Published on Oct 30, 2023 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन युद्ध और कोविड-19 महामारी के बाद इज़रायल-हमास का संघर्ष बाइडेन प्रशासन के सामने विदेश नीति की एक और परीक्षा है.

इज़रायल के लिए बाइडेन का दिखावटी प्यार उनकी पश्चिम एशिया नीति का चरम है!

जब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) के इज़रायल में अपनी सबसे चुनौतीपूर्ण कूटनीतिक परीक्षा के लिए ज़ोर लगा रहे थे, उस समय एक तूफान उनका इंतज़ार कर रहा था. उनके इज़रायल रवाना होने से ठीक पहले एक मानवीय संकट ने न सिर्फ़ उनकी कूटनीतिक कोशिश को पटरी से उतारने का ख़तरा पैदा कर दिया बल्कि पूरे पश्चिम एशिया के क्षेत्र को एक राजनीतिक और सुरक्षा से जुड़े उथल-पुथल की चपेट में लेने की कोशिश की. ये मानवीय संकट गज़ा में अल-अहली अरब अस्पताल पर घातक मिसाइल हमले से उत्पन्न हुआ. इस क्षेत्र में अपने सबसे पक्के सहयोगी के लिए दिखावटी प्यार के तहत बाइडेन ने जॉर्डन के किंग अब्दुल्लाह, मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी और फिलिस्तीनी अथॉरिटी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के साथ पहले से तय मुलाकात रद्द होने के बावजूद इज़रायल के दौरे पर जाने का फैसला लिया.

पूरे क्षेत्र में उभरते तनाव के बीच क्षेत्रीय कूटनीति की कोशिश शुरू से ही एक दोधारी तलवार की तरह थी. एक तरफ तो ये गज़ा पर इज़रायल के संभावित ज़मीनी हमले के असर को नियंत्रित करने और उसके अरब पड़ोसी देशों को नाराज़ होने से रोकने के वादे की तरह थी. दूसरी तरफ, इस हाल में अमेरिका के द्वारा इज़रायल को गले लगाना उसकी व्यापक क्षेत्रीय नीतियों के लिए एक निर्णायक बिंदु की तरह था. अमेरिका की ये नीति इज़रायल की तात्कालिक सुरक्षा हितों को उसकी दूसरी मौजूदा क्षेत्रीय कोशिशों की तुलना में प्राथमिकता देती है, जैसे कि सऊदी अरब-इज़रायल के बीच संबंधों को सामान्य करना और I2U2 एवं अब्राहम अकॉर्ड के ज़रिए क्षेत्र में नए सिरे से आर्थिक एवं कूटनीतिक ध्यान देना.

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के द्वारा क्षेत्र में शटल डिप्लोमेसी के ज़रिए राष्ट्रपति बाइडेन की यात्रा के लिए ज़मीन तैयार करने के बावजूद बाइडेन का दौरा क्षेत्र में व्यापक अमेरिकी हितों के लिए नीति में बदलाव को को रोक नहीं सका

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के द्वारा क्षेत्र में शटल डिप्लोमेसी (सीधी बातचीत से हिचक रखने वाले देशों में किसी मध्यस्थ के द्वारा दौरा) के ज़रिए राष्ट्रपति बाइडेन की यात्रा के लिए ज़मीन तैयार करने के बावजूद बाइडेन का दौरा क्षेत्र में व्यापक अमेरिकी हितों के लिए नीति में बदलाव को को रोक नहीं सका. अमेरिका के तात्कालिक हितों का क्षेत्रीय जटिलताओं में फंसना तय था. इसका कारण इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष की ऐतिहासिक गहराई थी. इसके बावजूद अमेरिका ने अपने हितों पर ध्यान दिया. उसके हितों में गज़ा तक मदद पहुंचाना, नागरिकों की जान की सुरक्षा, ईरान के प्रॉक्सी के रूप में काम करने वाले हिज़बुल्लाह के द्वारा उत्तर में इज़रायल के साथ लड़ाई का दूसरा मोर्चा खोलने से रोकना और सबसे बढ़कर एक पूरी तरह के क्षेत्रीय युद्ध को टालना है. अमेरिका के लिए इस क्षेत्र में एक और बड़ा हित है फिलिस्तीन में एक दीर्घकालिक और स्थिर राजनीतिक संरचना की तलाश करना जो इज़रायल की राजनीतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वैधता को स्वीकार करने के साथ-साथ उसे कायम रखती है और उसके विनाश की अपील को ख़त्म करती है.

ये अभी तक पता नहीं चल पाया है कि गज़ा के अस्पताल की तबाही, जिसकी वजह से क्षेत्रीय शांति के पटरी से उतरने का डर पैदा हो गया है, को किसने अंजाम दिया. इस घटना की वजह से पूरे क्षेत्र में अमेरिका और इज़रायल के दूतावासों के लिए ख़तरा खड़ा हो गया है और इस क्षेत्र के कई देशों में प्रदर्शनों के ज़रिए क्षेत्रीय एकजुटता की पुष्टि की गई है. इसके बीच लगता है कि बाइडेन ने इज़रायल को इस बात के लिए तैयार कर लिया है कि वो मिस्र के ज़रिए ज़रूरी सामानों की सप्लाई को गज़ा तक पहुंचने दे. लेकिन इसके बाद बाइडेन की तरफ से गज़ा के अस्पताल पर हमले के पीछे संभवत: हमास का हाथ होने का बयान देने से क्षेत्रीय तनाव को कम करने में नाकामी मिली. उनके द्वारा हमास के हमले के बाद गुस्से में गज़ा में दाखिल नहीं होने को लेकर इज़रायल को दी गई चेतावनी भी 9/11 हमलों के तुरंत बाद बिना सोची-समझी प्रतिक्रिया के तहत अमेरिका के अपने कसूर को स्वीकार करने की तरह था. बाइडेन की तरफ से बेंजामिन नेतन्याहू को अपनी प्रतिक्रिया के तहत “मौलिक भावनाओं” को हावी नहीं होने देने की सलाह समझदारी भरी हो सकती है लेकिन ये इज़रायल को बेड़ियों में जकड़ देती है.

बंटे हुए अरब देशों में बाइडेन

इस बात में कोई शक नहीं है कि गज़ा में इज़रायल की सैन्य प्रतिक्रिया ने फिलिस्तीन के मक़सद के लिए अरब देशों में एक अदृश्य लेकिन ज़ोरदार सहानुभूति की लहर पैदा कर दी है. इसने अरब देशों के भीतर और मध्य पूर्व की व्यापक भू-राजनीति में प्रतिक्रिया को बांट दिया है.

अरब क्षेत्र के भीतर दो मज़बूत ताकतों- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब- का अलग-अलग सार्वजनिक रुख है. UAE ने समझदारी बरकरार रखते हुए कुछ हद तक फिलिस्तीन की स्थिति का समर्थन किया लेकिन इसके बावजूद हमास की कार्रवाई की आलोचना की. दूसरी तरफ इज़रायल- ऐसा देश जिसके साथ UAE ने महत्वपूर्ण अब्राहम अकॉर्ड के हिस्से के रूप में 2020 में अपने संबंधों को सामान्य किया- की आलोचना को भी संतुलित रखा. वहीं दो पवित्र मस्जिदों वाले देश सऊदी अरब ने अपने समाज के भीतर एक स्तर तक लोगों के गुस्से को बाहर निकालने की अनुमति दी. उसने मस्जिदों को ज़ुमे की नमाज़ के दौरान फिलिस्तीन का समर्थन करने की इजाज़त दी और जब सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मुलाकात की तो अपने सार्वजनिक बयान में उन्होंने गज़ा के लिए मानवीय सहायता को प्राथमिकता दी. सऊदी क्राउन प्रिंस से इसी बैठक को लेकर अमेरिकी बयान में मुख्य रूप से हमास के आतंकी हमले और इज़रायल पर इसके असर पर ध्यान दिया गया.

अरब क्षेत्र के भीतर दो मज़बूत ताकतों- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब- का अलग-अलग सार्वजनिक रुख है. UAE ने समझदारी बरकरार रखते हुए कुछ हद तक फिलिस्तीन की स्थिति का समर्थन किया लेकिन इसके बावजूद हमास की कार्रवाई की आलोचना की[/pullquote]

दूसरे देशों जैसे कि इज़रायल के साथ सीमा साझा करने वाले जॉर्डन और मिस्र ने गज़ा या वेस्ट बैंक से शरणार्थियों को प्रवेश देने से इनकार कर दिया. इसके पीछे राजनीतिक कारण ये सुनिश्चित करना है कि फिलिस्तीन के लोग अपनी ज़मीन पर अधिकार न छोड़ें और बिना देश के न बनें लेकिन लाखों शरणार्थियों को लेना जॉर्डन और मिस्र के लिए सुरक्षा जोखिम के साथ-साथ आर्थिक ज़िम्मेदारी भी है. मिस्र और जॉर्डन- दोनों की अर्थव्यवस्थाएं कई वर्षों से कम विकास से जूझ रही हैं. अंत में एक ‘दूसरा’ समूह भी है ईरान, क़तर और तुर्किए का. ईरान को हमास और हिज़बुल्लाह जैसे संगठनों के एक बड़े समर्थक के तौर पर देखा जाता है, वहीं क़तर और तुर्किए हमास जैसे संगठनों के राजनीतिक दफ्तरों की मेज़बानी के बारे में जाने जाते हैं. क़तर के द्वारा हमास की मेज़बानी भी एक वजह है कि सऊदी अरब और UAE ने 2017 और 2021 के बीच इस छोटे द्वीपीय देश के ख़िलाफ़ पाबंदियां लगाई थी. हालांकि अब अमेरिका हमास के साथ मध्यस्थता के लिए एक बार फिर क़तर की तरफ देख रहा है क्योंकि लगभग 200 व्यक्ति, जिनमें अमेरिकी नागरिक भी शामिल हैं, गज़ा में बंधक बने हुए हैं. इनमें से कुछ को रिहा किया भी गया है.

देश में प्रतिक्रिया

चूंकि अमेरिका में अगले साल चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में घरेलू राजनीतिक परिदृश्य बंटा हुआ है. इतिहास में सबसे लंबे समय से अमेरिकी संसद स्पीकर के बिना है और नए स्पीकर को चुनने में नाकामी अमेरिका के घरेलू राजनीतिक परिदृश्य में राजनीतिक गतिरोध को दर्शाती है. इज़रायल-हमास संघर्ष रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच तनावपूर्ण राजनीतिक खींचतान के बीच बाइडेन प्रशासन को  दोनों रास्तों से दूर करता है. ये उस समय हुआ जब संसद के रिपब्लिकन सदस्यों ने यूक्रेन के युद्ध में फंड देने के लिए संयम और यहां तक कि हताशा दिखाई है. एक सीमित युद्ध में इज़रायल को घसीटे जाने के साथ बाइडेन को ये मौका लग रहा है कि वो यूक्रेन के साथ इज़रायल को जोड़कर कांग्रेस की फंडिंग की मंज़ूरी हासिल करें. उम्मीद के मुताबिक इज़रायल को वित्तीय और सैन्य समर्थन अमेरिका के सांसदों के बीच अलग-अलग तरीके से गूंज सकता है. मध्य पूर्व में इज़रायल अमेरिका का एक मज़बूत सहयोगी है और एक मज़बूत यहूदी कॉकस (गुट) अमेरिकी संसद के फैसलों और आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमेरिका के संकल्प को प्रभावित करता है.

मिडिल ईस्ट में दो एयरक्राफ्ट करियर भेजने का आदेश देकर बाइडेन ने अपने मज़बूत इरादे का संकेत दिया है. हालांकि मध्य पूर्व को लेकर अमेरिका की दीर्घकालीन नीति बाहरी और आंतरिक- दोनों कारणों पर निर्भर करेगी.

2024 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए बाइडेन अपने संभावित रिपब्लिकन विरोधी डोनाल्ड ट्रंप से पीछे चल रहे हैं. इज़रायल को मज़बूत सैन्य समर्थन शायद इस रुझान को पलट सकता है और एक उम्रदराज राष्ट्रपति की उनकी छवि को बदल सकता है. मिडिल ईस्ट में दो एयरक्राफ्ट करियर भेजने का आदेश देकर बाइडेन ने अपने मज़बूत इरादे का संकेत दिया है. हालांकि मध्य पूर्व को लेकर अमेरिका की दीर्घकालीन नीति बाहरी और आंतरिक- दोनों कारणों पर निर्भर करेगी. बाहरी रूप से मध्य पूर्व की नीति पर बाइडेन का बहुत कम नियंत्रण है जो कि अब अमेरिका से और भी दूर है. इसके पीछे कई कारण हैं- फिलिस्तीन का मक़सद अब सबसे ऊपर है; इस क्षेत्र में गैर-सरकारी (नॉन-स्टेट) और सरकारी (स्टेट) किरदारों के बीच आतंक की मज़बूत धुरी है; ईरान को JCPOA (ज्वाइंट कंप्रीहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन यानी ईरान के द्वारा परमाणु हथियारों को विकसित करने से रोकने वाला समझौता) में फिर से लाने में अमेरिका की कम होती क्षमता और दिलचस्पी है; और अब पूरी ताकत के साथ इज़रायल की मदद करने की आवश्यकता है. आंतरिक रूप से व्हाइट हाउस में एक रिपब्लिकन उम्मीदवार, ख़ास तौर पर डोनाल्ड ट्रंप, के आने से बिना पलक झपकाए बाइडेन की मध्य पूर्व की नीति को ठुकरा दिया जाएगा. आख़िरकार, ट्रंप पहले ही मौजूदा समस्या के लिए नेतन्याहू को ज़िम्मेदार ठहरा चुके हैं और हमास को ‘स्मार्ट’ बता चुके हैं.

इज़रायल पर हमास के हमले से पैदा क्षेत्रीय अस्थिरता ने अमेरिका को फिर से इस तरह मध्य पूर्व में घसीट दिया है जिसकी इच्छा अमेरिका ने शायद नहीं की होगी. ये बाइडेन प्रशासन के सामने यूक्रेन युद्ध और कोविड-19 महामारी के बाद विदेश नीति की एक और परीक्षा है. ये स्थिति उस समय आई है जब अमेरिका के अपने नागरिक दुनिया भर में लगी आग को बुझाने में अमेरिका की ख़ुद से तय ज़िम्मेदारी से थक चुके हैं.


विवेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

कबीर तनेजा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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Authors

Kabir Taneja

Kabir Taneja

Kabir Taneja is a Fellow with Strategic Studies programme. His research focuses on Indias relations with West Asia specifically looking at the domestic political dynamics ...

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Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research interests include America in the Indian Ocean and Indo-Pacific and Asia-Pacific regions, particularly ...

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