Published on Oct 27, 2021 Updated 14 Days ago

चूंकि संप्रभु देश तकनीकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को “वश में करने” के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, तो क्या असाधारण कल्पना से भी आगे सफलता के लिए तकनीकी प्लैटफॉर्म को दंडित किया जाना चाहिए?

21वीं शताब्दी की पौराणिक कथाएं: बिग टेक का उदय (और पतन?)

ये गहराई से उठा, शुरू में बेहद छोटा था, और ख़ुद को बचाए रखने में वो लड़खड़ा रहा था. शुरुआत में दुनिया को ये पता नहीं था कि उसका क्या इस्तेमाल करें- ये एक निराकार आभासी चीज़ थी जो इंटरनेट पर सवार थी.

महज़ 30 साल पहले लोग इंटरनेट या इंटरनेट पर मौजूद किसी चीज़ में बहुत ज़्यादा दिलचस्पी नहीं रखते थे. वास्तव में अमेरिका के अर्थशास्त्री और 2008 के नोबल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुगमैन का 1998 का एक उद्धरण, जिसे तकनीकी विश्लेषक बेन थॉम्पसन सामने लाकर आए, बुरी तरह से इंटरनेट को कम करके आंकता है. इसमें कहा गया था, “2005 तक ये साफ़ हो जाएगा कि अर्थव्यवस्था पर इंटरनेट का असर फैक्स मशीन से ज़्यादा नहीं रहा है.”

इस तरह दुनिया ने काफ़ी हद तक इस सेक्टर को बंधनमुक्त होकर बढ़ने के लिए अपने उपकरणों पर छोड़ दिया क्योंकि किसी ने वास्तव में ये नहीं सोचा कि दो दशकों में ये निराकार इंटरनेट एक पूरी तरह से दीर्घकाय आकार में बदल जाएगा, इतना बड़ा हो जाएगा कि हमारे दिमाग़ पर राज करेगा और हमारे बर्ताव की भविष्यवाणी करेगा.

अमेरिका के अर्थशास्त्री और 2008 के नोबल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुगमैन का 1998 का एक उद्धरण, जिसे तकनीकी विश्लेषक बेन थॉम्पसन सामने लाकर आए, बुरी तरह से इंटरनेट को कम करके आंकता है. इसमें कहा गया था, “2005 तक ये साफ़ हो जाएगा कि अर्थव्यवस्था पर इंटरनेट का असर फैक्स मशीन से ज़्यादा नहीं रहा है.” 

किंवदंती में जिस लेविथान प्राणी का ज़िक्र किया गया है अगर उसे 21वीं सदी में रूपान्तरित किया जाए तो वो पांच सिरों वाला विशालकाय प्राणी होगा जिसे लोग बिग टेक (एपल, गूगल, अमेज़न, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट) के नाम से जानते हैं जबकि दूसरे छोटे व्यक्तिगत डाटा पर नज़र रखने वाले प्लैटफॉर्म इस प्राणी के हाथ, पैर, आंख और कान के तौर पर काम कर रहे हैं. इस तरह एक हमेशा बदलने वाला फुर्तीला विशालकाय प्राणी बनता है जो इंटरनेट के ज़रिए तेज़ रफ़्तार से पूरी दुनिया में इस तरह घूमता है मानो ये एक जादुई कालीन हो जो हमारी ज़िंदगी पर ज़्यादा से ज़्यादा पहुंच और नियंत्रण बना रहा है. ऑनलाइन पिज़्ज़ा ऑर्डर करने के लिए अपना क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने के बाद आप उस वक़्त हैरान नहीं हों जब आप फेसबुक, इंस्टाग्राम या यूट्यूब पर पिज़्ज़ा का विज्ञापन देखना शुरू करें. ये विज्ञापन आपको और पिज़्ज़ा ऑर्डर करने के लिए लुभाएंगे क्योंकि बिग टेक को ‘पता’ है कि आप पिज़्ज़ा ख़रीद सकते हैं. जब आप उदास होने के बारे में कोई फेसबुक पोस्ट लिखते हैं तो उस वक़्त आश्चर्य में नहीं पड़ें जब गूगल सर्च करने पर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में विज्ञापन देखना शुरू करेंगे.

2016 के अमेरिकी चुनाव के दौरान जब बेहद कम लोगों को लग रहा था कि ट्रंप जीतेंगे तो बड़े पैमाने पर रूस के लोग अमेरिका के सोशल मीडिया और पेपैल यूज़र को दुष्प्रचार के ज़रिए निशाना बना रहे थे. 2018 में वॉट्सएप पर फैली अफ़वाह की वजह से असम में दो लोगों की मौत हो गई. 2018 में श्रीलंका ने मुसलमानों और सिंहला समुदाय के लोगों के बीच कहा-सुनी के बाद उत्तेजक सामग्री को फैलने से रोकने के लिए फेसबुक और वाइबर मैसेजिंग एप की सेवाओं को बंद कर दिया.

कोई भी देश लेविथान के अनुचित असर से अछूता नहीं रह पाया है और कोई भी सरकार अपने नागरिकों को नुक़सान पहुंचते या लोकतांत्रिक प्रक्रिया में छेड़छाड़ होते चुपचाप नहीं देख सकती. जैसा कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म के बारे में कहा, “वो लोगों को मार रहे हैं.”

तकनीकी कंपनियों को नियंत्रित करने को लेकर कई वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं करने के बाद सरकारें अपनी ताक़त दिखा रही हैं. भारत ने आननफानन में 59 से ज़्यादा चीन के एप पर पाबंदी लगा दी जिनमें बेहद सफल टिकटॉक भी शामिल है. इस पाबंदी का मक़सद ये दिखाना था कि भारत राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं करेगा भले ही इसकी वजह से एक महत्वपूर्ण व्यापार साझेदार चीन ग़ुस्सा हो.

फिर कम-से-कम दो वर्षों तक मध्यस्थ दिशानिर्देश में संशोधन पर विचार करने के बाद 2021 में नये राजपत्रित नियम प्रकाशित किए गए. ये नियम सरकार के दृढ़तापूर्वक उस बयान के कुछ ही घंटों के बाद आए जिसमें कहा गया था, “भारत में कारोबार करने के लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म का स्वागत है लेकिन उन्हें भारत के संविधान और क़ानून का पालन करना होगा.”

कोई भी देश लेविथान के अनुचित असर से अछूता नहीं रह पाया है और कोई भी सरकार अपने नागरिकों को नुक़सान पहुंचते या लोकतांत्रिक प्रक्रिया में छेड़छाड़ होते चुपचाप नहीं देख सकती. 

ऑस्ट्रेलिया ने एक नया क़ानून बनाया ताकि गूगल और फेसबुक को समाचार प्रकाशकों को पैसा देना पड़े क्योंकि उनके मुख्य उत्पाद जैसे गूगल सर्च और फेसबुक न्यूज़ फीड समाचार मीडिया के कंटेंट का इस्तेमाल करते थे लेकिन इसके लिए उन्होंने कभी भी समाचार संगठनों को भुगतान नहीं किया.

अमेरिका की बात करें तो जून 2021 में अपना शुरुआती केस खारिज होने के बाद अमेरिका के संघीय व्यापार आयोग ने एक बार फिर अगस्त 2021 में फेसबुक के ख़िलाफ़ एक एंटीट्रस्ट केस दायर किया जिसमें फेसबुक पर अपनी एकाधिकारवादी स्थिति बनाए रखने के लिए ग़ैर-क़ानूनी तौर-तरीक़े अपनाने का आरोप लगाया गया.

चीन भी सख़्त डाटा सुरक्षा क़ानून के साथ तकनीकी कंपनियों के ख़िलाफ़ चाबुक चला रहा है.

बिना लड़ाई हथियार नहीं डालेंगे

सरकार के दबाव बढ़ाने का ये मतलब नहीं है कि डिजिटल लेविथान आसानी से हथियार डाल देगा. हर बिग टेक कंपनी किसी संप्रभु देश की तरह शक्तिशाली और अमीर है जिनका बाज़ार पूंजीकरण खरबों में है. अगर कोई सरकार का सामना कर सकता है तो वो लेविथान है.

वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक़ 2020 में अमेज़न, फेसबुक और गूगल समेत तकनीकी कंपनियों ने 65 मिलियन अमेरिकी डॉलर अपने एजेंडे पर लॉबिंग के लिए ख़र्च किए. ये वो वक़्त था जब अमेरिका के अधिकारियों ने तकनीकी कंपनियों पर दबाव बढ़ाया था.

ऐसी कंपनियां भी हैं जो प्रमुख बाज़ारों में लोक नीति और सरकार से संबंधों में सबसे प्रतिभावान और अच्छी तरह जुड़े लोगों के काम करने का खर्च उठा सकती हैं. ये ऐसे व्यक्ति हैं जो सत्ता में मौजूद सरकारी अधिकारियों को मनाकर अपने पक्ष में फ़ैसला लेने के लिए दबाव डाल सकते हैं. अधिकारियों को मनाने के लिए वो उन्हें प्रमुख क्षेत्रों में निवेश और रोज़गार निर्माण का वादा कर सकते हैं.

तकनीकी कंपनियों, सरकार और लोगों के बीच एक नया तकनीकी समझौता

आख़िर में जो होना चाहिए वो ये है कि लेविथान को असाधारण कल्पना से भी आगे सफलता के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि तकनीकी प्लैटफॉर्म से लोगों को होने वाले नुक़सान से बचाना चाहिए.

किसी भी तकनीकी कंपनी ने ये नहीं सोचा होगा कि उसका उत्पाद नुक़सानदेह बन सकता है. उन्होंने तो सिर्फ़ ये देखा होगा कि ज़्यादा सेवाओं के निर्माण और अपने मुनाफ़े को बढ़ाने में तकनीक का किस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्हें बेपरवाह तो बताया जा सकता है लेकिन किसी भी तरह से दुष्ट राक्षस नहीं.

आगे की बात करें तो तकनीकी सेक्टर में किसी भी तरह का सार्थक बदलाव होने के लिए सरकार को पहले आईटी प्लैटफॉर्म की शब्दावली को समझने का वादा करना चाहिए कि किस तरह वो काम करेंगे ताकि क़ानून निर्माता ये समझ सकें कि इनोवेशन को ख़त्म किए बिना इस सेक्टर को कैसे नियंत्रित किया जाए.

आख़िर में जो होना चाहिए वो ये है कि लेविथान को असाधारण कल्पना से भी आगे सफलता के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि तकनीकी प्लैटफॉर्म से लोगों को होने वाले नुक़सान से बचाना चाहिए.

तकनीकी कंपनियों को अपने दृष्टिकोण में इतना संकीर्ण होने को ख़त्म करने की ज़रूरत है (क्या ऐसी सोच कोई रखता है?) और इस बात को साफ़ करना चाहिए कि उनका प्लैटफॉर्म कैसे काम करता है. ये करते समय उन्हें ऐसा शब्दजाल नहीं बुनना चाहिए जिसे कोई समझता नहीं है. ऐसा करने पर यूज़र और क़ानून निर्माता हर तकनीकी प्लैटफॉर्म के बारे में ज़्यादा जान सकेंगे और उनको रास्ता दिखाना भी बेहतर ढंग से समझ सकेंगे. तकनीकी प्लैटफॉर्म को यूज़र के बर्ताव को लेकर चालाकी रोकने की भी ज़रूरत है. ऐसा एल्गोरिदम निर्धारित करना जहां एक यूज़र भड़काऊ कंटेंट पर ज़्यादा समय बिताए, प्लैटफॉर्म के हिसाब से तो अच्छा होगा लेकिन ये यूज़र के स्वास्थ्य और सामूहिक रूप से समाज के लिए अच्छा नहीं है.

जहां तक हम लोगों की बात है तो हमें ये समझना होगा कि ऑनलाइन आप जो कुछ भी देखते हैं उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए. साथ ही आपको अपनी हर व्यक्तिगत जानकारी फेसबुक पर पोस्ट करने की ज़रूरत नहीं है. इससे भी बढ़कर ये समझिए कि अब ये आपका नैतिक दायित्य है कि आप अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए तकनीकी प्लैटफॉर्म का दुरुपयोग बंद करें. सांप्रदायिक रूप से बंटवारे वाली पोस्ट की वजह से इस वक़्त सामाजिक ताना-बाना थोड़ा ज़्यादा उत्तेजित है

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