Author : Aparna Roy

Published on Jun 20, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत और अफ्रीका के लिए आज कम कार्बन उत्सर्जन वाले, स्थायी, भरोसेमंद ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच बढ़ाना और भी ज़रूरी हो गया है. ये अब एक विकल्प मात्र नहीं रह गया है. बल्कि ज़रूरी भी हो गया है.

कोविड-19 के बाद भारत-अफ्रीका साझेदारी की एक नई उम्मीद

आज दुनिया में बहुत कम ही ऐसी साझेदारियां हैं, जो भारत और अफ्रीका के बीच साझेदारी जैसी महत्वपूर्ण हों. भारत और अफ्रीका के बीच ये भागीदारी साझाद आर्थिक हितों और बहुत पुराने ऐतिहासिक संबंधों पर आधारित हैं. विश्व अर्थव्यवस्था की प्रगति की दो प्रमुख धुरियों के तौर पर अफ्रीकी देशों और भारत, दोनों ने ही पिछले एक दशक में विकास का लंबा और अहम सफ़र तय किया है. आज भारत और अफ्रीकी देश दुनिया में सबसे तेज़ी से विकसित हो रहे क्षेत्र हैं. मगर, दोनों ही क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन का जोखिम बढ़ता जा रहा है. जलवायु परिवर्तन के प्रति दोनों की कमज़ोरी तब और बढ़ जाती है, जब दोनों के पास ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच के स्रोत कम होते हैं. क्योंकि वो इसके बग़ैर अपने विकास की रफ़्तार को स्थायी नहीं बना सकते. भारत और अफ्रीका के साझा विकास के लक्ष्य और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के दायरे में रहते हुए आर्थिक गतिविधियां चलाने की चुनौती ने ही भारत और अफ्रीका के बीच सतत विकास की भागीदारी को आगे बढ़ाया है.

भारत और अफ्रीका के विकासशील देशों के लिए तो कोविड-19 की महामारी ने विशेष तौर से ये सबक़ दिया है कि उनके लिए स्थायी विकास के लक्ष्य प्राप्त करना कितना अहम है

लेकिन, कोविड-19 की महामारी ने दुनिया की इन महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं की विकास की आकांक्षाओं और तरक़्क़ी की राह में रोड़े अटका दिए हैं. फिलहाल तो इस बात का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है कि कोविड-19 के आर्थिक और सामाजिक दुष्प्रभाव कितने व्यापक होंगे. लेकिन, इस महामारी के कारण दुनिया में ऐतिहासिक आर्थिक सुस्ती आने की संभावना से इनकार बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता है. अब जबकि दुनिया के तमाम देश महामारी के बाद की आर्थिक चुनौती से निपटने के लिए अपने सारे संसाधन लगा रहे हैं. ऐसे में विशेषज्ञों को इस बात का डर है कि इस महामारी के कारण बहुत सी सरकारों का ध्यान बंटेगा. और वो सतत विकास के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक राजनीतिक फ़ोकस और आर्थिक प्रतिबद्धता को पूरा करने से पीछे हटेंगे. इससे जलवायु परिवर्तन से लड़ने के वैश्विक प्रयास को भी क्षति पहुंचेगी. लोग इस बात की मांग भी कर रहे हैं कि तमाम सरकारें कोविड-19 के बाद की दुनिया की परिकल्पना नए सिरे से करें. ताकि एक ऐसे विश्व का निर्माण हो सके, जो हमारी पृथ्वी की जलवायु को क्षति न पहुंचाए और जो संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए विकास के प्रति लचीला रुख भी रखे. ऐसे में भारत और अफ्रीका अपने विकास के एजेंडे को लेकर कोविड संकट के बाद किस तरह आगे बढ़ेंगे, ये बात वैश्विक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है.

भारत और अफ्रीका के विकासशील देशों के लिए तो कोविड-19 की महामारी ने विशेष तौर से ये सबक़ दिया है कि उनके लिए स्थायी विकास के लक्ष्य प्राप्त करना कितना अहम है. ख़ासतौर से ऊर्जा के संसाधनों तक पहुंच और उससे भी महत्वपूर्ण है जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाए जाने वाले क़दम. इस महामारी ने भारत औऱ अफ्रीका को सिखाया है कि वो किसी संकट से कैसे निपटें और अपनी अर्थव्यवस्था को इन झटकों को सह पाने लायक़ कैसे बना सकते हैं.

भारत और अफ्रीका दोनों ही ऊर्जा के संसाधनों से महरूम हैं. इन दोनों की अर्थव्यवस्थाओं के कई क्षेत्रों में ऊर्जा के अपर्याप्त संसाधन होने के कारण इस महामारी के व्यापक दुष्प्रभावों को लेकर बहुत चिंताएं जताई जा रही हैं

भारत और अफ्रीका दोनों ही ऊर्जा के संसाधनों से महरूम हैं. इन दोनों की अर्थव्यवस्थाओं के कई क्षेत्रों में ऊर्जा के अपर्याप्त संसाधन होने के कारण इस महामारी के व्यापक दुष्प्रभावों को लेकर बहुत चिंताएं जताई जा रही हैं. स्थायी संसाधनों से मिलने वाली बिजली, ऐसी महामारी के समय जन सेवाओं से संवाद स्थापित करने के लिए बहुत ज़रूरी है. क्योंकि इसकी मदद से ही मेडिकल के उपकरण पहुंचाए जा सकते हैं और ये व्यवस्थाएं महामारी के वक़्त पूरी तरह कार्यकुशलता से काम कर सकती हैं.

विश्व बैंक के अनुसार अफ्रीका के सब सहारा देशों में क़रीब साठ करोड़ लोग आज भी बिना बिजली के रहते है. वहीं, भारत में क़रीब बीस करोड़ लोग बिजली के बिना रहते हैं. वर्ष 2035 तक भारत की ऊर्जा खपत में प्रति वर्ष 4.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने की संभावना है. जो दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है. दुनिया की कुल ऊर्जा मांग में से भारत का हिस्सा 2016 में केवल पांच प्रतिशत था. जिसके वर्ष 2040 तक बढ़ कर 11 फ़ीसद होने की संभावना है. वहीं, अफ्रीका की ऊर्जा की खपत वर्ष 2030 तक तीन गुना बढ़ जाएगी. जीवाश्म ईंधन के संसाधन जैसे कि कोयले से इस मांग का आधा हिस्सा ही पूरा किया जा सकता है. ऐसे में स्थायी विकास के लिए इन देशों में रिन्यूएबल एनर्जी के संसाधनों का विकास और इस्तेमाल, इनके आर्थिक विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है.

हालांकि, भारत ने पुनर्नवीनीकृत ऊर्जा के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की है. लेकिन, अभी भी भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जीवाश्म ईंधन पर बहुत निर्भर है. एक आकलन के अनुसार वर्ष 2040 तक भारत के कुल कार्बन उत्सर्जन में ऊर्जा क्षेत्र का योगदान क़रीब 80 प्रतिशत होगा. वहीं, दूसरी तरफ़ अफ्रीका का विकास की ओर क़ुदरती तौर पर बढ़ने के नतीजे के तौर पर शहरीकरण और औद्योगीकरण की प्रक्रिया तेज़ हो गई है. इस कारण से अफ्रीका के ऊर्जा संसाधन जो पहले से ही दबाव में हैं उन पर दबाव और भी बढ़ता जा रहा है. कोविड-19 ने पारंपरिक आपूर्ति श्रृंखला की बुनियादी कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है. आज उत्पादन, व्यापार, आपूर्ति, लॉजिस्टिक और व्यापारिक गतिविधियों के ऊर्जा सुरक्षा पर प्रभाव साफ़ तौर पर सामने आ चुके हैं. विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए इन चुनौतियों से उबर पाना और मुश्किल हो रहा है. क्योंकि उनके पास सीमित वित्तीय संसाधन हैं. वो पहले से ही ऊर्जा क्षेत्र की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. और अपनी ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर हैं. ऐसे देशों के लिए भविष्य और भी क्षीण दिखाई दे रहा है. इसीलिए, भारत और अफ्रीका के लिए आज कम कार्बन उत्सर्जन वाले, स्थायी, भरोसेमंद ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच बढ़ाना और भी ज़रूरी हो गया है. ये अब एक विकल्प मात्र नहीं रह गया है. बल्कि ज़रूरी भी हो गया है.

अफ्रीका के नवीनीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाने की दिशा में भारत काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. कोविड-19 की महामारी के बाद अफ्रीका के आर्थिक प्रगति के रास्ते पर लौटने के लिए भारत के पास न केवल अवसर है, बल्कि ये उसकी ज़िम्मेदारी है कि वो अफ्रीकी देशों को कम कार्बन उत्सर्जन पर आधारित लचीली और पुनरुत्पादन कर सकने वाली अर्थव्यवस्था के निर्माण की दिशा में ले कर चले. ताकि, अफ्रीका की उभरती अर्थव्यवस्थाों के स्थायी विकास के लिए हरित विकास मॉडल का निर्माण किया जा सके. ऐसा आर्थिक और राजनीतिक एजेंडा जो कोरोना वायरस की महामारी के बाद के दौर में हरित विकास को प्रेरित करता है, वो न केवल त्वरित रूप से आवश्यक स्थायी परिवर्तन को जन्म देगा. बल्कि अर्थव्यवस्था में भविष्य की अनिश्चितताओं जैसे कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने की शक्ति को भी मज़बूती प्रदान करेगा. जिस समय दुनिया के तमाम देश कोविड-19 महामारी के कुप्रभावों से उबरने का प्रयास कर रहे हैं, उस समय भारत को चाहिए कि वो विकासशील देशों के सामने जलवायु परिवर्तन से निपटने लायक़ क़दम उठाकर एक ऐसी शानदार मिसाल पेश कर सकता है. जो स्थायी विकास की आवश्यकताओं की पूर्ति करे.

चूंकि, इस वक़्त वैश्विक जलवायु प्रशासन में भारत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गई है. ऐसे में अफ्रीका और विकासशील विश्व के अन्य देश भारत के उदाहरण का क़रीब से अनुसरण करने की कोशिश करेंगे. वो ये देख रहे हैं कि भारत किस तरह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोविड-19 के बाद की दुनिया वाले मंचों पर प्रभावशाली ढंग से विकासशील देशों का पक्ष रख रहा है. फिर चाहे वो जी-20 (G 20) देशों का मंच हो या फिर जलवायु परिवर्तन से जुड़े सीओपी 26, जहां पर भारत जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. ताकि स्थायी विकास के मोर्चे पर प्रगति की ओर बढ़ा सके. और साथ ही साथ आर्थिक प्रगति के रास्ते पर दोबारा लौटा जा सके.

भारत और अफ्रीका के बीच साइंस इनिशिएटिव का मक़सद है कि भारत, स्थायी विकास के ऊर्जा संसाधन विकसित करने में जुटे अफ्रीकी देशों को इसके लिए आवश्यक तकनीक उपलब्ध कराएगा.

हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि विकास के स्थायी पथ पर चलने के लिए, ख़ासतौर से कोविड के बाद की दुनिया में बड़े पैमाने पर परिवर्तनों की आवश्यकता है. और ये बदलाव मज़बूत भागीदारियों की मदद से ही लाए जा सकते हैं. भारत और अफ्रीका ने पहले ही इस दिशा में काफ़ी महत्वपूर्ण कार्य साझा ढंग से किए हैं. फिर चाहे स्थायी विकास का मसला हो या जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ जंग हो. अंतराष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन के माध्यम से भारत से प्रतिबद्धता जताई है कि वो अफ्रीकी देशों को अगले पांच वर्षों में रियायती दरों पर क़रीब दो अरब डॉलर का क़र्ज़ उपलब्ध कराएगा. ताकि, वो ऑफ़ ग्रिड सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट शुरू कर सकें. साथ ही साथ भारत ने अफ्रीकी विकास बैंक के साथ मिल कर अफ्रीका के साहेल इलाक़े में दस हज़ार मेगावाट का सौर ऊर्जा नेटवर्क विकसित करने पर भी सहमति जताई है. ताकि इसकी मदद से बिजली से महरूम अफ्रीका के क़रीब साठ करोड़ लोगों तक बिजली पहुंचाई जा सके. भारत और अफ्रीका के बीच साइंस इनिशिएटिव का मक़सद है कि भारत, स्थायी विकास के ऊर्जा संसाधन विकसित करने में जुटे अफ्रीकी देशों को इसके लिए आवश्यक तकनीक उपलब्ध कराएगा. इसके अतिरिक्त भारत ने दक्षिण अफ्रीका, ट्यूनिशिया, मिस्र और मॉरिशस के साथ 74 साझा प्रोजेक्ट पर भी दस्तख़त किए हैं. ताकि, पुनर्नवीनीकरणीय ऊर्जा और कृषि क्षेत्र के विकास की राह में आने वाली साझा चुनौतियों का मिलकर समाधान निकाल सकें.

अफ्रीका और भारत के ये साझा प्रयास सराहनीय हैं. पर अभी भी अफ्रीका और भारत के लिए मिलकर स्थायी विकास के क्षेत्र में सामने खड़े अवसरों को भुना सकें. महामारी के बाद की दुनिया ने कई बड़ी चुनौतियां पेश की हैं, जो इन अर्थव्यवस्थाओं में स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल करने की राह में बाधा बन कर खड़ी हैं और जो नवीनीकरणीय ऊर्जा की ओर क़दम बढ़ाने में रोड़े अटका रही हैं. अफ्रीका के विज़न 2063 के साथ भारत के स्थायी विकास के एजेंडे का समेकन करने से कई महत्वपूर्ण संभावनाओं का उदय हो सकता है. जिनके ज़रिए भारत और अफ्रीकी देश मिलकर कई क्षेत्रों में आपसी भागीदारी को विकसित कर सकते हैं. कोविड-19 के बाद की दुनिया में इन भागीदारियों को विकसित करना बेहद महत्वपूर्ण होगा. क्योंकि इन बहुक्षेत्रीय भागीदारियों की मदद से न केवल दोनों क्षेत्रों का भविष्य तय होगा, बल्कि बाक़ी दुनिया के लिए भी इसके दूरगामी परिणाम निकलेंगे.

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