2024 में लगभग 50 देशों में चुनाव होने वाले हैं, जो राजनीतिक जनादेश, प्रशासनिक संस्थानों और अंतरराष्ट्रीय मामलों में ऐसी उठा-पटक पैदा करेंगे, जो अब तक देखी सुनी नहीं गई. इन बदलावों से कोई भी महाद्वीप अछूता नहीं रहेगा.
दुनिया भर में आज बड़ी उत्तेजना के साथ राष्ट्रीय प्रगति का मूल्यांकन किया जा रहा है और जनता की आवाज़ जनादेश के मिलकर अभिव्यक्त हो रही है. निश्चित रूप से 2024 का साल लोकतंत्र और विश्व व्यवस्था के लिए बेहद निर्णायक साबित होने वाला है.
दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र- और निश्चित रूप से दुनिया का सबसे पुराना बहुलतावादी समाज होने की वजह से - क्योंकि भारत में ‘धर्म’ का प्राचीन सिद्धांत, एक तरह से भारत का मूल अलिखित संविधान है- भारत के चुनाव चैटजीपीटी, डीपफेक और ब्लॉग के ज़माने में एक ताज़ा जनादेश देंगे.
डिजिटल युग में ये पहला मौक़ा होगा, जब बड़े लोकतांत्रिक देशों में एक साथ जनादेश आएंगे. इन चुनावों की अहम ख़ूबियों जैसे कि व्यक्तिगत भागीदारी, बड़े स्तर पर लोगों को एकजुट करना, राजनीतिक संदेश पहुंचाना और प्रचार करना बहुत जल्द केंद्रीय भूमिका में आ जाएंगे. पर, इनके साथ साथ चुनावों में ऐसे तत्वों की भागीदारी से भी नहीं बचा जा सकेगा, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को तोड़ते मरोड़ते हैं. जैसे कि ऑनलाइन जानकारी की हेरा-फेरी, ग़लत जानकारी पेश करना और दुष्प्रचार करना. फेक न्यूज़ की बाढ़ की वजह से 2016 के अमेरिकी चुनाव एक निर्णायक घटना रहे थे. मगर, 2024 में इस मामले में जो मंज़र देखने को मिलेगा, उसके आगे वो चुनाव भी फीके पड़ जाएंगे.
दुनिया में होने वाले तमाम चुनावों में से सबसे ज़्यादा उत्सुकता भरी निगाह भारत के चुनावों पर होगी. दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र- और निश्चित रूप से दुनिया का सबसे पुराना बहुलतावादी समाज होने की वजह से - क्योंकि भारत में ‘धर्म’ का प्राचीन सिद्धांत, एक तरह से भारत का मूल अलिखित संविधान है- भारत के चुनाव चैटजीपीटी, डीपफेक और ब्लॉग के ज़माने में एक ताज़ा जनादेश देंगे.
भारत के आम चुनाव के बारे में सीधे-सपाट शब्दों में कहें तो सबसे अनूठी बात ये है कि इसमें भारत शरीक है. भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. G20 के अध्यक्ष के तौर पर भारत ने उल्लेखनीय रूप से कामयाब कार्यकाल पूरा किया है. भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जिस पर विकास का जुनून सबसे ज़्यादा हावी है, और जिसके विकास के विज़न में ऐसा समावेशी नज़रिया है, जिसमें संपूर्ण विकासशील विश्व (ग्लोबल साउथ) शामिल है. मिसाल के तौर G20 के अध्यक्ष के तौर पर भारत ने जो पहला क़दम उठाया था, वो, ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन’ आयोजित करना था. इस सम्मेलन में भारत ने अन्य 125 विकासशील देशों के साथ संवाद किया, ताकि उनकी चिंताओं को समझ सके और उसी हिसाब से G20 में अपनी प्राथमिकताओं को ढाल सके.
महिलाओं के नेतृत्व पर आधारित विकास पर भारत द्वारा लंबे समय से ध्यान केंद्रित करने के लाभ साफ़ दिख रहे हैं: आज भारत के मध्यम दर्जे के कारोबार में 36 प्रतिशत वरिष्ठ और नेतृत्व के पदों पर महिलाएं क़ाबिज़ हैं, जो इस मामले के वैश्विक औसत से 4 फ़ीसद अधिक है.
भारत, दुनिया के सबसे उन्नत डिजिटल समाजों में से एक है. भारत ने ख़ुद को तकनीक़ पर आधारित सेवाओं के वैश्विक गढ़ के रूप में अपनी स्थिति काफ़ी मज़बूत कर ली है; भारत के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) के विश्व स्तरीय मॉडल को आज दुनिया के विकसित और विकासशील दोनों ही तरह के देश अपना और अपने हिसाब से ढाल रहे हैं; और, आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के कौशल की पहुंच और काबिलियत के केंद्रीयकरण के मामले में भारत दुनिया में सबसे ऊंची पायदान का देश बन गया है.
आने वाले साल के आम चुनाव भारत की लोकतांत्रिक ख़्वाहिशों, विकास की आकांक्षाओं और तकनीकी महारत के आपसी तालमेल का भी गवाह बनेगा.
अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान, भारत ने ‘लोकतंत्र की जन्मदात्री’ होने और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के पूरब की ख़ूबियां होने पर वाजिब रूप से हक़ जताया था. जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने G20 के संसदीय अध्यक्षों के शिखर सम्मेलन में कहा था कि भारत के हज़ारों वर्षों पुराने ग्रंथों में सभाओं, खुली परिचर्चाओं और लोकतांत्रिक वाद-विवाद के उदाहरणों का ज़िक्र मिलता है, जहां ‘समाज की बेहतरी के लिए सामूहिक फ़ैसले लिए जाते थे’. व्यापक जनहित के लिए ये लोकतांत्रिक चिंता ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (एक पृथ्वी, एक कुटुम्ब और एक भविष्य) की धारणा का मूल है, जिसने भारत के अंदरूनी और बाहरी विश्व के साथ संवादों को दशा-दिशा दी है.
भारत के महान आम चुनाव: उपलब्धियां बनाम नैरेटिव
आज भारत, 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के मुहाने पर खड़ा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) कहता है कि भारत 2026-27 में ये उपलब्धि हासिल कर सकता है. 2010 के दशक के मध्य से भारत की प्रति व्यक्ति GDP बड़ी तेज़ी से बढ़ी है. 2014 में ये 1600 डॉलर प्रति व्यक्ति थी, जो आज बढ़कर 2612 डॉलर पहुंच चुकी है. फिर भी भारत का नेतृत्व, GDP केंद्रित विश्वदृष्टि से हटकर ‘मानव केंद्रित’ नज़रिया और उदारवादी, जन-केंद्रित आर्थिक विज़न अपनाने की वकालत करता रहा है, जो निजी प्रगति और बेहतरी सुनिश्चित करे.
इस नज़रिए का सबूत पूरे भारत में दिख रहा है. आज भारत के 99.9 प्रतिशत वयस्कों के पास आधार के रूप में डिजिटल पहचान है, जिससे जनसेवा हासिल करने की उनकी क्षमता में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है. भारत, वित्तीय समावेशन का दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम चला रहा है, जिससे 50 करोड़ लोगों से अधिक को सेवा दी जा रही है और इनमें से 55.5 प्रतिशत बैंक खाते महिलाओं के है. वहीं, हर दिन भारत के 3 करोड़ लोग भारत में ही विकसित यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) के ज़रिए भुगतान करके वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था को नए सिरे से ढाल रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया के सबसे तकनीक़ के जानकार नेता के तौर पर जाना जाता है. उनकी सरकार, तकनीक़ का इस्तेमाल नागरिकों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने और आबादी के बड़े तबक़े तक अपने लक्ष्यों की जानकारी देने के लिए कर रही है.
जैसे-जैसे 2024 के चुनाव क़रीब आ रहे हैं, वैसे वैसे और भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. 2006 से 2021 के बीच भारत ने 41.5 करोड़ लोगों को ग़रीबी रेखा से ऊपर उठाया. महिलाओं के नेतृत्व पर आधारित विकास पर भारत द्वारा लंबे समय से ध्यान केंद्रित करने के लाभ साफ़ दिख रहे हैं: आज भारत के मध्यम दर्जे के कारोबार में 36 प्रतिशत वरिष्ठ और नेतृत्व के पदों पर महिलाएं क़ाबिज़ हैं, जो इस मामले के वैश्विक औसत से 4 फ़ीसद अधिक है. 2013 के बाद से नवजात बच्चों की मृत्यु दर 39.082 प्रतिशत से घटकर 26.619 फ़ीसद रह गई है. वहीं मातृत्व के समय की मृत्यु दर 167 (प्रति 100,000 जचगी) से घटकर 103 रह गई हैं. भारत का खाद्यान उत्पादन 2021-22 में बढकर 31.57 करोड़ मीट्रिक टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था, जिससे खाद्य सुरक्षा को मज़बूती मिली है.
ये कहानियां प्रेरणा देती हैं. ये भारतीय नागरिकों की प्रगति की वो रिपोर्टें हैं, जिन्हें हर भारतीय रोज़ सुबह उठकर पढ़ना चाहेगा. फिर भी वैश्विक मीडिया अपने नैरेटिव से बहकाकर और ग़लत तस्वीर पेश करके जान-बूझकर उनके खाइयों और दरारों की तरफ़ ध्यान खींचने की कोशिश करता रहा है, जो दुनिया के किसी भी कोने में स्थित किसी भी बहुसंस्कृतीय समाज में होती ही हैं, जिनसे उनको निपटना पड़ता है. पश्चिम के मीडिया संगठनों पर एक हल्की सी नज़र भी डालें- फिर चाहे वो प्रिंट के हों, टेलिविज़न या फिर डिजिटल- वो दिखाते हैं कि उन्होंने आने वाले समय में अपने लिए प्रधानमंत्री मोदी के ‘विपक्ष’ की भूमिका का चुनाव कर लिया है.
2019 में टाइम मैग़ज़ीन ने प्रधानमंत्री मोदी को ‘डिवाइडर इन चीफ’ घोषित करके ये सवाल उठाया था कि क्या ‘दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र (शायद) मोदी के नेतृत्व के अगले पांच वर्ष बर्दाश्त कर सकेगा’. ये सवाल बाद में तो बिल्कुल बेमानी साबित हुआ. दि न्यूयॉर्क टाइम्स ने बहुत शोर मचाते हुए दावा किया था कि, ‘2014 में जब से मिस्टर मोदी ने सत्ता संभाली है, तब से भारत का एक ज़माने में स्वतंत्र लोकतांत्रिक समाज होने का गर्वोक्ति भरा दावा था, वो कई मोर्चों पर एक साथ ढहता जा रहा है.’ दि वॉशिंगटन पोस्ट मानता है कि भारत धीरे धीरे ‘तानाशाही की तरफ़ फिसलता जा रहा है.’ और, बीबीसी ने ऑक्सफैम की रिपोर्ट के हवाले से अफ़सोस जताते हुए कहा कि भारत के ‘सबसे अमीर एक प्रतिशत लोग देश की 40.5 प्रतिशत संपत्ति के मालिक’ हैं. लेकिन, बीबीसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि आज जब भारत में शीर्ष पर बैठे अमीर लोग संपत्ति बना रहे हैं, वहीं वो निचली पायदान के लोगों को आर्थिक रूप से समृद्ध कर रहा है और इस तरह बुनियादी तौर पर भारत का अमीर तबक़ा, यूरोप के रईसों के मिज़ाज से बिल्कुल अलग हैं.
प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया के सबसे तकनीक़ के जानकार नेता के तौर पर जाना जाता है. उनकी सरकार, तकनीक़ का इस्तेमाल नागरिकों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने और आबादी के बड़े तबक़े तक अपने लक्ष्यों की जानकारी देने के लिए कर रही है. इस तरह दो तरह की ताक़तें आपस में होड़ लगा रही हैं - एक तरफ़ तो दुनिया का मीडिया डिजिटल मंचों का इस्तेमाल ख़ुद को मोदी विरोधी मोर्चे के तौर पर स्थापित कर रहा है; और दूसरी ओर, भारत के नेतृत्व द्वारा तकनीक़ का इस्तेमाल करके लोगों तक क्रांतिकारी प्रगति पहुंचा रहा है और अपने प्रस्तावों के प्रति लोगों को आकर्षित कर रहा है.
भारत के चुनाव हमें निर्णायक रूप से घरेलू मामलों में वैश्विक मीडिया का मूल्यांकन करने में मदद करेंगे और दो मुख्य सवालों के जवाब देंगे. क्या मीडिया का नैरेटिव, योजनाओं के लाभ को शिकस्त दे सकता है? या फिर अच्छा प्रशासन और क़तार के आख़िरी आदमी तक पहुंचने की कामयाबी उसे पछाड़ने में सफल होगी? और अगर आख़िर में ज़मीन पर योजनाएं पहुंचाने और आम आदमी का अपना बेहतर तजुर्बा जीत जाता है, तो क्या हम सब मीडिया की भूमिका को और बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के दोषी साबित होंगे?
ग्लोबल साउथ का उभार: भारत का लोकतंत्र इतना अहम क्यों?
लोकतंत्र कोई पश्चिम का विशेषाधिकार नहीं है और ये भी ज़रूरी नहीं कि इसका वही रंग ढंग हो जो पश्चिम का है. निश्चित रूप से भारत और ज़्यादातर अन्य विकासशील देशों के लिए लोकतंत्र का मतलब, अन्य बातों के अलावा ये भी है कि समावेशी प्रगति को बढ़ावा देना, मूलभूत ढांचे में निवेश, जलवायु परिवर्तन से निपटने के क़दम, महिलाओं की अगुवाई में विकास और पर्यावरण के लिए मुफ़ीद रहन- सहन को सबके द्वारा अपनाना और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) की स्थापना जो जनसेवा को सब तक पहुंचाया जाए. ये समानता के बुनियादी पत्थर हैं, जिनके बग़ैर कोई मानीखेज़ लोकतंत्र नहीं हो सकता. भारत ने इनमें से हर मामले में सफलता हासिल की है. G20 में भारत ने महिलाओं की अगुवाई में विकास की वकालत तो की ही, इसके साथ, संसद से एक ऐतिहासिक क़ानून भी पारित किया, जिसमें भारत की संसद के निचले सदन और राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. भारत, 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रहा है; भारत का एकदम अनूठा LiFE (पर्यावरण के लिए रहन सहन) आंदोलन पूरी दुनिया में सुर्ख़ियां बटोर रहा है, और दुनिया के बहुत से देश अपने यहां डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए भारत से साझेदारी कर रहे हैं.
आज जब अमेरिकी तकनीकी मंच, बोलने की आज़ादी की वैश्विक समझ को एकसार करने की कोशिश कर रहे हैं, तो भारत ने बहुत समझदारी से ‘तार्किक पाबंदियों’ की अपनी संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा की है.
भारत इस हक़ीक़त को भी स्वीकार करता है कि विकासशील दुनिया के बेहद गहरे बहुलता भरे समाजों के लिए मुक्तिवादी और बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता से कहीं ज़्यादा अहम ऑनलाइन सुरक्षा है. आज जब अमेरिकी तकनीकी मंच, बोलने की आज़ादी की वैश्विक समझ को एकसार करने की कोशिश कर रहे हैं, तो भारत ने बहुत समझदारी से ‘तार्किक पाबंदियों’ की अपनी संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा की है. भारत ने कई बार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दक्षिणी कैलिफोर्निया वाले अराजकतावादी बड़े तकनीकी मंचों को झिड़कने के सात साथ उन्हें अपनी विकास गाथा का हिस्सा भी बनाया है और उनको भारतीय क़ानूनों का पालन करने के लिए बाध्य भी किया है बनाने के साथ साथ भारतीय क़ानूनों को भी लागू किया है.
सामूहिक रूप से ये ख़ूबियां, लोकतांत्रिक भारत को उभरते हुए विकासशील देशों को मशाल दिखाने वाला बनाती हैं. जनवरी 2023 में अपनी G20 अध्यक्षता की शुरुआत के साथ ही पहला ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन’ आयोजित करने के साथ ही सितंबर 2023 में G20 नेताओं का शिखर सम्मेलन आयोजित करने तक, ग्लोबल साउथ के वाजिब प्रवक्ता के रूप में भारत की सराहना की गई है. ऐसे मोड़ पर, भारत के आम चुनाव- जो धरती के सबसे बड़े लोकतांत्रिक अभियान होते हैं- वो लोकतंत्र की शक्ति को फिर से मज़बूत करने से कहीं ज़्यादा असरकारक होगें. ये चुनाव ऐसे भी हो सकते हैं, जो 2024 को ऐसा वर्ष बना दें, जो लोकतंत्र को दुनिया भर के लोगों के घर-घर तक पहुंचा दे.
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