हर गुज़रते दिन के साथ ये साफ होता जा रहा है कि कोविड-19 महामारी से इंसान की लड़ाई काफ़ी लंबी होने जा रही है. और धीरे-धीरे सामने आ रहे सबूतों का सही तरीक़े से विश्लेषण ही महामारी से होने वाले नुक़सान को कम करने में सबसे बड़ा हथियार साबित होगा.
भारत इस समय कोरोना वायरस से फैली महामारी के बेहद मुश्किल दौर से गुज़र रहा है. देश में हर रोज़ कोविड-19 महामारी से एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो रही है. और ये केवल सरकारी आंकड़े हैं. भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था इस नए वायरस के लगातार फैलते संक्रमण से जूझ रही है. पहले देश के ज़्यादातर बड़े शहरों पर क़हर बरपाने के बाद, अब ये महामारी देश के दूर-दराज़ के इलाक़ों तक पहुंच चुकी है. शहरों में भी भले ही कोरोना वायरस के संक्रमण की रफ़्तार स्थिर हो लेकिन, जहां तक वायरस के संक्रमण और इससे मौत का सवाल है, तो शहरों में भी ये कम नहीं हो रही. अभी भी देश के कई बड़े राज्यों में इस वायरस के संक्रमण और इससे मौत की संख्या काफ़ी ज़्यादा बढ़ रही है. ज़ाहिर है, अभी आने वाले कुछ हफ़्तों के अंदर, कोविड-19 की महामारी की रफ़्तार धीमी होने की उम्मीद लगाना बेमानी है. भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को आने वाले मुश्किल महीनों के लिए तैयार रहना चाहिए. ख़ास तौर से तब और, जब हमने पिछले कई महीनों के दौरान देखा है कि भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को इस चुनौती से निपटने में काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ी है.
अक्टूबर के दूसरे हफ़्ते तक देश भर में कोविड-19 महामारी के इलाज के लिए लगभग 16 हज़ार केंद्र बना लिए गए थे. जहां पर 14 लाख के क़रीब आइसोलेशन बेड तैयार कर लिए गए थे. इसके अलावा क़रीब ढाई लाख ऑक्सीजन सपोर्टेड आइसोलेशन बेड और, लगभग 63 हज़ार ICU बेड भी तैयार थे. इनमें से 32 हज़ार 241 बेड पर वेंटिलेटर की सुविधा भी उपलब्ध थी. ये सभी आंकड़े सरकार द्वारा प्रदान किए गए हैं. कोविड-19 की महामारी से लड़ने के लिए राज्यों को केंद्र सरकार से भी संसाधनों के रूप में मदद मिल रही है. अब तक केंद्र सरकार ने 1.39 करोड़ PPE किट, 3.42 करोड़ N-95 मास्क और क़रीब 30 हज़ार वेंटिलेरटर व एक लाख 2 हज़ार 400 ऑक्सीजन सिलेंडर केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को उपलब्ध कराए गए हैं.
कोविड-19 के कारण अन्य स्वास्थ्य सेवाओं में आई बाधा के चलते कोविड-19 के अलावा अन्य रोगों से लोगों के बीमार होने और मौत की संख्या में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा होने का डर है. और कोविड-19 की रोकथाम के साथ साथ अन्य बीमारियों के शिकार लोगों का इलाज और उनकी सेहत का ख़याल रख पाना आने वाले महीनों और कुछ वर्षों तक एक बड़ी चुनौती बना रहेगा.
भले ही संक्रामकता के मामले में हम डबल डिजिट में पहुंच चुके हों. लेकिन, सरकार अपने इंटीग्रेटेड डिज़ीज़ सर्विलांस प्रोग्राम (IDSP)के तहत सामुदायिक स्तर पर लोगों की कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग कर रही है. इसका मक़सद वायरस के संक्रमण की रफ़्तार को थामना है. सितंबर के मध्य तक, भारत सरकार चालीस लाख से ज़्यादा लोगों की निगरानी कोविड-19 की रोकथाम के लिए कर रही है. ये यूरोप के क्रोएशिया की कुल आबादी के बराबर संख्या है. आज देश भर में क़रीब 1700 लैब हैं जो कोविड-19 का टेस्ट कर रही हैं. हर दिन दस लाख से ज़्यादा लोगों के सैंपल लिए जा रहे हैं. अब तक नौ करोड़ से ज़्यादा लोगों का कोविड-19 टेस्ट किया जा चुका है. हालांकि, देश की 138 करोड़ की आबादी के लिहाज़ से ये संख्या अब भी काफ़ी कम है.
पिछले कई महीनों से देश की मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को कोविड-19 की रोकथाम और इलाज के काम में झोंक दिया गया है. चूंकि, कोविड-19 के इलाज में सबसे अधिक भूमिका सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं की थी, तो कोविड-19 के अलावा अन्य बीमारियों के इलाज और टीकाकरण के अभियान को इस महामारी के कारण तगड़ा झटका लगने की आशंका है.
भारत एक ऐसा देश है जहां हर रोज़ लगभग 27 हज़ार लोगों की जान जाती है. इनमें से 26 प्रतिशत लोगों की मौत संक्रामक बीमारियों, जन्म से पहले की बीमारियों, मां की बीमारी या पोषण संबंधी बीमारी से होती है. कोविड-19 के कारण अन्य स्वास्थ्य सेवाओं में आई बाधा के चलते कोविड-19 के अलावा अन्य रोगों से लोगों के बीमार होने और मौत की संख्या में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा होने का डर है. और कोविड-19 की रोकथाम के साथ साथ अन्य बीमारियों के शिकार लोगों का इलाज और उनकी सेहत का ख़याल रख पाना आने वाले महीनों और कुछ वर्षों तक एक बड़ी चुनौती बना रहेगा.
स्वास्थ्य सेवाओं में कोविड-19 के चलते आई बाधा को लेकर मीडिया की ख़बरें
भारत सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक़, तमाम मीडिया संस्थानों ने कोविड-19 की रोकथाम के चलते सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं में आई बाधा के बारे में बहुत सी ख़बरें प्रकाशित कीं. जिनके मुताबिक़, लगभग हर अन्य बीमारी के इलाज के हालात बेहद ख़राब मालूम हुए. इस साल जून तक के आंकड़ों की समीक्षा करें, तो ख़बरें दी गईं कि अप्रैल महीने में जनवरी के ही मुक़ाबले 5 लाख 80 हज़ार कम स्वास्थ्य सेवाएं दी गईं. टीबी के इलाज के लिए आने वाले मरीज़ों की संख्या में 45 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई. और लॉकडाउन के चलते कई लाख बच्चों को टीका नहीं लगाया जा सका.
जहां तक कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में आई बाधा की बात है, तो इससे जुड़े आंकड़े को मीडिया ने बिल्कुल भी संदेह से नहीं देखा. राहत की बात ये है कि ख़ुद सरकार भी मौत के इन आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए ये दावा नहीं कर रही है कि वर्ष 2020 में पिछले साल के मुक़ाबले बहुत अधिक लोगों की मौत नहीं हुई.
इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार ने जब अपनी पूरी ताक़त कोरोना वायरस की महामारी को रोकने में लगा दी, तो अन्य स्वास्थ्य सेवाओं पर इसका काफ़ी बुरा असर पड़ा. लेकिन, संभावना इस बात की भी है कि सरकार के आंकड़ों के माध्यम से कुछ लोगों ने स्वास्थ्य सेवाओं में आई कमी की भयावह तस्वीर पेश करने की कोशिश की. क्योंकि, ये आंकड़े ख़ुद उसी स्वास्थ्य व्यवस्था के हैं, जो महामारी के चलते स्वयं ही उथल पुथल की शिकार है. दूसरे शब्दों में कहें, तो सरकार के आंकड़ों को अंतिम सत्य नहीं माना जा सकता. क्योंकि ये आंकड़े एक ऐसे हेल्थ सिस्टम से जुटाए गए हैं, जो महामारी के चलते बेहद मुश्किल दौर से गुज़र रहा है. आम तौर पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) का स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना का सिस्टम (HMIS) उन संस्थानों की संख्या बताता है, जो आंकड़े इस सिस्टम में फीड करते हैं. लेकिन, वर्ष 2020 में कम से कम अब तक तो ये संख्या उपलब्ध नहीं है. लेकिन, इन आंकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन से पहले कुछ बुनियादी तर्कों की कसौटी पर इन्हें ज़रूर कसा जा सकता है.
संस्थागतउपलब्धताकामामला
उदाहरण के लिए, मीडिया की ख़बरों में इस बात की ख़ूब चर्चा हुई कि स्वास्थ्य सेवाओं की संस्थागत उपलब्धता में भारी कमी, कोविड-19 के दौरान देखी जा रही है. इसके लिए मीडिया ने HMIS के आंकड़ों को ही आधार बनाया है. लेकिन, इसके लिए कोविड-19 के चलते आंकड़ों की विश्वसनीयता पर उठने वाले सवालों की अनदेखी कर दी गई. इसके अलावा जो समाचार प्रकाशित किए गए उनके आधार पर कोई विश्लेषण कर पाना भी संभव नहीं था. इसे देखते हुए, अप्रैल से लेकर जून 2020 तक के आंकड़ों की तुलना अगर हम इसी दौरान वर्ष 2019 के आंकड़ों से करें, तो उनमें आपको भारी गिरावट देखने को मिलेगी. (ग्राफ़-2) पर बड़ा सवाल इस बात का है कि ये आंकड़े किस हद तक वास्तविक हैं, और सूचना के तंत्र में लॉकडाउन के चलते आई बाधा के बाद हम इन आंकड़ों को कहां तक विश्वसनीय मान सकते हैं. चूंकि ख़ुद HMIS के आंकड़े स्वास्थ्य सेवाओं की ‘होम डिलीवरी’ में भारी गिरावट दिखाते हैं. स्वास्थ्य सेवाओं के कुल निष्पादन को देखें, तो ये संस्थागत और होम डिलीवरी का जोड़ होता है. अब कम से कम महामारी के चलते तो गर्भवती महिलाओं की संख्या में कमी तो आई न होगी. ऐसे में घर में ही बच्चे पैदा करने की घटनाओं में भी कमी नहीं हुई होगी. ज़ाहिर है, ख़ुद स्वास्थ्य मंत्रालय के अपने आंकड़े अधूरे हैं. लेकिन, मीडिया इन्हें बिना ये शर्तें लगाए ही प्रचारित कर रहा है. इनका आधा-अधूरा विश्लेषण पेश कर रहा है.
मौतकेआंकड़ेक्योंनहींबताएजारहेहैं?
अगस्त महीने में HMIS द्वारा जारी किए घए आंकड़े, जिनमें ज़्यादातर डेटा, ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों से जुटाया गया है, उसमें एक वर्ग तमाम बीमारियों से लोगों की मौत का भी है. दिलचस्प बात ये है कि अब तक किसी भी मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ने इन आंकड़ों का इस्तेमाल नहीं किया है. इसका कारण ये है कि इन आंकड़ों में अप्रैल से जून की तिमाही में मौत की संख्या में कमी दर्ज की गई है. (ग्राफ़-3) और मौत की संख्या में आई ये कमी हर वर्ग में देखी गई है. सच तो ये है कि अज्ञात कारणों से मौत वाले कॉलम में भी अचानक मौत की संख्या में कोई वृद्धि दर्ज नहीं की गई है. जबकि कम से कम अज्ञात कारणों से मौत के मामले में तो तेज़ी देखी जानी चाहिए थी. लेकिन, इन आंकड़ों में भी कमी आई है. अप्रैल से जून 2019 के दौरान अज्ञात कारणों से दर्ज की गई मौतों की संख्या 2 लाख 50 हज़ार 419 थी. तो अप्रैल से जून 2020 के दौरान अज्ञात कारणों से मौत का आंकड़ा दो लाख, 18 हज़ार, 585 दर्ज किया गया.
चूंकि ये सामान्य तर्क के विपरीत है, और शायद यही वजह है कि न तो मीडिया में इसे व्यापक तौर पर प्रकाशित किया गया और न ही इसका उचित विश्लेषण हुआ. लेकिन, जहां तक कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में आई बाधा की बात है, तो इससे जुड़े आंकड़े को मीडिया ने बिल्कुल भी संदेह से नहीं देखा. राहत की बात ये है कि ख़ुद सरकार भी मौत के इन आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए ये दावा नहीं कर रही है कि वर्ष 2020 में पिछले साल के मुक़ाबले बहुत अधिक लोगों की मौत नहीं हुई. जबकि कोविड-19 की महामारी फैली हुई है. लेकिन, दुर्भाग्य से सरकार इस बात को लेकर भी सामने नहीं आ रही है कि स्वास्थ्य सेवाओं में इस महामारी के चलते जितने बड़े पैमाने पर बाधा पड़ने की बात की जा रही है, वैसा है नहीं. मीडिया बातों को ज़रूरत और हक़ीक़त से ज़्यादा ही बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रहा है.
अगर हम किसी ख़ास मक़सद से इन सरकारी आंकड़ों को बिना वाजिब शर्तों के प्रकाशित करते हैं, तो ये बिना सबूतों के किसी विषय पर विवाद खड़ा करना होगा. क्योंकि आधे अधूरे आंकड़ों से एक ख़ास तरह का विश्लेषण निकालने से ऐसा लगेगा कि भारत में कोविड-19 के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत ही बुरा असर पड़ा और इससे महामारी से ज़्यादा अन्य बीमारियों से लोगों की मौत हो गई.
इससे एक सवाल और खड़ा होता है. आख़िर मीडिया संस्थान सरकार के अपुष्ट आंकड़ों का इस्तेमाल बिना संदर्भों के क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं? वो क्या साबित करने में जुटे हैं? जबकि, यही मीडिया उन आंकड़ों को कुछ अन्य बातों को सही साबित करने में इस्तेमाल नहीं कर रहा है. इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि पहले दर्जे वाले आंकड़े सहजता से उपलब्ध हैं. इन्हें समझना आसान है. समझा पाना भी आसान है. और इनसे सनसनीख़ेज़ सुर्ख़ियां भी बनाई जा सकती हैं. लेकिन, अगर हम किसी ख़ास मक़सद से इन सरकारी आंकड़ों को बिना वाजिब शर्तों के प्रकाशित करते हैं, तो ये बिना सबूतों के किसी विषय पर विवाद खड़ा करना होगा. क्योंकि आधे अधूरे आंकड़ों से एक ख़ास तरह का विश्लेषण निकालने से ऐसा लगेगा कि भारत में कोविड-19 के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत ही बुरा असर पड़ा और इससे महामारी से ज़्यादा अन्य बीमारियों से लोगों की मौत हो गई. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग लॉकडाउन के चलते इलाज की कमी से मर गए. और ये परिचर्चा या विश्लेषण का अच्छा स्वरूप पेश नहीं करता.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में कोविड-19 से होने वाली मौतों की संख्या कम गिनी जा रही है. सरकारी और निजी स्वास्थ्य संस्थाओं में आंकड़े इकट्ठे करने वाली सेवाएं महामारी के चलते बाधित हैं. हालांकि, इन पहलुओं की वास्तविकता का आकलन करने का काम बहुत सावधानी से करना होगा. हमें हर हाल में बिना तथ्यों के अफ़वाह फैलाने से बचना होगा. वरना मीडिया द्वारा आधे अधूरे आंकड़ों पर आधारित विश्लेषण पेश करने से लोगों के बीच भय का माहौल बनेगा. इससे स्वास्थ्य सेवाओं को भी अपनी कमियां दूर करने में कोई मदद नहीं मिल सकेगी. हर गुज़रते दिन के साथ ये साफ होता जा रहा है कि कोविड-19 महामारी से इंसान की लड़ाई काफ़ी लंबी होने जा रही है. और धीरे-धीरे सामने आ रहे सबूतों का सही तरीक़े से विश्लेषण ही महामारी से होने वाले नुक़सान को कम करने में सबसे बड़ा हथियार साबित होगा.
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Kriti Kapur was a Junior Fellow with ORFs Health Initiative in the Sustainable Development programme. Her research focuses on issues pertaining to sustainable development with ...