Author : Navdeep Suri

Published on Sep 17, 2022 Updated 0 Hours ago

पश्चिमी एशिया में भारत की डी-हाइफ़नेशन नीति इज़राइल के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को आगे बढ़ाने में कारगर रही है.

द्विपक्षीय रिश्तों के 30 साल: भारत-इज़राइल रिश्तों की पड़ताल

हाल ही में भारत और इज़राइल ने अपने पूर्ण राजनयिक रिश्तों की 30वीं सालगिरह का जश्न मनाया. इस मौक़े पर दोनों देशों के ऐतिहासिक स्थानों पर झंडे के रंग में रोशनी की गई. इस मौक़े को यादगार बनाने के लिए एक लोगो भी जारी किया गया. इसमें दोनों मुल्कों की मज़बूत दोस्ती और सम्मान के प्रतीक के तौर पर स्टार ऑफ़ डेविड और अशोक चक्र को जगह दी गई है. 

भारत ने 1950 में इज़राइल को मान्यता देते हुए मुंबई में इज़राइली काउंसुलेट खोलने की मंज़ूरी दे दी थी. हालांकि तब इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक रिश्ते बहाल करने की प्रक्रिया को टाल दिया गया था. इस फ़ैसले के पीछे की वजह साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलनों को भारत का समर्थन और अरब देशों के साथ नज़दीकी ताल्लुक़ात थे. आख़िरकार 1992 में इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक रिश्ते बहाल हो गए. हालांकि इसके बाद के कालखंड में भी भारतीय पक्ष की ओर से शीर्ष स्तर पर इज़राइल का दौरे किए जाने के इक्कादुक्का उदाहरण ही देखने को मिले. 1998 से 2014 के बीच सिर्फ़ 2 मौक़ों- साल 2000 और 2001 में ही भारतीय विदेश मंत्री की ओर से इज़राइल का शीर्षस्तरीय दौरा किया गया. 

2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने इज़राइल की ऐतिहासिक यात्रा की. 2018 में बेंजामिन नेतन्याहू ने भी भारत का जवाबी दौरा किया. इन यात्राओं ने द्विपक्षीय रिश्तों में क्रांतिकारी बदलाव की नींव रखी. दोनों देशों के बीच मज़बूत सैन्य तालमेल का दायरा सामरिक भागीदारी की ओर बढ़ता चला गया

बहरहाल 2015 में हालात बदल गए. उस साल प्रणब मुखर्जी इज़राइल का दौरा करने वाले पहले भारतीय राष्ट्रपति बन गए. इसके बाद 2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने इज़राइल की ऐतिहासिक यात्रा की. 2018 में बेंजामिन नेतन्याहू ने भी भारत का जवाबी दौरा किया. इन यात्राओं ने द्विपक्षीय रिश्तों में क्रांतिकारी बदलाव की नींव रखी. दोनों देशों के बीच मज़बूत सैन्य तालमेल का दायरा सामरिक भागीदारी की ओर बढ़ता चला गया. दरअसल इज़राइल ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत की सहायता की थी. इसी तरह पाकिस्तान के साथ 1965, 1971 और 1999 की लड़ाइयों में भी इज़राइल ने भारत की काफ़ी मदद की थी. इसके अलावा आर्थिक विकास और प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर भी दोनों देशों के बीच बेहद क़रीबी रश्ते रहे हैं. 

बढ़ती आर्थिक भागीदारी

द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोतरी के साथ-साथ विविधता भी आई है. अब इसमें इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी, परमाणु उत्पाद और मेडिकल साज़ोसामान भी जुड़ गए हैं. (टेबल 1 और 2). वर्ष 2000 में दोनों देशों के आपसी व्यापार का आकार 90 करोड़ अमेरिकी डॉलर था जो 2021 में बढ़कर 7.67 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. (ग्राफ़ 1). स्टार्ट-अप और टेक इकोसिस्टम में भी भारी-भरकम निवेश देखने को मिल रहा है. 2021 तक भारत की तमाम परियोजनाओं में इज़राइल का कुल निवेश 27 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंच चुका था. स्वच्छ ऊर्जा, जल प्रबंधन और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश करने वाले जाने माने शीर्ष तीन निवेशकों में टेवा फ़ार्मास्यूटिकल्स, इकोपिया और Naa’n Dan Jain शामिल हैं. 

ग्राफ़ 1: भारत और इज़राइल के बीच कुल व्यापार (10 लाख अमेरिकी डॉलर में)

30 Years Of Bilateral Ties What Indo Israeli Relations Look Like

टेबल 1: भारत से इज़राइल को होने वाले निर्यात के शीर्ष 10 उत्पाद

30 Years Of Bilateral Ties What Indo Israeli Relations Look Like

टेबल 2: इज़राइल से भारत आयात किए जाने वाले शीर्ष 10 उत्पाद

पिछले 2 वर्षों में इज़राइल के स्टार्ट-अप नेशनल सेंटर और भारत के उद्यमिता केंद्रों (जैसे iCreate और TiE) के बीच अनेक समझौता पत्रों (MoUs) पर दस्तख़त हुए हैं. वेंचर कैपिटलिस्ट्स ने टेक स्टार्ट-अप्स में फ़ंडिंग करने में भारी दिलचस्पी दिखाई है. टेक-आधारित समाधानों की तलाश में जुटी भारतीय कंपनियों और बड़ा बाज़ार ढूंढ रही इज़राइली इकाइयों के लिए विलय (mergers) एक व्यावहारिक कारोबारी मॉडल के तौर पर उभरकर सामने आया है. नतीजतन TCS, इंफ़ोसिस और विप्रो जैसी भारत की मेगा टेक कंपनियों के दफ़्तर तेल अवीव की वाणिज्यिक सड़कों पर नज़र आने लगे हैं. अडानी ग्रुप द्वारा हाइफ़ा पोर्ट (इज़राइल का दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह) के अधिग्रहण से आर्थिक भागीदारी में रसद से जुड़ा एक नया आयाम जुड़ गया है. 

हाल ही में दोनों देशों ने टेक के क्षेत्र में आपसी संबंधों में रफ़्तार भरते हुए भारत-इज़राइल औद्योगिक अनुसंधान और विकास और नवाचार कोष (14F) के दायरे का विस्तार किया है. इसमें नवीकरणीय ऊर्जा और ICT जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया है. शिक्षा जगत और कारोबारी इकाइयों की बढ़ी भागीदारियों के ज़रिए इस क़वायद को आगे बढ़ाया गया है. मार्च 2021 में इंडियन ऑयल और गैस क्षेत्र की विशाल कंपनी IOCL ने इज़राइली स्टार्ट अप-फ़िनर्जी के साथ साझा उपक्रम स्थापित किया. इसका मक़सद हरित गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए एल्युमिनियम-एयर बैटरी का विनिर्माण करना है.

पानी और खेती-बाड़ी 

2017 से भारत और इज़राइल के संबंधों का एक अनोखा पहलू पानी और कृषि के क्षेत्रों में बढ़ता गठजोड़ है. दरअसल इज़राइल अपनी प्रौद्योगिकी की मदद से अपने अपशिष्ट जल (wastewater) के 90 प्रतिशत हिस्से को दोबारा इस्तेमाल में लाने लायक़ बना देता है. इज़राइल के इस कारनामे से प्रभावित होकर भारतीय अधिकारियों ने सिर पर मंडराते जल संकट से निपटने के लिए इज़राइल के अंतरराष्ट्रीय विकास संगठन माशेव के साथ भागीदारी की है. फ़िलहाल भारत में जल वितरण और प्रबंधन, लीकेज का पता लगाने, कचरा प्रबंधन, खारापन हटाने और जल सुरक्षा के क्षेत्र में तक़रीबन 30 इज़राइली परियोजनाएं चालू हैं. 

टपक सिंचाई (drip irrigation) और खारापन दूर करने में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी कामयाब रही है. पिछले तीन-चार वर्षों में विश्वविद्यालय स्तर के गठजोड़ों ने भी बेहतर नतीजे दिए हैं. पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए तेल अवीव यूनिवर्सिटी ने केरल की अमृता यूनिवर्सिटी के साथ गठजोड़ किया है. इज़राइल की यही यूनिवर्सिटी गंदे पोखरों में अपशिष्ट जल के प्रबंधन की निगरानी भी पंजाब की थापर यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर रही है. IIT मद्रास के साथ मिलकर वो पानी की साफ़-सफ़ाई से जुड़ी प्रौद्योगिकी का विकास कर रही है. 

भारत ऐसा इकलौता देश है जहां इज़राइल ने जल दूत (Water Attaché) के रूप में एक जल संसाधन विशेषज्ञ को तैनात कर रखा है. नई दिल्ली स्थित इज़राइली दूतावास में तैनात ये अधिकारी चार स्तंभों- कृषि, उद्योग, प्रकृति और शहरी उपभोग में इज़राइल की भागीदारी की अगुवाई करते हैं. वो साझा जल प्रौद्योगिकी केंद्रों के ज़रिए क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों को भी आगे बढ़ा रहे हैं. इस क्षेत्र में धरातल तक कामयाबी हासिल करने के व्यापक उद्देश्य के साथ सरकारी अधिकारियों के लिए ये कार्यक्रम शुरू किया गया है. 

फ़िलहाल भारत में जल वितरण और प्रबंधन, लीकेज का पता लगाने, कचरा प्रबंधन, खारापन हटाने और जल सुरक्षा के क्षेत्र में तक़रीबन 30 इज़राइली परियोजनाएं चालू हैं. 

कृषि क्षेत्र की बात करें तो भारत-इज़राइली कृषि परियोजना (IIAP) भारत के 21 राज्यों में 29 उत्कृष्टता केंद्रों (CoEs) का संचालन कर रही है. इनका ज़ोर मुख्य रूप से वर्टिकल फ़ार्मिंग, मिट्टी के सौरीकरण (soil solarisation) और बढ़ती उत्पादकता पर है. विभिन्न फ़सलों की खेती में इन केंद्रों को विशेषज्ञता हासिल है- इनमें सब्ज़ियां, आम, खट्टे फल और ग़ैर-कृषि क्रियाकलाप (जैसे मधुमक्खी पालन, पशुपालन) शामिल हैं. एक आकलन के मुताबिक ये CoEs हर साल उच्च गुणवत्ता वाली सब्ज़ियों के 2.5 करोड़ अंकुर तैयार करते हैं. यहां उच्च गुणवत्ता वाले फलों के 4 लाख पौधे भी तैयार होते हैं. इसके अलावा भारतीय किसानों की एक बड़ी आबादी को ताज़ातरीन प्रौद्योगिकियों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. 

रक्षा और सुरक्षा

इज़राइल से हथियार आयात करनेवाले सबसे बड़े देशों में भारत का नाम शुमार है. इज़राइल द्वारा युद्ध सामग्रियों के सालाना निर्यात में भारत का हिस्सा 40 प्रतिशत है. 1992 से भारत को इज़राइल द्वारा तक़रीबन 40 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के पूरी तरह से तैयार हथियार भंडारों और प्रधान उप-प्रणालियों की आपूर्ति किए जाने का अनुमान है (Chaudhuri and Rein 2022). दोनों देशों की रक्षा भागीदारियों में इज़राइल की अहम प्रौद्योगिकियों की साझेदारी भी शामिल है. इनमें DRDO द्वारा डिज़ाइन और तैयार की जा रही मिसाइल, इलेक्ट्रॉनिक जंगी प्रणालियां, नैवीगेशन सिस्टम और हथियार नियंत्रण प्रणाली शामिल हैं.  

हाल के वर्षों में आत्मनिर्भरता की ओर भारत के झुकाव के चलते रक्षा क्षेत्र में साझा रक्षा उपक्रमों की स्थापना हुई है. हाल में भारत-इज़राइल विज़न ऑन डिफ़ेंस को-ऑपरेशन पर हुआ दस्तख़त उसी दिशा में उठाया गया क़दम है. दोनों देशों द्वारा चलाए जा रहे साझा उत्पादन और विकास से जुड़े कार्यक्रमों में अत्याधुनिक हथियार प्रणाली शामिल हैं. इन चुनिंदा उत्पादों में सतह से हवा में मार करने वाली बराक 8 मिसाइल, स्काईस्ट्राइकर ड्रोन्स और ट्रेवोर असाल्ट राइफ़ल्स शामिल हैं. 

सुरक्षा के दायरे में सहयोग का एक बड़ा क्षेत्र साइबर सुरक्षा है. प्रधानमंत्री मोदी ने 2017 में अपने इज़राइल दौरे में ऐसी भागीदारी की संभावना पहचानी थी. उसके बाद से इज़राइल के अनेक यूनिकॉर्नों ने भारत में कामकाज शुरू कर दिया है. इनमें विज़, ओरका सिक्योरिटी और कोरालॉजिक्स शामिल हैं. 2020 में इज़राइल के नेशनल साइबर डायरेक्टोरेट (INCD) और इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (CERT- In) ने साइबर ख़तरों की सूचना के आदान-प्रदान और क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों के ढांचे का उन्नत स्वरूप तैयार करने के लिए एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए. इन प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए मार्च 2022 में पुणे स्थित महाराष्ट्र इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ने इज़राइली साइबर शिक्षा इकाई ThriveDX के साथ एक साइबर सुरक्षा बूटकैंप का आयोजन किया. इसका मक़सद विश्वविद्यालय के छात्रों और कामकाजी पेशेवरों के बीच साइबर सुरक्षा से जुड़ी जागरूकता का प्रसार करना था.

इज़राइल और फ़िलीस्तीन दोनों के साथ भारत

जबसे भारत ने इज़राइल-फ़िलीस्तीन संघर्ष को दोनों पक्षों के साथ अपनी दोस्ती से अलग करने की सक्रिय क़वायद शुरू की, तबसे इज़राइल के साथ भारत की भागीदारी में ज़ाहिर तौर पर निखार आना शुरू हो गया. दरअसल भारत की मौजूदा सरकार ने पूरी सावधानी के साथ दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को प्रत्यक्ष और ज़ाहिर बनाने के प्रयास किए हैं. भारत की कोशिश रही है कि दोनों मुल्कों के साथ उसके रिश्तों पर इज़राइल और फ़िलीस्तीन के आपसी संबंधों का प्रभाव न हो. साथ ही भारत ने ये भी सुनिश्चित किया है कि दोनों में से किसी भी पक्ष को एक-दूसरे के रास्ते में अड़ंगा डालने के मौक़े ना मिलें. 2017 में प्रधानमंत्री मोदी के इज़राइल दौरे में इसकी बानगी देखने को मिली थी. उस वक़्त उन्होंने अपनी इज़राइल यात्रा के साथ रामल्लाह स्थित फ़िलीस्तीनी प्राधिकरण के दौरे को शामिल नहीं किया था, बल्कि 2018 में अलग से फ़िलीस्तीन की यात्रा की थी.

इस बीच भारत  ने फ़िलीस्तीनी राज्य को अपना सैद्धांतिक समर्थन जारी रखा है. यहां तक कि कई मौक़ों पर भारत ने इज़राइल के ख़िलाफ़ भी मतदान किया है. 2014 में भारत ने गाज़ा में इज़राइली आक्रामकता के ख़िलाफ़ जांच शुरू करने के UNHRC के प्रस्ताव का समर्थन किया था. 2015 में फ़िलीस्तीन में मानव अधिकारों के उल्लंघन की आलोचना करने वाले एक और प्रस्ताव पर भारत ने इज़राइल के ख़िलाफ़ वोट डाला था. इसके बाद 2021 में भारत ने 2 और प्रस्तावों का समर्थन किया- पहला प्रस्ताव फ़िलीस्तीनी लोगों के आत्म-निर्णय के अधिकार से जुड़ा था जबकि दूसरा प्रस्ताव पूर्वी येरुशलम में इज़राइली बस्तियों पर था. 

आगे की राह

1992 में औपचारिक राजनयिक रिश्तों के आग़ाज़ के बाद से दोनों ही देश एक लंबा सफ़र तय कर चुके हैं. ख़ासतौर से प्रधानमंत्री मोदी के 8 साल के कार्यकाल में इसमें तेज़ प्रगति देखी गई है.

आगे चलकर दोनों देशों के बीच समग्र मुक्त व्यापार समझौते (जिसमें सेवाओं का व्यापार भी शामिल है) से आर्थिक रिश्तों को नई रफ़्तार मिलने के आसार हैं. पानी के क्षेत्र में इज़राइली प्रौद्योगिकी की मदद से भारत विभिन्न इलाक़ों में जल संकट के समाधान के लिए एक केंद्रीकृत मंच तैयार कर सकता है. साइबर सुरक्षा दायरे में साझा डॉक्टरल फ़ेलोशिप के ज़रिए A2A गठजोड़ों को और गहरा करने पर ज़ोर दिया जा सकता है. निजी क्षेत्र को इस भागीदारी में और सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है. 

इन प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए मार्च 2022 में पुणे स्थित महाराष्ट्र इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ने इज़राइली साइबर शिक्षा इकाई ThriveDX के साथ एक साइबर सुरक्षा बूटकैंप का आयोजन किया.

टावर सेमीकंडक्टर भारत में चिप-निर्माण करने वाला कारखाना खोलने की योजना बना रहा है. चीन पर निर्भरता घटाने के इरादे से शुरू की गई भारत की उत्पादकता-आधारित प्रोत्साहन योजना के इसमें मददगार साबित होने के आसार हैं. भारत नैनो और रेडार-संचालित सैटेलाइट प्रणालियों के विकास के लिए इज़राइल के साथ मिलकर काम कर सकता है.

अब्राहम समझौते और नए-नवेले I2U2 समूह ने त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय स्तर पर रिश्तों के विस्तार के नए अवसर पैदा कर दिए हैं. पहली 2 I2U2 परियोजनाओं के तहत इज़राइली और अमेरिकी प्रौद्योगिकी प्लेटफ़ॉर्मों और संयुक्त अरब अमीरात की पूंजी की मदद से भारत में खाद्य सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी परियोजनाएं शुरू की जाएंगी. इन पायलट परियोजनाओं के कामयाब क्रियान्वयन से परिवहन, स्वास्थ्य सेवा समेत अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की क़वायदों के मौक़े खुल जाएंगे.     

इज़राइल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू दोनों देशों के बीच के संबंधों को “स्वर्ग में रचाया हुआ रिश्ता” क़रार दे चुके हैं. भारत और इज़राइल के रिश्ते चौथे दशक में प्रवेश कर रहे हैं और वक़्त के साथ दोनों के संबंधों में और मज़बूती आती साफ़ दिखाई दे रही है.


हरगुन सेठी ओआरएफ़ में रिसर्च इंटर्न हैं.

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