Author : Abhishek Mishra

Published on Sep 19, 2022 Updated 0 Hours ago

‘वैक्सीन रंगभेद’ के बाद रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से सीसीपी ने अफ्रीकी महाद्वीप पर अपनी पकड़ को और भी मजबूत कर लिया है.

अफ्रीका: सब-सहारा के इलाकों में चीन की राजनीतिक असर वाली गतिविधियां!
क़र्ज़ कूटनीतिक,सीसीपी

यह द चाइना क्रॉनिकल्स श्रृंखला का 133वां लेख हैं.


अफ्रीका में चीन का काम शायद ही कभी नजरअंदाज किया जाता होगा. विकास में सहयोगी के रूप में उसकी भूमिका को हमेशा ही मिश्रित प्रतिक्रिया मिलती रही है और यह मसला सार्वजनिक समीक्षा का विषय रहा है. चीनी विकास वित्तपोषण ही यह प्रमुख कारण है, जिसकी वजह से अफ्रीकी महाद्वीप अपने सालाना 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बुनियादी ढांचे के विशाल घाटे को कम करने में सफल रहा है. 2000 से 2018 के बीच, बीजिंग ने अनेक अफ्रीकी देशों के बीच 148 बिलियन अमेरिकी डॉलर का क़र्ज़ बांटा, जिसका मुख्य उद्देश्य वहां के बुनियादी ढांचे का विकास करना था. लेकिन ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि कोविड युग के बाद अपने बढ़ते क़र्ज़ की स्थिरता संबंधी चिंताओं के बीच चीन, अफ्रीका को उसके बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए दिए जाने वाले क़र्ज़ में कटौती कर सकता है.

साइनो-अफ्रीकन संबंधों में चिंता

चीनी ऋणदाता अब नया क़र्ज़ देने में सावधानी बरतने लगे है, क्योंकि पुराना क़र्ज़ लौटाने में दिक्कतों का सामना करने वाले देशों की संख्या बढ़ रही हैं. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) ने नोट किया है कि वर्तमान में सात अफ्रीकी देश क़र्ज़ संकट का सामना कर रहे हैं. (चाड, कांगो गणराज्य, मोज़ाम्बिक, सोमालिया, सूडान, दक्षिण सूडान और ज़िम्बाब्वे). इसे देखकर तो भविष्य में साइनो-अफ्रीकन संबंधों के परिप्रेक्ष्य में चिंता जताई जा रही है. इसके बावजूद इस बात के संकेत मिले हैं कि बीजिंग विकासशील देशों की ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया में सकारात्मक भूमिका अदा करने को तैयार है.

चीनी ऋणदाता अब नया क़र्ज़ देने में सावधानी बरतने लगे है, क्योंकि पुराना क़र्ज़ लौटाने में दिक्कतों का सामना करने वाले देशों की संख्या बढ़ रही हैं. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) ने नोट किया है कि वर्तमान में सात अफ्रीकी देश क़र्ज़ संकट का सामना कर रहे हैं.

अगस्त 2022 में बीजिंग ने 17 अफ्रीकी देशों के 23 ब्याज मुक्त क़र्ज़ को माफ करने के अपने इरादे की घोषणा की, जो 2021 के अंत में परिपक्व हो गए थे. स्वाभाविक तौर पर इस घोषणा का स्वागत किया गया. लेकिन अफ्रीका को दिए गए क़र्ज़ में ब्याज मुक्त क़र्ज़ का हिस्सा बेहद सुक्ष्म है. एआईडीडाटा के अनुसार, 2000 से 2017 के बीच चीन ने दुनिया की 165 सरकारों को जो 843 बिलियन अमेरिकी डॉलर का क़र्ज़ दिया था, उसमें ब्याज मुक्त कर्ज केवल पांच प्रतिशत था. ऐसे में इस तरह की क़र्ज़ माफी को लेकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि पिछले दो दशकों से चीन ऐसा ही करता आया है. 

अफ्रीका में चीनी क़र्ज़ की मीडिया में काफी छानबीन जारी है, लेकिन अफ्रीका में चीन की गतिविधियों का एक अन्य पहलू जो निरीक्षकों के लिए समान रूप से जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है वह है : बीजिंग की वैचारिक और राजनीतिक प्रभाव गतिविधियां. यह विभिन्न शक्लों में होती है, मसलन राजनीतिक दलों को प्रशिक्षण, मीडिया के संभ्रांतों का प्रशिक्षण और राजनयिक  समूह के साथ जुड़कर सुरक्षा और रणनीतिक जानकारी और संसाधनों तक पहुंच रखने वाले बड़े नामों तक पहुंच बनाना.

सब सहारा अफ्रीका में सीसीपी का संक्षिप्त इतिहास

उपनिवेशवाद की अवधि समाप्त होने के दौरान जब अफ्रीकी देशों ने आजादी हासिल करना शुरू किया तो चीन अधिकांश अफ्रीकी देशों के साथ अपने संबंध स्थापित करना चाहता था. लेकिन चीन ने यह शर्त रख दी थी कि उसके साथ संबंध स्थापित करने वाले देश को ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध समाप्त करने होंगे.  माओ झेडॉन्ग की 1976 में मौत होने तक चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) केवल वामपंथ की ओर झूकाव वाले मुक्ति आंदोलनों और अफ्रीकन कम्युनिस्ट पार्टी के साथ ही पार्टी-टू-पार्टी संबंध बनाया करती थी. उस वक्त तक अधिकांश मामलों में यह दल सत्ताधारी नहीं, बल्कि विपक्षी दल होते थे.

1990 के बाद से जब चीन में सुधारों की शुरूआत हुई, तब से सीसीपी ने अपनी नीति में बदलाव करना शुरू किया. अब अफ्रीका के साथ सीसीपी के संबंधों में दो रुझान साफ दिखाई देने लगे थे. अब सीसीपी केवल उन्हीं अफ्रीकी देशों के साथ संबंध बनाता था, जो चीनी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण थे.

1990 के बाद से जब चीन में सुधारों की शुरूआत हुई, तब से सीसीपी ने अपनी नीति में बदलाव करना शुरू किया. अब अफ्रीका के साथ सीसीपी के संबंधों में दो रुझान साफ दिखाई देने लगे थे. अब सीसीपी केवल उन्हीं अफ्रीकी देशों के साथ संबंध बनाता था, जो चीनी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण थे. दूसरी बात यह कि अब सीसीपी विपक्षी दलों से नहीं, बल्कि सत्ताधारी दल से बात करने लगी थी. यह उनकी पुरानी नीति के ठीक विपरीत था. ताइवान को अलग थलग करने के साथ अफ्रीका में चीनी कोशिश वहां के खनिज संसाधनों का उत्खनन, बाजार तक पहुंच बनाना और संपूर्ण महाद्वीप पर अपने प्रभाव को बढ़ाना पर केंद्रित थी.

इसके लिए सीसीपी के इंटरनेशनल लायसन डिपार्टमेंट (सीसीपी-आईएलडी), नौकरशाहों की वह टीम जिसका मुख्य काम पार्टी-टू-पार्टी संबंधों को बढ़ाना और टिकाना है, ने सब सहारा अफ्रीका के राजनीतिक दलों के साथ अपनी गतिविधियां बढ़ा दी. उन्होंने स्थानीय दलों के पदाधिकारियों को ‘‘स्टडी टूर’’ पर आमंत्रित करना शुरू किया ताकि उन्हें प्रशिक्षण शिविर का अनुभव हो और चीन में होने वाले सेमिनार में वे शामिल हो सकें. ऐसी गतिविधियों की वजह से चीनी सरकार को अफ्रीकी राजनीति के आला नेताओं तक पहुंच बनाने में सहायता मिली और बातचीत के अन्य रास्ते खुलने लगे. इस वजह से ही चीनी सरकार अपनी घरेलू आर्थिक ‘‘विकास गाथा’’ को प्रभावी रूप से वहां तक पहुंचाकर सीसीपी के शासन, प्रबंधन और प्रशासन प्रणाली का निर्यात करने में सफल होने लगी.

सीसीपी ने इसके साथ ही अपना ध्यान अफ्रीका में रहने वाली स्थानीय चीनी जातीय समुदायों के साथ नजदीकी संबंध बढ़ाने पर लगाया. 2000 के दशक में इन समुदायों की संख्या वहां तेजी से बढ़ी थी. आज, महाद्वीप में रहने वाले विविध चीनी समुदाय हैं चाहे यह विविधता उनके पेशे (खनिक, रेलवे और निर्माण श्रमिक, चिकित्सा कर्मचारी, शिक्षक) या भौगोलिक मूल (गुआंगडोंग, फुजियान, ङोजियांग और जिआंगसू सहित) के संदर्भ में हो. ये समुदाय अब चीन की सकारात्मक छवि बनाकर चीन-अफ्रीका संबंधों के विकास में महत्वपूर्ण ‘‘पुल’’ की भूमिका अदा करने लगे हैं.

राजनीतिक प्रभाव जमाने के सीसीपी के तरीके

चीनी सरकार और सीसीपी, अफ्रीका में अपनी राजनीतिक व्यवस्था को प्रोत्साहन देने का काम करते हुए ‘‘पश्चिमी’’ लोकतंत्र की कमजोरी को लेकर आलोचना करती है. इन लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए, वे जीन-पियरे कैबेस्टन द्वारा ‘‘पॉलिटिकल फ्रंट लाइन्स: चाइनाज परस्यूट ऑफ इन्फ्लुएंस इन अफ्रीका’’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में निर्धारित पांच अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं.

  • यात्राएं : 2000 के दशक के बाद से ही सीसीपी-आईएलडी ने अफ्रीका में नियमित रूप से प्रतिनिधिमंडल भेजना शुरू कर दिया. हालांकि वर्तमान में वे अपने संसाधनों का निवेश अफ्रीकी राजनीतिक दलों और उनके पदाधिकारियों को चीन की मुफ्त यात्रा करवाने में कर रहे हैं. अफ्रीकी देशों से होने वाली ये अधिकांश यात्राएं चीन के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में उपयोगी मानी जा रही हैं. उदाहरण के तौर पर दक्षिण अफ्रीका (जिसके पास पर्याप्त मात्रा में अयस्क, लोहा, चांदी और हीरे हैं), कांगो, अंगोला, सूडान और दक्षिण सूडान (तेल), मोजाम्बिक (टिंबर/लकड़ी) और जांबिया (चांदी) जैसे देश शामिल हैं.

2020 में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि चीन ने ‘‘46 अफ्रीकी देशों के सहयोग से वहां 120,000 सरकारी छात्रवृत्ति मुहैया करवाई हैं और वहां 61 कन्फ्यूशस इन्स्टीट्यूट और 44 कन्फ्यूशस क्लासरूम्स स्थापित किए हैं.’’ इससे यह साबित होता है कि अफ्रीकी संपन्न वर्ग चीनी सरकारी व्यवस्था को कैसे देखेगा

  • अध्ययन  यात्राएं: महाद्वीप में प्रभाव हासिल करने के लिए सीसीपी के राजनयिक प्रयासों की एक नियमित विशेषता है, अफ्रीकी देशों से चीन में अफ्रीकी पार्टी के कार्यकर्ताओं की मुफ्त अध्ययन यात्राएं और दौरे. इन अध्ययन दौरों में अक्सर चीनी विश्वविद्यालयों में व्याख्यान में भाग लेना और चीनी प्रांतों की क्षेत्रीय यात्राएं शामिल होती हैं. इस तरह के दौरों से चीन को अपने यहां गरीबी उन्मूलन और उसके द्वारा नियोजित आर्थिक विकास रणनीतियों की दिशा में उठाए गए कदमों को प्रदर्शित करने का मौका मिलता है.
  • सेमिनार्स : नियमित सेमिनार का आयोजन पार्टी के टॉप-डाउन संगठन और चीन की शासन पद्धति को बढ़ावा देने के लिए सीसीपी-आईएलडी का एक सुविधाजनक तरीका है. इन संगोष्ठियों का आयोजन शासन, नागरिक-सैन्य संबंध, गरीबी उन्मूलन, पार्टी संगठन, क्षमता निर्माण और मार्क्‍सवादी विचार से लेकर इंटरनेट सेंसरशिप और निगरानी के विषयों समेत अन्य विषयों पर किया जाता है.
  • प्रशिक्षण : पिछले कुछ दशकों में हुई बीजिंग की आर्थिक उन्नति को प्रचारित करने के लिए सीसीपी, अफ्रीकी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं से सीधे संपर्क बनाकर यह बताती है कि इस आर्थिक उन्नति के लिए मुख्य रूप से चीनी की राजनीतिक व्यवस्था ही जिम्मेदार है. ये प्रशिक्षण सत्र, सेमीनार का ही विस्तार होते हैं. ये सत्र एक अथवा दो सप्ताह चलते है. अफ्रीका में सीसीपी-आईएलडी के प्राथमिकता प्रशिक्षण लक्ष्य रणनीतिक रूप से चुने जाते हैं. 2019 से दक्षिण अफ्रीका की अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी), इथियोपिया की न्यू प्रॉस्पेरिटी पार्टी अथवा ईपीआरडीएफ के साथ-साथ दक्षिण सूडान जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक भागीदारों और तेल आपूर्तिकर्ताओं के सत्तारूढ़ दलों पर विशेष जोर दिया गया है.

2020 में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि चीन ने ‘‘46 अफ्रीकी देशों के सहयोग से वहां 120,000 सरकारी छात्रवृत्ति मुहैया करवाई हैं और वहां 61 कन्फ्यूशस इन्स्टीट्यूट और 44 कन्फ्यूशस क्लासरूम्स स्थापित किए हैं.’’ इससे यह साबित होता है कि अफ्रीकी संपन्न वर्ग चीनी सरकारी व्यवस्था को कैसे देखेगा, इस बात को आकार देने को सीसीपी कितना महत्व देती है.

  • उपकरण : अफ्रीका के राजनीतिक दल के पदाधिकारियों का सीसीपी की ओर से होने वाला प्रशिक्षण केवल चीन में ही नहीं आयोजित किया जाता. हाल ही में कुछ उदाहरण दिखाई दिए हैं कि पार्टी अब अफ्रीका में ही होने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों को ही प्रभावित करने की कोशिश करने लगी है. जुलाई 2018 में दक्षिण अफ्रीका के छह सत्ताधारी दलों (एएनसी, एफआरईएलआईएमओ, सीसीएम, एसडब्ल्यूएपीओ, जेडएएनयू-पीएफ और एमपीएलए) ने सीसीपी-आईएलडी के आर्थिक सहयोग (लगभग 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर) से तंजानिया के किबाहा में म्वालिमु जूलियस न्येरेरे लीडरशीप स्कूल की नींव रखी है. इस स्कूल का निर्माण फरवरी में पूर्ण हुआ था और इसका उद्घाटन जुलाई 2022 में किया गया. यह एक और उदाहरण है कि कैसे सीसीपी-आईएलडी अफ्रीका में सक्रिय है और उस महाद्वीप पर चीन के राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने की कोशिशों में जुटा हुआ है.

अफ्रीका में प्रभाव डालने वाली सीसीपी की गतिविधियां कितनी सफल है? 

महाद्वीप में सीसीपी की राजनीतिक प्रभाव गतिविधियां प्रमुख अफ्रीकी संपन्न वर्ग को अपने दोस्ताना नेटवर्क में लाने और चीन तथा सीसीपी के अनुकूल कहानी गढ़ने में काफी हद तक सफल रही हैं. यह प्रयास महत्वपूर्ण है, क्योंकि ‘वैक्सीन रंगभेद’ और रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद अफ्रीका में पश्चिम के सामने विश्वसनीयता का संकट साफ दिखाई दे रहा है. चीन और रूस जैसे देश इस पॉवर शून्यता का लाभ उठाकर पूरे अफ्रीका में अपने वित्तीय और राजनीतिक प्रभाव का तेजी से विस्तार करने में जुटे हुए हैं.

अफ्रीका अथवा दुनिया के किसी भी हिस्से में चीन की प्रभाव गतिविधियों की सफलता को आंकना एक जटिल काम है. सीसीपी की ओर से अफ्रीकी राजनीतिक दलों के साथ पार्टी-टू-पार्टी संबंधों को स्थापित करने के लिए किए जा रहे समर्पित प्रयासों की वजह से निश्चित रूप से महाद्वीप पर बीजिंग के राजनयिक  कद को बढ़ाया है. हालांकि चीनी और अफ्रीकी संपन्न वर्ग को करीब लाने वाला कारण विचारधारा नहीं है. बीजिंग की अधिकांश सफलता का श्रेय धन और उसकी उदारता को दिया जा सकता है. अर्थात, अपने राजनीतिक प्रभाव को गहरा करने के लिए बड़ी मात्रा में धन जुटाने की सीसीपी की क्षमता को दिया जा सकता है.

अफ्रीका अथवा दुनिया के किसी भी हिस्से में चीन की प्रभाव गतिविधियों की सफलता को आंकना एक जटिल काम है. सीसीपी की ओर से अफ्रीकी राजनीतिक दलों के साथ पार्टी-टू-पार्टी संबंधों को स्थापित करने के लिए किए जा रहे समर्पित प्रयासों की वजह से निश्चित रूप से महाद्वीप पर बीजिंग के राजनयिक  कद को बढ़ाया है. 

लेखिका लीना बेनाबदल्ला ने अपनी किताब, ‘‘शेपिंग द फ्यूचर ऑफ पावर: नॉलेज प्रॉडक्शन एंड नेटवर्क बिल्डिंग इन चाइना-अफ्रीका रिलेशन्स’’ में जो मुद्दा रखा है उस पर भी विचार किया जाना चाहिए. इस किताब में उन्होंने चीन के विदेशी संबंधों में सामाजिक संबंधों, ज्ञान उत्पादन और शक्ति की एकीकृत भूमिका की पड़ताल की है. केवल बुनियादी ढांचे, सैन्य ठिकानों, बंदरगाहों, राजमार्गों, या ऋणों और एफडीआई की संख्या जैसे भौतिक पहलुओं के माध्यम से राजनीतिक प्रभाव को मापने के बजाय, चीन द्वारा चीन-अफ्रीका संबंधों में जन संपर्क और मानव संसाधन विकास के माध्यम से लोगों के बीच घने और मजबूत नेटवर्क को विकसित करने में किया गया निवेश सार्वजनिक करना भी अहम है. सीसीपी की राजनीतिक प्रभाव गतिविधियों ने पार्टी-टू-पार्टी संबंधों, व्यापार, कारोबार, मीडिया और विश्वविद्यालय नेटवर्क और अध्ययन पर्यटन और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से चीन को अफ्रीका के सबसे करीबी विकास भागीदारों में से एक के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका अदा की है.

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