Author : Kabir Taneja

Published on May 29, 2024 Updated 0 Hours ago

गाज़ा में युद्ध के बाद हमास के विकल्प के तौर पर एक राजनीतिक संरचना बनाते हुए नियंत्रण के लिए एक बहुराष्ट्रीय सेना तैयार करना गाज़ा में संघर्ष ख़त्म करने के समाधान के तौर पर अव्यवहारिक लगता है.

इज़रायल और हमास के बीच युद्ध के बाद, गाज़ा में बहुराष्ट्रीय सेना की तैनाती एक नाकाम कोशिश साबित होगी!

गाज़ा में इज़रायल और हमास के बीच युद्ध ने आशंका के मुताबिक इस क्षेत्र में बहुत ज़्यादा तनाव पैदा किया है. 7 अक्टूबर को इज़रायल के ख़िलाफ़ हमास के आतंकी हमले ने इज़रायल को हमास के राजनीतिक और सैन्य बुनियादी ढांचे को ‘ख़त्म’ करने के उद्देश्य से बड़े स्तर पर सैन्य अभियान शुरू करने के लिए मजबूर कर दिया. हालांकि पिछले सात महीनों के दौरान एक सीधी जीत हासिल करने के लिए इज़रायल की चुनौतियां केवल बढ़ी हैं. अभी भी हमास के कब्ज़े में कई इज़रायली बंधक हैं और इज़रायल की आंतरिक राजनीति तेज़ी से तनावपूर्ण होती जा रही है जिससे ये मामला और मुश्किल हो गया है.  

इज़रायल का नेतृत्व जहां इस बात को परिभाषित करने में संघर्ष कर रहा है कि हमास का ‘स्पष्ट’ ख़ात्मा कैसा होगा वहीं गाज़ा में हमास की जगह नई राजनीतिक संरचना को लेकर सवाल अनसुलझे हैं.

नेतन्याहू की ज़िद

इज़रायल का सदाबहार सहयोगी अमेरिका भी विकल्पों की तलाश करने में जूझ रहा है. वो न सिर्फ युद्ध का बल्कि हमास के ख़िलाफ़ एक स्पष्ट जीत को लेकर इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की ज़िद का भी विकल्प ढूंढ रहा है. इज़रायल का नेतृत्व जहां इस बात को परिभाषित करने में संघर्ष कर रहा है कि हमास का ‘स्पष्ट’ ख़ात्मा कैसा होगा वहीं गाज़ा में हमास की जगह नई राजनीतिक संरचना को लेकर सवाल अनसुलझे हैं. अमेरिका खालीपन को भरने के लिए अरब देशों समेत बहुराष्ट्रीय शांति सेना के लिए ज़ोर लगाता दिख रहा है. लेकिन इस तरह के विचार को आगे बढ़ाने में ही कई मुश्किलें हैं, इसकी सफलता तो दूर की बात है. 

दस्तावेज़ों में बहुराष्ट्रीय शांति सेना पूरी तरह से अनसुनी नहीं है. संयुक्त राष्ट्र के दायरे के तहत विवादित क्षेत्रों जैसे कि गोलन पहाड़ी में शांति सेना- यूनाइटेड नेशंस डिसइंगेजमेंट ऑब्ज़र्वर फोर्स (UNDOF)- 1974 से काम कर रही है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के द्वारा UNDOF को लामबंद करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक इज़रायल और सीरिया के बीच राजनीतिक अलगाव था. संक्षेप में कहें तो एक राजनीतिक समझौता शांति सेना के लिए बुनियाद था.  

अमेरिका इस मामले में अच्छी स्थिति में है कि वो ख़राब ढंग से सोची गई उग्रवाद विरोधी रणनीति के ख़तरों और संगठित ब्लूप्रिंट नहीं होने की लागत को साझा कर सके. पिछले 20 वर्षों के दौरान अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान से लड़ाई की और 2021 में पराजित शक्ति के रूप में लौटा. 

कुछ अरब देशों ने इस तरह की बहुराष्ट्रीय सेना का हिस्सा नहीं होने की तरफ पहले ही ठोस इशारा किया है जो गाज़ा में उनकी मौजूदगी को इज़रायल के एजेंडे के साथ उनके मिले होने का प्रचार कर सकती है. सैद्धांतिक रूप से इस तरह की सेना की तैनाती तभी सफल होगी जब अमेरिका ज़मीनी स्तर पर अपनी मौजूदगी के साथ इसका नेतृत्व करे. ये संदेह से भरा विचार लगता है और राष्ट्रपति जो बाइडेन जैसे नेता के लिए राजनीतिक आत्महत्या साबित हो सकता है जो साल के अंत में एक कठिन चुनाव अभियान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं और जिनके सामने एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप हैं यानी वो व्यक्ति जिन्होंने 2017 में रियाद में चमकीले गोले के इर्द-गिर्द अरब साझेदारों को एक साथ जमा किया था. 

अमेरिका के लिए समस्या केवल ये नहीं है कि नेतन्याहू के साथ बातचीत को कैसे बढ़ाया जाए. बाइडेन प्रशासन जहां इज़रायल और उसकी सुरक्षा के साथ मज़बूती से खड़ा है वहीं हताशा भी बढ़ रही है. अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि अमेरिका लंबे समय से युद्ध के बाद गाज़ा में शासन व्यवस्था और पुनर्निर्माण- दोनों पहलुओं से विचार विकसित करने के लिए कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रहा है और इसके साथ-साथ इज़रायल को कह रहा है कि अगर रफा में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान शुरू हुआ तो समर्थन में रुकावट आएगी. हालांकि ब्लिंकन ने ये भी कहा कि युद्ध के बाद की इस तरह की योजना इज़रायल से अभी तक नहीं आई है. 

हमास को ख़त्म करने के अपने मक़सद में इज़रायल की रणनीति की गहराई को लेकर अमेरिकी चिंता का ख्याल इज़रायल के भीतर भी है. पिछले कुछ समय से युद्ध की रणनीति और उद्देश्यों को लेकर सेना और राजनीतिक संस्थानों के बीच तनाव लोगों में दिख रहा है जो और अधिक कड़वाहट दिखाता है. ये याद करना ज़रूरी है कि एक देश के तौर पर इज़रायल के लिए मुख्य उद्देश्य अजेय होने की उस भावना को फिर से तैयार करना है जिसका आनंद वो अक्टूबर 2023 से पहले तक साफ तौर पर उठा रहा था. राजनीतिक अस्तित्व, विरासत और युद्ध हारने वाले नेता के रूप में नहीं दिखने को लेकर नेतन्याहू के झुकाव के साथ ये भावना रणनीति में स्पष्टता की मांग और उद्देश्य पूरा हुए बिना नरम पड़ने, जिसे कमज़ोरी के रूप में समझा जा सकता है, की संभावना को और जटिल बनाती है. 

हमास कर रहा है वापसी

पिछले दिनों इज़रायल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट के द्वारा सार्वजनिक रूप से नेतन्याहू की आलोचना और गाज़ा पट्टी के लिए युद्ध के बाद की योजना के रूप में गाज़ा पर लंबे समय तक इज़रायल के नागरिक या सैन्य नियंत्रण की संभावना युद्ध की दिशा को लेकर महत्वपूर्ण आंतरिक बंटवारे को उजागर करती है. सैन्य पदानुक्रम (रैंकिंग) में गैलेंट, जो कि एक राजनेता हैं, अपना गुस्सा जताने वाले अकेले व्यक्ति नहीं हैं. ख़बरों के मुताबिक इज़रायल डिफेंस फोर्स (IDF) के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल हर्ज़ी हलेवी अभी तक युद्ध के बाद की रणनीति स्पष्ट रूप से आगे बढ़ाने में नाकामी को लेकर नेतन्याहू पर ‘बरस पड़े’. 

कुछ लोगों के द्वारा ऊपर बताई गई बातों को चिंताजनक विश्लेषण के रूप में उजागर किया गया है लेकिन गाज़ा में अगले कदम को लेकर आवश्यकता की भावना बिना किसी कारण के नहीं है. अमेरिका और इज़रायल- दोनों की रिपोर्ट में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि हमास उन क्षेत्रों में लड़ने के लिए लौट रहा है जिन्हें पहले IDF साफ घोषित कर चुकी थी. इन क्षेत्रों में ख़ान यूनिस, जबल्या रिफ्यूजी कैंप और उत्तर के कुछ अन्य इलाके शामिल हैं. गाज़ा में हमास के प्रमुख और इज़रायल के मोस्ट वॉन्टेड याहया सिनवर के बारे में कहा जाता है कि वो अभी भी गाज़ा के भीतर ही है और मिस्र, क़तर और अमेरिका की मध्यस्थता में हमास और इज़रायल के बीच बातचीत पर उसकी महत्वपूर्ण पकड़ और नियंत्रण है. 

वैसे तो अमेरिका में कई लोग ये स्वीकार करते हैं कि हमास वास्तव में क्या है लेकिन मौजूदा समय में व्यापक संवाद इस संगठन के पक्ष में काम कर रहा है. 

अमेरिका इस मामले में अच्छी स्थिति में है कि वो ख़राब ढंग से सोची गई उग्रवाद विरोधी रणनीति के ख़तरों और संगठित ब्लूप्रिंट नहीं होने की लागत को साझा कर सके. पिछले 20 वर्षों के दौरान अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान से लड़ाई की और 2021 में पराजित शक्ति के रूप में लौटा. वैसे तो अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद विरोधी और उग्रवाद विरोधी- दोनों गति संबंधी (काइनेटिक) रणनीतियों की लंबे समय तक चर्चा की जा सकती है लेकिन ये तथ्य बरकरार है कि पेंटागन (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय) के गलियारों के भीतर कुछ हद तक चुपचाप आलोचना के बाद राजनीतिक फैसले के ज़रिए वापसी तय की गई. अमेरिका के पास जहां अपने और एक भूलने योग्य विरासत के बीच हज़ारों मील की दूरी तय करके अलग होने और निकलने का विकल्प था वहीं इज़रायल के पास ये सुविधा नहीं है, चाहे ये राजनीतिक हो या भौगोलिक.     

निष्कर्ष

वास्तव में हमास के पक्ष में विरोधाभासी दृष्टिकोण उसके लिए काम कर रहा है और कथित तौर पर इज़रायल की राजनीति में हताशा बढ़ रही है. हमास को अल-क़ायदा से भी पहले एक प्रतिबंधित आतंकवादी समूह घोषित किया गया था लेकिन इसके बावजूद फिलिस्तीन समर्थक नैरेटिव पर उसका कब्ज़ा है. ये बहस का विषय है कि इसके पीछे कोई सोची-समझी रणनीति है या पूरी तरह से किस्मत. इसने लोगों के एक अहम हिस्से और भू-राजनीतिक संवाद में अपनी छवि आतंकवादी संगठन के बदले ‘क्रांतिकारी’ की बना ली है. ये बदलाव अमेरिकी यूनिवर्सिटी के कैंपस से लेकर तुर्किए के राष्ट्रपति जैसे नेताओं तक में दिख रहा है जिन्होंने खुलकर हमास को आतंकवाद संगठन के रूप में स्वीकार करने से इनकार किया है. इसकी वजह से न केवल क्षेत्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के ख़िलाफ़ दर्ज बढ़त पर संकट बढ़ गया है. वैसे तो अमेरिका में कई लोग ये स्वीकार करते हैं कि हमास वास्तव में क्या है लेकिन मौजूदा समय में व्यापक संवाद इस संगठन के पक्ष में काम कर रहा है. 

ऊपर बताई गई सभी बातें समाधान तलाशने में मुश्किलें बढ़ा रही हैं. इनमें युद्ध के बाद हमास के विकल्प के रूप में एक राजनीतिक संरचना बनाते हुए गाज़ा पर नियंत्रण के लिए बहुराष्ट्रीय सेना का विचार शामिल है. अपने सैन्य उद्देश्यों, हमास के ‘ख़ात्मे’ की परिभाषा और युद्ध के बाद की रणनीति के बारे में अधिक स्पष्टता को लेकर इज़रायल में तात्कालिकता की भावना महसूस की जा रही है. फिलहाल के लिए सारी ज़िम्मेदारी नेतन्याहू पर है क्योंकि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय- दोनों राजनीतिक दबाव और युद्ध में मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है. 


कबीर तनेजा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

 

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