Author : Arya Roy Bardhan

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 18, 2024 Updated 0 Hours ago

निजी तौर पर जारी की गई ऋण प्रतिभूतियों के अंकित मूल्य को कम करने के लिए सेबी द्वारा हाल ही में दी गई मंज़ूरी से कॉर्पोरेट बॉंडों की मांग बढ़ सकती है, लेकिन इस नीति के प्रभावों पर बारीकी से नज़र रखने की ज़रूरत है.

10 हज़ार में एक: क्या अब भारत में कॉर्पोरेट बॉंड महत्वपूर्ण हो जाएंगे?

अपनी 205वीं बोर्ड मीटिंग में, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने सेबी विनियमों (2021) में कई संशोधन किए हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण संशोधन निजी तौर पर जारी की गई (बॉंड की प्राइवेट प्लेसमेंट का अर्थ खुले बाज़ार में बेचने के बजाय पहले से चुने हुए निवेशकों और संस्थाओं को बेचना है) ऋण प्रतिभूतियों (डै्ट सिक्योरिटीज़) के अंकित मूल्य (फ़ेस वैल्यू) में 10,000 रुपये तक की कमी को मंज़ूरी देना है. शुरुआत में, न्यूनतम अंकित मूल्य 10 लाख रुपये तय किया गया था, जिसे अक्टूबर, 2022 में घटाकर एक लाख रुपये कर दिया गया था. न्यूनतम अंकित मूल्य में क्रमिक गिरावट को कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार में खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के साथ ही तरलता बढ़ाने और व्यवसायों के लिए पूंजी की लागत कम करने के कदम के रूप में देखा जा सकता है. भारत के अविकसित ऋण बाज़ार पर इस हस्तक्षेप और इसके निहितार्थों का काफ़ी कुछ असर हो सकता है. 

कॉर्पोरेट बॉंड के लिए भारतीय बाज़ार

कॉर्पोरेट बॉंड देश में गठित निजी या सार्वजनिक निगमों द्वारा जारी किए गए ब्याज-भुगतान वाले ऋण साधन या डै्ट इंस्ट्रूमेंट्स को कहा जाता है. कंपनियां सार्वजनिक या निजी प्लेसमेंट- इसे भी सूचीबद्ध बॉन्ड की तरह प्राथमिक और द्वितीयक दोनों बाज़ारों के माध्यम से खरीदा जा सकता है- के ज़रिए बॉन्ड जारी कर सकती हैं. 2023-24 में, कॉर्पोरेट बॉन्ड का सार्वजनिक प्लेसमेंट सिर्फ़ 19,000 करोड़ रुपये के आसपास था जबकि निजी प्लेसमेंट 838,000 करोड़ रुपये का था. सार्वजनिक और निजी प्लेसमेंट की मात्रा में यह बड़ा फ़र्क पारदर्शिता, मूल्य खोज (प्राइस डिस्कवरी, वित्तीय बाज़ारों में उस प्रक्रिया को कहते हैं जहां ख़रीदार और विक्रेता किसी परिसंपत्ति का बाज़ार मूल्य निर्धारित करने के लिए बातचीत करते हैं. इस चरण के दौरान, आपूर्ति और मांग की शक्तियां कीमत संतुलन स्थापित करने के लिए एक साथ आती हैं, जिस पर लेनदेन होता है) और बाज़ार के सामर्थ्य की गंभीर समस्याएं पैदा करता है. 

सार्वजनिक प्लेसमेंट के लिए कंपनियों को एक प्रॉस्पेक्टस जारी करने की आवश्यकता होती है, जो व्यवसाय के नकदी प्रवाह-सृजन मापदंडों के बारे में मोटे तौर पर बताता है, जिससे काफ़ी ज़्यादा पारदर्शिता आती है और मूल्य निर्धारण ज़्यादा सटीक ढंग से कर पाना संभव होता है. 

सार्वजनिक प्लेसमेंट के लिए कंपनियों को एक प्रॉस्पेक्टस जारी करने की आवश्यकता होती है, जो व्यवसाय के नकदी प्रवाह-सृजन मापदंडों (कैश फ़्लो जेनेरेटिंग पैरामीटर्स) के बारे में मोटे तौर पर बताता है, जिससे काफ़ी ज़्यादा पारदर्शिता आती है और मूल्य निर्धारण ज़्यादा सटीक ढंग से कर पाना संभव होता है. निजी प्लेसमेंट के भारी प्रभाव की वजह इसके समय और लागत के मामले में प्रभावशील होने और अनुपालन (कम्प्लायंस) की ज़रूरत कम होना है. हालांकि, निजी प्लेसमेंट बड़े पैमाने पर संस्थागत निवेशकों को लक्ष्य करते हैं, जिन्हें लेनदारों के एक छोटे समूह से बड़ा कोष जुटाने का फ़ायदा दिया जाता है. बाज़ार के दूसरे छोर पर, खुदरा निवेशक ऊंचे अंकित मूल्य (प्रवेश लागत), सूचनाओं में विषमता और द्वितीयक बाज़ार (सीमित तरलता) की अनुपस्थिति के कारण कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार में प्रवेश करने से कतराते हैं. बढ़ती मांग और आपूर्ति का अंतर बाज़ारों के कामकाज को और ज़्यादा कठिन बनाता है और इसकी वजह से नियामक हस्तक्षेप की आवश्यकता महसूस होने  लगी है. 

विनियामक के दख़ल की आवश्यकता 

हालांकि, जब भारत के कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार का आकार जीडीपी के अनुपात में देखा जाता है, तो भारत एशिया की अन्य उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं से पीछे है, लेकिन बैंक फॉर इंटरनल सेटलमेंट्स (बीआईएस) के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि द्वितीयक बाज़ार की तरलता के मामले में उन्नत और उभरते दोनों बाज़ारों को समान समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस प्रकार, भारतीय कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार के तरलता सृजित करने में कोई होने वाली समस्या अनोखी नहीं है. हालांकि, बॉन्ड बाज़ार की जड़ों को मज़बूत करना ज़रूरी है, क्योंकि भारत आर्थिक विकास को गति देने के लिए अपनी बढ़ती मांग और उद्यमशीलता की उभरती प्रकृति का फ़ायदा उठाने की योजना बना रहा है. इन दोनों के विकास के लिए ऋण बाज़ार को मज़बूत करने और धन जुटाने की आवश्यकता है ताकि आर्थिक मशीनरी को चलाया जा सके.   

औसत भारतीय की बचत प्राथमिकताओं में ढांचागत बदलाव हुआ है और अब वह भौतिक परिसंपत्तियां जुटाने की ओर मुड़ गया है, जिससे बढ़ी मांग के चलते ऋण क्षेत्र का विस्तार हुआ है और इसने बैंकों के जोखिम को बढ़ाया है. उपभोक्ता मांग को पूरा करने के लिए फर्मों के साथ-साथ विस्तार से अर्थव्यवस्था में ऋण की कमी हो सकती है. 

औसत भारतीय की बचत प्राथमिकताओं में ढांचागत बदलाव हुआ है और अब वह भौतिक परिसंपत्तियां जुटाने की ओर मुड़ गया है, जिससे बढ़ी मांग के चलते ऋण क्षेत्र का विस्तार हुआ है और इसने बैंकों के जोखिम को बढ़ाया है. उपभोक्ता मांग को पूरा करने के लिए फर्मों के साथ-साथ विस्तार से अर्थव्यवस्था में ऋण की कमी हो सकती है. इसके अलावा, बैंक की परिसंपत्तियों (मुख्यतः ऋण) के भुगतान का समय और निगमों की परियोजना के परिपक्व होने के समय का मेल न होने की वजह से कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार व्यवसाय के वित्तपोषण (फ़ाइनेंसिंग) के लिए अधिक उपयुक्त स्रोत बन जाता है. जैसे-जैसे उपभोक्ता ऋण बढ़ता है, कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार भारतीय बैंकों के उत्तोलन जोखिमों (लेवरेज रिस्क्स) को दूर कर सकता है और अधिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है. 

कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार में अधिक तरलता लाए जाने से खुदरा निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए एक और रास्ता मिलेगा. पिछले पांच वर्षों में 120 मिलियन खुदरा निवेशकों के जुड़ने के साथ, भारतीय शेयर बाज़ार अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच रहा है, जिससे उपभोक्ताओं का आत्मविश्वास और कम पारंपरिक निवेश साधनों की ओर बढ़ने का बदलाव भी नज़र आता है. यह खुदरा निवेशकों को कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को लागू करने के लिए महत्वपूर्ण अवसर है; इससे शेयर बाज़ार में किसी भी तरह के सट्टे से होने वाले उछाल या मौजूदा हितधारकों के लिए शेयरों के बहुत ज़्यादा कमज़ोर पड़ने से भी बचा जा सकेगा. इसके अलावा, निवेशक अपने इक्विटी पोर्टफोलियो को सुरक्षित बॉन्ड रिटर्न्स के सहारे पेशबंदी करके (यहां हेजिंग का अर्थ यह है कि निवेशक अपने पोर्टफोलियो में ऐसे निवेश करते हैं, जो इक्विटी मार्केट में होने वाले नुकसान की संभावना को कम करते हैं) अपने निवेश की सुरक्षा कर सकते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में एक अधिक जोख़िम-मुक्त निवेश के माहौल की सुविधा मिलती है. इस प्रकार,कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार में अधिक भागीदारी जोखिमों को कम करेगी और तीन माध्यमों के ज़रिए से विकास को बढ़ावा देगी- बढ़ी हुई बैंक स्थिरता, शेयर बाज़ार में संयम और सस्ता कॉर्पोरेट वित्तपोषण. 

प्रभाव: अभी और बाद में

इससे पहले मूल्यवर्ग में 10 लाख से 1 लाख की कटौती की गई थी, जिससे जुलाई-सितंबर, 2023 में गैर-संस्थागत भागीदारी 4 फ़ीसदी तक बढ़ गई, जबकि इसका सामान्य औसत एक फ़ीसदी था. इसी तरह, टिकट आकार में 10,000 रुपये की यह कटौती ऑनलाइन बॉन्ड प्लेटफ़ॉर्म (ओबीपी) के ज़रिए बॉन्ड की गैर-संस्थागत ख़रीद में वृद्धि के माध्यम से तरलता को बढ़ाने का लक्ष्य रखती है. ओबीपी के ज़रिए निजी प्लेसमेंट के विशाल आकार का लाभ उठाकर खुदरा भागीदारी को प्रभावी ढंग से बढ़ाया जा सकता है, जिससे तरल द्वितीयक बाज़ार की अधिक सुविधा मिल सकती है और कॉर्पोरेट बॉन्ड को एक व्यवहारिक अल्पकालिक निवेश के रूप में बढ़ावा मिल सकता है. 

 एक बड़ा बॉन्ड बाज़ार फर्मों के लिए उधार लेने की लागत को काफ़ी कम कर सकता है, लाभप्रदता बढ़ा सकता है और बाज़ार में आने वाले नए निवेशकों को प्रोत्साहित कर सकता है. हालांकि, बॉन्ड बाज़ार में उच्च क्रेडिट रेटिंग वाली फर्मों का वर्चस्व है, जिससे छोटी फर्मों के लिए ऋण वित्तपोषण तक पहुंच बहुत मुश्किल हो जाती है. 

समय के साथ, निजी प्लेसमेंट के माध्यम से कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार की गहराई सार्वजनिक मुद्दों पर एक स्पिलओवर प्रभाव (स्पिलओवर इफ़ेक्ट से अर्थ किसी देश की अर्थव्यवस्था पर किसी अन्य देश में होने वाली असंबंधित घटनाओं से होने वाले प्रभाव से है. किसी अन्य देश में प्राकृतिक आपदाओं, जैसे भूकंप या राजनीतिक संकट सहित अन्य घटनाओं का किसी देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है) डाल सकती है, जिससे बाकी बॉन्ड निर्गमों (बॉन्ड इशूज़) की कुल मात्रा बढ़ सकती है. एक बड़ा बॉन्ड बाज़ार फर्मों के लिए उधार लेने की लागत को काफ़ी कम कर सकता है, लाभप्रदता बढ़ा सकता है और बाज़ार में आने वाले नए निवेशकों को प्रोत्साहित कर सकता है. हालांकि, बॉन्ड बाज़ार में उच्च क्रेडिट रेटिंग वाली फर्मों का वर्चस्व है, जिससे छोटी फर्मों (कम क्रेडिट रेटिंग वाली) के लिए ऋण वित्तपोषण (डै्ट फ़ाइनेंसिंग) तक पहुंच बहुत मुश्किल हो जाती है. ऐसा इस बाज़ार में संस्थागत निवेशकों की व्यापकता के कारण है, जो अपने दीर्घकालिक दायित्वों को देखते हुए कम जोखिम पसंद करते हैं. उच्च जोखिम लेने की क्षमता वाले खुदरा निवेशकों की बड़े पैमाने पर भागीदारी कम मूल्यांकन वाले बॉन्ड को शामिल करने को प्रोत्साहित कर सकती है और अर्थव्यवस्था-व्यापी पूंजी की लागत को बेहतर बना सकती है. रेपो और डेरिवेटिव पूरक बाज़ारों की जुड़ी हुई शुरूआत विस्तारवादी प्रभावों को कई गुना बढ़ा सकती है. 

वृहत अर्थशास्त्रीय (मैक्रो इकोमॉमिक) दृष्टिकोण से, यह कदम कॉर्पोरेट बॉन्ड की प्रभावी मांग को काफ़ी हद तक बढ़ा सकता है, जब तक कि बाज़ार का आकार बढ़ न जाए. इससे बॉन्ड की कीमतों में उछाल आने पर ब्याज दरों में कमी आएगी. मुद्रास्फ़ीति के मौजूदा प्रक्षेप-पथ (ट्रीजेक्ट्री) की स्थिरता को देखते हुए, ब्याज की स्वाभाविक दर में गिरावट की संभावना भी है जिससे भारतीय रिजर्व बैंक के लिए कुछ अधिक नरम रुख अपनाने की परिस्थितियां बन सकती हैं. हालांकि, किसी भी वृहत अर्थशास्त्रीय नीति के प्रभाव और परिमाण (मैग्नीट्यूड) का अंदाजा केवल पीछे नज़र डालकर ही लगाया जा सकता है-  निरंतर निगरानी और विनियमन की आवश्यकता को सामने रखते हुए.  


(आर्य रॉय बर्धन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में शोध सहायक हैं.)

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