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रूस में चीन से होने वाले निवेश में उछाल आया है, हालांकि इससे अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों पर संप्रभुता और नियंत्रण के संभावित नुक़सान से जुड़ी चिंताएं भी पैदा होती हैं.
चीन और रूस के आपसी संबंध बेहद पुराने, बहुआयामी और जटिल हैं. इस रिश्ते की जड़ें 17वीं सदी तक जाती हैं, जब चीन के मिंग राजवंश ने मौजूदा सुदूर पूर्वी रूस के इलाक़ों पर जबरन कब्ज़ा जमा लिया था (1858-60). सालों तक दोनों देशों के बीच कभी दोस्ती तो कभी दुश्मनी बनी रही है. बहरहाल, हाल के दशकों में दोनों में नज़दीकियां बढ़ी हैं. दोनों ने सामरिक भागीदारी बनाई है और अमेरिकी नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती देना शुरू कर दिया है. अर्थव्यवस्थाओं की पूरकताएं, मिलती-जुलती राजनीतिक व्यवस्थाएं, भौगोलिक क़रीबी और समान रूप वाले सामरिक लक्ष्यों ने दोनों प्राचीन सभ्यताओं को और क़रीब लाने में निर्णायक भूमिका निभाई है.
4 फरवरी 2022 को बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ‘बिना किसी सीमा वाली साझेदारी’ का एलान किया ‘जो गठजोड़ से आगे निकल जाती है.’
4 फरवरी 2022 को बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ‘बिना किसी सीमा वाली साझेदारी’ का एलान किया ‘जो गठजोड़ से आगे निकल जाती है.’ इसके बाद जारी साझा बयान में कहा गया कि ऐसी द्विपक्षीय क़वायद, शीत युद्ध के समय के किसी गुप्त या परोक्ष गठजोड़ से कहीं ज़्यादा लोचदार हैं. साथ ही दोनों सहयोगियों ने अमेरिका की अगुवाई वाली मौजूदा उदारवादी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को पलटने या ख़त्म करने का निश्चय भी जताया. महज़ 20 दिनों के बाद रूस ने चीन के साथ रिश्तों में आई इस नई मज़बूती का परीक्षण करते हुए यूक्रेन की पूर्वी सीमाओं पर ‘विशेष सैन्य कार्रवाई’ लॉन्च कर दी.
इस कार्रवाई का ज़बरदस्त प्रभाव हुआ. यूक्रेन संघर्ष छिड़ने के फ़ौरन बाद चीन ने रूस में निवेश से जुड़ी अनेक परियोजनाओं को निलंबित कर दिया या उनमें देरी कर दी. हालांकि युद्ध के एक साल से भी ज़्यादा अर्से के बाद चीन ने निवेश से जुड़ी कुछ गतिविधियों को बहाल कर दिया है. इस लेख में यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस में हुए चीनी निवेश की पड़ताल करते हुए उसके भू-सामरिक और भू-आर्थिक मायनों का विश्लेषण किया गया है.
यूक्रेन पर रूसी चढ़ाई के बाद रूस के ऊर्जा साझीदार के रूप में चीन की अहमियत में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई है. यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस पर पश्चिमी दुनिया ने तमाम प्रतिबंध आयद कर दिए हैं, वहां पश्चिमी देशों की तेल कंपनियों ने कामकाज बंद कर दिया है, ऐसे में क्रेमलिन ने “पूरब की ओर धुरी” से जुड़ी अपनी नीति का विस्तार कर दिया है.
इससे पहले रूस का यूरोपीय तेल बाज़ार से गहरा जुड़ाव रहा था. युद्ध से पहले के कालखंड में रूस, यूरोप को सालाना 155 अरब क्यूबिक मीटर गैस निर्यात करता था. पश्चिमी रूस में समंदर के नीचे से चालू होने वाली नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनें, जर्मनी को गैस की आपूर्ति करती थीं, जहां से इसे बाक़ी यूरोप में वितरित किया जाता था. ये पाइपलाइनें यूक्रेन को छुए बिना उसकी सीमाओं के बाहर से निकलती थीं. इससे यूरोप के बाक़ी हिस्सों को तो फ़ायदा हुआ, लेकिन ये यूक्रेन के लिए अच्छा नहीं था. दरअसल इस पाइपलाइन के चलते यूक्रेन को सालाना 2 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर ट्रांज़िट रॉयल्टी से हाथ धोना पड़ रहा था. साथ ही उसने रूसी गैस निर्यात में रोड़े अटकाने की क्षमता खो दी, जो रूसी आक्रामकता के ख़िलाफ़ संभावित रूप से बचावकारी क़वायद साबित हो सकती थी. हालांकि, युद्ध शुरू होने के बाद से रूस ने इन पाइपलाइनों के ज़रिए आपूर्ति बंद कर दी ताकि यूक्रेन के लिए यूरोपीय समर्थन को रोका जा सके.
यूरोपीय बाज़ार से रूस के ऐसे अलगाव ने चीन को रूस (ख़ासतौर से रूस के सुदूर पूर्वी हिस्से के साथ) के साथ अपना जुड़ाव बढ़ाने का मौक़ा दे दिया.
लंबे समय से, रूस का सुदूर पूर्वी खाबरोवस्क क्राई प्रांत चीन की दिलचस्पी का हिस्सा रहा है. ये प्रांत ऊर्जा और खनिज भंडार का ऐसा ख़ज़ाना है जिसकी अब तक पूरी तरह से पड़ताल नहीं हो पाई है. ये चीन को भूमि-आधारित ऊर्जा आपूर्ति मार्ग प्रदान करता है. इस क्षेत्र के साथ चीन के ऐतिहासिक संबंध हैं. 19वीं सदी में चीन ने पश्चिमी औपनिवेशिक शक्तियों के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए. ज़ारशाही के तहत रूस ने ऐसी ही एक संधि (टिएंट्सिन की संधि, 1860) के नतीजतन अमूर और सुदूर पूर्वी क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया, जो आज रूस का हिस्सा हैं. सुदूर पूर्वी क्षेत्र के साथ चीन का इतिहास, हमेशा से रूस को क्षेत्र के प्रमुख संसाधनों तक चीन को पहुंच मुहैया कराने से रोकता रहा है. 2014 में जब रूस ने आर्कटिक विकास योजना लॉन्च की थी तब उसमें इस क्षेत्र के विकास में चीनी भागीदारी या यहां तक कि चीनी ज़रूरतों को वरीयता देने का कोई ज़िक्र नहीं था.
19वीं सदी में चीन ने पश्चिमी औपनिवेशिक शक्तियों के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए. ज़ारशाही के तहत रूस ने ऐसी ही एक संधि (टिएंट्सिन की संधि, 1860) के नतीजतन अमूर और सुदूर पूर्वी क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया, जो आज रूस का हिस्सा हैं.
हालांकि, आज द्विपक्षीय रिश्तों के भीतर की गतिशीलता और समीकरण बदल गए हैं. ग्लोबल नॉर्थ (यानी विकसित दुनिया) ने रूस को काफ़ी हद तक अलग-थलग कर दिया है, ऐसे में रूस ने समकालीन इतिहास में अपने सबसे स्थिर सहयोगी, चीन का रुख़ किया है. रूस अपनी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए चीन के तेल और गैस भंडार भर रहा है. साथ ही उसने अमूर, साइबेरिया और उत्तरी क्षेत्रों में चीन के निवेश से विकास और ऊर्जा की खोजबीन का रास्ता भी साफ़ कर दिया है.
चीन को 24 bcm/सालाना गैस निर्यात करने वाली पावर ऑफ साइबेरिया पाइपलाइन इसका जीता-जागता प्रमाण है. यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से चीन इस पाइपलाइन में दो और शाखाएं जोड़ने पर सहमत हो गया है: पावर ऑफ साइबेरिया 2 और 3. इन दोनों पाइपलाइनों का क्रमश: 2025 और 2029 तक पूरा होना निर्धारित है, जिसके बाद ये चीन तक प्रति वर्ष 28 और 34 bcm गैस ले जाएंगी.
हालांकि, यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस में चीनी निवेश ना केवल ऊर्जा-केंद्रित है, बल्कि खनन और बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़े क्षेत्रों में भी इसका प्रसार हो चुका है.
टेबल 1: 24 फरवरी 2022 – 1 मई 2023 के बीच रूस के सुदूर पूर्व में चीनी निवेश
मई 2023 में रूसी उप प्रधान मंत्री यूरी ट्रुटनेव ने बताया कि सुदूर पूर्व में 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की फाइनेंसिंग चीन की सरकारी कंपनियों द्वारा की जा रही है. इनमें 1.6 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य की 26 बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल हैं. इससे चीनी निवेश में क्षेत्रीय स्तर पर साल-दर-साल (YoY) 150 प्रतिशत की वृद्धि के संकेत मिलते हैं. चीन इस क्षेत्र का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भी है. जनवरी-अगस्त 2022 के बीच साल-दर-साल के हिसाब से व्यापार में 45 प्रतिशत की रिकॉर्ड सालाना वृद्धि दर्ज की गई है (14.3 अरब अमेरिकी डॉलर). चीनी निवेश को आकर्षित करने के लिहाज़ से सुदूर पूर्वी रूस सबसे अहम कारक है.
दोनों देशों ने पश्चिमी ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं से और परे हटने के लिए पावर ऑफ साइबेरिया पाइपलाइन का लाभ उठाया है. 2021 में चीन को ऊर्जा की आपूर्ति करने वाले देशों में सऊदी अरब और ईरान के बाद रूस तीसरे नंबर पर था, लेकिन 2023 में वो चीन का शीर्ष ऊर्जा प्रदाता बन गया है. ज़बरदस्त रियायती क़ीमतों की वजह से चीन रूसी कच्चे तेल की भी ख़रीद कर रहा है. रूसी कच्चे तेल की औसत क़ीमत 73.53 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल है, जो अंतरराष्ट्रीय तेल बाज़ार की औसत दर 85.23 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से 13.7 प्रतिशत कम है. 2022 में चीन ने रूस से 83.7 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का तेल आयात किया. इस तरह पिछले साल उसने ऊर्जा आयात पर लगभग 11 अरब अमेरिकी डॉलर की बचत कर ली.
इतना ही नहीं, दोनों देशों ने इस व्यापार के लिए मुद्रा के द्विपक्षीय आदान-प्रदान का उपयोग किया है. इस तरह वो इन भुगतानों को पश्चिमी प्रतिबंधों से बचाने में कामयाब रहे हैं. द्विपक्षीय मुद्राओं में व्यापार करने के लिए चीन के हार्बिन बैंक, चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक और एग्रीकल्चरल बैंक ऑफ चाइना का उपयोग किया जा रहा है. इन बैंकों का SWIFT और अमेरिकी डॉलर के दबदबे वाली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली से जुड़ाव काफ़ी कम है.
रूसी सुदूर पूर्व से ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के अलावा, चीनी कंपनियों ने फरवरी 2022 के बाद पश्चिम की 1000 बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूस से बाहर निकल जाने से पैदा हुए शून्य को भरने की भी जुगत लगाई है. चेरी, ग्रेटवॉल और जीली जैसी ग्यारह चीनी ऑटोमोबाइल कंपनियों द्वारा रूसी बाज़ार के 40 प्रतिशत हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिए जाने का अनुमान है. 2021 में ये आंकड़ा महज़ 6 प्रतिशत था. 2022 में रूस को चीन से घरेलू उपकरणों के निर्यात में 40 प्रतिशत की साल-दर-साल वृद्धि दर्ज की गई. स्मार्टफोन क्षेत्र में बाज़ार पर सबसे तेज़ गति से क़ब्ज़ा देखा गया. 2022 में शाओमी और रियलमी जैसी चीनी कंपनियों के खाते में रूसी बाज़ार का 70 फ़ीसदी हिस्सा आ गया.
भले ही चीनी निवेश तात्कालिक लाभ मुहैया कराते हैं, लेकिन ये अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों पर संप्रभुता और नियंत्रण के संभावित नुक़सान से जुड़ी चिंताएं भी पैदा करते हैं.
हालांकि इस कड़ी में एक विरोधाभासी प्रवृत्ति भी दिखाई दी है. पश्चिमी प्रतिबंधों के डर ने हुआवे और DJI जैसी प्रमुख चीनी तकनीकी कंपनियों को रूस से दूर कर दिया है, जिससे रूस को काफ़ी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है. यहां तक कि चीन के सरकारी बैंकों (जैसे ICBC और चाइना डेवलपमेंट बैंक) ने भी अपना परिचालन कम कर दिया है.
रूसी अर्थव्यवस्था के तमाम क्षेत्रों में चीनी निवेश में बढ़ोतरी हुई है, जिनमें ऊर्जा, बुनियादी ढांचा और परिवहन शामिल हैं. चीनी पूंजी के इस प्रवाह ने पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में रूस की काफ़ी मदद की है. साथ ही उसके आर्थिक विकास के लिए निहायत ज़रूरी मदद भी पहुंचाई है. हालांकि चीन पर ऐसी निर्भरता अपने साथ चुनौतियां और जोख़िम भी लेकर आती है. चीन पर रूस की बढ़ती निर्भरता के दीर्घकालिक जोख़िम अनिश्चित हैं. भले ही चीनी निवेश तात्कालिक लाभ मुहैया कराते हैं, लेकिन ये अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों पर संप्रभुता और नियंत्रण के संभावित नुक़सान से जुड़ी चिंताएं भी पैदा करते हैं. चीन पर भू-आर्थिक और सामरिक निर्भरताओं के अपरिवर्तनीय (irreversible) हालात पैदा करने से बचने के लिए रूस को अपने ऊर्जा निर्यात में विविधता लानी होगी.
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Prithvi Gupta is a Junior Fellow with the Observer Research Foundation’s Strategic Studies Programme. Prithvi works out of ORF’s Mumbai centre, and his research focuses ...
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