Author : Gurjit Singh

Published on Aug 18, 2022 Updated 0 Hours ago

आज जब बड़ी ताक़तों के बीच मुक़ाबला रफ़्तार पकड़ रहा है, तो आसियान को समझना चाहिए कि एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था, उसके सहयोग के मॉडल के लिहाज़ से ज़्यादा अनुकूल है.

आसियान के 55 वर्ष; एक गतिशील इतिहास से नए आग़ाज़ तक का सफर

8 अगस्त 2022 को आसियान (ASEAN) ने अपनी 55वीं सालगिरह मनाई, जो इत्तिफ़ाक़ से नागासाकी पर परमाणु बम हमले की 77वीं बरसी भी थी. इस विरोधाभास के ज़रिए ये समझा जा सकता है कि नागासाकी पर परमाणु बम गिराने के बाद विश्व व्यवस्था में जो शक्ति संतुलन बना, उसमें आसियान ने अपनी उदारवादी रूप-रेखा के ज़रिए किस तरह तालमेल बिठाया है. 3 अगस्त 2022 को आसियान की मंत्रिस्तरीय बैठक (AMM) हुई, जिसमें संगठन की वर्षगांठ को तुलनात्मक रूप से सहजता से मनाया गया. आसियान के अध्यक्ष के रूप में कंबोडिया ने अपनी विश्वसनीयता फिर से स्थापित की, क्योंकि 2012 में जब आसियान की मंत्रिस्तरीय बैठक (AMM) में कोई समझौता नहीं हुआ था, तो उस वक़्त भी आसियान की अध्यक्षता कंबोडिया के ही पास थी.

आसियान समूह का गठन 1967 में उस वक़्त हुआ था, जब वियतनाम युद्ध अपने शिखर पर था. आसियान के चार्टर के सदस्य, फिलीपींस और थाईलैंड, SEATO के अंतर्गत, अमेरिका के सहयोगी देश थे.

आसियान का अब तक का सफ़र

आसियान ने अपने सफ़र की शुरुआत के साथ ही, जिस तरह से ख़ुद को बदलती विश्व व्यवस्था के हिसाब से ढाला है, उसका श्रेय तो आसियान को दिया ही जाना चाहिए. आसियान समूह का गठन 1967 में उस वक़्त हुआ था, जब वियतनाम युद्ध अपने शिखर पर था. आसियान के चार्टर के सदस्य, फिलीपींस और थाईलैंड, SEATO के अंतर्गत, अमेरिका के सहयोगी देश थे. दोनों देशों को इस बात की आशंका थी कि कहीं उनके यहां भी साम्यवाद का विस्तार न हो जाए और वो सुरक्षा के लिए फ़िक्रमंद हुए बग़ैर तरक़्क़ी करना चाहते थे. उन्होंने अपनी सुरक्षा का ज़िम्मा मोटे तौर पर अमेरिका के हवाले करके फिर अपने लिए एक ऐसे क्षेत्र का निर्माण किया, जो अपना सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास कर सके.

1984 में आज़ाद होने के बाद ब्रुनेई भी आसियान के पांच सदस्यीय गठबंधन का हिस्सा बन गया. 1989 में जब एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) की स्थापना हुई, तो आसियान ने उससे अपने लिए चुनौती महसूस की. वैसे तो आसियान के सात सदस्य देश, APEC में भी शामिल हैं. मगर, वो आसियान केंद्रित संस्था नहीं था. आसियान को ये एहसास हुआ कि सुरक्षा का मुद्दा अक्सर उसके अपना मक़सद हासिल करने की राह में बाधक बन जाता है. इसी वजह से 1994 में बाहरी सदस्यों के साथ मिलकर आसियान रीजनल फोरम (ARF) के रूप में पहला ऐसा संगठन बनाया गया, जिसके केंद्र में ख़ुद आसियान था. आज भी ARF आसियान केंद्रित सबसे बड़ा संगठन है, जिसके 27 सदस्य हैं. ARF कोई बहुत प्रभावशाली संस्था नहीं है और इसकी बैठकें विदेश मंत्री स्तर की होती हैं. ARF के गठन के अगले पांच वर्षों के भीतर, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया भी आसियान के सदस्य बन गए. वैसे तो 1999 के बाद आसियान में कोई नया देश शामिल नहीं हुआ है. हालांकि, तिमोल-लेस्टे बड़ी उत्सुकता से इसका सदस्य बनाए जाने का इंतज़ार कर रहा है.

हिंद प्रशांत क्षेत्र में इस वक़्त आसियान अग्रणी मोर्चे का संगठन बन गया है, क्योंकि दक्षिणी चीन सागर का विवाद उसके मुहाने पर आकर रुकता है. एक कार्यकारी एशिया प्रशांत का सामरिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण हिंद प्रशांत क्षेत्र में तब्दील होना, आसियान के सामने खड़ी बड़ी चुनौती है.

2023 में आसियान का अध्यक्ष इंडोनेशिया बनेगा, जो इसका सबसे बड़ा सदस्य देश है. वहीं, APEC की अध्यक्षता थाईलैंड के हाथों में होगी. काम करने की उदारवादी व्यवस्था की दरकार के तहत आसियान नियमित रूप से अपने काम-काज की समीक्षा करता है और सदस्यों के बीच तालमेल बढ़ाकर संगठन की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश करता है. इसके अहम फ़ैसलों में 1976 में दोस्ती और सहयोग की संधि करना भी शामिल था. ये संधि, आसियान के सदस्य देशों के बीच हुई थी और इसमें कोई भी इच्छुक देश शामिल हो सकता है. आज ट्रीटी ऑन  एमिटी ऐंड को-ऑपरेशन के 43 सदस्य देश हैं. 2015 में आसियान ने आर्थिक समुदाय, राजनीतिक समुदाय और सामाजिक- सांस्कृतिक समुदायों का गठन किया था. आसियान अपने साझीदारों के साथ की ज़्यादातर साझा गतिविधियां इन्हीं के ज़रिए संचालित करता है.

आसियान के सामने चुनौतियाँ

अन्य आसियान केंद्रित संगठनों जैसे कि ईस्ट एशिया समिट (EAS) के साथ अपने संपर्क को आसियान इन्हीं तीन स्तंभों के आधार पर बढ़ाने की कोशिश करता है. आसियान का सचिवालय इन्हीं अलग अलग ज़िम्मेदारियों के ज़रिए सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है. हालांकि, पिछले एक दशक के दौरान, जब इस क्षेत्र में अमेरिका का प्रभाव हल्का पड़ा है और चीन की आक्रामक नीयत बढ़ी है, तो आसियान को अपने कुछ साझीदारों के हवाले से बड़े सामरिक और प्रतिद्वंदी नज़रियों का सामना करना पड़ा है. चूंकि आसियान के पास सत्ता के संघर्ष में शामिल होने लायक़ ताक़त नहीं है, तो उसने चीन और अमेरिका के बीच बढ़ती होड़, क्वाड और AUKUS से ख़ुद को बचाने के लिए नए नए रास्ते निकाले हैं. अगर बड़ी ताक़तों के बीच ऐसा मुक़ाबला आने वाले समय में मद्धम पड़ जाता है, तो इससे सबसे ज़्यादा ख़ुशी आसियान को ही होगी. क्योंकि वैसी सूरत में आसियान को किसी का पक्ष लेने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी. हालांकि, आसियान देशों को लगता है कि वो अगले दो दशक में साउथ चाइना सी में बर्ताव के कोड ऑफ कंडक्ट के लिए चीन के साथ संवाद कर सकते हैं, और वैसी स्थिति में उन्हें चीन के प्रतिद्वंदी से मदद की दरकार ही नहीं होगी.

इस वक़्त आसियान के सामने भी कम-ओ-बेश वैसी ही चुनौतियां हैं, जैसी बाक़ी दुनिया के सामने खड़ी हैं. मसलन, महामारी से उबरना, आर्थिक विकास को दोबारा रफ़्तार देना, यूक्रेन संकट के चलते रूस पर लगे प्रतिबंधों और उसके असर से निपटना. आसियान के मंत्रियों ने म्यांमार के सत्ताधारी सैन्य जुंता के सामने आसियान के पांच सूत्रीय आम सहमति के फॉर्मूले को लागू करने के लिए एक समयसीमा तय की है, जिसके तहत म्यांमार को नवंबर में आसियान संबंधित शिखर सम्मेलन से पहले ये शर्त पूरी करनी है. म्यांमार ने आसियान की आम सहमति वाली व्यवस्था को नीचा दिखाया है और ऐसा लग रहा है कि अपनी अगली समीक्षा में बाक़ी आसियान देश, आम सहमति वाले फॉर्मूले से आगे की बात करेंगे.

इस वक़्त आसियान के सामने भी कम-ओ-बेश वैसी ही चुनौतियां हैं, जैसी बाक़ी दुनिया के सामने खड़ी हैं. मसलन, महामारी से उबरना, आर्थिक विकास को दोबारा रफ़्तार देना, यूक्रेन संकट के चलते रूस पर लगे प्रतिबंधों और उसके असर से निपटना.

आसियान की 55वीं मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान और आने वाले समय में पूर्वी एशिया सम्मेलन (EAS) और ARF की बैठकों से पहले ताइवान के मुद्दे पर चीन ने बेहद आक्रामक प्रतिक्रिया दिखाई है. अगर आसियान के मंत्रियों की बैठक में ताइवान का मुद्दा छाया रहा है, तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए. ताइवान के संकट को आसियान ने कितनी गंभीरता से लिया है, इसे हम इसी बात से समझ सकते हैं कि मंत्रिस्तरीय बैठक (AMM) के बाद, ताइवान विवाद को लेकर एक बयान अलग से जारी किया गया. इसमें आसियान ने ग़लतफ़हमी और बातचीत में किसी गड़बड़ी से बचने के लिए मुद्दे के शांतिपूर्ण बातचीत से समाधान पर ज़ोर दिया था. आसियान को ये बात अच्छे से पता है कि उनसे बहुत दूर स्थित होने के बाद भी, जिस तरह उन पर यूक्रेन संकट का बहुत बुरा असर पड़ा था, ठीक उसी तरह ताइवान में कोई संकट खड़ा हुआ, तो उसका पूरे क्षेत्र पर गहरा असर दिख सकता है. क्योंकि आसियान के सदस्य देश भौगोलिक रूप से ताइवान के बेहद क़रीब स्थित हैं.

आसियान अपनी सामरिक स्वायत्तता बरक़रार रखने की कोशिश करता है. इसमें ऐसे मुद्दों पर ख़ामोशी अख़्तियार करना शामिल है, जिनके बारे में आसियान को लगता है कि उसके बोलने पर उसके दोस्त नाराज़ हो जाएंगे. हालांकि आज जब दुनिया धीरे-धीरे अमेरिका और चीन के बीच दो ध्रुवों में बंटती दिख रही है, तो आसियान को इस बात का एहसास होना चाहिए कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था उसके सहयोग की भावना वाले मॉडल के लिए ठीक उसी तरह अधिक उपयोगी होगी, जिस तरह भारत और अन्य देशों के लिहाज़ से ठीक होगी. एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में सामरिक स्वायत्तता की ज़्यादा वैधता होती है. चूंकि आसियान एक कार्यकारी संस्था है, तो शायद करना ये चाहिए कि उसे उभरती हुई दोध्रुवीय सामरिक दुविधा को लेकर अपना ध्यान नहीं भटकाना चाहिए. उसके बजाय आसियान को एक बहुध्रुवीय विश्व आर्थिक व्यवस्था बनाने में अपना योगदान देना चाहिए. ऐसा करके वो एक अहम भूमिका निभा सकते हैं.

अनिश्चितताओं से निपटने के लिए आसियान और उच्च स्तरीय टास्क फोर्स के सदस्य 2025 के बाद का आसियान का नज़रिया विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं. ये टास्क फोर्स वर्ष 2022 के अंत तक  आसियान का 2025- 2035 के लिए साझा दृष्टिकोण पेश करेंगे. अब तक की परिचर्चाओं से जो कुछ बातें उभरकर सामने आई हैं, उनसे आसियान को इसके सदस्य देशों की 67 करोड़ आबादी के लिए ज़्यादा प्रासंगिक बनाने पर ज़ोर देने की तस्वीर उभरती है. परिचर्चाओं में आसियान को जनता पर केंद्रित संगठन बनाने पर भी ज़ोर दिया गया. आसियान की स्थायी प्रतिनिधियों की समिति, इसके चार्टर में संशोधन पर भी काम कर रही है.

आसियान और भारत

आसियान और भारत भी इस साल डायलॉग पार्टनर बनने की तीसवीं सालगिरह मना रहे हैं. ये एक बड़ी उपलब्धि है. इस साल जून में आसियान और भारत के विदेश मंत्रियों की विशेष बैठक के दौरान, कई मुद्दों पर आसियान और भारत के नज़रिए में समानता दिखाई पड़ी थी. आसियान अपनी साझीदारियां भी बढ़ा रहा है और उसने 2021 में ब्रिटेन को 11वें डायलॉग पार्टनर का दर्जा दिया था. 2022 में ब्राज़ील और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को ख़ास क्षेत्रों के साझीदार का दर्जा दिया गहया था. नॉर्वे, स्विटज़रलैंड और तुर्किये[1] भी आसियान के ख़ास क्षेत्रों के वार्ता साझीदार हैं. इसके अलावा, चिली, फ्रांस, जर्मनी और इटली के साथ आसियान की विकास संबंधी साझीदारी है.

आसियान और भारत एक आर्थिक और कार्यकारी रिश्ते विकसित करने के लिए और नज़दीकी से सहयोग कर सकते हैं. इसके तहत, बढ़ते सामरिक ध्रुवीकरण को परे रखकर, बाक़ी सभी मौजूदा विषयों से निपटा जा सकता है. भारत की एक्ट ईस्ट नीति ने आसियान के तीन स्तंभों के तहत संपर्क को संतुलित बनाए रखा है और दोनों के बीच रक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग बहुत अधिक बढ़ा है. भारत और आसियान के बीच व्यापार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) दोनों ही बढ़ रहे हैं. इसलिए, दोनों को आसियान के अन्य सहयोगियों ख़ास तौर से जापान, कोरिया और चीन के साथ इसी क्षेत्र में बढ़ रहे संबंध से होड़ लगाने की कोई ज़रूरत है नहीं.

आसियान को ये मानना होगा कि भारत उनके साथ साझेदारी चाहता है, उनसे दान वाला रिश्ता नहीं चाहता. साझेदारी का मतलब साझा ज़िम्मेदारियां होता है. भारत, आसियान के आपसी गठजोड़ का नियमित रूप से समर्थक रहा है और उसे केंद्र में रखने में विश्वास रखता है. आज जैसे अंतरराष्ट्रीय समीकरण हैं, उनमें ख़ुद आसियान को चाहिए कि वो अपनी एकता और ख़ुद को केंद्र में बनाए रखने के लिए और अधिक कोशिश करे.

आसियान की सलाह मानने से इनकार की म्यांमार के सैन्य शासकों की ज़िद हो या फिर यूक्रेन का संकट. दोनों ने ये दिखाया है कि आसियान के सदस्य देशों के बीच तालमेल की कमी है. हालांकि, आसियान और भारत के बीच इन दोनों ही मुद्दों पर वैचारिक समानता है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है.

भारत की एक्ट ईस्ट नीति ने आसियान के तीन स्तंभों के तहत संपर्क को संतुलित बनाए रखा है और दोनों के बीच रक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग बहुत अधिक बढ़ा है. भारत और आसियान के बीच व्यापार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) दोनों ही बढ़ रहे हैं.

नवंबर में आसियान- भारत शिखर सम्मेलन के दौरान भारत को एक व्यापक सामरिक साझीदार का दर्जा दिए जाने की संभावना काफी अधिक है. इसका मतलब ये है कि आसियान के सदस्य देशों के बीच भारत के प्रति पर्याप्त विश्वास का भाव है और दोनों ही पक्षों के बीच ऐसे पर्याप्त साझा मंच हैं, जहां भारत और आसियान अपने कार्यकारी और आर्थिक सहयोग को लेकर चर्चा कर सकते हैं. दोनों पक्षों को चाहिए कि वो एक लचीली वैल्यू चेन बनाने को सबसे ज़्यादा तवज्जो दें. आसियान और भारत मिलकर ये मूल्य आधारित श्रृंखला विकसित कर सकते हैं, क्योंकि उनके बीच वस्तुओं में व्यापार का समझौता है, जिसकी समीक्षा आने वाले समय में होने वाली है.

आसियान के कई देशों की समस्याएं ठीक वैसी ही हैं, जैसी भारत की हैं. इस मामले में स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने के लिए प्रभावी निवेश पर विचार किया जा सकता है. क्योंकि ये निजी क्षेत्र की पहल है और ये त्रिपक्षीय संबंधों की सूरत में भी अच्छे से काम करता है. स्वास्थ्य क्षेत्र भी दोनों पक्षों के लिए ख़ास दिलचस्पी का विषय हो सकता है, जिसके तहत आख़िरी आदमी तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने की कनेक्टिविटी विकसित करने के लिए प्रभावी निवेश की मदद ली जा सकती है. भारत और आसियान के बीच सहयोग का एक और क्षेत्र बच्चों के संरक्षण का भी हो सकता है क्योंकि आसियान के कई सदस्य देशों की आबादी युवा है और उनमें बच्चों की तादाद भी काफ़ी अधिक है. बच्चों और उनके अधिकारों का संरक्षण करना, उनकी पढ़ाई और अच्छी सेहत सुनिश्चित करके उन्हें अच्छे नागरिक बनाना, पूरे क्षेत्र के भविष्य के लिए बड़ा योगदान साबित हो सकता है. ये सारे काम सरकारों के सीधे संपर्क के बग़ैर ही किए जा सकते हैं. भारत और आसियान की उच्च स्तरीय टास्क फोर्स के काम में मदद के लिए दोनों पक्षों के समझदार लोगों का समूह बनाकर, अगले पांच सालों के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य, डिजिटल नज़रिया, आर्थिक और सामाजिक प्रभाव और स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल करने पर ज़ोर देना चाहिए. ये काम ट्रैक 1.5 के आधार पर होना चाहिए.

कोशिश ये होनी चाहिए कि इन कामों के लिए ग़ैर सरकारी फंड का सही दिशा में और ख़ास तौर से कई लाइटहाउस परियोजनाओं में इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इससे निजी क्षेत्र, नागरिक समुदाय और भारत के मिसाल बन चुके सरकारी कार्यक्रमों में नई ऊर्जा आएगी, जो आसियान के कई साझीदारों के लिए एक अहम मॉडल साबित हो सकता है.

[1] The Republic of Türkiye changed its official name from The Republic of Turkey on 26 May 2022.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.