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महामारी शुरू होने के बाद से ही दुनिया भर में ऑनलाइन बाल यौन दुर्व्यवहार और शोषण (ओसीएसएई) की घटनाओं में तेज़ी आई है. भारत भी इस बड़े ख़तरे को लेकर कई तरह के कदम उठा रहा है लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में और किए जाने की ज़रूरत है.
साल 2020 की शुरुआत से ही कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन और स्कूलों के बंद होने का ही यह नतीज़ा था कि ज़्यादातर बच्चे अपना समय इंटरनेट पर गुजारने लगे. जैसा कि यूनिसेफ ने पाया कि कंप्यूटर पर ज़्यादा समय गुज़ारने से इंटरनेट पर मौज़ूद आपत्तिजनक कंटेंट और नुक़सानदेह सामग्रियों के प्रति बच्चों के आकर्षित होने का जोख़िम बढ़ गया. कोरोना महामारी की शुरुआत के साथ ही दुनिया भर में बच्चों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार और शोषण की घटनाओं में भारी बढ़ोतरी हुई है. साल 2019 के मुक़ाबले भारत में साल 2020 में बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराध की घटनाओं में 400 प्रतिशत का उछाल देखा गया है. इनमें से 90 फ़ीसदी मामले बच्चों के यौन दुर्व्यवहार सामग्रियों (CSAM) के प्रकाशन और प्रसारण से जुड़े हुए थे. सोशल मीडिया मंचों का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग, ऑनलाइन क्लास पर ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों का आधारित होने के साथ शैक्षणिक ऐप के इस्तेमाल के चलते बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा ख़तरे में पड़ गई.
साल 2019 के मुक़ाबले भारत में साल 2020 में बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराध की घटनाओं में 400 प्रतिशत का उछाल देखा गया है. इनमें से 90 फ़ीसदी मामले बच्चों के यौन दुर्व्यवहार सामग्रियों (CSAM) के प्रकाशन और प्रसारण से जुड़े हुए थे.
बच्चों के लिए ऑनलाइन जोख़िमों को लेकर यूनिसेफ ने जिन छह वर्गों की पहचान की है, उसमें यौन दुर्व्यवहार और यौन शोषण को एक साथ माना जा सकता है और इसे ऑनलाइन बाल यौन दुर्व्यवहार और शोषण (OCSAE) के संदर्भ में प्रयोग किया जा सकता है. ओसीएसएई में सीएसएएम का उत्पादन और वितरण जैसी कई गतिविधियां शामिल हो सकती हैं; बच्चों को यौन बातचीत के लिए फुसलाना या आपत्तिजनक सामग्री बनाना; वास्तविक दुनिया में दुर्व्यवहार करने वाले से मिलने के लिए बच्चों को लुभाना; दुर्व्यवहार करने वाले द्वारा दिखावटीपन करना; और किसी बच्चे को इंटरनेट पर वेश्यावृत्ति या यौन तस्करी में शामिल होने के लिए बरगलाना.[i]
भारत 1990 के बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CRC) को शुरुआती प्रमाणित करने वालों में से एक रहा था और 2002 में इसने सीआरसी के दूसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल को स्वीकार किया जो बच्चों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन और ऑफ़लाइन अपराधों के लिए सीआरसी के प्रावधानों को और मज़बूत बनाता है.
भारत ने ऑनलाइन बच्चों की सुरक्षा के लिए एक मज़बूत कानूनी ढांचा विकसित किया है. इसमें यौन अपराधों के ख़िलाफ़ बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 शामिल है; सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008, जो उन अपराधों की पहचान करके आईटी अधिनियम, 2000 के दायरे का विस्तार करता है जिनके लिए बच्चे सबसे अधिक संवेदनशील हैं; और हाल ही में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिज़िटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 जिसका उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर CSAM के प्रसार को रोकना है. इसके अलावा भारतीय दंड संहिता और अनैतिक यातायात रोकथाम अधिनियम की धाराएं भी OCSAE के मामलों की रिपोर्टिंग के लिए एक आधार देती है, जिसमें अश्लील सामग्री की बिक्री और प्रसारण पर रोक लगाने की कोशिश होती है; बच्चों का यौन उत्पीड़न, मानहानि, आपराधिक धमकी; और ऑनलाइन जबरन वसूली और बाल तस्करी जैसे अपराध शामिल हैं.
साल 2020 के चाइल्ड सेफ्टी ऑनलाइन इंडेक्स, महामारी के पहले वर्ष के दौरान किए गए 30 देशों के एक सर्वेक्षण में भारत को ‘बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ ऑनलाइन सुरक्षा’ के लिए नौवें (‘औसत’ रेटिंग के साथ) लेकिन ‘साइबर की सीमा’ में बच्चों द्वारा सामना किए जाने वाले जोख़िम के मामले में दूसरे स्थान का दर्ज़ा देता है
साल 2020 के चाइल्ड सेफ्टी ऑनलाइन इंडेक्स, महामारी के पहले वर्ष के दौरान किए गए 30 देशों के एक सर्वेक्षण में भारत को ‘बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ ऑनलाइन सुरक्षा’ के लिए नौवें (‘औसत’ रेटिंग के साथ) लेकिन ‘साइबर की सीमा’ में बच्चों द्वारा सामना किए जाने वाले जोख़िम के मामले में दूसरे स्थान का दर्ज़ा देता है. यह बताता है कि भारत में बच्चों को साइबर जोख़िमों का सामना करना पड़ता है, जबकि इन जोख़िमों से निपटने में देश की प्रभावशीलता ‘औसत’ है.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सीएसएएम पर नकेल कसने की कोशिश
स्कूलों को संवेदनशील बनाना
भारतीय जनसंचार माध्यमों द्वारा समर्थित एक चरणबद्ध राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाना जनता का ध्यान आकर्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहला कदम साबित हो सकता है. इसके साथ ही स्कूलों में कंप्यूटर विज्ञान और यौन शिक्षा पाठ्यक्रम में ओसीएसएई पर मॉड्यूल को एकीकृत करना – यह सुनिश्चित करते हुए कि केंद्र द्वारा विकसित नॉलेज़ कंटेंट क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराए जाते हैं – सबसे अधिक जोख़िम वाले वर्ग को संवेदनशील बनाने की दिशा में एक बेहतर कदम हो सकता है. तीसरा, बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध की लंबी सूची को भी तत्काल ठीक करने की आवश्यकता है और प्राथमिकता के आधार पर ओसीएसएई के मामलों को तेज़ी से ट्रैक करने की कोशिश की जानी चाहिए.
ओसीएसएई के ख़िलाफ़ युद्ध में निजी क्षेत्र को भी सहयोगी बनना होगा. आईटी नियम, 2021 को सोशल मीडिया की दूसरी संस्थाओं द्वारा वास्तविक रूप से लागू करने से पहले इसकी गहन पुनर्मूल्यांकन की ज़रूरत है. हालांकि इन नियमों में हाल ही में प्रस्तावित संशोधनों में कुछ सुझाव शामिल हैं जिनके सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, जबकि ट्रेसबिलिटी और डिक्रिप्शन के बारे में विवादास्पद हिस्से में बदलाव नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा, भारत अब तक इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को सीएसएएम तक पहुंच को बाधित करने के प्रयासों में सहयोग करने के लिए राजी करने में असमर्थ रहा है. भारत के इस रिकॉर्ड में भी सुधार की ज़रूरत है.
आख़िर में, भारत अधिक बाहरी दृष्टिकोण अपना सकता है और ऑनलाइन बाल सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए द्विपक्षीय या बहुपक्षीय साझेदारी बढ़ाने की कोशिश कर सकता है. ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी पर विचार किया जा सकता है, जो OCSAE की समस्या को निपटाने के लिए मज़बूत व्यवस्था के लिए जाने जाते हैं
आख़िर में, भारत अधिक बाहरी दृष्टिकोण अपना सकता है और ऑनलाइन बाल सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए द्विपक्षीय या बहुपक्षीय साझेदारी बढ़ाने की कोशिश कर सकता है. ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी पर विचार किया जा सकता है, जो OCSAE की समस्या को निपटाने के लिए मज़बूत व्यवस्था के लिए जाने जाते हैं, और जिनके साथ भारत पहले से ही साइबर और प्रौद्योगिकी साझेदारी करता रहा है.
ज्ञान का आदान-प्रदान करने, एलईए की क्षमता को बढ़ाने और सीएसएएम अपराधियों के प्रसार को रोकने के लिए मिलकर काम करना दोनों भागीदारों के लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद हो सकता है और बच्चों के लिए एक सुरक्षित माहौल और सुरक्षित साइबर स्पेस बनाने में मदद कर सकता है.
[i] K Sanjay Kumar, Is Your Child Safe? (Kozhikode: The Book People, 2017), pp.46–58
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Anirban Sarma is Director of the Digital Societies Initiative at the Observer Research Foundation. His research explores issues of technology policy, with a focus on ...
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