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सोशल मीडिया एक छोर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बचाने और दूसरे छोर पर चरमपंथी समूहों के हाथों सोशल मीडिया के ग़लत इस्तेमाल और समाज के लिए हानिकारक तत्वों को रोकने के लिए सेंसरशिप लागू करने का मुश्किल काम कर रहा है.
फेसबुक और ट्विटर सहित सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, दुनिया भर के राजनेताओं और कार्यकर्ताओं की ओर से बढ़ते दबाव का सामना कर रहे हैं, क्योंकि फर्ज़ी समाचार और प्रचार ने इन नए प्लेटफार्मों का भरपूर उपयोग किया है. एक हालिया उदाहरण यह साबित करता है कि यह समस्या प्रासंगिक है. इस के तहत अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 1996 के संचार शिष्टाचार अधिनियम (Communication Decency Act) की धारा 230 को निरस्त करने की कोशिश की. यह धारा विवादास्पद सामग्री प्रकाशित करने या प्रसारित करने के लिए तकनीकी कंपनियों को अदालत की कार्रवाई या सवाल-जवाब के ख़िलाफ़ क़ानूनी ढाल उपलब्ध कराता है. इसके तहत उन लोगों या समूहों द्वारा, जो चरमपंथियों के रूप में देखे जा सकते हैं, इन माध्यमों का उपयोग ग़लत नहीं है.
सेक्शन 230 के मुताबिक, “किसी भी सेवा-प्रदाता या इंट्रैक्टिव कंप्यूटर सेवा के उपयोगकर्ता को किसी अन्य सूचना सामग्री या प्लेटफॉर्म द्वारा प्रदान की गई किसी भी जानकारी के प्रकाशक या वक्ता के रूप में नहीं माना जाएगा.” दूसरे शब्दों में, पत्रकारों और प्रकाशकों के विपरीत गैरक़ानूनी जानकारी पोस्ट करने की ज़िम्मेदारी तकनीकी कंपनियों पर नहीं आएगी, वे किसी भी तरह की अनियमितताओं के लिए ज़िम्मेदार नहीं होंगे.
ट्रंप और अन्य राजनेताओं का मानना है कि इस तरह के क़ानून कई तरह की कमियां लिए हुए हैं. इन के चलते, ट्विटर, फेसबुक और इस तरह की अन्य कंपनियां संभावित विघटनकारी सामग्री फैलाने में सक्षम हो पाते हैं. “सेक्शन 230, जो कि ‘बिग टेक’ कंपनियों को क़ानूनी ढाल के रूप में अमेरिका का तोहफ़ा है, हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और चुनावी अखंडता, के लिए एक गंभीर ख़तरा है,” यह बात ट्रंप ने हाल ही में ट्विटर पर लिखी. उन्होंने कहा कि यदि सेक्शन 230 को “पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जाता है” तो वह अमेरिका के 740 बिलियन डॉलर के रक्षा बजट के बिल पर वह वीटो अधिकार का प्रयोग करेंगे
पत्रकारों और प्रकाशकों के विपरीत गैरक़ानूनी जानकारी पोस्ट करने की ज़िम्मेदारी तकनीकी कंपनियों पर नहीं आएगी, वे किसी भी तरह की अनियमितताओं के लिए ज़िम्मेदार नहीं होंगे.
अमेरिका के किसी राष्ट्रपति का ऐसा अल्टीमेटम और रक्षा बजट को वीटो करने की उनकी धमकी, ‘कि अगर तकनीक क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों को सेक्शन 230 का फ़ायदा उठाने दिया जाता है,’ को राष्ट्रपति की तरफ से ब्लैकमेल के रूप में देखा जा सकता है और मुमकिन है कि यह कम से कम राजनीतिक रूप से ट्विटर या फेसबुक के लिए मुसीबत बन जाए. वास्तव में, ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी के उनके अन्य साथियों ने हाल ही में तकनीकी कंपनियों और उनके मालिकों (जिन में से कई डेमोक्रेट्स के समर्थक हैं) के ख़िलाफ़ एक राजनीतिक लड़ाई शुरू की है. अमेरिकी राष्ट्रपति का तर्क है कि सोशल मीडिया चुनिंदा तौर पर रूढ़िवादी राजनेताओं की सोशल मीडिया पोस्ट्स को सेंसर करता है. इसके तहत उन्होंने ट्विटर द्वारा 2020 के चुनावों पर उनके कई ट्वीट्स को तथ्यों की जांच यानी फैक्ट चैकिंग के तहत ग़लत ठहराते हुए उनके साथ यह चेतावनी जारी की थी कि “चुनाव में धांधली को ले कर यह दावा विवादित है.
हालांकि, ट्रंप की पोस्ट पर ट्विटर की चेतावनियों (warning tags) को तकनीकी रूप से सेंसरशिप के रूप में नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि राष्ट्रपति को अभी भी इस बात की छूट है कि वह जो चाहे प्रकाशित कर सकते हैं. ट्विटर की नीति इसके बजाय एक अस्वीकरण की तरह काम करती है और दर्शकों को सूचित करती है कि टैग की गई सामग्री ग़लत, फ़र्जी या विवादास्पद हो सकती है. यह कई मीडिया आउटलेट्स की रणनीति से मिलता-जुलता है, जो बाहर से लिखने वालों या योगदानकर्ताओं के संपादकीय लेखों को इस बात के साथ चिह्नित करते हैं कि लेखकों की यह राय ज़रूरी नहीं कि संपादकीय टीम के विचार को दर्शाती हो.
ट्विटर की नीति इसके बजाय एक अस्वीकरण की तरह काम करती है और दर्शकों को सूचित करती है कि टैग की गई सामग्री ग़लत, फ़र्जी या विवादास्पद हो सकती है. यह कई मीडिया आउटलेट्स की रणनीति से मिलता-जुलता है
जुलाई में, ट्विटर ने ट्रंप के समर्थन वाले क्यूएनॉन आंदोलन (QAnon) द्वारा संचालित षड्यंत्र के सिद्धांतों को प्रचारित करने वाले कई एकाउंट्स पर प्रतिबंध लगा दिया. एक समय में इस समूह को अमेरिका में “घरेलू आतंकी ख़तरे” के रूप में देखा जाता था. नवंबर में ट्विटर ने ट्रंप के पूर्व शीर्ष सलाहकार, स्टीव बैनन को भी ब्लॉक कर दिया था, जब उन्होंने इस माध्यम पर जारी अपने एक पॉडकास्ट में सार्वजनिक हस्तियों का सिर काटने का आह्वान किया था.
यद्यपि ऐसे उपाय सेंसरशिप से मिलते जुलते हैं, उन्हें घरेलू चरमपंथ और अतिवाद के ख़िलाफ़ जारी लड़ाई के एक हिस्से के रूप में उचित ठहराया जा सकता है, क्योंकि सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा और हिंसा से जुड़ी बयानबाजी नियंत्रण से बाहर हो सकती है और अंततः सड़कों पर फैल सकती है, यदि इस पर समय रहते लगाम न लगाई जाए. उदाहरण के लिए ट्विटर के प्रवक्ता ने सीबीएस न्यूज़ को बताया कि बैनन के खाते को “ट्विटर के नियमों का उल्लंघन करने के लिए स्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया था, विशेष रूप से हिंसा के महिमामंडन पर ट्विटर की नीति के तहत.”
यह एक और समस्या है जिसके तहत तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां एक मुश्किल दुविधा में फंसी हुई हैं, यानी इंटरनेट पर स्वतंत्रता को कैसे बचाया जाए और इसी के साथ उनके दायरे को सीमित कैसे किया जाए, बिना किसी अतिरेक या चरम प्रतिक्रया के.
ऊपर वर्णित ये दो दृष्टिकोण- चेतावनियों के साथ विवादास्पद पोस्ट को टैग करना और कट्टरपंथी बिंदुओं को ब्लॉक करना- आज के समय में सबसे बेहतर समाधान प्रतीत होते हैं. आखिरकार, बड़ी तकनीक कंपनियों पर उन लोगों को अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने (जो नकारात्मक दिशा में काम कर सकते हैं) के आरोपों के जवाब में विवादास्पद पोस्ट को टैग करना लक्षित रूप से पोस्ट को ब्लॉक करना ही एकमात्र तरीका हैं, जिनके ज़रिए यह कंपनियां अपने आलोचकों को दूर रख सकती हैं और उनके हमलों से बच सकती हैं.
तकनीकी कंपनियों को सीमित प्रतिबंध लगाने और विवादित सामग्री को टैग करने की नीति का पालन करना चाहिए यदि वे वास्तव में भविष्य में स्वतंत्रता का आनंद लेना चाहते हैं.
पहली नज़र में, इस तरह के क़दम दोहरे मानकों से संचालित दिखाई दे सकते हैं. लेकिन, अगर कोई खुद को इन विशाल सोशल मीडिया कंपनियों की जगह रख कर देखे तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह एक कम बुराई वाला चुनाव है. तब, जब किसी को एक तरफ़ पूर्ण सेंसरशिप और दूसरी तरफ़ सीमित चेतावनियों (वॉर्निंग टैग व लक्षित प्रतिबंधों) में से एक को चुनना हो. तकनीकी कंपनियों को सीमित प्रतिबंध लगाने और विवादित सामग्री को टैग करने की नीति का पालन करना चाहिए यदि वे वास्तव में भविष्य में स्वतंत्रता का आनंद लेना चाहते हैं.
सोशल मीडिया एक छोर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बचाने और दूसरे छोर पर चरमपंथी समूहों के हाथों सोशल मीडिया के ग़लत इस्तेमाल और समाज के लिए हानिकारक तत्वों को रोकने के लिए सेंसरशिप लागू करने का मुश्किल काम कर रहा है. यह एक दुधारी तलवार पर चलने जैसा काम है जिसका मतलब है कि उन्हें दोनों परस्पर विरोधी समूहों के हितों को संतुष्ट करना चाहिए, जो कि बेहद मुश्किल है. विडंबना यह है कि सोशल मीडिया को अमेरिका में रूढ़िवादियों और उदारवादियों दोनों के दबाव का सामना करना पड़ा. जहां एक ओर रिपब्लिकन पार्टी ने कथित सेंसरशिप के लिए तकनीकी दिग्गजों की आलोचना की, वहीं डेमोक्रेट्स ने नक़ली समाचार और समाज में घृणा और हिंसा फैलाने वाली पोस्ट को लेकर सेंसरशिप की कमी के लिए उन्हें लताड़ा.
ऐसी स्थिति में, तकनीकी कंपनियां राजनीतिक प्रक्रियाओं की बंधक होती हैं. ऐसे में, इस तरह की मुश्किल परिस्थितियों और मुश्किल वक्त में रास्ता खोजने का एकमात्र तरीका दुनिया भर में वॉर्निंग टैग्स (warning tags) और लक्षित प्रतिबंध (targeted banning) को नियोजित करना है, फिर चाहे यह तरीक़े कितने भी विवादास्पद क्यों न लगें. इस तरह के उपाय एक आवश्यक बलिदान हैं.
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Pavel Koshkin a research fellow of the Institute of U.S. and Canadian Studies the Russian Academy of Sciences
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