Author : Sunjoy Joshi

Published on Oct 11, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 100वीं सालगिरह मनाई गई. इस मौके पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नए अंदाज में ‘माओ जैकेट’ पहन कर लोगों के सामने आये

अमेरिका बनाम चीन: विश्व पर कोविड काल का काला साया

चीन की बढ़ती शक्ति, और अमेरिका के साथ उसके बढ़ते तनाव को कई क्षेत्रों में महसूस किया जा रहा है. चीन के  आक्रामक रवैये ने अमेरिका और चीन को टकराव के मार्ग पर ला खड़ा कर दिया है. नये समीकरणों के दरमियान अमेरिका की नीति भी में भी विस्तार हुआ है — मसलन, ऑकस संधि जिसके माध्यम से इंडो-पैसिफिक़ में अमेरिका लगातार अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश में लगा है.  चीन के बढ़ते आक्रामक रवैये का ताज़ा उदाहरण ताईवान है, जहां एयर डिफेंस ज़ोन में पिछले दिनों लगातार बढ़ती संख्या में चीन के आधुनिकतम फाइटर विमानों ने प्रवेश किया है.

इसी वर्ष, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 100वीं सालगिरह मनाई गई. इस मौके पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नए अंदाज़ में माओ जैकेट पहन कर लोगों के सामने आये. वैसे तो यह पहली बार नहीं था जब अपने भाषण में शी जिनपिंग ने राष्ट्रीयता का सहारा लिया हो, लेकिन इस मौके पर उनके शब्दों में एक नये किस्म का पैनापन था. भाषण में उन्होंने चीन की जनता को चीन पर मंडराते ख़तरों से आगाह़ किया. उन्होने स्पष्ट किया कि चीन किसी के दबाव में आने वाला नहीं है क्योंकि अब चीन और चीनी सभ्यता का समय आ चुका है. उन्होंने समस्त प्रतिकूल शक्तियों को चेतावनी दी कि उनके सामने चीन की 1.4 अरब जनता फ़ौलादी दीवार बन कर खड़ी है, जिससे टकराकर वे चकनाचूर हो जाएंगे. चीन में शी जिनपिंग के काल में एक लोकलुभावन राष्ट्रवाद नए पायदान पर देखा गया.

चीन की संवैधानिक व्यवस्था में फेरबदल कर चीन के किसी भी राष्ट्राध्यक्ष पर दो सत्र तक शासन सीमित करने वाले  नियमों को शिथिल कर शी जिनपिंग ने अपने लिए जीवन पर्यन्त राज करने का मार्ग पहले ही प्रशस्त कर लिया था. 

चीन की संवैधानिक व्यवस्था में फेरबदल कर चीन के किसी भी राष्ट्राध्यक्ष पर दो सत्र तक शासन सीमित करने वाले  नियमों को शिथिल कर शी जिनपिंग ने अपने लिए जीवन पर्यन्त राज करने का मार्ग पहले ही प्रशस्त कर लिया था. अब अगले वर्ष सम्पन्न होने वाली कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय काँग्रेस में अपने एकछत्र राज्य पर मोहर लगाने की ही देर है — कोई नहीं है जो पार्टी में शी जिनपिंग को इस पद के लिए टक्कर दे सके.

नया राष्ट्रवाद देश पर हावी है क्योंकि इसके सहारे ही शी जिनपिंग अपनी मंजिल साकार करेंगे. राष्ट्रवाद के चलते चीन अब अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में प्रतिद्वंदी शक्तियों को ललकार रहा है — मक़सद यह देखना कि किसमें कितना दम है.

ये एक ख़तरनाक खेल है और इसके जवाब में अमेरिका ने एक तरफ़ नई AUKUS संधि की घोषणा की है, साथ ही वो क्वॉड पर भी ज़ोर देने लगा है.

शी का हर कदम और हर निर्णय चाहे वो राजनीति के क्षेत्र में हो या आर्थिक क्षेत्र में, बस एक ही उद्देश्य से लिया जा रहा कि, किसी भी तरह से हर हाल में 2022 के चुनावों में चीन की सत्ता का कमान एक बार फिर से शी जिनपिंग के हाथों में हो.

कम्युनिस्ट पार्टी का निर्विरोध नेता

शी जिनपिंग का प्रयास है की न सिर्फ़ सुरक्षा, बल्कि आर्थिक व्यवस्था पर भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और उनका पूरा  दबदबा कायम रहे. उन्होंने पहले से एक नियोजित ढंग से धीरे-धीरे अपने सभी विरोधियों को एक-एक कर अपने रास्ते से हटा दिया. इस प्रकार जिनपिंग की जुलाई माह में देखी गयी शैली उनके चीन पर एकछत्र राज्य कायम रखने के प्रयास का हिस्सा है. नए चीनी राष्ट्रवाद कि जड़ में काफी हद तक चीन की अंदरूनी सियासत का भी योगदान है.

चीन के तीन दशक के विकास की दौड़ देखे, तो देंग जियाओपिंग ने इसकी नींव रखी थी अपनी ‘Great International Circulation Strategy’ से — निर्माण करो और विश्व भर को निर्यात करो — यह बन गया चीन का एक मात्र ध्येय. नीति सफल हुई, देश ने गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र मे अपार सफलता हासिल की.

पर चीन और अमेरिका का टकराव हर क्षेत्र में ज़ोर मार रहा है. ऐसे में देशों के सामने दुविधा है की वे इस टकराव से कैसे जूझे? टकराव है भी, मगर टकराव के बीच अमेरिका और चीन आपस में बातचीत का दौर भी जारी रखने के इच्छुक दिख रहे हैं. दोनों देशों के सामने दुविधा है कि वे इस आने वाले टकराव को कैसे रोकें?

चीन को आशा थी की ट्रंप के जाने के बाद चीनी अमेरिकी संबंधों के प्रति नए प्रशासन के रुख में बदलाव आएगा — लेकिन हुआ उल्टा ही. अमेरिका ने QUAD को सशक्त किया — जहां ट्रंप एकतरफ़ा निर्णय ले मित्र राष्ट्रों को आशंकित कर रहे थे, वहां पुराने संगी-साथियों को आश्वस्त करने का नए प्रशासन ने प्रयास किया. पर चीनी माल पर टैरिफ निरंतर वही रहे. और चाहे टेक्नोलॉजी का क्षेत्र, या कोई और स्ट्रैटेजिक प्रतिद्वंदिता बढ़ती ही गई.

दूसरी ओर हमने देखा की वाहवे पर टेक्नोलॉजी प्रतिबंध कायम रहे, लेकिन वाहवे की CFO कैथी मेंग को 3 साल बाद आज़ाद भी कर दिया गया और वे अपने घर वापस लौट सकीं. तीन वर्ष तक चल रही बंधक सौदेबाजी का अंततः अंत हुआ. और जब कैथी मेंग देश लौटी तो उनका पुरज़ोर स्वागत हुआ. स्वदेश लौटी कैथी मेंग ने देश पहुँचते ही सब से पहले अपनी मातृभूमि को नमन किया.

याद रहे की इस घटना के नेपथ्य में पिछले कुछ महीनों से चीनी कंपनियों पर वहां की सरकार का ऐसा हथौड़ा चला है की बाज़ार पशोपेश में थे. चीनी सरकार ने कैथी मेंग के ज़रिये अपनी निजी कंपनियों को संदेश दे दिया कि राष्ट्रहित में कार्यरत कंपनियों को चीन की सरकार का भरपूर सहारा रहेगा. यदि पुराने चीन में राष्ट्र की शय में पूंजीवाद पनपा तो नए चीन में पूंजीवाद का प्रणेता और अगुआई करने वाला, राष्ट्र ही होगा. स्पष्ट है कि इस नए युग में चीन की निजी कंपनियां को भी देश के और कम्युनिस्ट पार्टी के उद्देश्यों को पूरा करना होगा. नए चीन में निजी पूंजी का स्वरूप का क्या होगा और उसे राष्ट्र हित में क्या भूमिका निभानी है – फैसला कम्युनिस्ट पार्टी करेगी.

राष्ट्रपति शी की मानें तो जिसे डूबना है वो डूबे, जिसको पैसे का नुकसान हो रहा है वो हो जाये, बस आम जनता पर इसका असर न हो. उसकी सुरक्षा देश की प्राथमिकता है. फिर चाहे देश के निवेशक हो या अंतरराष्ट्रीय, किसी का भी पैसा डूबे, फर्क़ नहीं पड़ता है.

इस दृष्टि से चीन में कार्यरत बड़ी इंटरनेट कंपनियां पर जो पाबंदी लगाई जा रही है, कंपनियों पर जो नकेल कसा जा रहा है उस को भी समझने की आवश्यकता है.
चीन के तीन दशक के विकास की दौड़ देखे, तो देंग जियाओपिंग ने इसकी नींव रखी थी अपनी ‘Great International Circulation Strategy’ से — निर्माण करो और विश्व भर को निर्यात करो — यह बन गया चीन का एक मात्र ध्येय.
नीति सफल हुई, देश ने गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र मे अपार सफलता हासिल की. चुनिन्दा निजी चीनी कंपनियों का अंतर-राष्ट्रीयकरण देखा गया, जिससे वे Google-Facebook-Amazon सरीकी कंपनियों की बराबरी करने लगीं. साथ ही, रियल एस्टेट के क्षेत्र में कर्ज़ की मात्रा ऐसी बढ़ी, पूँजी का इतना विस्तार देखा गया की अटकलें लगाने लगी थीं की चीन विकट आर्थिक संकट के कगार पर खड़ा है.

कोविड की आड़ में नई रणनीति

ऐसे में कोविड ने चीन को एक मौका दिया. चरमराती विश्व व्यवस्था के बीच चीन की विकास दर बराबर कायम रही.  कम्युनिस्ट पार्टी को लगा की यही मौका है गरमाती अर्थव्यवस्था पर ठंडा-ठंडा पानी उड़ेलना का.
अब न शी जिनपिंग ने कोविड काल में नींव रखी अपनी नयी ‘Dual Circulation Strategy’ की — एक तरह से आत्मनिर्भर चीन जो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी बने. विश्व के लिए निर्माण हो लेकिन अर्थव्यवस्था का आधार स्तम्भ घरेलू बाजार हो. निजी कम्पनियां देश हित से जुडें. इसके चलते अब जो बड़ी कम्पनियां हाथ से बहार निकल सकती थीं, उनका कद छांटने का कार्य शुरू हुआ.
अमेरिका सरीके चीन में भी इंटरनेट कम्पनियां ज़्यादा शक्तिशाली हो गयी थी उन पर नकेल कसना आवश्यक समझा गया — Tencent और Ali Baba की आपसी होड में देश या जनता की सुविधा दर किनार होने लगी थी. बस उन पर शिकंजा कस दिया गया और वही हुआ Evergrande के साथ.

नए युग के चीनी लक्षणों वाले साम्यवाद का बिगुल बजा अब शी जिंपिंग माओ से तुंग और देंग सियाओपेंग जैसे चीन के प्रणेता नेताओं के बीच अपनी गिनती देखते हैं.

राष्ट्रपति शी की मानें तो जिसे डूबना है वो डूबे, जिसको पैसे का नुकसान हो रहा है वो हो जाये, बस आम जनता पर इसका असर न हो। उसकी सुरक्षा देश की प्राथमिकता है. फिर चाहे देश के निवेशक हो या अंतरराष्ट्रीय, किसी का भी पैसा डूबे, फर्क़ नहीं पड़ता है.

इसका परिणाम हो सकता है की विदेशी कंपनियां चीन में पैसा लगाने से कतरायें और चीन की अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़े, पर संदेश स्पष्ट है. चीन मूलतः ‘सोशलिस्ट’ देश है. समय आ गया है कि चीन अब नये युग के साम्यवाद का हिमायती बने. नए चीन को टेक्नोलॉजी क्षेत्र में होड़ लेनी है अमेरिका से, उसे तकनीक का बादशाह बनना है.

नए युग के चीनी लक्षणों वाले साम्यवाद का बिगुल बजा अब शी जिंपिंग माओ से तुंग और देंग सियाओपेंग जैसे चीन के प्रणेता नेताओं के बीच अपनी गिनती देखते हैं.

पर क्या विश्व लीडर बनने के लिए चीन तैयार है?
विश्व नेता बनने में चीन को अभी समय लगेगा. लेकिन चीन आज प्रतिद्वंदी अमेरिका को जगह-जगह ललकार कर देख रहा है कि वह कहाँ तक जा सकता है.
ललकार न सिर्फ़ अमेरिका को है, बल्कि हर ऐसे देश को जो अमेरिका का अपना मित्र मान कर चीन के खेमे से दूर रहना चाहता है. ऐसे समस्त देशों के लिए चीन समस्या उत्पन्न कर देखना और दिखाना चाहता है कि अमेरिका से दोस्ती वास्तव में कारगर है भी — या नहीं.

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