Author : Harris Amjad

Published on Nov 15, 2022 Updated 0 Hours ago

Blackouts in South Asia: बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका की ऊर्जा नीति संबंधी विवाद पर पुनर्विचार बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका में गहराते ऊर्जा संकट (power crisis) ने इन देशों को भविष्य के अपने ऊर्जा (energy) परिदृश्य और नीतियों पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है.

Blackouts in South Asia: बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका की ऊर्जा नीति संबंधी विवाद पर पुनर्विचार
हाल के महीनों में बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका में होने वाली बिजली कटौती कभी-कभी 10 से 14 घंटे की होती है. बिजली की कमी से जूझ रहे इन देशों में बिजली उत्पादन (electricity generation) भी आश्चर्यजनक रूप से काफी महंगा हो गया है. इस तरह की ‘‘लोड शेडिंग’’ और बढ़ती महंगाई के कारण अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है. इस वजह से इन तीनों ही देशों के विदेशी मुद्रा भंडार में काफी गिरावट देखी गई हैं. इस लेख में इन दक्षिण एशियाई (South Asian) देशों के व्यापक ऊर्जा संकट (energy insecurity) का विश्लेषण किया गया है. इसमें यह तर्क दिया गया है कि अनदेखी वैश्विक परिस्थितियां तो इस संकट का अहम कारण है ही, लेकिन इन देशों की घरेलू बिजली उत्पादन नीतियां भी वर्तमान संकट के लिए दोषी कही जा सकती हैं. 

इस लेख में इन दक्षिण एशियाई (South Asian) देशों के व्यापक ऊर्जा संकट (energy insecurity) का विश्लेषण किया गया है. इसमें यह तर्क दिया गया है कि अनदेखी वैश्विक परिस्थितियां तो इस संकट का अहम कारण है ही, लेकिन इन देशों की घरेलू बिजली उत्पादन नीतियां भी वर्तमान संकट के लिए दोषी कही जा सकती हैं. 

जीवाश्म ईंधन आयात पर होने वाला भारी खर्च

पहली नजर में यह साफ हो जाता है कि वैश्विक ऊर्जा बाजार में रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से जो अस्थिरता देखी जा रही है, वह दक्षिण एशिया के ऊर्जा संकट का प्राथमिक कारण है. यूरोप को निर्यात होने वाली गैस को रूस ने सीमित कर दिया है. इस वजह से प्राकृतिक गैस के दाम आसमान छूने लगे है, क्योंकि यूरोपीय महाद्वीप की गैस खपत में आयात का हिस्सा 83 प्रतिशत है. नतीजतन, आपूर्ति में हुई रुकावट को दूर करने के लिए यूरोपियन यूनियन के वैश्विक स्पॉट मार्केट अर्थात हाजिर बाजार में उतरने का परिणाम तरलीकृत प्राकृतिक गैस अर्थात लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) के एशियन स्पॉट मार्केट में भी दिखाई दे रहा है. एशियन मार्केट में एलएनजी के दामों में ग्रीष्मकालीन दामों की तुलना में 10 गुना तेजी देखी जा रही है. ऐसे में सर्दियों के आने से पहले एलएनजी के नौवहन अर्थात शिपमेंट्स पाने में संपन्न यूरोपियन देशों से मुकाबला करने में एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 

तेजी से बढ़ रहे दाम और घटते विदेशी मुद्रा भंडार के कारण ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को यह घोषणा करने पर मजबूर होना पड़ा है कि अब इस्लामाबाद इतने ऊंचे दामों पर एलएनजी खरीदने में ‘‘असमर्थ’’ है. इसी तरह की स्थिति से बांग्लादेश भी गुजर रहा है. वहां भी ऊंचे दामों की वजह से गैस खरीद की गति धीमी हो गई है.

एशियन मार्केट में एलएनजी के दामों में ग्रीष्मकालीन दामों की तुलना में 10 गुना तेजी देखी जा रही है. ऐसे में सर्दियों के आने से पहले एलएनजी के नौवहन अर्थात शिपमेंट्स पाने में संपन्न यूरोपियन देशों से मुकाबला करने में एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 

हालांकि, यह भी सच है कि एलएनजी बाजार में, अस्थिरता इस युद्ध के पहले से ही देखी जा रही थी. दक्षिण एशिया को पहले ही इसे खतरे का संकेत समझ लेना चाहिए था. 2019 से ही एलएनजी के दामों में रिकार्ड कमी देखी गई, जबकि 2021 में महामारी के कारण उपजी स्थिति की प्रतिक्रिया के स्वरूप एलएनजी के दाम रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए. इसमें वैश्विक स्तर पर मांग में अचानक आयी तेजी के कारण आपूर्ति और मांग के गतिरोध भी खड़े हो गए. 

इन सभी घटनाओं के कारण तेल की कीमतों में भी अस्थिरता पैदा हुई है. एक ओर जहां आपूर्ति और मांग के गतिरोध की वजह से तेल के दाम बढ़ रहे थे, वहीं यूक्रेन युद्ध के चलते कीमतों में और भी तेजी आने लगी. हाल ही में ओपेक+ ने आपूर्ति घटाने की घोषणा की, जबकि रूसी कच्चे तेल पर यूरोपियन यूनियन के एम्बार्गो अर्थात प्रतिबंध के कारण भविष्य में तेल के बाजार में और भी कसावट देखी जा सकती है. ऊंची कीमतों की वजह से बांग्लादेश और पाकिस्तान में डीजल पर चलने वाले पॉवर प्लांट्स बंद हो गए हैं, जबकि श्रीलंका को अपनी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के कारण तेल आयात के लिए आवश्यक धनराशि जुटाने में मशक्कत करनी पड़ रही है. इसके परिणामस्वरूप श्रीलंका में बिजली कटौती के मामले बढ़ रहे है.

ऊर्जा बाजार में इस तरह की अस्थिरता दक्षिण एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित होने के साथ-साथ इन देशों की ऊर्जा उत्पादन क्षमता को भी प्रभावित कर रही है. इन देशों के पास जीवाश्म ईंधन, जैसे तेल, प्राकृतिक गैस एवं कोयले के महत्वपूर्ण संसाधनों का उपयोग करने के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. ऐसे में इन देशों का बिजली उत्पादन अधिकांशत: इन संसाधनों के आयात पर ही निर्भर रहता है. हाल ही में बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका को जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता की भारी कीमत चुकानी पड़ी है. उनका आयात पर होने वाला खर्च बेतहाशा और बर्दाश्त के बाहर तक बढ़ गया है. ऐसे में इन देशों के पास पर्याप्त बिजली उत्पादन क्षमता होने के बावजूद जीवाश्म ईंधन की ऊंची कीमतों के कारण इनके अनेक पॉवर प्लांट्स काम नहीं कर रहे हैं. इन देशों की वर्तमान स्थिति को यूक्रेन युद्ध ने और ज्यादा खराब कर दिया है. उनकी स्थिति ने इस बात को भी उजागर किया है कि कैसे उच्च जोखिम वाली अस्थिर वस्तुओं पर अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को आधारित करना लंबी अवधि में महंगा साबित होता है. 


(नोट : 2019 का डेटा विद्युत मिश्रण की महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के पहले की स्थिति को दर्शाने के लिए लिया गया है.)

स्त्रोत : अवर वर्ल्ड इन डेटा कंट्री प्रोफाइल्स

घरेलू ऊर्जा नीति की खामियां

इसके बावजूद जब हम इन दक्षिण एशियाई देशों के वर्तमान ऊर्जा संकट का विश्लेषण करते हैं, तो हमें बिजली क्षेत्र को लेकर इनके राष्ट्रीय नीतिगत फैसलों पर भी नजर डालनी चाहिए. इन फैसलों ने ही वर्तमान स्थिति में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान दिया है. 

हाल ही में बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका को जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता की भारी कीमत चुकानी पड़ी है. उनका आयात पर होने वाला खर्च बेतहाशा और बर्दाश्त के बाहर तक बढ़ गया है.

बिजली उत्पादन के लिए प्राकृतिक गैस पर बहुत ज्यादा निर्भर होने के बावजूद पाकिस्तान और बांग्लादेश ने गैस आपूर्तिकर्ताओं से एलएनजी आयात के लिए लंबी अवधि के समझौते करने की बजाय अपनी आधे से ज्यादा जरूरतों को स्पॉट मार्केट अथवा हाजिर बाजार से पूरा किया है. यह आपूर्तिकर्ता आम तौर पर बाजार में होने वाली उठापटक का मुकाबला बेहतर ढंग से करने में सक्षम होते हैं. पिछले दशक में इन देशों की एलएनजी को आयात करने की रणनीति इस धारणा पर आधारित रही है कि प्राकृतिक गैस आने वाले लंबे समय तक न केवल सस्ती रहेगी, बल्कि प्रचूर मात्रा में उपलब्ध भी रहेगी. चूंकि यह आकलन गलत साबित हुआ, अत: अब यह दोनों देश बाजार के मूल्यों की अस्थिरता का खामियाजा भुगत रहे हैं.

बांग्लादेश में, उत्पादन क्षमता के हिसाब से स्वतंत्र बिजली प्रदाताओं (आईपीपी) को क्षमता भुगतान प्रदान करने की सरकार की नीति बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड (पीडीबी) के लिए महंगी साबित हुई है. क्षमता भुगतान का मतलब यह है कि स्वतंत्र बिजली प्रदाता का संयंत्र भले ही निष्क्रिय रहे, उसे उसकी बिजली उत्पादन क्षमता के हिसाब से भुगतान कर दिया जाएगा. इस वजह से अतिरिक्त क्षमता का मुद्दा खड़ा हो गया है. वहां अधिकतम मांग अर्थात पीक डिमांड जहां 15,000 एमडब्ल्यू की है, तो उत्पादन क्षमता 25,700 एमडब्ल्यू हो गई है. वित्त वर्ष 2020-21 में आईपीपी को 132 बिलियन टका (1.40 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का क्षमता भुगतान किया गया है. इसके अलावा इतनी ही मात्रा में सरकारी ऊर्जा संयंत्रों को सरकारी अनुदान दिया गया था. जबकि इस पूंजी का उपयोग बिजली से जुड़ी अन्य ढांचागत सुविधाओं को खड़ा करने में किया जा सकता था. 

दूसरी ओर पाकिस्तान हमेशा से ही ऊर्जा कुशलता और संरक्षण उपायों की उपेक्षा करने के लिए बदनाम रहा है. एक ओर जहां सरकार की नीतियों ने क्षमता में विस्तार करने पर ध्यान केंद्रीत किया है, वहीं संरक्षण नीति अपनाकर मांग में कटौती करने की ओर ध्यान ही नहीं दिया. पाकिस्तान में आपूर्ति की जाने वाली बिजली में से 50 प्रतिशत का उपयोग घरेलू ग्राहक करते हैं, लेकिन आवासीय बिजली संरक्षण को नीतियों में जगह ही नहीं दी गई. 1990 में विकसित पाकिस्तान के बिल्डिंग एनर्जी कोड ऑफ पाकिस्तान में उसके बाद नई जरूरतों एवं नई तकनीकी नवाचारों को ध्यान में रखकर जो निरंतर संशोधन होना चाहिए था, उसकी उपेक्षा की गई. पाकिस्तान में एक अच्छी तरह से काम करने वाली ऊर्जा दक्षता व्यवस्था वर्तमान आपूर्ति-मांग के अंतर को कम करने में सहायक साबित हो सकती है. यह व्यवस्था वहां बिजली संकट से निपटने में योगदान दे सकती है.

पिछले दशक में इन देशों की एलएनजी को आयात करने की रणनीति इस धारणा पर आधारित रही है कि प्राकृतिक गैस आने वाले लंबे समय तक न केवल सस्ती रहेगी, बल्कि प्रचूर मात्रा में उपलब्ध भी रहेगी. चूंकि यह आकलन गलत साबित हुआ, अत: अब यह दोनों देश बाजार के मूल्यों की अस्थिरता का खामियाजा भुगत रहे हैं.

कोलंबो की ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी नीति में भी खामियां हैं. नवीकरणीय ऊर्जा जैसे पवन एवं सौर की अपार क्षमताएं होने के बावजूद श्रीलंका ने इस क्षेत्र पर भरोसा कम ही किया है. श्रीलंका ने 2050 तक पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने की घोषणा की है. इसके बावजूद कोलंबो ने तीन दीर्घकालिक उत्पादन विस्तार योजनाएं (एलटीजीईपी) जारी की हैं. इनमें 2039 के अंत तक महत्वपूर्ण कोयला परियोजनाओं को जोड़े जाने की बात की गई है. सीलोन विद्युत बोर्ड (सीईबी) के पास देश में बिजली उत्पादन का एकाधिकार है. इस देश को जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता का लाभ भी मिल रहा है. इसी वजह से सीईबी की योजनाएं, नवीकरणीय ऊर्जा नीति की खिलाफत करते हुए दिखाई देती हैं. सीईबी का यह रवैया कोयला संयंत्रों के आसपास श्रीलंकाई जनता द्वारा व्यक्त की गई व्यापक पर्यावरणीय चिंताओं के खिलाफ जाता है.

जीवाश्म ईंधन की बढ़ती लागत और क्षेत्र के जल चक्र पर प्रतिकूल जलवायु घटनाओं के प्रभावों से उत्पन्न होने वाली असुरक्षा को कम करने के लिए यह जरूरी है कि यह देश अपने नवीकरणीय ऊर्जा के बुनियादी ढांचे में विविधता लाने को तैयार रहें. 

यह संभवत: इन तीनों दक्षिण एशियाई देशों के ऊर्जा परिदृश्य में एक ब्लाइंड स्पॉट के समान हैं. इन तीनों ही देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा योजनाओं पर कम ध्यान दिया है. बांग्लादेश में उपलब्ध बिजली में नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान नहीं के बराबर है. जबकि पाकिस्तान और श्रीलंका में पर्याप्त मात्रा में जल ऊर्जा परियोजनाएं कार्यरत हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते बाढ़ अथवा सूखे जैसी घटनाओं के कारण इन ऊर्जा संयंत्रों की क्षमता पर हमेशा सवालिया निशान लगा रहता है. ऐसे में इन परियोजनाओं पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता है. जीवाश्म ईंधन की बढ़ती लागत और क्षेत्र के जल चक्र पर प्रतिकूल जलवायु घटनाओं के प्रभावों से उत्पन्न होने वाली असुरक्षा को कम करने के लिए यह जरूरी है कि यह देश अपने नवीकरणीय ऊर्जा के बुनियादी ढांचे में विविधता लाने को तैयार रहें. 

निष्कर्ष 

बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका के वर्तमान मामले ने यह साबित कर दिया है कि अस्थिर वस्तुओं पर अत्यधिक निर्भरता लंबी अवधि में महंगी साबित होगी. इसके साथ ही जब घरेलू ऊर्जा नीतियों को लेकर कम अवधि की योजना बनाकर अधिक सुरक्षित नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के आधे-अधूरे प्रयास किए जाए, तो बाहरी झटकों के कारण आपदा झेलने को भी तैयार रहना ही होगा.

वर्तमान संकट ने इन दक्षिण एशियाई देशों को भविष्य के अपने ऊर्जा परिदृश्य और सुरक्षा को लेकर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है. नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने, घरेलू नीतियों की खामियों को दूर करने और समविचारी देशों के साथ क्षेत्रीय विद्युत ग्रीड तैयार करने का विचार करके ये देश आयात पर अपनी निर्भरता को कम करते हुए अधिक ऊर्जा सुरक्षा हासिल कर सकते हैं. ये उपाय निश्चित रूप से उनकी दुविधा के लिए दीर्घकालिक समाधान हैं. इसके लिए इन देशों को महत्वपूर्ण निवेश और विश्वसनीय भागीदारी की आवश्यकता होगी.

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