Author : Manish Vaid

Published on Jun 29, 2020 Updated 0 Hours ago

पूरी दुनिया के बाज़ारों में सकारात्मक माहौल भले ही दिख रहा है, लेकिन ये अस्थायी है. अभी इस बात के कोई भी संकेत नहीं मिल रहे हैं कि महामारी अपने ख़ात्मे की ओर है. साथ ही इस बात का भी कोई इशारा नहीं है कि तेल की आपूर्ति आगे भी बंद रहेगी

अमेरिकी कच्चे तेल की क़ीमतों में फिर से उठा-पटक का दौर!

कोविड-19 की महामारी पूरी दुनिया पर पहले से ही क़हर बरपा रही है. इसकी वजह से दुनिया भर में आवाजाही की राह में बाधाएं उत्पन्न हो गई हैं. सामान की आपूर्ति बाधित होने से दुनिया की अर्थव्यवस्था का पहिया रुक गया है. इसी के साथ तेल के बाज़ार में संतुलन स्थापित करने की प्रतिबद्धता पूरी न होने के कारण ओपेक और अन्य देशों के बीच तेल के दाम को लेकर युद्ध चल रहा है. इस तेल युद्ध ने तेल की मांग को घटाने वाला दबाव बढ़ा दिया है. जबकि इससे पहले ही कच्चे तेल के उत्पादन के कारण इसकी आपूर्ति में इज़ाफ़ा हो देखा जा रहा था.

ओपेक प्लस और G-20 देशों द्वारा तेल के बाज़ार को उठाने के लिए देर से ही ही सही, मगर किए गए प्रयास बाज़ार का मूड बेहतर करने में असफल रहे हैं. जबकि इन देशों ने 12 अप्रैल को ऐतिहासिक कहे जा रहे नए ओपेक समझौते (New OPEC Deal) पर हस्ताक्षर किए थे.

मगर ये समझौता भी महामारी के कारण कच्चे तेल की मांग में आ रही गिरावट को रोकने में असफल रहा. 20 अप्रैल को जब वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (WTI) के मई महीने के लिए फ़्यूचर की क़ीमतें शून्य से भी नीचे चली गईं, तो इसने दुनिया के तेल बाज़ार को हिला कर रख दिया था. इस कारण से आज दुनिया का तेल व्यापार और भी गहरे दलदल में फंस गया है.

लेकिन, हाल ही में जब जून महीने के लिए में वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट में बढ़त के संकेत देकर दुनिया को और अचरज में डाल दिया. इसे तेल के व्यापार में एक बार फिर से वृद्धि के संकेत कहा जा रहा है. हालांकि, इससे जुड़े अन्य सबूत इसके उलट संकेत दे रहे हैं. 19 मई को ख़त्म हुए जून महीने के फ़्यूचर के दामों में अप्रैल जैसी ऐतिहासिक गिरावट तो नहीं देखी गई. क्योंकि ये 32.50 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर जाकर रुका. जून के फ़्यूचर ट्रेड के लिए तेल के ये दाम जुलाई के सौदों की क़ीमत यानी 31.96 डॉलर प्रति बैरल से भी ज़्यादा थीं. यानी तेल के बढ़ते दाम गिरने के बजाय इसमें दोबारा उछाल के संकेत दे रहे थे.

कुछ विश्लेषकों के लिए इस बात का आकलन करना भी सोच से परे था कि मई महीने में ये समझौता लागू होने से पहले तक, अमेरिका और सऊदी अरब द्वारा कुछ बैरल तेल का अतिरिक्त उत्पादन करने से कभी भी अमेरिका के ओक्लाहोमा राज्य के कशिंग में तेल की भंडारण और पाइपलाइन की क्षमताओं की अग्निपरीक्षा हो जाएगी.

इससे पहले कच्चे तेल की क़ीमतों में तबाही मचाने वाली गिरावट आने के बाद, ओपेक और ग़ैर ओपेक देशों के मंत्रियों की नौवीं और दसवीं बैठक 9-10 और 12 अप्रैल को हुई थी. इसमें ओपेक प्लस (OPEC+) देशों और G 20 देशों के बीच तेल के दाम को लेकर समझौता करने का एलान किया गया था. इसी समझौते के तहत, मई और जून 2020 में कच्चे तेल के उत्पादन में प्रति दिन 97 लाख बैरल (mb/d) की कटौती करने का फ़ैसला किया गया. जबकि एक जुलाई 2020 से 31 दिसंबर 2020 के दौरान 77 लाख बैरल प्रति दिन (mb/d) और एक जनवरी 2021 से 30 अप्रैल 2022 के दौरान कच्चे तेल के उत्पादन में 58 लाख बैरल प्रति दिन (mb/d) की कटौती करने पर सहमति बनी.

जब एक बैरल की कोई क़ीमत नहीं

हालांकि, ये बात एकदम साफ़ थी कि ओपेक प्लस देशों के हुआ ये समझौता तेल के कारोबार में फौरी संतुलन बनाने वाली राहत नहीं देगा. लेकिन, कुछ विश्लेषकों के लिए इस बात का आकलन करना भी सोच से परे था कि मई महीने में ये समझौता लागू होने से पहले तक, अमेरिका और सऊदी अरब द्वारा कुछ बैरल तेल का अतिरिक्त उत्पादन करने से कभी भी अमेरिका के ओक्लाहोमा राज्य के कशिंग में तेल की भंडारण और पाइपलाइन की क्षमताओं की अग्निपरीक्षा हो जाएगी. क्योंकि तब वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट फ़्यूचर तेल की क़ीमतें तो शून्य से भी नीचे चली गईं.

10 अप्रैल 2020 तक अमेरिका लगातार लगभग 1 करोड़ 23 लाख बैरल कच्चे तेल का प्रति दिन उत्पादन कर रहा था. इस कारण से सऊदी अरब के बाद अमेरिका दुनिया में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया था. वही दूसरी ओर, सऊदी अरब ने अमेरिका को तेल की आपूर्ति फरवरी में 3 लाख 66 हज़ार बैरल प्रति दिन से बढ़ा कर मार्च में 8 लाख 29 हज़ार 529 बैरल प्रति दिन यानी दोगुने से भी ज़्यादा कर दी थी. सऊदी अरब ने अमेरिका को तेल की आपूर्ति में ये वृद्धि कशिंग में भंडारण क्षमता का आकलन किए बिना ही कर दी थी. इसी कारण से कच्चे तेल का अमेरिकी सूचकांक 55.9 डॉल प्रति बैरल घटकर माइन 37.63 डॉलर हो गया. 20 अप्रैल को न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में तेल के दाम में दर्ज हुई ये क़रीब 305 प्रतिशत की गिरावट थी.

वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट फ़्यूचर के दाम में ये ऐतिहासिक गिरावट आने और तेल के दाम नकारात्मक हो जाने की वजह केवल ये थी कि तेल का उत्पादन और निर्यात, इस आकलन के बग़ैर हो रहा था कि अमेरिका के ओक्लाहोमा राज्य के कशिंग में भंडारण क्षमता कितनी है. इसी कारण से तेल के उत्पादक देशों को अपने ग्राहकों को अधिक तेल से मुक्ति पाने के लिए उन्हें भुगतान करना पड़ा.

तेल का ये लेन देन ओक्लाहोमा के कशिंग शहर में होता है. समय सीमा ख़त्म होने के बाद तेल की फ़्यूचर क़ीमतें इस बात का संकेत होती हैं कि उस जगह और समय पर कितना कच्चा तेल उपलब्ध है

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (WTI) यानी कच्चे तेल के अमेरिकी सूचकांक का निर्धारण आमने सामने की बातचीत से होता है. और अगर ख़रीदार व विक्रेता अपने दाम समय सीमा ख़त्म होने से पहले निर्धारित नहीं कर लेते, तो उन्हें या तो तेल की आपूर्ति करने के लिए बाध्य होना होता है या भेजे गए तेल को स्वीकार करने की बाध्यता होती है. तेल का ये लेन देन ओक्लाहोमा के कशिंग शहर में होता है. समय सीमा ख़त्म होने के बाद तेल की फ़्यूचर क़ीमतें इस बात का संकेत होती हैं कि उस जगह और समय पर कितना कच्चा तेल उपलब्ध है. और ये बात अपने आप में इस बात पर निर्भर करती है कि वहां पर कच्चे तेल के भंडारण की कितनी क्षमता है. ओक्लाहोमा का कशिंग शहर न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में होने वाले तेल के फ़्यूचर व्यापार की डिलीवरी का ठिकाना है. और यहां पर न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (NYMEX) के लाइट स्वीट क्रूड ऑयल फ़्यूचर के ठेकों का लेन देन होता है. इसके लिए कशिंग में स्थित 15 भंडारण टर्मिनल में 9 करोड़ बैरल तेल को रखा जा सकता है. ओक्लाहोमा का कशिंग शहर कम से कम दो दर्जन पाइपलाइनों का केंद्र है. कशिंग की कुल क्षमता यानी 8 करोड़ बैरल में से कार्यकारी क्षमता यानी 7.6 करोड़ बैरल भंडारण करने की पूरी क्षमता की 20 अप्रैल तक बुकिंग हो चुकी थी. इसी कारण से तेल के दाम शून्य से भी नीचे चले गए.

इसीलिए, ज़मीन पर भंडारण की कुल क्षमता का इस्तेमाल होने और जहाज़ पर लदे तेल की मात्रा में एक हफ़्ते पहले 100 प्रतिशत की वृद्धि के साथ इसके 16 करोड़ बैरल तक पहुंचने से वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट के दाम में नकारात्मक वृद्धि के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा था. क्योंकि दुनिया भर में लॉकडाउन के कारण रिफ़ाइनरी में तेल का शोधन करके पेट्रोलियम उत्पाद तैयार करने का काम भी बंद हो चुका था. इसी वजह से WTI फ़्यूचर के दाम, 20 अप्रैल को माइनस 40.32 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गए. हालांकि, बाद में ये -38.63 डॉलर प्रति बैरल पर जाकर बंद हुए थे. 

अमेरिकी फ़्यूचर के दाम हवा में क्यों बढ़ रहे हैं

अमेरिकी कच्चे तेल के सूचकांक में नकारात्मक से अचानक हुई ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी ने तेल के व्यापार में निवेश की वापसी के संकेत दिए हैं. क्योंकि, WTI फ़्यूचर के दाम माइनस से बढ़ कर अचानक 32 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए. लेकिन, भयंकर गिरावट के बाद तेल की क़ीमतों में अचानक हुई ये वृद्धि ये इशारा करती है कि WTI में आया ये उछाल स्थायी नहीं है.

हालांकि, नए समझौतों के अनुसार आगे चलकर तेल के उत्पादन में कटौती की योजना से तेल के कारोबार को सकारात्मक संकेत मिलेंगे. लेकिन, सऊदी अरब के लिए अपने तेल के लिए भंडारण हासिल करने में असफल होने और फिर मजबूरन अपने उत्पादन में और कटौती करने और चीन के अलावा अन्य देशों में लॉकडाउन में रियायतें दिए जाने से तेल के बाज़ार का माहौल और बेहतर होने की उम्मीद है.

आईईए (IEA) ने मई महीने की अपनी रिपोर्ट में तेल के बाज़ार में सुधार के लिए दो बुनियादी कारण गिनाए हैं. पहली बात तो ये कि दुनिया भर में अब लॉकडाउन में रियायत दी जा रही है, जिससे आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो रही हैं. इसके अलावा ग़ैर ओपेक देशों के कच्चे तेल के उत्पादन में भारी गिरावट आई है

लेकिन, लॉकडाउन में इन रियायतों से तेल और गैस के उद्योग को अपनी गतिविधियां दोबारा शुरू करने के लिए फ़ौरन बाज़ार और आपूर्ति श्रृंखला प्राप्त नहीं होगी. जैसा कि ऑयलफील्ड सर्विसेज़ मकी कंपनी रिस्टैड एनर्जी के उपाध्यक्ष मैथ्यू फिज़सिमन्स ने कहा है कि, ‘जब इस वायरस का प्रकोप और क्वारंटीन में कुछ रियायतें दी जाएंगी और काम पर लौटना सुरक्षित हो जाएगा. तो इसका ये मतलब नहीं है कि हम वायरस के प्रकोप से पहले जैसे शिद्दत से काम कर रहे थे, वैसे ही दोबारा काम शुरू कर देंगे. क्योंकि इस दौरान मौसम से हमें जो अवसर मिलता है, वो शायद हम गंवा देंगे और तेल की आपूर्ति श्रृंखला की मरम्मत अगले साल तक खिंच सकती है.’

रिकवरी के संकेत

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की मई महीने की रिपोर्ट के अनुसार तेल के बाज़ार का भविष्य, पिछले माह के मुक़ाबले बेहतर दिखने लगा है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के निदेशक फतीह बिरोल ने अप्रैल में तेल के दाम में आई गिरावट को ‘ब्लैक अप्रैल’ की संज्ञा दी थी. आईईए (IEA) ने मई महीने की अपनी रिपोर्ट में तेल के बाज़ार में सुधार के लिए दो बुनियादी कारण गिनाए हैं. पहली बात तो ये कि दुनिया भर में अब लॉकडाउन में रियायत दी जा रही है, जिससे आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो रही हैं. इसके अलावा ग़ैर ओपेक देशों के कच्चे तेल के उत्पादन में भारी गिरावट आई है. साथ ही साथ ओपेक प्लस देशों ने अपने कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने का भी समझौता किया है. अंतराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की इस रिपोर्ट के अनुसार, मई महीने में लोगों के अलग-थलग रहने में काफ़ी कमी दर्ज की गई. अप्रैल में जहां दुनिया भर में क़रीब 4 अरब लोग लॉकडाउन के दायरे में थे. वहीं, मई में ये संख्या घटकर 2.8 अरब ही रह गई है. जिससे ये संकेत मिलता है कि सीमित ही सही, मगर व्यापारिक गतिविधियां दोबारा शुरू हो रही हैं. आवाजाही में भी सीमित तौर पर वृद्धि हो रही है. इसीलिए, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने ये अनुमान लगाया है कि वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही में दुनिया भर में तेल की मांग क़रीब 93 लाख बैरल प्रति दिन की होगी. जबकि पिछले ही महीने आईईए (IEA) ने आकलन किया था कि तेल की मांग नकारात्मक यानी माइनस 86 लाख बैरल प्रति दिन होगी.

मिसाल के तौर पर भारत में एक जून के बाद से अनलॉक-1 का दौर शुरू हो चुका है, जिसके जुलाई में भी जारी रहने की संभावना है. इस दौरान ग़ैर कंटेंटमेंट ज़ोन में और अंतरराज्यीय परिवहन और राज्यों के भीतर सार्वजनिक वाहनों आवाजाही में रियायत दी गई है. इससे भारत को अपने तेल की खपत को बेहतर बनाने का अवसर मिलेगा. ख़ास तौर से पेट्रोल और डीज़ल की खपत अप्रैल 2020 के स्तर से बढ़ जाएगी.

अमेरिकी कच्चे तेल के फ़्यूचर (WTI Future) की क़ीमतों में उछाल का एक और कारण है. कशिंग में कच्चे तेल के भंडार में जनवरी के मध्य से मामूली ही सही, पर गिरावट दर्ज कई है. अब यहां हर सप्ताह क़रीब 74.5 करोड़ बैरल तेल का कारोबार हो रहा है. जो कि 30 लाख डॉलर प्रति बैरल कम है. पेट्रोल के भंडार में 35 लाख बैरल की गिरावट और इसके साथ साथ इसकी मांग बढ़ कर 73.4 करोड़ बैरल पहुंच जाने से शुरुआती रिकवरी के संकेत साफ़ दिखे हैं.

चीन, जिसकी मांग पर तेल के कारोबार का भविष्य टिका है, वहां भी तेल की मांग में वृद्धि दर्ज की जा रही है. चीन में तेल की मांग धीरे-धीरे वायरस का प्रकोप फैलने के पूर्व के स्तर की ओर बढ़ रही है. जो कि 1.3 करोड़ बैरल प्रति दिन थी. हाल ही में, चीन दुनिया में तेल की खपत करने वाला ऐसा पहला देश बन गया जिसने महामारी के दौरान ओपेक देशों के साथ सहयोग करके कच्चे तेल के बाज़ार को अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार संतुलित करने में सहयोग किया था. 

अनिश्चितताओं को लेकर चेतावनी

हालांकि, उपरोक्त सबूत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि हमें तेल के बाज़ारों में लॉकडाउन के बाद सावधानी के साथ दी जा रही रियायतों का सकारात्मक असर दिखने लगा है. इसके अलावा, नियंत्रित माहौल में सीमित मात्रा में आर्थिक गतिविधियां भी एक सकारात्मक संकेत ही हैं. लेकिन, कोविड-19 के मामले बढ़ने के जोखिमों को अभी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. हमें तेल के बाज़ार के भविष्य के आकलन में इस पहलू को शामिल रखना होगा. इसके अतिरिक्त चीन की राजधानी बीजिंग, उत्तरी राज्यों जिलिन और हीलॉन्गजियांग समेत तीन अन्य राज्यों में वायरस में म्यूटेशन के कारण इसका प्रकोप दोबारा फैलने के कारण एक बार फिर से महामारी को लेकर अनिश्चितता पैदा हो गई है. चीन में कोविड-19 के दूसरे दौर के कारण इसे नियंत्रित करने और इससे मरीज़ों के उबरने में अभी और समय लगने की आशंका है.

हालांकि, वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट के दाम में शुरुआती रिकवरी का असल इम्तिहान तब होगा, जब अमेरिका के पर्मियन बेसिन में कच्चे तेल के उत्पादक, तेल का दोबारा उत्पादन करेंगे, जिसकी शुरुआत हो गई है. अब देखना ये होगा कि वो तेल के उत्पादकों के उत्पादन में कटौती के समझौतों का किस हद तक पालन करते हैं. अगर वो ऐसा नहीं करते हैं, तो वायरस के प्रकोप के कारण पर्मियन बेसिन के तेल उत्पादकों का ये क़दम तबाही लाने वाला भी हो सकता है. इससे एक बार फिर से लॉकडाउन लग सकता है और तेल के दाम फिर से शून्य से नीचे जा सकते हैं. इसके अतिरिक्त, अगर सऊदी अरब फिर से अमेरिका को तेल की आपूर्ति शुरू कर देता है तो इससे ओक्लाहोमा के कशिंग में तेल की भंडारण क्षमता पर फिर से दबाव बढ़ सकता है.

इसलिए, हम इस समय तेल के बाज़ार में अस्थायी ही सही मगर सकारात्मक माहौल देख रहे हैं. हालांकि, इससे इस बात का इशारा बिल्कुल भी नहीं मिलता की महामारी का अंत क़रीब है. हालांकि, इससे ये संकेत भी नहीं मिलता कि भविष्य में भी तेल की आपूर्ति बंद ही रहेगी. इसीलिए हमें इस दिशा में सावधानी से आगे बढ़ना होगा और इस महामारी के दूसरे दौर के लिए ख़ुद को तैयार रखना होगा. पर, साथ ही साथ इस बात की भी तैयारी करनी होगी कि रोज़ी रोज़गार पर इसका बुरा असर न पड़े और विश्व अर्थव्यवस्था को आपातकाल के दौर से धीरे-धीरे ही सही, मगर बाहर निकाला जा सके. ये सारे लक्ष्य हासिल करना आने वाले महीनों में तेल और गैस के उद्योग के भी लिए चुनौती बने रहेंगे. और अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लौटाना इस शर्त पर निर्भर होगा कि महामारी का प्रकोप थामने में दुनिया को सफलता मिलेगी. फिलहाल तो हमें इस बात के संकेत बिल्कुल भी नहीं दिख रहे हैं.

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