Author : Rajeev Jayadevan

Published on Oct 07, 2023 Updated 0 Hours ago

निपाह वायरस कोविड-19 वायरस की तुलना में कम संक्रामक है, लेकिन यह जानलेवा है और इसलिए इसके बारे में गहनता से अध्ययन किया जाना ज़रूरी है. 

एक प्राणघातक और रहस्यमयी बीमारी: निपाह

केरल भारत के दक्षिणी किनारे पर मौज़ूद एक छोटा सा राज्य है. पिछले पांच वर्षों में यह राज्य चौथी बार निपाह वायरस के प्रकोप को झेल रहा है. हालांकि, पिछले दो दशकों से अधिक समय के दौरान अलग-अलग जगहों पर निपाह वायरस का संक्रमण दिखाई दिया है, लेकिन जहां तक केरल की बात है, तो यहां पहली बार वर्ष 2018 में इसका व्यापक प्रकोप देखने को मिला था. उस साल केरल में निपाह वायरस से संक्रमित 23 मरीज़ों में से 21 की मौत हो गई थी, यानी इस बीमारी से होने वाली मृत्यु दर 91 प्रतिशत थी. इसी वर्ष की शुरुआत में बांग्लादेश में निपाह वायरस से संक्रमित मरीज़ों की मृत्यु दर 73 प्रतिशत थी.

देखा जाए तो वायरस के संक्रमण से होने वाली जितनी भी बीमारियां हैं, उनमें निपाह वायरस की वजह से मरीज़ों की मृत्यु दर सबसे अधिक है. लेकिन राहत की बात यह है कि यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से नहीं फैलता है.

देखा जाए तो वायरस के संक्रमण से होने वाली जितनी भी बीमारियां हैं, उनमें निपाह वायरस की वजह से मरीज़ों की मृत्यु दर सबसे अधिक है. लेकिन राहत की बात यह है कि यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से नहीं फैलता है. यही वजह है कि जब भी निपाह वायरस का संक्रमण फैला है, स्वत: ही कुछ समय बाद बिना किसी विशेष इलाज के यह काबू में आ गया. बांग्लादेश में हाल-फिलहाल में निपाह संक्रमण की दो घटनाओं में क्रमशः पांच और छह व्यक्ति ही संक्रमित हुए थे. इसी तरह से केरल में हुई निपाह वायरस के संक्रमण की पिछली दो घटनाओं में सिर्फ़ एक-एक व्यक्ति ही प्रभावित हुआ था. केरल में वर्तमान निपाह वायरस के संक्रमण से दो मरीज़ों की मौत हो चुकी है और चार संक्रमित व्यक्ति अस्पताल में भर्ती हैं. इन चारों व्यक्तियों को निपाह वायरस से संक्रमित मरीज़ के सीधे संपर्क में आने से ही इन्फेक्शन हुआ है.

निपाह वायरस के लक्षणों की पहचान मुश्किल

मनुष्यों में निपाह वायरस के शुरुआती लक्षण आम वायरल फीवर की तरह ही होते हैं. इसकी वजह से निपाह वायरस से संक्रमित पहले व्यक्ति की पहचान करना बेहद मुश्किल हो जाता है. जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती है, बुखार, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द के शुरुआती लक्षण या तो निमोनिया में तब्दील हो सकते हैं या फिर इसका असर दिमाग पर भी पड़ सकता है. जिसकी वजह से मानसिक डिस्ऑर्डर, जैसे कि चक्कर आना, चलने में परेशानी होना, दौरे पड़ने और बोलने में दिक़्क़त हो सकती है. अगर मरीज़ को प्रभावी एंटीवायरल दावाएं और वैक्सीन्स नहीं भी दी गई हैं, तब भी बीमारी की शुरुआती अवस्था में मरीज़ की समुचित देखभाल बेहद असरकारक सिद्ध होती है.

निपाह वायरस पैरामाइक्सोविरिडे परिवार का सदस्य है, जिसमें खसरा और मम्पस जैसे दूसरे वायरस शामिल हैं. निपाह वायरस फ्रूट बैट यानी फल खाने वाले चमगदाड़ों से फैलता है, लेकिन चमगादड़ों पर इस वायरस का कोई असर नहीं होता है. एक बार जब ये वायरस मनुष्यों में पहुंच जाता है, तो फिर इसका स्वरूप बेहद घातक हो जाता है.

निपाह वायरस फ्रूट बैट यानी फल खाने वाले चमगदाड़ों से फैलता है, लेकिन चमगादड़ों पर इस वायरस का कोई असर नहीं होता है. एक बार जब ये वायरस मनुष्यों में पहुंच जाता है, तो फिर इसका स्वरूप बेहद घातक हो जाता है.

निपाह वायरस को अन्य जानवरों जैसे बकरी, कुत्ते, बिल्ली और सूअर से भी पृथक किया गया है. मलेशिया में जब निपाह वायरस का संक्रमण फैला था, उस दौरान शुरुआत में यह चमगादड़ों से सूअरों में और बाद में सूअरों से मनुष्यों में पहुंचा था. माना जाता है कि इसके विपरीत, बांग्लादेश और भारत में निपाह वायरस का संक्रमण सीधे चमगादड़ों से मनुष्यों में हुआ है और इसके बाद यह वायरस मानव से मानव में फैला है.

केरल में निपाह वायरस का दोबारा संक्रमण क्यों?

केरल वेस्टर्न घाट के नज़दीक स्थित है और यह एक घनी आबादी वाला राज्य है, इसके चलते यह जूनोटिक वायरस यानी जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाले वायरस के संक्रमण के लिहाज़ से संभावित हॉटस्पॉट बन जाता है. ज़ाहिर है कि ऐसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में फलदार पेड़ों की मौज़ूदगी होती है और इसलिए फल खाने वाले चमगादड़ जो कि इसके सबसे बड़े वाहक हैं, वो मानव बस्तियों के क़रीब रहते हैं और इसके चलते निपाह वायरस का मनुष्यों में संक्रमण फैलना आसान हो जाता है.

इसके साथ ही, हेल्थकेयर सिस्टम की निपाह वायरस के शुरुआती लक्षणों के बारे में पता लगाने की सीमित क्षमता भी इसे रोकने में एक बड़ी बाधा है. अगर स्वास्थ्य प्रणाली एवं जांच-पड़ताल की प्रक्रिया सशक्त हो, तो बीमारी के बारे में शुरुआत में ही पता चल सकता है और संक्रमण से बचा जा सकता है.

वायरस के प्रकोप का रहस्य

भारत में निपाह वायरस का संक्रमण पहले भी कई बार फैल चुका है. लेकिन किस तरीक़े से पहले व्यक्ति को इसका संक्रमण होता है, उसके बारे में अभी तक कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है. कहने का तात्पर्य यह है कि वह तरीक़ा, जिसके माध्यम से यह वायरस चमगादड़ों से सीधे मनुष्य में पहुंचता है, उसके बारे में कुछ भी पता नहीं. हालांकि, चमगादड़ों द्वारा खाए गए फल को मनुष्यों द्वारा सेवन करने से निपाह का संक्रमण होने की बातें आम जनमानस में ज़रूर फैली हुई हैं, लेकिन इसका कोई साक्ष्य मौज़ूद नहीं है.

वर्ष 2018 से निपाह के संक्रमण को लेकर प्रकाशित एक रिपोर्ट में भार्गवन और अन्य द्वारा बताया गया था कि इंडेक्स पेशेंट एक पशु प्रेमी हो सकता है और वह या तो चमगादड़ के बच्चे के संपर्क में आया होगा, या फिर उसने चमगादड़ के झूठे फल को खाया होगा.

बांग्लादेश में निपाह वायरस का संक्रमण फैलने को लेकर गहनता से जांच की गई है. इस जांच में वायरस के संक्रमण के लिए ताड़ का रस यानी ताड़ी एकत्र करने की प्रक्रिया को कहीं न कहीं ज़िम्मेदार पाया गया है. ताड़ी एकत्र करने की प्रक्रिया को जब शोधकर्ताओं ने इन्फ्रारेड कैमरों की मदद से देखा, तो उसमें रात के वक़्त ताड़ के पेड़ से रस निकालने वाले उपकणों के आस-पास चमगादड़ मंडराते हुए दिखाई दियें और इससे जिस बर्तन में ताड़ी को एकत्र किया जा रहा था, वो दूषित हो जाता है. हालांकि, इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि बांग्लादेश के ग्रामीण इलाक़ों में हज़ारों की संख्या में लोग नियमित रूप से ताड़ी पीते हैं, जबकि निपाह का संक्रमण कुछ गिने-चुने लोगों में ही होता है.

सटीक जानकारी पाने में दिक्कत?

निपाह वायरस के संक्रमण के स्रोत का पता लगाना वास्तव में बहुत जटिल कार्य है. इसमें सबसे बड़ी परेशानी यह है कि जो इंडेक्स पेशेंट होता है, यानी जो व्यक्ति सबसे पहले संक्रमित होता है, जब तक उसमें निपाह वायरस के संक्रमण की जांच शुरू होती है, तब तक उसकी मृत्यु हो चुकी होती है या फिर वो कुछ भी नहीं बता पाने की हालत में पहुंच चुका होता है. इसकी वजह यह है कि निपाह वायरस को लेकर जांच-पड़ताल तभी की जाती है, जब इससे संक्रमित पहले व्यक्ति में बीमारी गंभीर अवस्था में पहुंच जाती है. इसके अलावा मरीज़ में निपाह वायरस के संक्रमण का शक तब पैदा होता है, जब उसके नज़दीकी लोगों में भी यह बीमारी फैलने लगती है. जब तक इस बीमारी की पुष्टि होती है, तब तक हो सकता है कि पहले मरीज़ की मौत हो चुकी हो.

ऐसे हालातों में पहले व्यक्ति में निपाह वायरस का संक्रमण कैसे हुआ होगा, इसके बारे में पूरी जानकारी एकत्र करना असंभव हो जाता है. वर्ष 2018 से निपाह के संक्रमण को लेकर प्रकाशित एक रिपोर्ट में भार्गवन और अन्य द्वारा बताया गया था कि इंडेक्स पेशेंट एक पशु प्रेमी हो सकता है और वह या तो चमगादड़ के बच्चे के संपर्क में आया होगा, या फिर उसने चमगादड़ के झूठे फल को खाया होगा. चूंकि इंडेक्स पेशेन्ट के मामले तुलनात्मक रूप से बहुत कम हैं, इसलिए निपाह के संक्रमण और इसके प्रभाव के बारे में विभिन्न कड़ियों को जोड़ना बेहद चुनौतीपूर्ण है. हालांकि, यह कतई ज़रूरी नहीं है कि घटनाओं को जोड़ने से संक्रमण की वास्तविक वजह का सही-सही पता चल सके.

चमगादड़ की लार, प्रजनन द्रव, मल और मूत्र में निपाह वायरस मौज़ूद होता है. प्रजनन के समय में चमगादड़ की यह सारी चीज़ें आसानी से पेड़ों और ज़मीन पर मिल सकती हैं. देखा जाए तो इससे इसकी संभावना काफ़ी बढ़ जाती है कि प्रत्यक्ष तौर पर किसी अज्ञात वाहक द्वारा इस वायरस को फैलाया गया हो. जब तक यह पूरा रहस्य सुलझ नहीं जाता, तब तक इसके संक्रमण के ज़रिए के बारे में कोई ऐसा सटीक सुझाव देना असंभव होगा, जो कि भविष्य में निपाह के संक्रमण को रोकने में मददगार साबित हो सके. 

निपाह के प्रकोप से बचाव 

भारत के कई राज्यों में निपाह वायरस फैलाने वाली चमगादड़ों की पहचान की गई है. इस बात की भी बहुत अधिक संभावना है कि भारत के अन्य हिस्सों में भी निपाह का संक्रमण अलग-अलग तरीक़े से हुआ हो. लेकिन इसके बारे में कुछ भी इसलिए पता नहीं चल पाया, क्योंकि कई मामलों में निपाह से हुई बीमारी अपने आप ठीक हो गई थी और शुरुआती मरीज़ में निपाह संक्रमण का कोई संदेह नहीं हुआ था.

निपाह वायरस की भांति ही ऐसे अन्य संक्रमणों के सामाजिक और आर्थिक दुष्प्रभावों पर शायह की कभी कोई चर्चा की जाती है. केरल में जब वर्ष 2018 में निपाह वायरस फैला था, तब वहां व्यापक स्तर पर अफरातफरी का माहौल बन गया था. इसकी वजह से लोगों की आय पर असर पड़ा था, फलों की बिक्री में भारी गिरावट दर्ज़ की गई थी, यहां तक कि मिडिल ईस्ट के देशों ने तो केरल से फलों के आयात पर पाबंदी तक लगा दी थी. नतीज़तन राज्य में बेरोज़गारी बढ़ी, लोगों की कमाई कम हो गई, लोगों में घबराहट का माहौल बन गया और सामाजिक भेदभाव पैदा हो गया था. ज़ाहिर है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित नीतियों व रणनीतियों को बनाते वक़्त इन सभी मुद्दों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.

निपाह बनाम कोविड-19

कुछ समय पहले फैली कोविड-19 महामारी के बाद अब निपाह वायरस के ताज़ा संक्रमण ने लोगों में कहीं न कहीं घबराहट फैला दी है. पिछले तीन वर्षों में कोविड-19 महामारी के चलते कई लोग पहले ही अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को खो चुके हैं. ऐसे में जब लोग एक नए वायरस के संक्रमण के बारे में सुनते हैं, तो उनका किसी अनर्थ के बारे में सोचना लाज़िमी है.

कोरोना महामारी के पहले साल में जब लोगों में कोविड-19 वायरस के प्रति कोई नेचुरल इम्युनिटी नहीं बनी थी, तब SARS-CoV-2 वायरस का R-0 (R नॉट) यानी संक्रमण दर 2 से 3 थी. इसका अर्थ यह है कि अगर एक व्यक्ति COVID-19 वायरस से संक्रमित हुआ, तो वह व्यक्ति औसतन दो से तीन अन्य लोगों संक्रमित कर सकता है और फिर आगे ये तीन व्यक्ति अगले 9 लोगों को संक्रमित कर सकते हैं. संक्रमण का यह सिलसिला इसी तरह से आगे जारी रह सकता है.

निपाह वायरस को लेकर उन लोगों में किसी प्रकार की दहशत पैदा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जो संक्रमित व्यक्ति और क्षेत्र से बहुत दूर हैं.

इसके विपरीत निपाह वायरस का R-0 सिर्फ 0.4 है. इसका मतलब यह है कि अगर निपाह वायरस से 10 लोग संक्रमित होते हैं, तो आगे ये केवल चार लोगों तक ही इसका संक्रमण फैला सकते हैं और फिर ये चार लोग ज़्यादा से ज़्यादा दो लोगों को संक्रमित कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो जब किसी वायरस का R-0 एक से कम होता है, तो यह निश्चित है कि वो बीमारी आगे चलकर अपने आप समाप्त हो जाएगी.

वायरस का संक्रमण खत्म होने पर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग कितना सही?

निपाह एक संक्रामक बीमारी है और इमसें मृत्यु दर बहुत ज़्यादा है. यही वो बात है, जो पूरी दुनिया को प्रेरित करती है कि इस बीमारी की रोकथाम एवं इलाज के लिए पूरी गंभीरता के साथ प्रयास किए जाने चाहिए. यदि निपाह वायरस के संक्रमण को फैलने से पहले ही रोक लिया जाए, तो इसका स्पष्ट अर्थ है, लोगों को मरने से बचा लेना. इसीलिए कहा जा रहा है कि इसके कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के लिए अलग तरह की प्रक्रिया को अपनाने की ज़रूरत है, जो किस-किस तरीक़े से इस वायरस का प्रसार या संक्रमण हो सकता है, उस पर आधारित होनी चाहिए.

निपाह के मामले में इंडेक्स पेशेंट यानी पहला मरीज़ सबसे ज़्यादा संक्रमण फैलाने वाला होता है, क्योंकि उसमें खांसी और उल्टी जैसे बीमारी के गंभीर लक्षण होते हैं और यह अत्यधिक संक्रामक होते हैं. इसलिए ऐसे मरीज़ों को आमतौर पर अस्पताल में भर्ती कराया जाता है. यहां पर यह बात गौर करने लायक है कि निपाह वायरस से संक्रमित जो मरीज़ गंभीर रूप से बीमार होते हैं, उनकी हालत ऐसी नहीं होती है कि सार्वजनिक स्थानों पर जा सकें और दूसरे लोगों में वायरस फैला सकें. ऐसे में देखा जाए तो जो लोग मरीज़ की देखभाल में लगे होते हैं, वे ही मरीज़ के संपर्क में आते हैं और उन्हें ही संक्रमण के सबसे ज़्यादा ख़तरे का सामना करना पड़ता है. यानि कि जो व्यक्ति बीमारी के लक्षणों से पहले मरीज़ के संपर्क में आते हैं, उनकी तुलना में मरीज़ की देखभाल करने वालों को ज़्यादा ख़तरा होता है.

अधिकता से नुकसान

बगैर, समुचित लक्षणों एवं संदेह के, अत्यधिक कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग यानी संक्रमण के फैलाव के बारे में पता लगाना भी ठीक नहीं है. ज़ाहिर है कि इसकी वजह से फिज़ूल की चिंता एवं आर्थिक परेशानियां पैदा होती है, साथ ही संसाधनों का भी नुक़सान होता है. ऐसे में पड़ोसी राज्यों द्वारा संक्रमित मरीज़ों वाले स्टेट से आने वाले सभी लोगों की जांच करने का भी कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि इससे महामारी को रोकने में कोई मदद नहीं मिलेगी और कुछ भी हासिल नहीं होगा. इसके बजाए मरीज़ों की देखभाल में जुटे लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरूकता बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए. साथ ही बीमारी की निगरानी, रिपोर्टिंग एवं जांच-पड़ताल की सुविधाओं को सुधारने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. निपाह वायरस को लेकर उन लोगों में किसी प्रकार की दहशत पैदा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जो संक्रमित व्यक्ति और क्षेत्र से बहुत दूर हैं. ऐसा इसलिए, क्यों कि कोविड-19 के विपरीत निपाह वायरस पिछले 25 वर्षों के अंतराल में, यानी जब से इसके बारे में पता चला है, दूर-दूर तक नहीं फैला है. हालांकि, यह अलग बात है कि निपाह वायरस को इबोला वायरस, लासा फीवर, जीका वायरस एवं कुछ अन्य वायरसों के साथ महामारी फैलाने की क्षमता रखने वाले वायरसों की WHO की सूची में शामिल किया गया है. 


डॉ. राजीव जयदेवन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के कोचीन चैप्टर के पूर्व प्रेसिडेंट हैं और कोरोना वायरस महामारी के लिए गठित नेशनल टास्क फोर्स आईएमए के सदस्य रह चुके हैं.

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