Author : Abhijit Singh

Published on Oct 25, 2023 Updated 0 Hours ago

परमाणु हमला करने में सक्षम चीनी पनडुब्बी पर मौजूद चालक दल की दुखद मृत्यु, चीनी नौसेना के साथ-साथ परमाणु पनडुब्बियां संचालित करने वाली दूसरी नौसेनाओं के लिए आत्म-मंथन का अवसर होना चाहिए. 

चीनी नौसेना की पनडुब्बी 093-147 का हादसा: सच्चाई और सबक़

बैरेंट्स सागर की तलहटी में एक परमाणु पनडुब्बी के पिछले कंपार्टमेंट में फंसे एक युवा रूसी अधिकारी ने बाहरी दुनिया के लिए एक नोट लिखा, उसे बड़ी सफ़ाई से मोड़कर अपनी जेब में रख लिया. ये अगस्त 2000 की बात है. रूसी पनडुब्बी कुर्स्क में टर्बाइन रूम के कमांडर लेफ्टिनेंटकैप्टन दिमित्री कोलेशनिकोव अपने 22 साथियों के साथ फंसकर सामने खड़ी मौत का सामना कर रहे थे. उन्होंने लिखा: “कंपार्टमेंट छह, सात और आठ के सभी कर्मी नौवें  कंपार्टमेंट में गए हैं. यहां हममें से 23 कर्मी हैं. हमने हादसे की वजह से ये निर्णय लिया है. हममें से कोई बाहर नहीं निकल सकता.” कुछ दिनों के बाद जब बचाव टीम वहां पहुंची तब दिमित्री और उनके हमवतन साथी मृत पाए गए.

मीडिया में आई ख़बरें आधी-अधूरी हैं, लेकिन माना जा रहा है कि चीनी पनडुब्बी अपनी ही चेन और एंकर डिवाइस में फंस गई थी.

पनडुब्बी हादसा

अक्टूबर 2023 के पहले हफ़्ते में चीनी पनडुब्बी के हादसे का ख़ुलासा हुआ. ख़बरों के मुताबिक इसमें चालक दल के 55 सदस्यों की जान चली गई. ताज़ा हादसा रूसी पनडुब्बी कुर्स्क के डूबने और दोनों के बीच की भयावह समानताओं की याद दिलाता है. कुर्स्क की तरह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) 093-417 परमाणु हमला करने में सक्षम पनडुब्बी है. दोनों ही पनडुब्बियां अपेक्षाकृत छिछले पानी में अभ्यास कर रही थी. हालांकि ये अभ्यास अलगअलग क्षेत्रों और 23 वर्षों के अंतराल पर हो रहे थे. इसी बीच पनडुब्बी की प्रणाली में आई ख़राबी ने विनाशकारी घटनाओं की झड़ी लगा दी, जिसमें चालक दल के तक़रीबन सभी सदस्यों की जान चली गई. दोनों ही मामलों में नौसैनिक अधिकारियों द्वारा तलाश और बचाव अभियान में देरी किए जाने का संदेह है. अगस्त 2000 में रूस ने काफ़ी देर तक विदेशी मदद नहीं मांगी और चीन तो अब तक इस घटना को स्वीकार ही नहीं कर रहा है.

सवाल बरक़रार है: आख़िर PLAN 093-417 के साथ क्या हुआ होगा? आधिकारिक तौर पर खोया हुआ क़रार दिए बिना परमाणु पनडुब्बी ने पूरे चालक दल को कैसे खो दिया? क्या इस सिलसिले में कोई सबक़ सीखा जा सकता है? मीडिया में आई ख़बरें आधी-अधूरी हैं, लेकिन माना जा रहा है कि चीनी पनडुब्बी अपनी ही चेन और एंकर डिवाइस में फंस गई थी. ये फंदे पीले सागर में चीनी तट के नज़दीक छिपकर इंतज़ार करने वाले पश्चिमी जहाज़ों को पकड़ने के मक़सद से लगाए गए थे. कथित तौर पर ये हादसा 21 अगस्त को घटित हुआ, जब चीनी पनडुब्बी ब्रिटिश और अमेरिकी पनडुब्बियों के लिए लगाए गएचेन और एंकरजाल से अनजाने में टकरा गई. इससे ऑक्सीजन उत्पादन प्रणाली ख़राब हो गई. बताया जाता है कि जहाज़ की मरम्मत करने में क़रीब छह घंटे का वक़्त लग गया, लेकिन तब तक 22 अफ़सरों, सात ऑफ़िसर कैडेट्स, नौ पेटी अफ़सरों और 17 नाविकों की दम घुटने से मौत हो चुकी थी.

दरअसल चीन को ऐसी किसी क़वायद से अपनी नौसेना के पनडुब्बी संचालनों में आने वाली रुकावटों की पूरी जानकारी थी. अगर चीनी नौसेना किसी दुश्मन पनडुब्बी को “फांसने” में कामयाब हो जाती तो चीन ने उसके साथ क्या किया होता?

कइयों का विचार है कि ये परिकल्पना अविश्वसनीय है. पर्यवेक्षक इशारा करते हैं कि पीले सागर में कथित हादसे के बाद चीनी नौसेना द्वारा तलाशी और बचाव का आदेश दिए जाने की कोई ख़बर नहीं आई थी. परमाणु पनडुब्बी में हुए हादसे के बाद ज़बरदस्त खोजबीन शुरू होनी चाहिए थी. सजीव रिएक्टर कोर से लैस पनडुब्बी का डूबना, क्षेत्र और दुनिया भर की राजधानियों में चिंता का सबब बन जाना चाहिए था. दिलचस्प रूप से ऐसा नहीं हुआ. यक़ीनन PLAN ने इस पर चेतावनी इसलिए जारी नहीं कि क्योंकि पनडुब्बी कोखोया हुआघोषित नहीं किया गया था; पनडुब्बी में उपस्थित चालक दल के सदस्य अब भी मरम्मत के कार्य में जुटे हुए थे. हालांकि तट पर मौजूद नौसैनिक अधिकारियों को शायद ये पता होगा कि पनडुब्बी पर कोई हादसा हुआ है. ऑक्सीजन प्रणाली के नाकाम होने पर पनडुब्बी की कमांड टीम ने तट पर मौजूद अधिकारियों को हादसे के बारे में जानकारी देने के लिए निश्चित रूप से कुछ ना कुछ प्रयास किए होंगे. अगर पनडुब्बी किसी भी तरह के ख़तरे में होती तो चालक दल ने निश्चित रूप से एक आपातकालीन बोया तैरने के लिए छोड़ा होता. अजीब बात है कि PLAN द्वारा संभावित बचाव अभियान के लिए नौसैनिक परिसंपत्तियों को कहीं भी भेजे जाने के कोई संकेत नहीं थे.

हदसा क्यों?

दक्षिण चीन सागर में चीनी नौसेना द्वारा दुश्मन पनडुब्बियों के लिए जाल तैयार किए जाने के दावे भी सवालों के घेरे में हैं. ये सुझाव भी बेतुका है कि PLAN का इरादा एक विशाल पनडुब्बी को जानवर की तरह तार के जाल में फंसाने का था. चीन द्वारा समंदर में विशाल फंदा स्थापित करने के आदेश दिए जाने का विचार भी बेहद संदेहास्पद लगता है. दरअसल चीन को ऐसी किसी क़वायद से अपनी नौसेना के पनडुब्बी संचालनों में आने वाली रुकावटों की पूरी जानकारी थी. अगर चीनी नौसेना किसी दुश्मन पनडुब्बी कोफांसनेमें कामयाब हो जाती तो चीन ने उसके साथ क्या किया होता? सुनने में जितना भी कल्पनाशील लगे लेकिन ज़रा सोचिए अगर पश्चिम की कोई पनडुब्बी चीनी जाल में फंसकर समंदर की तलहटी पर पहुंच जाए तो कितना बखेड़ा होगा. इसके नतीजे चीन के लिए भयानक होंगे.

इस सिलसिले में ज़्यादा तार्किक परिकल्पना ताइवानी मीडिया की ओर से आई. स्पष्ट रूप से PLAN 093-417 के साथ हादसा चीन के बंदरगाह शहर डालियन के नज़दीक तब हुआ जब टेस्ट टॉरपीडो पानी के नीचे फट गया, जिससे पनडुब्बी और उसका चालक दल नीचे गिर गए. ज़ाहिर तौर पर लियाओनिंग समुद्री सुरक्षा प्रशासन ने 20-27 अगस्त तक डालियान के तट से दूर सैन्य अभ्यास को लेकर नौवहन चेतावनी जारी की थी. ख़बरों के मुताबिक इस संस्था ने इसके बाद पांच बार चेतावनियां जारी की, जिससे ये सुनिश्चित कर लिया गया कि 20 अगस्त से 8 अक्टूबर तक ये इलाक़ा बग़ैर कोई आवाजाही वाला समुद्री क्षेत्र बना रहे. कइयों ने इसे अजीब क़रार दिया है, जो इस क्षेत्र में संभावित रूप से एक हादसे का संकेत करता है. हालांकि ये पटकथा भी इस बात का ब्योरा नहीं देती कि आख़िर चीनी नौसेना सक्रिय रूप से अपनी परमाणु पनडुब्बी की तलाश क्यों नहीं कर रही थी. अगर पनडुब्बी भौतिक रूप से सुरक्षित थी और आख़िरकार अपने चालक दल के सभी मृत सदस्यों के साथ सतह पर गई, तो ऐसा लगता है कि इसे किसी ने देखा ही नहीं है.

निष्कर्ष

इतने सारे अनसुलझे सवालों के साथ ये कहना कठिन है कि PLAN 093-417 के साथ वास्तव में हुआ क्या था. अब तक चीन ने कुछ भी ख़ुलासा नहीं किया है. चीन के सैन्य नेतृत्व का ध्यान इस हादसे के सामरिक और परिचालनात्मक प्रभावों पर होने के आसार हैं. चीनी नौसेना को ये मालूम है कि उसे कम से कम समंदर के नीचे युद्धकला में अभी काफ़ी काम करना है, और इस दिशा में अमेरिकी नौसेना के साथ अभी भारीभरकम अंतर मौजूद है. टाइप 93 को चीन के सबसे आधुनिक और शांत पनडुब्बियों के तौर पर गिना जाता है. ऑक्सीजन उत्पादन प्रणाली में इस तरह की ख़राबी से एक अहम कमज़ोरी बेपर्दा होती है, जिससे ताक़त दिखाने वाली सेना के तौर पर PLAN की विश्वसनीयता कम होती है. निश्चित रूप से चीन के नौसैनिक नेतृत्व ने एक लंबे अर्से से समंदर के नीचे अपने कौशल में मौजूद कमी की भरपाई करने की अहमियत समझ रखी है. यहां तक कि मई 2003 में मिंग श्रेणी की पनडुब्बी 361 में मशीनी ख़राबी आने से 70 नाविकों की मौत के बाद से PLAN ने पनडुब्बी क्षमताएं सुधारने के प्रयास किए हैं. हालांकि परमाणु हमला करने में सक्षम पनडुब्बियों में गड़बड़ियों को ठीक करने में चीनी नौसेना कभी भी सफल नहीं हो सकी है.

इतने सारे अनसुलझे सवालों के साथ ये कहना कठिन है कि PLAN 093-417 के साथ वास्तव में हुआ क्या था. अब तक चीन ने कुछ भी ख़ुलासा नहीं किया है. चीन के सैन्य नेतृत्व का ध्यान इस हादसे के सामरिक और परिचालनात्मक प्रभावों पर होने के आसार हैं.

बहरहाल, भारत द्वारा चीनी नौसेना को कम करके आंकने की ये कोई वजह नहीं होनी चाहिए. नौसैनिक कमांडरों को एक वास्तविकता का अच्छे से ज्ञान है कि पनडुब्बी संचालन स्वाभाविक रूप से जोख़िम भरे होते हैं. समंदर में वाक़ये होते रहते हैं. समुद्री वातावरण बेहद अप्रत्याशित होते हैं. यहां कब, कैसे और किसकिस रूप में ख़तरे सामने जाएं, किसी को पता नहीं होता. फिर भी नौसेनाएं ख़तरों के साथ रहना सीख लेती हैं. चीनी नौसेना को भले ही झटका लगा हो, लेकिन उसके द्वारा सुधार किया जाना तय है. एक हादसे से वो अपने आधुनिकीकरण की क़वायद में रुकावट नहीं आने देगी. भारत और हिंदप्रशांत में उसके साझेदारों को निश्चित रूप से सतर्क रहना चाहिए.


अभिजीत सिंह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के मेरिटाइम पॉलिसी इनिशिएटिव के प्रमुख हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.