Author : Harsh V. Pant

Published on Dec 26, 2023 Updated 1 Hours ago

अनुच्छेद 370 को खत्म करके मोदी सरकार ने वैश्विक मंच पर भारतीय विदेश नीति के समक्ष पिछले सात दशकों से मौजूद एक गंभीर चुनौती को हमेशा के लिए दफन कर दिया है. 

कश्मीर पर लिखी जा चुकी है नई कहानी

संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा समाप्त करने की अगस्त 2019 में शुरू हुई प्रक्रिया तब पूरी हुई, जब पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के उस फैसले पर मुहर लगा दी. 5 अगस्त 2019 को, गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में अनुच्छेद 370 को खत्म करने की घोषणा की थी, जिसने जम्मू और कश्मीर को भारतीय संविधान (अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 को छोड़कर) से छूट देते हुए उसे अपना संविधान बनाने की इजाजत दी थी. राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया – बिना विधानमंडल वाला लद्दाख और विधानमंडल वाला जम्मू-कश्मीर.

तीखी प्रतिक्रिया

यह कायापलट कर देने वाला कदम था और स्वाभाविक ही इससे पक्ष-विपक्ष में तीखी प्रतिक्रिया हुई, जो अदालत तक पहुंची. इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली करीब 23 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की.

देश की सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि 25 नवंबर, 1949 को जब राज्य के लिए एक उद्घोषणा जारी की गई, तो राज्य ने अपनी संप्रभुता ‘पूर्ण रूप से और अंतिम तौर पर’ समर्पित कर दी थी और अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करना केंद्र के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण की प्रक्रिया की तार्किक परिणति था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अनुच्छेद को निष्क्रिय घोषित करने के पीछे कोई गलत इरादा नहीं था. देश की सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि 25 नवंबर, 1949 को जब राज्य के लिए एक उद्घोषणा जारी की गई, तो राज्य ने अपनी संप्रभुता ‘पूर्ण रूप से और अंतिम तौर पर’ समर्पित कर दी थी और अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था.

फैसले के बावजूद इस मसले पर राजनीति होती रहेगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक रेखा जरूर खींच दी है. यह फैसला वैश्विक मंच पर एक ऐसे नेता के रूप में प्रधानमंत्री की स्थिति मजबूत करता है, जो भारत की घरेलू समस्याओं का निर्णायक समाधान खोजने को लेकर गंभीर हैं. कश्मीर पर यथास्थिति बहुत पहले ही डगमगा चुकी थी. यह केवल राजनीतिक और नीतिगत जड़ता ही थी, जो भारतीय नीति-निर्माताओं को इसे चुनौती देने से रोक रही थी.

देश के लिए अहम

कथित कश्मीर समस्या हमेशा से राज्य के लोगों और देश के बाकी हिस्से के बीच एक द्विपक्षीय मसला रही है. शेष भारत एक तरह के कानूनों से शासित होता रहा है, जबकि जम्मू-कश्मीर के पिछले करीब सात दशकों से अपने अलग कानून रहे हैं. जैसे जम्मू-कश्मीर के लोगों का शेष भारत में काफी कुछ दांव पर है, वैसे ही शेष भारत भी जम्मू-कश्मीर को लेकर खासा संवेदनशील है. मोदी सरकार ने रेखांकित किया कि वह न केवल भारत की कमजोर सीमाओं को मजबूत करने को लेकर गंभीर है, बल्कि एक ऐसे राज्य की आकांक्षाओं से भी परिचित है, जो अपने संसाधनों के बावजूद हिंसा और पतनशील राजनीति का गढ़ बन गया है.

अनुच्छेद 370 को रद्द करने के भारत के अगस्त 2019 के फैसले के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ व्यापार संबंधों को खत्म करने और अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाने जैसे फैसलों का खूब ढिंढोरा पीटा, लेकिन लेकिन दुनिया आगे बढ़ चुकी थी.

सरकार के सुधार अजेंडे की सफलता जम्मू-कश्मीर के लोगों के ही लिए नहीं, भारत के भविष्य के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस पर पूर्ण अमल में समय लगेगा लेकिन हिंसा में कमी, बुनियादी ढांचे के निर्माण और पर्यटकों की बढ़ती संख्या जैसे नतीजे अभी से दिखाई देने लगे हैं.

इन सरकारी कदमों की आलोचना भी हो रही है, लेकिन इनके पीछे जो मकसद हैं उनकी गंभीरता की पुष्टि भारत विरोधी तत्वों की गतिविधियों से होती है. आखिर लद्दाख में चीन की बढ़ी हुई आक्रामकता का मुख्य कारण यही तो था कि ये कदम चीन के मुकाबले भारत की रणनीतिक स्थिति को स्थायी तौर पर मजबूती दे सकते हैं. भारत आखिरकार अपना इरादा स्पष्ट कर रहा है और इससे उन लोगों का हतोत्साहित होना स्वाभाविक है जो यथास्थिति के साथ सहज रिश्ता बना चुके थे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कश्मीर मुद्दे के संदर्भ में पाकिस्तान अप्रासंगिक हो गया है. पाकिस्तानी राजनेता जो भी बयानबाजी करें, वह सब उनकी घरेलू राजनीति के लिए है. अनुच्छेद 370 को रद्द करने के भारत के अगस्त 2019 के फैसले के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ व्यापार संबंधों को खत्म करने और अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाने जैसे फैसलों का खूब ढिंढोरा पीटा, लेकिन लेकिन दुनिया आगे बढ़ चुकी थी. इन फैसलों का कोई असर नहीं हुआ सिवाय इसके कि इनसे पाकिस्तान की निरर्थकता और ज्यादा स्पष्ट हो गई.

पाकिस्तान के लिए सबक

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अगर पाकिस्तान बदले हालात की हकीकत को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ता है तो एक नई शुरुआत हो सकती है. लेकिन उसके लिए भी चुनाव तक इंतजार करना होगा. आगे जो भी हो, इतना निश्चित है कि वह भारत की शर्तों पर ही होगा.

बाकी दुनिया की जहां तक बात है तो एक उभरते आर्थिक और भू-राजनीतिक शक्ति के तौर पर भारत के साथ उसका जुड़ाव पहले ही शुरू हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस भावना को और मजबूत करेगा कि प्रधानमंत्री मोदी देश के व्यापक मूड के साथ तालमेल बिठाकर चल रहे हैं. यह भी साफ हो चुका है कि अब भारत या मोदी सरकार को कश्मीर मुद्दे के लेंस से देखना संभव नहीं रहा. अनुच्छेद 370 को खत्म करके मोदी सरकार ने वैश्विक मंच पर भारतीय विदेश नीति के समक्ष पिछले सात दशकों से मौजूद एक गंभीर चुनौती को हमेशा के लिए दफन कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मोदी के लिए इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता था.

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Harsh V. Pant

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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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