Author : Dadhi Adhikari

Published on Jun 20, 2022 Updated 0 Hours ago

ख़राब शासन व्यवस्था और दोषपूर्ण नीतियों ने नेपाल के आर्थिक प्रदर्शन को चोट पहुंचाई है.

नेपाल के मौजूदा आर्थिक हालात, और उससे उपजी स्थितियों की पड़ताल!

ये लेख ओआरएफ़ पर छपे सीरीज़, भारत के पड़ोस में अस्थिरता: एक बहु-परिप्रेक्ष्य अवलोकन का हिस्सा है.


नेपाल की मौजूदा आर्थिक स्थिति एक ऐसे देश के हिसाब से उम्मीदों से भरी नहीं लगती जो विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहता है. बढ़ता व्यापार घाटा, तेज़ी से कम होता विदेशी मुद्रा भंडार और आसमान छूती महंगाई ने सामान्य लोगों के जीवन को प्रभावित किया है और नेपाल की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है. रूस-यूक्रेन संघर्ष और कोविड-19 महामारी इस निराशाजनक आर्थिक स्थिति के प्रमुख कारण हैं. लेकिन सही मायनों में अच्छी शासन व्यवस्था की कमी और सरकार की तरफ़ से उदासीनता को नेपाल की वर्तमान आर्थिक गिरावट के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. 

घटता विदेशी मुद्रा भंडार 

नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेक्स) खाली हो रहा है. नेपाल राष्ट्र बैंक (एनआरबी) की इस साल अप्रैल मध्य की रिपोर्ट के मुताबिक विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 9.58 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया था. ये रक़म पिछले साल अप्रैल के विदेशी मुद्रा भंडार के मुक़ाबले क़रीब 2 अरब डॉलर कम था. इसके परिणाम स्वरूप विश्लेषक ये कह रहे हैं कि नेपाल अब अगले साढ़े छह महीने के लिए ही सामानों का आयात कर सकता है. नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार के रुझान की विस्तार से समीक्षा करने पर 2010 से दिलचस्प प्रवृत्ति का पता चलता है (आंकड़ा 1).  

नॉमिनल फॉरेक्स यानी वर्तमान क़ीमत पर फॉरेक्स में फरवरी 2020 के मध्य से फरवरी 2021 के मध्य तक उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है. लेकिन फरवरी 2021 के मध्य के बाद इसमें गिरावट शुरू हो गई. विदेशों से भेजी गई रक़म नेपाल में विदेशी मुद्रा भंडार का मुख्य स्रोत है और इसका योगदान कुल विदेशी मुद्रा भंडार में क़रीब 50 प्रतिशत है, वहीं आयात पर होने वाला खर्च फॉरेक्स में कमी का मुख्य कारण है.

नॉमिनल फॉरेक्स यानी वर्तमान क़ीमत पर फॉरेक्स में फरवरी 2020 के मध्य से फरवरी 2021 के मध्य तक उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है. लेकिन फरवरी 2021 के मध्य के बाद इसमें गिरावट शुरू हो गई. विदेशों से भेजी गई रक़म नेपाल में विदेशी मुद्रा भंडार का मुख्य स्रोत है और इसका योगदान कुल विदेशी मुद्रा भंडार में क़रीब 50 प्रतिशत है, वहीं आयात पर होने वाला खर्च फॉरेक्स में कमी का मुख्य कारण है. दिलचस्प बात ये है कि महामारी के बावजूद नेपाल में विदेशों से भेजी गई रक़म में बढ़ोतरी हुई है जबकि फरवरी 2020 के मध्य से लेकर फरवरी 2021 के मध्य की अवधि में आयात में महत्वपूर्ण रूप से गिरावट आई है और इसी वजह से विदेशी मुद्रा भंडार में असामान्य बढ़ोतरी दर्ज की गई. विश्व बैंक विदेशों से भेजी गई रक़म में बढ़ोतरी के पीछे छह मुख्य कारण बताता है जिनकी भूमिका कोविड-19 के प्रकोप के दौरान रही होगी. नेपाल में मुख्य रूप से दो कारणों की भूमिका रही होगी. पहला कारण ये कि विदेशों में रहने वाले लोगों ने महामारी के दौरान औपचारिक माध्यमों जैसे कि बैंक और दूसरी वित्तीय सेवा कंपनियों के ज़रिए पैसा भेजा. अनौपचारिक माध्यम (हुंडी), जो कि औपचारिक माध्यमों के बदले लोगों के नेटवर्क के ज़रिए पैसा भेजने की प्रणाली है, नेपाल में रक़म भेजने के सबसे लोकप्रिय माध्यमों में से एक है और हो सकता है कि महामारी के दौरान ये काम नहीं कर रहा होगा. 

विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का दूसरा संभावित कारण विदेशों में रहने वाले नेपाल के लोगों के द्वारा देश में अपने परिवार की आर्थिक सुरक्षा के लिए बड़ी मात्रा में पैसा भेजना हो सकता है. नेपाल में अपने परिवार के पास पैसा भेजने के लिए या तो उन्होंने अपनी बचत के पैसे का इस्तेमाल किया होगा या कर्ज़ लेकर भेजा होगा. लेकिन कोविड-19 से जुड़ी पाबंदियों में ढील के बाद विदेशों से भेजी जाने वाली रक़म में कमी देखी गई है. ये रुझान उस दौरान फरवरी 2022 के मध्य तक विदेशी मुद्रा भंडार की मात्रा में कमी से भी दिखता है. फरवरी 2021 के मध्य के बाद विदेशी मुद्रा भंडार में कमी का एक और कारण आयात को फिर से शुरू करना भी हो सकता है जिस पर महामारी की वजह से रोक लगा दी गई थी. 

आंकड़ा 1: पिछले कुछ वर्षों के दौरान नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार 

आंकड़े का स्रोत: फॉरेक्स भंडार (नेपाल राष्ट्र बैंक), प्रति व्यक्ति जीडीपी (विश्व बैंक), अमेरिका की महंगाई (मिनियापोलिस का फेडरल रिज़र्व बैंक)

महंगाई से समायोजित विदेशी मुद्रा और प्रति व्यक्ति जीडीपी के अनुपात में विदेशी मुद्रा में भी फरवरी 2021 के मध्य के बाद गिरावट आई है. इससे संकेत मिलता है कि विदेशी बाज़ार में नेपाल की क्रय शक्ति में कमी आई है. लेकिन ये ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम स्तर पर नहीं हैं. ये सभी मूल्य फरवरी 2015 के मध्य के मूल्य के लगभग समान हैं. फरवरी 2015 के मध्य से पहले सभी तीन सूचकों के मूल्य वर्तमान स्तर से नीचे थे. 

महंगाई से समायोजित विदेशी मुद्रा और प्रति व्यक्ति जीडीपी के अनुपात में विदेशी मुद्रा में भी फरवरी 2021 के मध्य के बाद गिरावट आई है. इससे संकेत मिलता है कि विदेशी बाज़ार में नेपाल की क्रय शक्ति में कमी आई है. लेकिन ये ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम स्तर पर नहीं हैं. 

इन रुझानों के आधार पर हम किस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं? वैसे तो विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है लेकिन ये अभी भी नेपाल की अर्थव्यवस्था को गंभीर ख़तरा पहुंचाने के स्तर पर नहीं हैं. हालांकि रुझानों को लेकर नीतिगत ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि नेपाल व्यापार घाटे का सामना कर रहा है. 

व्यापार घाटे की पुरानी समस्या 

आयात में बढ़ोतरी हो रही है जबकि निर्यात अपेक्षाकृत कम है. नेपाल में ज़्यादा व्यापार घाटा कोई नया तथ्य नहीं है. (आंकड़ा 2)

आंकड़ा 2: नेपाल में विदेशी व्यापार की दिशा 

आंकड़े का स्रोत: नेपाल राष्ट्र बैंक (मौजूदा समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिति)

जैसा कि दिखाया गया है, नेपाल में व्यापार घाटा हर साल लगातार बढ़ता जा रहा है. 2003-04 और 2019-20 के बीच नेपाल के व्यापार घाटे में 13 गुना बढ़ोतरी हुई. सबसे ज़्यादा चिंताजनक तथ्य ये है कि नेपाल में आयात-निर्यात का अनुपात काफ़ी बढ़ गया है. इसका मतलब ये है कि 2003-04 में 1 नेपाली रुपये के निर्यात के बदले नेपाल ने 2.5 नेपाली रुपये के मूल्य के सामान का आयात किया है. लेकिन 2019-20 में ये अनुपात ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गया. इस साल 1 नेपाली रुपये के निर्यात के बदले नेपाल ने 12 रुपये के मूल्य का सामान आयात किया. ये रुझान नेपाल की अर्थव्यवस्था के द्वारा सामना किए जा रहे संरचनात्मक मुद्दे का संकेत देता है. अपर्याप्त निजी और सरकारी निवेश की वजह से नेपाल में सीमित उत्पादन होता है. इसमें बढ़ोतरी ज़रूरी है, तभी निर्यात बढ़ेगा. मौजूदा कर नीति, बाज़ार का आकार, उत्पादन के लिए कच्चे सामान की उपलब्धता, मज़दूरी की दर, तकनीक की गुणवत्ता, परिवहन की लागत और श्रम उत्पादकता नेपाल में निवेश के लिए मददगार नहीं हैं. इन सूचकों पर ख़राब प्रदर्शन ने निवेश को हतोत्साहित किया है जिसका नतीजा कम स्तर पर उत्पादन और उत्पादकता के रूप में सामने आया है. विस्तार से कहें तो नेपाल की जनसंख्या के मामले में परिभाषित बाज़ार का आकार छोटा है और प्रति व्यक्ति जीडीपी (1,155 अमेरिकी डॉलर) भी दक्षिण एशिया में अफ़ग़ानिस्तान के बाद सबसे कम है. एशियाई उत्पादकता संगठन के एक अनुमान के अनुसार नेपाल के श्रम बल की उत्पादकता दक्षिण एशिया में सबसे कम है. इसी तरह विश्व विकास के सूचक के मुताबिक़ नेपाल में प्रति कामगार वैल्यू में बढ़ोतरी बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और चीन से क्रमश: 2.3, 3.3, 6.2 और 15.7 गुना कम है. 2019 में नेपाल में प्रति कामगार के द्वारा वैल्यू में बढ़ोतरी 1,749 अमेरिकी डॉलर थी जबकि चीन के लिए ये आंकड़ा 27,436 अमेरिकी डॉलर था. दूसरी तरफ़ अलग-अलग स्रोतों से मिले आंकड़े बताते हैं कि नेपाल में कामगारों की न्यूनतम मज़दूरी दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा है. उत्पादन और निर्यात पर असर डालने वाला एक और महत्वपूर्ण कारण आधारभूत ढांचे की गुणवत्ता है. विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक़ आधारभूत ढांचे की गुणवत्ता एक से सात के मानक पर जवाब देने वाले लोगों की राय पर आधारित है. एक का मतलब है अत्यंत अविकसित और सात का अर्थ है दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में शामिल. ऊपर के आंकड़े प्रमाणित करते हैं कि निवेश के माहौल, उत्पादन और उत्पादकता के मामले में नेपाल सबसे कमज़ोर स्थिति में है. इन सब कारणों से निर्यात के मामले में प्रदर्शन ख़राब होता है. नेपाल से होने वाला निर्यात वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मामले में पिछड़ जाता है क्योंकि यहां उत्पादन की लागत ज़्यादा है और उत्पादकता कम है. 

विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक़ आधारभूत ढांचे की गुणवत्ता एक से सात के मानक पर जवाब देने वाले लोगों की राय पर आधारित है. एक का मतलब है अत्यंत अविकसित और सात का अर्थ है दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में शामिल. 

कम उत्पादकता और उत्पादन की ज़्यादा लागत ने भी नेपाल को कम उत्पाद आधार वाला देश बना दिया है. नेपाल का मूल उत्पाद बड़ी मात्रा में निर्यात नहीं किया जाता है. ज़्यादा मात्रा में निर्यात वाले अधिकतर उत्पादों को दूसरे देशों से आयात किया जाता है और इसमें छोटे स्तर पर सुधार करके भारत को निर्यात किया जाता है. उदाहरण के लिए, 2019 में जहां नेपाल से निर्यात का सबसे बड़ा सामान पाम का तेल था, वहीं 2020 में ये सोयाबीन तेल था. ये दोनों तेल मूल रूप से नेपाल के उत्पाद नहीं हैं. कालीन, जूट, चाय पत्ती, कॉफी और इलायची ऐसे बड़े उत्पाद हैं जिनका नेपाल में उत्पादन और निर्यात होता है. 

बढ़ती महंगाई

नेपाल राष्ट्र बैंक के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ नेपाल में महंगाई की दर 7.28 प्रतिशत है. आने वाले दिनों में महंगाई की दर में बढ़ोतरी की आशंका है. नीति बनाने वालों को भरोसा है कि क़रीब 2 प्रतिशत या उससे कम की महंगाई दर स्वीकार्य है. 2015 के विनाशकारी भूकंप के बाद पिछले कुछ समय में नेपाल की महंगाई दर 4.25 प्रतिशत के इर्दगिर्द घूम रही है (2017-2021 के लिए औसत). वर्तमान में ज़्यादा महंगाई की वजह रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई चेन में आई दिक़्क़त, पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमत में बढ़ोतरी, अमेरिकी डॉलर की बढ़ती क़ीमत, देश में ताज़ा स्थानीय स्तर के चुनाव के दौरान विशाल खर्च (लगभग 100 अरब नेपाली रुपया जो जीडीपी का क़रीब 2.5 प्रतिशत है) के साथ-साथ विलासिता के सामानों के आयात पर लगाया गया प्रतिबंध है.   

बढ़ती खाद्य असुरक्षा 

वर्तमान आर्थिक स्थिति यानी बढ़ती महंगाई और कम होता विदेशी मुद्रा भंडार खाद्य सुरक्षा की स्थिति को बिगाड़ सकता है. एक अनुमान के मुताबिक़ नेपाल के 46 लाख लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. खाने-पीने की चीज़ों की बढ़ती क़ीमत और भी ज़्यादा लोगों को खाद्य तक पहुंच से दूर कर सकती है. इस बीच भारत समेत कम-से-कम 14 देशों ने खाद्य निर्यात बंद कर दिया है. चूंकि नेपाल अनाज का आयातक है, इसलिए खाद्य निर्यात पर इन देशों के प्रतिबंध से स्थिति और ज़्यादा ख़राब हो सकती है. 

क्या नेपाल में भी श्रीलंका जैसी स्थिति होने वाली है? 

नेपाल के आम लोगों में ये डर बढ़ता जा रहा है कि क्या नेपाल भी श्रीलंका जैसी स्थिति का सामना करने जा रहा है. इसकी वजह महंगाई की बढ़ती दर और व्यापार घाटे में बढ़ोतरी है. लेकिन श्रीलंका और नेपाल की आर्थिक संरचना अलग-अलग है और इसकी वजह से नेपाल श्रीलंका जैसी स्थिति से बच सकता है. मिसाल के तौर पर, श्रीलंका के मुक़ाबले नेपाल पर विदेशी कर्ज़ काफ़ी कम है. इसके अलावा नेपाल की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान अपेक्षाकृत कम है. सटीक तौर पर कहें तो श्रीलंका को इस साल 4 अरब अमेरिकी डॉलर के विदेशी कर्ज़ का भुगतान करना है जबकि नेपाल को इस साल सिर्फ़ 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी कर्ज़ उतारना है. इसी तरह, नेपाल की जीडीपी में पर्यटन का योगदान लगभग 3 प्रतिशत है जबकि श्रीलंका की जीडीपी में पर्यटन का योगदान क़रीब 12 प्रतिशत है. इस तरह इन दो कारणों से नेपाल की स्थिति श्रीलंका की तरह होने की आशंका कम है. इसके अलावा नेपाल को जिस विदेशी कर्ज़ का भुगतान करना है, उसकी संरचना श्रीलंका से अलग है. नेपाल की स्थिति में उसके कर्ज़ में मुख्य रूप से सॉफ्ट लोन है जिस पर कम ब्याज़ दर देना पड़ता है जबकि श्रीलंका के विदेशी कर्ज़ में ज़्यादातर हिस्सा व्यावसायिक कर्ज का है. 

श्रीलंका के मुक़ाबले नेपाल पर विदेशी कर्ज़ काफ़ी कम है. इसके अलावा नेपाल की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान अपेक्षाकृत कम है. सटीक तौर पर कहें तो श्रीलंका को इस साल 4 अरब अमेरिकी डॉलर के विदेशी कर्ज़ का भुगतान करना है जबकि नेपाल को इस साल सिर्फ़ 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी कर्ज़ उतारना है.

नेपाल की वर्तमान आर्थिक स्थिति इस बात के लिए ख़तरे की घंटी बजाती है कि अब समय आ गया है कि देश उत्पादन बढ़ाने और उत्पादकता की तरफ़ उचित क़दम उठाने की शुरुआत करे. ख़राब शासन व्यवस्था, ख़ास तौर पर पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, प्रभाव और कार्यकुशलता की कमी सबसे ज़्यादा चिंता की बात हैं. पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को प्रोत्साहन देने वाली प्रमाण आधारित आर्थिक नीतियां, उन्हें प्रभावशाली ढंग से लागू करना और बेहद कुशल मानव संसाधन की मदद से श्रीलंका की तरह आर्थिक संकट से नेपाल को बचाया जा सकता है. अफ़सोस की बात ये है कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था और नौकरशाही इस तरह की पहल के ख़िलाफ़ लग रही है. नेपाल की शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का बोलबाला है.  

देश की अर्थव्यवस्था अभी भी विदेश से भेजी गई रक़म और परंपरागत खेती पर निर्भर है. इसलिए अगर इन मुद्दों का समाधान नहीं किया गया तो नेपाल की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लग सकता है. इस लेख को नेपाल योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और न्यूयॉर्क में यूएनडीपी के एशिया एवं पैसिफिक के लिए क्षेत्रीय ब्यूरो (आरबीएपी) के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. स्वर्णिम वागले की इस टिप्पणी से समाप्त करना उचित होगा कि, “हम आर्थिक सूचकों और संरचना के मामले में नहीं  बल्कि ख़राब शासन व्यवस्था और दोषपूर्ण नीतियों के मामले में श्रीलंका की तरह हैं.

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