Author : Maya Prakash

Published on Sep 08, 2023 Updated 0 Hours ago

चीन ने उठा-पटक के इस दौर में देशभक्ति शिक्षा विधेयक पेश किया है. ताकि वहां की कम्युनिस्ट पार्टी देश के भीतर और बाहर से अपनी नीतियों के प्रति समर्थन जुटा सके.

चीन में देशभक्ति को क़ानूनी जामा पहनाने की कोशिश

29 जून 2023 को चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के विचार के लिए एक नए देश भक्ति शिक्षा विधेयक का मसौदा पेश किया गया; पूरी संभावना है कि चीन की पीपुल्स कांग्रेस से ये विधेयक पारित हो जाएगा. इस विधेयक का अनुच्छेद एक दावा करता है कि नए क़ानून का मक़सद, ‘चीन की जनता के महान पुनर्जीवन को बढ़ावा देना है’. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसे आधुनिक दौर में ‘चीनी राष्ट्र का सबसे महान ख़्वाब’ बताते रहे हैं.

इस विधेयक का अनुच्छेद एक दावा करता है कि नए क़ानून का मक़सद, ‘चीन की जनता के महान पुनर्जीवन को बढ़ावा देना है’. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसे आधुनिक दौर में ‘चीनी राष्ट्र का सबसे महान ख़्वाब’ बताते रहे हैं.

इस क़ानून में लगभग सभी सामाजिक संस्थानों और संगठनों को देशभक्ति की शिक्षा देने के लिए ज़िम्मेदार बताया गया है. इनमें ‘बच्चों के मां-बाप और क़ानूनी अभिभावक’ भी शामिल हैं, जिन्हें ‘पारिवारिक शिक्षा में मातृभूमि के लिए प्यार सिखाने’ को भी शामिल करना होगा, और ‘प्रशासन और स्कूलों द्वारा चलाई जाने वाले देशभक्ति की शिक्षा संबंधी गतिविधियों में सहयोग देना होगा’ (अनुच्छेद 16). इस विधेयक में देशभक्ति के प्रचार प्रसार के लिए जिन अन्य संगठनों को जवाबदेह बनाया जा रहा है, उनमें कला के क्षेत्र, विज्ञान और तकनीक के संगठन, उद्योग और वाणिज्य के समूह और श्रमिक संगठन भी शामिल हैं (अनुच्छेद 12). चीन की सरकारी न्यूज़ एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक़, देशभक्ति की शिक्षा में इतिहास, संस्कृति, नायकों की उपलब्धियां और रोल मॉडल, राष्ट्रीय प्रतीक, मातृभूमि की ख़ूबसूरती और दूसरे व्यापक क्षेत्र शामिल हैं. ये शिक्षा, चीन की ख़ूबियों वाले शी जिनपिंग के समाजवाद पर विचार, मार्क्सवाद- लेनिनवाद, देंग शियाओपिंग के विचारों और माओ त्से तुंग के विचारों का अनुकरण करेगी. इंटरनेट सेवा देने वालों से भी ये अपेक्षा की जाएगी कि वो देशभक्ति के विचारों का प्रचार प्रसार करें. उनको ‘बड़े स्तर पर देशभक्ति की गतिविधियां चलाने के लिए’ नई तकनीकें भी विकसित करनी होंगी.

चीन का नया कानून

इस नए क़ानून के तहत जिन बातों को राष्ट्र विरोधी कहकर अपराध ठहराया गया है, उनमें राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, राष्ट्रीय नायकों और शहीदों की उपलब्धियों पर सवाल उठाना, आधिकारिक इतिहास पर शक करना शामिल है. सरकारी मीडिया संगठन ग्लोबल टाइम्स ने इस नए क़ानून का बचाव करते हुए ये मिसाल दी थी: ‘अगर चीन ड्रग के ख़िलाफ़ कोई क़ानून पारित करता है, तो इससे केवल ड्रग डीलर को डर लगेगा. ठीक इसी तरह चीन के देशभक्ति वाले क़ानून से वही लोग चिंतित होंगे, जो देशभक्त नहीं हैं.’

निश्चित रूप से चीन में देशभक्ति के प्रचार के मक़सद से लाया गया, ये कोई पहला क़ानून नहीं है. सच तो ये है कि इसी विधेयक में 1990 और 2000 के दशक में चलाए गए देशभक्ति के शिक्षा अभियानों का ज़िक्र किया गया है, जिनके ज़रिए देश युवा नागरिकों के बीच चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के प्रति समर्थन बढ़ाने की कोशिश की गई थी. उन अभियानों को काफ़ी कामयाब बताया गया था. पेट्रियोटिक एजुकेशन बिल का, शिक्षा की मौजूदा सुविधाओं कोई ख़ास व्यापक असर हो, इसकी संभावना कम ही है. क्योंकि चीन में तो पहले से ही सारे स्कूलों में किंडरगार्टन स्तर से देशभक्ति की तालीम देना अनिवार्य है. यहां तक कि हॉन्गकॉन्ग में भी 2020 के नेशनल सिक्योरिटी लॉ में इस बात को अनिवार्य बना दिया गया था कि ‘जागरूकता बढ़ाने के लिए’ देशभक्ति की शिक्षा को ज़रिया बनाया जाए. वहीं, 2021 में लोकतंत्र समर्थक हॉन्ग कॉन पेशेवर अध्यापकों के संघ को भंग करके, चीन समर्थक फेडरेशन ऑफ एजुकेशन वर्कर्स का गठन किया गया था. वैसे तो ये क़ानून शिक्षा में राष्ट्रवाद को शामिल करने को क़ानूनी जामा पहनाता है. लेकिन, इनमें से ज़्यादातर बातें तो चीन में पहले से ही लागू हैं, और हॉन्गकॉन्ग में भी. हालांकि, इस क़ानून से इंटरनेट सेवाएं देने वालों और सोशल मीडिया कंपनियों पर ज़रूर इस बात का दबाव बढ़ेगा कि वो पहले से कहीं व्यापक स्तर पर देशभक्ति विरोधी कंटेंट पर अपने यहां प्रतिबंध लगाएं.

अपने पूरे इतिहास में चीन के सत्ताधारी वर्ग का विदेश में रहने वाले चीनियों से अनूठा रिश्ता रहा है और ये नागरिक बदलाव की एक बड़ी शक्ति का काम करते रहे हैं.

इसके अलावा, चूंकि नया देशभक्ति क़ानून चीन से बाहर रहने वाले चीनी लोगों पर भी लागू होगा. इसलिए, विदेश में रहने वाले चीनी मूल के लोगों पर भी इसका असर पड़ेगा. आज जब पूरी दुनिया में खुफिया गतिविधियां चलाने की आशंका के कारण चीन के नागरिक पहले से ही शक की निगाह से देखे जा रहे हैं, वैसे में इस क़ानून से दुनिया के तमाम देशों में चीन विरोधी जज़्बात और भड़कने और चीनी नागरिकों के जासूसी करने की आशंका बढ़ेगी. ये बात विदेश में रहने वाले चीन के नागरिकों के ‘अधिकारों और हितों’ के ख़िलाफ़ जाती है. जबकि ये क़ानून इन्हीं बातों को बढ़ावा देने की बात करता है. अपने पूरे इतिहास में चीन के सत्ताधारी वर्ग का विदेश में रहने वाले चीनियों से अनूठा रिश्ता रहा है और ये नागरिक बदलाव की एक बड़ी शक्ति का काम करते रहे हैं. मिसाल के तौर पर सुन यात सेन, वैश्विक क्रांतिकारियों के उस समूह का हिस्सा थे, जिन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत में छिंग राजवंश का शासन उखाड़ फेंका था और आधुनिक चीन की नींव रखी थी. इसलिए, चीन विदेश में बसे अपने नागरिकों का इस्तेमाल ताइवानियों को जवाब देने के लिए करेगा. क्योंकि, आज जब चीन और ताइवान के बीच तनाव बढ़ रहा है, तो ताइवानी मूल के नागरिकों के बीच स्वतंत्रता की भावनाएं ज़ोर पकड़ रही हैं.

ये क़ानून असल में शी जिनपिंग के उस नारे के अनुरूप है जिसे वो ‘यिफा झिगुओ’ या क़ानून का राज कहते रहे हैं. पिछले एक साल के दौरान चीन ने ऐसे कई क़ानून पारित किए थे जिनसे आम आदमी के जीवन के कई पहलुओं पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का शिकंजा और कस गया है. इसमें जुलाई 2023 में लाया गया फॉरेन रिलेशंस एक्ट भी शामिल है. हालांकि, देशभक्ति की शिक्षा का विधेयक ऐसा पहला क़ानून है, जिसे, हॉन्गकॉन्ग, ताइवान, मकाऊ और विदेश में बसे चीनी नागरिकों को लक्ष्य करके बनाया गया है, ताकि उनके बीच ‘राष्ट्रीय पहचान की भावना को प्रोत्साहन’ दिया जा सके.

इस क़ानून से ज़ाहिर होता है कि चीन में ताइवान के एकीकरण की भावना और ज़ोर पकड़ रही है. ताइवान और चीन के बीच लगातार तनाव की स्थिति को चीन के राष्ट्रवादी, ‘अपमान की सदी’ के सिलसिले को जारी रखना मानते हैं. उनका दावा है कि ये सब तब ख़त्म होगा जब, ताइवान को चीन के साथ मिला दिया जाएगा.

निष्कर्ष

ताइवान इस वक़्त चीन से बढ़ते सैन्य ख़तरे का सामना कर रहा है. चीन उसे अपना ही हिस्सा मानता है, जो विद्रोह करके अलग हो गया है और उसे मुख्य भूमि में शामिल किया जाना है, वो भी ज़रूरी हुआ तो ताक़त के बल पर. चूंकि, इस समय ताइवान की शिक्षा व्यवस्था पर चीन का कोई ख़ास नियंत्रण नहीं है, ऐसे में ये देखने वाली बात होगी कि देशभक्ति की शिक्षा के उसके ये प्रयास चीन के नागरिकों और वहां के छात्रों तक कैसे पहुंचेंगे. हालांकि, इस क़ानून से ज़ाहिर होता है कि चीन में ताइवान के एकीकरण की भावना और ज़ोर पकड़ रही है. ताइवान और चीन के बीच लगातार तनाव की स्थिति को चीन के राष्ट्रवादी, ‘अपमान की सदी’ के सिलसिले को जारी रखना मानते हैं. उनका दावा है कि ये सब तब ख़त्म होगा जब, ताइवान को चीन के साथ मिला दिया जाएगा.

कुल मिलाकर, चीन का ये विधेयक उस वक़्त लाया गया है, जब चीन में आर्थिक चुनौतियां बढ़ रही हैं और राजनीतिक विरोध के सुर भी तेज़ होते जा रहे हैं. पिछले साल चीन के 100 शहरों में मकानों के ख़रीदारों ने अपना विरोध जताने के लिए होम लोन की किस्तें चुकानी बंद कर दी थीं. धीरे धीरे सुलह रही विरोध की ये चिंगारी उस वक़्त भड़क उठी थी, जब छात्रों ने बहुत से शहरों और सूबों में कोविड-19 के नाम पर लगाए गए प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था. राष्ट्रीय प्रतीकों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जोड़कर, चीन की सरकार अपनी वैधानिकता को बढ़ाने की कोशिश कर रही है. सामाजिक संस्थाओं और संगठनों तक पहुंच बनाने की कोशिश के पीछे असल मक़सद शायद यही है कि अनिश्चितता के मौजूदा दौर में कम्युनिस्ट पार्टी देश के भीतर और बाहर से अपनी नीतियों के लिए समर्थन को बढ़ाना चाहती है.

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