैं। [2] उदाहरण के लिए, दिग्‍गज अचल संपत्ति कंपनी वानके डिजिटल समाज में ऑनलाइन-सक्षम तकनीक और सेवाओं का समावेश करने की पहल की अगुवाई कर रही है। [3] यह ऐसे शहरों के निर्माण को लक्षित कर रही है, जो अपने यहां के निवासियों को विभिन्‍न सुविधाएं जैसे कि पार्क, सुरक्षित व्यंजन, गतिशीलता, स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाएं इंटरनेट के जरिए प्रदान करते हैं। [4]

चीन में नवाचार के विकास में कई कारकों (फैक्‍टर) ने योगदान दिया है।

पहला, वर्ष 2007 में मोबाइल हैंडसेटों के निर्माण और बिक्री से जुड़े लाइसेंसिंग ढांचे का उदारीकरण किया गया था जिसने तेजी से फलते-फूलते घरेलू मोबाइल उद्योग के अभ्‍युदय में उत्‍प्रेरक की भूमिका निभाई। [5] यही नहीं, बाजार में नए खिलाड़ियों की भरमार हो गई। इसके अतिरिक्त, शानझाई हैंडसेटों को वैध करार दे दिया गया। [6] शानझाई मोबाइल फोन दरअसल किफायती 2जी फोन थे जो जाने-माने ब्रांडों के उत्पादों की नकल थे। [7] नतीजतन, स्मार्टफोन हैंडसेटों की कीमतों में उल्‍लेखनीय गिरावट आई। वर्ष 2009 में मोबाइल हैंडसेट महज 9,761 रुपये में भी उपलब्‍ध थे। [8] समय बीतने के साथ ही चीन के मोबाइल उद्योग का विस्‍तारीकरण हुआ तथा इसमें कई और खिलाड़ी शामिल हो गए जिसके परिणामस्‍वरूप स्मार्टफोन की कीमतें घटकर और भी नीचे आ गईं। आज, चीनी स्मार्टफोन का मूल्‍य आठ साल पहले की तुलना में आधे से भी कम हो गया है। चीन के घरेलू मोबाइल संचार उद्योग के जबरदस्‍त विकास का ही यह कमाल है कि आज चीन की 75 फीसदी आबादी के पास स्मार्टफोन है।

दूसरा, देश के 1 अरब इंटरनेट उपयोगकर्ता नई प्रौद्योगिकियों और एप्‍लीकेशंस (एप) के लिए एकदम सटीक प्‍लेटफॉर्म या माहौल सुलभ कराते हैं। [9] केवल ऐसे अभिनव उत्‍पाद जो अपनी दमदार क्षमता को साबित कर सकते हैं, वे ही अत्‍यंत प्रतिस्पर्धी चीनी प्रौद्योगिकी बाजार में टिक सकते हैं। 

तीसरा, चीन में नवाचार के लिए ‘शीर्ष से नीचे की ओर अग्रसर (टॉप-डाउन) दृष्टिकोण’ को अपनाया जाता है। चीनी सरकार प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारी-भरकम निवेश करती है और विशिष्ट मुद्दों पर अपने रुख को नरम करने के लिए सदैव तत्‍पर रहती है, बशर्ते कि उससे और अधिक सरलता सुनिश्चित होती हो। उदाहरण के लिए, वर्ष 2012 में चीन ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 2 फीसदी अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) को समर्पित कर दिया था। [10] एक और अहम बात। चीन के पास प्रौद्योगिकी क्षेत्र में मानव पूंजी का खजाना है। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 55 फीसदी चीनी डॉक्टरेट डिग्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, और गणित के क्षेत्र में दी जाती हैं। [11] वर्ष 2015 की ‘यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड रिपोर्ट’, जो अलग-अलग मानदंडों पर दुनिया भर के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग करती है, के मुताबिक चीन का सिंघुआ विश्वविद्यालय अब मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) को पछाड़ कर दुनिया का शीर्ष इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय बन गया है। [12]

चीन में जबरदस्‍त तकनीकी विकास से भारत को निम्‍नलिखित बहुमूल्य सबक सीखने चाहिए:

  1. सोच स्थानीय होअमल वैश्विक हो: भारत और चीन दोनों ने ही घरेलू मुद्दों को सुलझाने के लिए तकनीकी समाधान विकसित किए हैं। हालांकि, भारतीय कंपनियों की तुलना में चीनी प्रौद्योगिकी कंपनियों की वैश्विक मौजूदगी कहीं ज्‍यादा है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों को ही ऐसे तौर-तरीके ढूंढ़ने चाहिए जिनके जरिए भारत का प्रौद्योगिकी क्षेत्र अपनी वैश्विक पहुंच को विस्तृत कर सकता है। इस संबंध में एक उत्साहवर्धक तथ्‍य यह है कि कई देश भारत के विशिष्ट पहचान डेटाबेस (यूआईडी) यानी ‘आधार’ का अनुकरण करने की कोशिश कर रहे हैं।
  2. मानव पूंजी में निवेश करें: भारत में अनुसंधान एवं विकास में सरकारी निवेश अब भी अपेक्षा से कम है। अध्ययनों से पता चला है कि भारत अनुसंधान पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.9 फीसदी ही निवेश करता है। [13] इसके अतिरिक्त, अतिशय नौकरशाही भारत के अनुसंधान परिदृश्य में बाधा डालती है। [14] भारत के सरकारी शैक्षणिक संस्‍थानों में ज्‍यादातर प्रशासकों की नियुक्ति‍ सियासी दृष्टि से की जाती है। [15] इनमें से ज्‍यादातर व्यक्तियों की अनुसंधान संबंधी कोई वास्तविक पृष्ठभूमि नहीं होती है। [16] इसके अलावा, भारत में हर 10,000 लोगों में से केवल चार ही पूर्णकालिक शोधकर्ता हैं, जबकि चीन में यह आंकड़ा 18 है। [17] इस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए भारत को अपने अनुसंधान केंद्रों में लालफीताशाही कम करने के लिए अवश्‍य ही ठोस कदम उठाने चाहिए और देश में शोध गतिविधियों के वित्तपोषण के ठोस तौर-तरीके ढूंढ़ने चाहिए।

वैसे तो चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन भारत को भी इस मामले में चीन की भांति ही समान बढ़त हासिल है क्योंकि भारत की आबादी भी विशाल है, कनेक्टिविटी दरें अत्‍यंत संतोषजनक हैं और उसे विशिष्ट वैज्ञानिक दक्षताएं हासिल हैं। इसके अतिरिक्त, भारत भी अनेक अभिनव सृजन करने में कामयाब रहा है, जो दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए आदर्श (टेम्पलेट) के रूप में विद्यमान हैं। विशेष रूप से, कई देश भारत के ‘आधार’ डेटाबेस की पुनरावृत्तियां तैयार करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। भारत भी यदि निकट भविष्य में वैश्विक तकनीकी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी या राष्‍ट्र के रूप में उभर कर सामने आना चाहता है तो उसे अवश्‍य ही स्थानीय तौर पर विकसित अभिनव उत्‍पादों या चीजों का निर्यात करने के तरीके तलाशने चाहिए और आबादी के मामले में हासिल बढ़त से भरपूर लाभ उठाना चाहिए।


[1] Ojasvi Goel and Yash Bajaj, “Breaking Free of the Digital Dragon: Responding to China’s Growing Control over India’s ICT” (Observer Research Foundation, 2017), https://www.orfonline.org/research/breaking-free-digital-dragon-responding-china-growing-control-india-ict/.

[2] Edward Jung, “China’s Internet Boom,” MIT Technology Review, June 21, 2016, https://www.technologyreview.com/s/601686/chinas-internet-boom/.

[3] Ibid

[4] Ibid

[5] Shin-Horng Chen and Pei-Chang Wen, “The Evolution of China’s Mobile Phone Industry and Good-Enough Innovation” (Chung-Hua Institution for Economic Research, Taiwan, n.d.).

[6] Ibid

[7] Ibid

[8] Ibid

[9] “China: Number of Internet Users 2017 | Statistic,” Statista, 2017, https://www.statista.com/statistics/278417/number-of-internet-users-in-china/.

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