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Published on Apr 23, 2025 Updated 0 Hours ago

अपने छठे शिखर सम्मेलन में BIMSTEC ने ट्रांसनेशनल अपराधों से निपटने की दिशा में निर्णायक कदम उठाए हैं. इसके लिए BIMSTEC ने क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधी समन्वय को मजबूत करने के लिए UNODC के साथ साझेदारी की है. 

चार्टर से कार्रवाई तक: BIMSTEC का संगठित अपराधों पर सर्जिकल स्ट्राइक!

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थाईलैंड की राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से BIMSTEC का छठा शिखर सम्मेलन एक वर्ष की देरी के बाद 2 से 4 अप्रैल 2025 के बीच बैंकॉक में आयोजित किया गया. इसके साथ ही यह संगठन एक और अधिक संगठनात्मक एवं कार्रवाई आधारित क्षेत्रीय संगठन बनने की दिशा में आगे बढ़ गया है. 2022 में BIMSTEC का चार्टर स्वीकारने के साथ ही संगठन ने लंबी अवधि से लंबित कानूनी आधार हासिल किया था. अब 2025 के शिखर सम्मेलन ने इसकी वजह से प्राप्त गति को तेज करते हुए अहम कूटनीतिक ढांचा मुहैया कराया है. इसमें बैंकॉक विजन 2030 तथा शिखर सम्मेलन का घोषणापत्र शामिल है. यह संगठन की लंबी अवधि में दिशा को निर्धारित करता है.

शिखर सम्मेलन के दौरान विभिन्न समझौते और साझेदारियों को भी आधिकारिक रूप प्रदान किया गया. इसमें सबसे अहम था BIMSTEC तथा यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम  (UNODC) यानी मादक पदार्थ एवं अपराधों पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय के बीच एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) अर्थात समझौता ज्ञापन पर किए गए हस्ताक्षर. 

शिखर सम्मेलन के दौरान विभिन्न समझौते और साझेदारियों को भी आधिकारिक रूप प्रदान किया गया. इसमें सबसे अहम था BIMSTEC तथा यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम  (UNODC) यानी मादक पदार्थ एवं अपराधों पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय के बीच एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) अर्थात समझौता ज्ञापन पर किए गए हस्ताक्षर. इसे एक सही समय पर उठाया गया महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा. यह MoU ऐसे समय में हुआ है जब बंगाल की खाड़ी का क्षेत्र बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहा है. इन चुनौतियों में ट्रांसनेशनल ऑर्गेनाइज्ड क्राईम यानी अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध, जिसमें ड्रग ट्रैफिकिंग यानी मादक पदार्थों की तस्करी तथा ह्यूमन स्मगलिंग यानी मानव तस्करी के साथ-साथ साइबर प्रेरित एक्सप्लोइटेशन यानी साइबर प्रेरित दोहन का समावेश है. इसे देखते हुए ही MoU पर किए गए हस्ताक्षर इस बात का संकेत देते हैं कि BIMSTEC अब गैर परंपरागत सुरक्षा ख़तरों से निपटने के लिए भी स्ट्रक्चर्ड को-ऑपरेशन यानी संगठित सहयोग करना चाहता है. यह संगठित सहयोग वह वैश्विक संगठनों के साथ मिलकर करेगा. ऐसा करते हुए वह इन ख़तरों से निपटने की अपनी बढ़ती प्रतिबद्धता को भी उजागर कर रहा है.

क्षेत्र में बढ़ते हुए ख़तरे

दक्षिण एवं दक्षिणपूर्वी एशिया को जोड़ने वाली बहुराष्ट्रीय ग्रुपिंग यानी संगठन होने के नाते BIMSTEC को ऐसे अनेक सुरक्षा ख़तरों का सामना करना पड़ता है जो आपस में जुड़े हुए हैं. इसमें ड्रग ट्रैफिकिंग, मॉडर्न डे स्लेवरी, हथियारों की तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग का समावेश है. पिछले एक दशक और विशेषत: पिछले पांच वर्षों में ये ख़तरे जटिलता और अपनी पहुंच दोनों ही मामलों में काफ़ी तेजी से बढ़े हैं और इसकी वजह से राष्ट्रीय स्तर पर इनसे निपटने के लिए होने वाली सीमित या इक्का-दुक्का करवाई भी सभी को स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है.

ड्रग्स / मादक पदार्थ 

BIMSTEC क्षेत्र में मादक पदार्थों की तस्करी के दायरे, सोफिस्टिकेशन यानी ख़तरा और जियोग्राफिक स्प्रेड यानी भौगोलिक विस्तार में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है. इसकी वजह से क्षेत्र की सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक विकास पर काफ़ी असर पड़ा है. यह इलाका दुनिया के दो सबसे बड़े मादक पदार्थ उत्पादक क्षेत्र, गोल्डन ट्रायंगल तथा गोल्डन क्रिसेंट, के बीच आता है. इस इलाके में असुरक्षित सीमाओं, इस क्षेत्र में आने वाले देशों देश की कमज़ोर क्षमताएं और गहरी पैठ बना चुके ट्रैफिकिंग नेटवर्क की वजह से स्थानीय चुनौतियां बनी रहती है

सिंथेटिक ड्रग प्रोडक्शन में हुआ इज़ाफ़ा इस इलाके के सामने मौजूद एक सबसे अलार्मिंग ट्रेंड यानी ख़तरनाक प्रवृत्ति है. सिंथेटिक ड्रग्स में मेथाम्फेटामाइन्स तथा याबा पिल्स अर्थात गोलियां शामिल हैं. इनकी उत्पत्ति म्यांमार के अशांत शान प्रदेश में हुई है. COVID-19 के बाद 2021 में सेना की ओर से किए गए तख़्तापलट के कारण अंदरूनी संघर्ष बढ़ा और ड्रग्स सिंडिकेट को थोड़ी और आज़ादी के साथ काम करने का मौका मिल गया है. ये मादक पदार्थ थाईलैंड, बांग्लादेश और भारत के उत्तरपूर्वी इलाकों की असुरक्षित सीमाओं को पार करते हुए श्रीलंका के समुद्री मार्ग का उपयोग करते हुए नेपाल तक पहुंच जाते हैं.

2023 में पूर्वी तथा दक्षिणपूर्वी एशिया में मेथाम्फेटामाइन की ज़ब्ती 190 टन की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई थी. जबकि दक्षिण एशिया क्षेत्र, विशेष रूप से बांग्लादेश और भारत, में यह 2013 में 7.2 टन थी जो 2022 में बढ़कर 20.4 टन पहुंच गई.

2023 में पूर्वी तथा दक्षिणपूर्वी एशिया में मेथाम्फेटामाइन की ज़ब्ती 190 टन की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई थी. जबकि दक्षिण एशिया क्षेत्र, विशेष रूप से बांग्लादेश और भारत, में यह 2013 में 7.2 टन थी जो 2022 में बढ़कर 20.4 टन पहुंच गई. डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) के अनुसार 2024 में भारतीय अधिकारियों ने 107.31 किलो कोकेन,  59 किलो हेरोइन, 136 किलो मेथाम्फेटामाइन और 7,350 किलो गांजा ज़ब्त किया था. 2024 के वित्त वर्ष में ज़ब्त किए गए इस माल की अवैध बाज़ार में कीमत 1,600 करोड रुपए से अधिक आंकी गई थी.

इसी प्रकार म्यांमार में भी ओपियम यानी अफीम की खेती में 2023 के बाद 33% का इज़ाफ़ा देखा गया है. यह इज़ाफ़ा विशेष रूप से शान, काचिन तथा चिन प्रदेश में हुआ है. इन क्षेत्रों में अनेक जातीय सशस्त्र समूह मादक पदार्थों के कारोबार का उपयोग करते हुए अपने ऑपरेशंस के लिए पैसा जुटाते हैं. इसकी वजह से कानून प्रवर्तन एजेंसियों का काम और भी जटिल हो जाता है. कानून प्रवर्तन एजेंसी में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार की वजह से यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है. इसकी वजह से इन आपराधिक संगठनों का आसानी से विस्तार होता है और ये लगातार फलते-फूलते रहते हैं.

मॉडर्न डे स्लेवरी यानी आधुनिक गुलामी 

जटिल होती जा रही मानव तस्करी भी अब क्षेत्रीय संगठित चिंता का कारण बन गई है. पिछले पांच वर्षों में फोर्स्ड लेबर यानी जबरन श्रम, सेक्सुअल एक्सप्लोइटेशन यानी यौन उत्पीड़न और हाल ही में साइबर स्कैम स्लेवरी अर्थात साइबर ठगी के माध्यम से गुलामी करवाना मानव तस्करी के डोमिनेंट फॉर्म्स यानी वर्चस्व वाले तरीके बन गए हैं. BOB क्षेत्र के तहत आने वाले भारत, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश के लगभग 300,000 नागरिक, जिसमें से अधिकांश शिक्षित और टेक सैवी यानी तकनीक का ज्ञान रखने वाले युवाओं का समावेश है, म्यांमार के म्यावाडी क्षेत्र में स्कैम कंपाउंड्स यानी ठगी के ठिकानों में फंसे होने की भी ख़बरें है. इन लोगों को थाईलैंड, तथा UAE जैसे देशों में नौकरी का झांसा देकर फंसाया गया था. उसके बाद उन्हें म्यांमार, कंबोडिया और लाओस से संचालित होने वाले स्कैम सेंटर्स में भेज दिया गया. ये संगठित आपराधिक गिरोह व्यापक भ्रष्टाचार के भीतर काम करते हैं और अक्सर नॉन-स्टेट आर्म्ड एक्टर्स यानी गैर सरकारी सशस्त्र खिलाड़ियों के साथ सहयोग करते हैं. इनके ऑपरेशंस को वरिष्ठ अधिकारियों, राजनेताओं, स्थानीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों और पावरफुल बिजनेस अर्थात तगड़ा कारोबारी हित रखने वालों की सहायता मिलती है. इन लोगों का सहयोग इसलिए ज़रूरी हो जाता है क्योंकि ये गिरोह कानूनविहीन माहौल में काम करते हैं.

इसी बीच परंपरागत मानव तस्करी भी कमज़ोर आबादी को प्रभावित करना जारी रखे हुए हैं. 2024 की ग्लोबल रिपोर्ट ऑन ट्रैफिकिंग इन पर्सन के अनुसार दक्षिण तथा दक्षिणपूर्वी एशिया में तस्करी का शिकार हुए अधिकांश लोगों में विशेषत: 79% लड़कियां और महिलाएं शामिल हैंइन महिलाओं को जबरन श्रम करने के लिए ले जाया गया, जबकि इसमें से एक तिहाई को यौन उत्पीड़न के काम में लगा दिया गया

ड्रग ट्रैफिकिंग, साइबर क्राइम तथा मानव उत्पीड़न के सम्मिलन यानी एक दूसरे के करीब आने की वजह से भी BIMSTEC ढांचे के भीतर एक अधिक एकीकृत और सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाना ज़रूरी हो गया है. यह बात सीमलेस यानी निरंतरता के साथ ख़ुफ़िया जानकारी को साझा करने, एक जैसे कानून प्रवर्तन मापदंड अपनाकर सीमा पार क्षमता निर्माण के साथ हासिल की जा सकती है.

मौजूदा ढांचा और उभरती आवश्यताएं

BIMSTEC ने काफ़ी पहले से ही इस बात को समझ लिया है कि बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में शांति और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए आतंकवाद और ट्रांसनेशनल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम को नियंत्रित करना बेहद अहम साबित होगा. 2009 में हुए सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, ट्रांसनेशनल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम और अवैध मादक पदार्थ तस्करी का मुकाबला करने को लेकर BIMSTEC के बीच सहयोग करना तय हुआ था. लेकिन इस दौरान हस्तारिक्षत समझौते पर 2021 में ही आगे बढ़ा जा सका, क्योंकि BIMSTEC सदस्य देशों ने इसे अपनी मंजूरी देने में देरी की थी. यह सम्मेलन ही आतंकवाद, संगठित अपराध और मादक पदार्थों की तस्करी जैसे मुद्दों पर क्षेत्रीय सहयोग को एक विस्तृत कानूनी आधार मुहैया करवाता है. इसमें प्रत्यार्पण, आपसी कानूनी सहयोग और ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने की व्यवस्था है. इन बातों की वजह से इन समस्याओं का मुकाबला करने में क्षेत्रीय स्तर पर समन्वित प्रयास करना सुगम होता है.

इस सम्मेलन में तय की गई बातों को 2005 में स्थापित किया गया BIMSTEC सब-ग्रुप यानी उप समूह टेक्नीकल एवं ऑपरेशनल आर्म यानी शाखा के रूप में मदद करता है. यह उप समूह इल्लिसिट ट्रैफिकिंग इन नार्कोटिक ड्रग्स यानी मादक औषधियों, सायकोट्रोपिक सब्सटेंसेस यानी मनोविकार जनक पदार्थों एंड प्रीकर्सर केमिकल्स की रोकथाम के लिए बनाया गया था. इसके तहत राष्ट्रीय मादक पदार्थ प्रवर्तन एजेंसियों के बीच समय-समय पर बैठकों का आयोजन, डाटा की अदला-बदली और संयुक्त क्षमता-निर्माण को लेकर प्रत्यक्ष रूप से सहयोग संभव होता है. इस सम्मेलन के कारण जमीनी स्तर पर कानूनी काम होता है, जबकि उपसमूह मादक औषधियों के ख़िलाफ़ क्षेत्रीय कार्रवाई को लेकर रोज़मर्रा के सहयोग पर ध्यान देता है.

इस सम्मेलन ने आरंभिक चरण में मानव तस्करी की उपेक्षा की थी. लेकिन यह ख़ामी अब मानव तस्करी से जुड़े अपराधों में हो रही वृद्धि के कारण काफ़ी गहरी और अहम होती जा रही है. इस बात को लेकर कार्रवाई करने के उद्देश्य से BIMSTEC के ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप ऑन काउंटर टेररिज्म एंड ट्रांसनेशनल क्राइम (JWG-CTTC) की अगस्त 2015 में हुई सातवीं बैठक में ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर एक समर्पित सब-ग्रुप स्थापित करने को लेकर सहमति बनी. लेकिन इस पर प्रगति काफ़ी धीमी है. हाल ही में इस सब-ग्रुप की तीसरी बैठक का आयोजन ढाका में 6-7 अप्रैल 2025 को किया गया था. इस बैठक में बंगाल की खाड़ी में मानव तस्करी का मुकाबला करने के लिए एक प्लान ऑफ एक्शन यानी कार्रवाई की योजना पर विशेष ध्यान दिया गया. इस दौरान हुई चर्चा के दौरान सहयोग करने के लिए एक सुरक्षित डिजिटल प्लेटफॉर्म को विकसित करने और तस्करी का शिकार हुए लोगों को रिहा करने और उन्हें स्वदेश भेजने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर्स (SOPs) तय करने पर बल दिया गया. ये दोनों ही बातें सीमा-पार सहयोग और पीड़ितों की सुरक्षा को मजबूती प्रदान करने की दृष्टि से बेहद अहम हैं.

2027 में BIMSTEC की 30 वीं वर्षगांठ आने वाली है. ऐसे में एक अधिक संपन्न और लचीली बंगाल की खाड़ी हासिल करने के लिए इस शिखर सम्मेलन में हासिल किए गए परिणामों पर काम करना बेहद आवश्यक हो गया है.

2019 तक BIMSTEC के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) के बीच नियमित वार्षिक बैठक होती थी. 2024 में यह दोबारा आरंभ हो गई है. इसके बावजूद ऑपरेशनल को-ऑर्डिनेशन, विशेषत: ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने और संयुक्त प्रवर्तन को लेकर एक अधिकृत और स्वीकृत ढांचा अब भी लंबित है. इस संगठनात्मक व्यवस्था का अभाव रियल-टाइम को-ऑपरेशन यानी सहयोग और संयुक्त कार्रवाई की राह में बाधा बना हुआ है. इसके परिणामस्वरूप कानूनी और तकनीकी ढांचों में हुई प्रगति के बावजूद BIMSTEC का क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग, तकनीकी सहयोग के लिए बेहद महत्वपूर्ण बना हुआ है. इसके बावजूद यह सहयोग बेहद बिखरा हुआ, अंडर-रिर्सोस्ड यानी संसाधनों की कमी का सामना कर रहा है. इसी वजह से उभर रहे या विकसित हो रहे ख़तरों के ख़िलाफ़ होने वाली कार्रवाई धीमी होती है. सहयोग में कमी के लिए असंतुलित राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ सहयोग पर नज़र रखकर कार्रवाई की प्रगति और जवाबदेही तय करने वाली एक केंद्रीय समन्वय व्यवस्था का अभाव ज़िम्मेदार है

MoU की अहमियत

BIMSTEC तथा UNODC के बीच हुए MoU को इन अपराधों को बेहतर तरीके से प्रबंधित करने की दिशा में उठाया गया एक व्यावहारिक बदलाव कहा जाएगा. दक्षिण तथा दक्षिणपूर्वी एशिया में अपने समन्वित कार्यक्रमों के माध्यम से UNODC ने विक्टिम प्रोटेक्शन यानी पीड़ित सुरक्षा, कानून प्रवर्तन प्रशिक्षण और ज्यूडिशियल को-ऑपरेशन यानी कानूनी सहयोग के साधन विकसित किए हैं. इन साधनों का उपयोग करते हुए सीधे तौर पर BIMSTEC की क्षमता-निर्माण कोशिशों को समर्थन दिया जा सकता है.

यह साझेदार क्षेत्र की एक और मौलिक कमी को दूर करती है. यह कमी अपर्याप्त इंटेलिजेंस बुनियादी ढांचा और ज्वाइंट ऑपरेशनल फ्रेमवर्क्स यानी संयुक्त कार्रवाई ढांचे की है. आपराधिक गिरोह तेजी से ट्रांसनेशनल हो रहे हैं और ये कानून में मौजूद कमियों का दोहन करते हैं या लाभ उठाते हैं. ये बिखरे हुए अधिकार क्षेत्र व्यवस्था और डिजिटल डोमेन को गच्चा देकर पकड़े जाने से बचते हैं. सहयोग को लेकर प्रतिबद्ध BIMSTEC के पास सोफेस्टिकेटेड इंटेलिजेंस या प्रवर्तन व्यवस्था को खड़ा करना और उसका अपने दम पर प्रबंधन करना संभव नहीं है. इसका कारण यह है कि उसके पास ऐसा करने के लिए संगठनात्मक क्षमता का अभाव है.

UNODC के साथ साझेदारी करने की वजह से अब BIMSTEC की इंटरनेशनल डाटाबेस, बेस्ट प्रैक्टिसेस, ट्रेनिंग मॉड्यूल्स और एक समान कानून बनाने के लिए तकनीकी सहयोग, संगठनों को मजबूती करने तथा प्रवर्तन की प्रभावकारिता को बढ़ाने वाले संसाधनों तक पहुंच हो गई है.

यह क्षेत्र ट्रांसनेशनल क्राइम का मजबूत एवं सहयोगात्मक ढांचे के माध्यम से ही मुकाबला कर सकता है. उसकी यह क्षमता इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता एवं मानव सुरक्षा के लिए बेहद अहम साबित होगी. 2027 में BIMSTEC की 30 वीं वर्षगांठ आने वाली है. ऐसे में एक अधिक संपन्न और लचीली बंगाल की खाड़ी हासिल करने के लिए इस शिखर सम्मेलन में हासिल किए गए परिणामों पर काम करना बेहद आवश्यक हो गया है.


श्रीपर्णा बनर्जी, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम/स्ट्रेटेजिक स्टडीज प्रोग्राम की वरिष्ठ फेलो हैं.

अनसूया बासु रॉय चौधरी, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के नेबरहुड इनिशिएटिव में वरिष्ठ फेलो हैं.

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Authors

Sreeparna Banerjee

Sreeparna Banerjee

Sreeparna Banerjee is an Associate Fellow in the Strategic Studies Programme. Her work focuses on the geopolitical and strategic affairs concerning two Southeast Asian countries, namely ...

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Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury is Senior Fellow with ORF’s Neighbourhood Initiative. She is the Editor, ORF Bangla. She specialises in regional and sub-regional cooperation in ...

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