Published on Nov 29, 2017 Updated 0 Hours ago

चीन उस तकनीकी बदलाव से दूर रह कर इसका निशाना नहीं बनना चाहता जो भविष्य में युद्ध का मुख्य साधन बन सकता है। इसका एक कारण इसकी अपनी महत्वाकांक्षा है। साथ ही इसे यह आत्मविश्वास भी है कि ऐसे घातक स्वायत्त हथियारों के निर्माण में यह दूसरे देशों से काफी आगे रह सकता है।

आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस आधारित हथियारों से जुड़ी चीनी महत्वाकांक्षा

यह The China Chroniclesसीरीज की 39वीं कड़ी है।

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हाल ही में 80 से अधिक देश घातक स्वायत्त हथियारों (लीथल ऑटोनोमस वेपन्स सिस्टम्स यानी लाव्स) पर चर्चा करने के इरादे से जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में जमा थे। इस मुद्दे पर विशेषज्ञों के बीच तीन दौर की अनौपचारिक बातचीत के बाद सरकारी विशेषज्ञों के इस दल ने कन्वेंशन ऑन सर्टेन कन्वेंशनल वेपन्स (सीसीडब्लू) के तहत औपचारिक बैठक बुलाई। यह उन नियमों को तैयार किए जाने की लंबी और विस्तृत प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत हो सकती है जिसके तहत आखिरकार इन हथियारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

जहां स्वायत्त हथियारों की औपचारिक परिभाषा अब तक उपलब्ध नहीं है, लेकिन आम तौर पर माना जाता है कि ये ऐसे बेहद आधुनिक हथियार हैं जो आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के आधार पर एक बार इंसानी संचालक की ओर से चला दिए जाने के बाद पहले से दिए गए पैमानों के आधार पर अपना लक्ष्य चुन कर उस पर हमला कर सकते हैं। यह भी सभी जानते हैं कि आज की तारीख में ऐसा कोई पूर्ण स्वायत्त हथियार उपलब्ध नहीं है। खास कर ऐसा हथियार जो बिना इंसानी नियंत्रण के स्वायत्त तौर पर चल सके। इसके बावजूद यह नहीं भूलना चाहिए कि बहुत से विशेषज्ञों ने दावा किया है कि तेजी से होते तकनीकी विकास की वजह से ये हथियार आने वाले निकट भविष्य में सच्चाई के धरातल पर उतर सकते हैं।

नतीजतन, आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के बहुत से विशेषज्ञ, जिनमें फ्यूचरिस्ट एलॉन मस्क भी शामिल है, ने 60 गैर सरकारी संगठनों का एक समूह गठित किया है जिसे इन्होंने ‘कैंपेन टू स्टॉप किलर रोबोट्स’ नाम दिया है। इन्होंने ऐसे हथियारों के विकास और तैनाती पर पहले से ही रोक लगाने की मांग कर दी है। 20 देशों ने भी इनकी मांग का समर्थन किया है, जिनमें पाकिस्तान, क्यूबा, मैक्सिको और होली सी शामिल हैं।

विनाशकारी स्वायत्त हथियारों के नियमन को तय करने में चीन का नजरिया बहुत अहम भूमिका निभाने वाला है।

इन चर्चाओं के बीच, विशेषज्ञ खास तौर पर उन राष्ट्रों पर नजर रख रहे हैं, जो ऐसे पूर्ण स्वायत्त हथियारों को तैयार करने के बहुत करीब हैं और जिनके पास‘सह-स्वायत्त हथियार’उपलब्ध हो चुके हैं। ऐसे स्वायत्त हथियारों पर प्रतिबंध को ले कर बनने वाले नियमन में चीन का रवैया बहुत अहम साबित होने वाला है।

यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों (यूएनएससी) में चीन ही वह सदस्य है जिसने स्वायत्त हथियारों पर अंतरराष्ट्रीय कानून की सबसे पहले जरूरत बताई थी। इसने दिसंबर 2016 में ही इसके लिए अपील कर दी थी। इसने 1995 के सीसीडब्लू समझौते का हवाला देते हुए इन स्वचालित हथियारों पर भी कानूनी रूप से लागू होने वाली व्यवस्था शुरू करने की अपील की थी। 1995 के समझौते में अंधा कर देने वाली लेजर पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह मांग करते हुए चीन का कहना था कि ऐसे स्वचालित हथियार फर्क करने में सक्षम नहीं होंगे ना ही इनकी प्रतिक्रिया सही होगी और मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में जवाबदेही सुनिश्चित करना और मुश्किल हो जाएगा।

इस मामले पर चीन की ओर से आधिकारिक तौर पर पहली बार यही रवैया अपनाया गया था, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे दूसरे देशों ने जीजीई के गठन की वकालत की थी ताकि इस विषय पर और चर्चा की जा सके। हालांकि तब अधिकांश देश इस मामले पर चुप ही रहे।

अंधा कर देने वाले लेजर पर रोक लगाने वाले 1995 के सीसीडब्लू का हवाला देते हुए चीन ने विनाशकारी स्वायत्त हथियारों पर भी कानूनी रूप से बाध्यकारी नियमों की जरूरत बताई थी। यह मांग करते हुए चीन का कहना था कि ऐसे स्वचालित हथियार फर्क करने में सक्षम नहीं होंगे ना ही इनकी प्रतिक्रिया सही होगी और मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में जवाबदेहील सुनिश्चित करना और मुश्किल हो जाएगा।

इसमें हैरान होने की बात नहीं है कि बाद में जब इस साल संयुक्त राष्ट्र आम सभा (यूएनजीए) के 72वें सत्र के मौके पर पहली समिति की बैठक के दौरान इसने इस मामले में अपना रुख नरम कर लिया। इस मौके पर चीन ने यह कहना शुरू कर दिया कि स्वायत्त हथियारों का उपयोग जवाबदेही के साथ होना चाहिए। इस मामले में हथियारबंद संघर्ष को ले कर संयुक्त राष्ट्र के नियम कानूनों के मुताबिक ही जवाबदेही तय होनी चाहिए। साथ ही इसने ऐसे हथियारों की तैनाती के समय संप्रभुता और क्षेत्रीय एकता का ध्यान रखने की भी बात कही।

रवैये में यह बदलाव संभवतः कुछ हद तक तो अपने प्रतिद्वंद्वी देशों में इस लिहाज से हो रहे तकनीकी विकास की वजह से हुआ होगा। चीन खुद को उस तकनीकी विकास के निशाने पर नहीं देखना चाहेगा जो निकट भविष्य में युद्ध का सामान्य तरीका बन सकता है। कुछ हद तक इसकी वजह इसका आत्मविश्वास भी हो सकती है जिसके तहत यह मानता है कि ऐसे विनाशकारी हथियार बनाने में यह दूसरे देशों से आगे रह सकता है।

चीन में बने ड्रोन दुनिया भर में युद्ध के मैदानों में तैनात किए जा चुके हैं, लेकिन वे स्वायत्त नहीं हैं। इनमें कम से कम तीन इंसानी संचालकों की जरूरत होती है। हालांकि अब चीन ड्रोन तकनीक को ले कर काफी अहम निवेश कर रहा है ताकि लघु ड्रोन की पूरी फौज तैयार कर सके जो स्वतः संचालित हो सकें। बहुत से लोग इसे आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस का सबसे प्रभावी उपयोग कह रहे हैं। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैन्य शोध निदेशक वैंक विक्सिंग लिखते हैं: “मानवरहित युद्ध लगातार बढ़ रहा है। जहां लोग रेत में सर घुसा कर सिर्फ दुनिया की सैन्य शक्तियों का पारंपरिक हथियारों की शक्ल में मुकाबला करने में जुटे हुए हैं, तकनीकी संचालित ‘हल्के हथियार’ मुख्य किरदार संभालने को तैयार हो रहे हैं।”

और खास बात है कि खबरों में बताया जा रहा है कि चीन का एरोस्पेस उद्योग ऐसी क्रूज मिसाइल तैयार कर रहा है जिसमें अंतर्निहित इंटेलिजेंस होगी जो युद्ध में अपने लक्ष्य खुद तलाश सके। हालांकि इसके विस्तृत ब्योरे अभी उतने स्पष्ट नहीं हैं। चीन का निजी क्षेत्र भी सक्रिय रूप से ऐसे स्वायत्त रोबोट विकसित कर रहा है जिनके प्लेलोड में मामूली से संशोधन के बाद उन्हें युद्ध में तैनात किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर लीशेन इंटेलीजेंट सिस्टम की ओर से विकसित किए गए मच्छर मारने वाले रोबोट हैं। इन्हें भू आधारित प्लेटफार्म पर पदार्थ को पहचानने की क्षमता और उसका पीछा करने के एलगोरिदम की मदद से एक सेकेंड में 30-40 मच्छरों को लेजर के जरिए मारने लायक बनाया गया है। इस लघु रोबोट को अगर बड़े स्तर पर बना लिया जाए तो यह शहरी युद्ध में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसमें इंसानी सैनिकों को नहीं के बराबर खतरा होगा।

क्या इन उपकरणों को वास्तव में युद्ध में तैनात किया जा सकता है, इस बात का जवाब संयुक्त राष्ट्र में चल रही चर्चा पर निर्भर करता है। लेकिन इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि जहां बाकी दुनिया इस बात को तय करने में जुटी हुई है कि ऐसे हथियारों के लिए सीमा-रेखा क्या होनी चाहिए, बीजिंग निश्चित तौर पर बिना किसी शोर-शराबे के एक ऐसी तैयारी में जुटा है जहां आने वाले कल के सैनिक तैयार होंगे और आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस वाले हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिलेगा।

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