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यूक्रेन संकट को लेकर दक्षिण एशियाई राष्ट्रों द्वारा अलग-अलग रुख अपनाये जाने के बावजूद उनकी प्रतिक्रिया मुख्यत: उनके अपने राष्ट्रीय हितों से तय हुई है.
#Ukraine Crisis: यूक्रेन संकट पर दक्षिण एशिया की प्रतिक्रियाओं का एक आकलन
रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के साथ ही, दक्षिण एशिया ने अलग ढंग से प्रतिक्रिया दी है. हालांकि, भारत और पाकिस्तान की व्यावहारिक राजनीति की काफ़ी चर्चा हो चुकी है, लेकिन दूसरे दक्षिणी एशियाई राष्ट्रों की प्रतिक्रियाओं के बारे में कम विश्लेषण किया गया है. इन प्रतिक्रियाओं में रूसी आक्रामकता पर तटस्थता से लेकर आलोचना तक शामिल हैं, और इनका निर्धारण मुख्यत: राष्ट्रों के व्यक्तिगत हितों के आधार पर हुआ है. 2 मार्च 2022 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में हुआ मतदान, इस विभाजन को और स्पष्ट करता है (तालिका-1 देखें). बहरहाल, ये प्रतिक्रियाएं कार्यनीतिक (टैक्टिकल) प्रकृति की हैं और रूस के हमलों से उत्पन्न नये प्रणालीगत व रणनीतिक बदलावों के बीच राह बनाने में इन राष्ट्रों की मदद करने में अक्षम हैं.
तालिबान का शांति और तटस्थता का बयान अंतरराष्ट्रीय वैधता और सहायता चाहने की उनकी व्यापक परियोजना से संबंधित है. ऐसा माना जा रहा है कि यूक्रेन संकट दुनिया का ध्यान अफ़ग़ानिस्तान से भटका सकता है और उसकी सहायता व मानवीय कोषों को प्रभावित कर सकता है.
Country Policy UNGA vote Afghanistan Neutral (by the Islamic Emirate) in favour (represented by the Islamic Republic) Bangladesh Unofficially neutral Abstain Bhutan Criticised Russia in favour Nepal Criticised Russia in favour The Maldives Neutral; later criticised Russia in favour Sri Lanka Neutral Abstain Embracing neutrality:
अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका ने इस संघर्ष में किसी का पक्ष लेने से इनकार कर दिया है और अपने आधिकारिक बयानों में तटस्थता का रुख अपनाया है. अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामिक अमीरात ने दोनों पक्षों से संवाद और शांतिपूर्ण तरीक़ों के ज़रिये यह संकट हल करने को कहा है. श्रीलंका ने संबंधित पक्षों से कूटनीति और संवाद के ज़रिये शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाये रखने का आग्रह किया है.
तालिबान का शांति और तटस्थता का बयान अंतरराष्ट्रीय वैधता और सहायता चाहने की उनकी व्यापक परियोजना से संबंधित है. ऐसा माना जा रहा है कि यूक्रेन संकट दुनिया का ध्यान अफ़ग़ानिस्तान से भटका सकता है और उसकी सहायता व मानवीय कोषों को प्रभावित कर सकता है. इस तरह तटस्थता को तरजीह देना तालिबान के लिए सबसे बढ़िया दांव होगा, क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय सहायता और मान्यता के लिए बेचैन है, चाहे वह जहां से मिले. इस बात की भी पूरी संभावना है कि भू-राजनीति और महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के समक्ष देश की कमज़ोरियों के मद्देनज़र शत्रुता व प्रतिद्वंद्विता बढ़ने को लेकर तालिबान असुरक्षा महसूस कर रहा हो. अंत में, तालिबान की कोशिश बाक़ी दुनिया के सामने अपनी सुधरी हुई छवि को प्रचारित करने की भी हो सकती है. शांति के लिए उनका आह्वान और पिछले शासन के लिए काम करनेवाले अफ़ग़ानों को निकालने के कथित प्रयत्न संगठन को समावेशी और शांति-प्रचारक दिखाने की एक कोशिश हो सकती है.
युद्ध के नतीजे, जैसे यूक्रेन की आर्थिक तबाही और रूस पर प्रतिबंध श्रीलंका को बुरी तरह प्रभावित करेंगे. इतना ही नहीं, ईंधन की कीमतों में वृद्धि, बकाया भुगतान में संभावित देरी और रूसी आयातकों से भविष्य की ख़रीद में धीमेपन ने श्रीलंका को शांति का अनुरोध करने और तटस्थ रहने के लिए मजबूर किया है.
इसी तरह, श्रीलंका की तटस्थता की वजह उसका आर्थिक संकट है. श्रीलंका गंभीर विदेशी मुद्रा संकट और क़र्ज़ की समस्या से जूझ रहा है, और जाहिर है, इस द्वीपीय राष्ट्र के लिए एक-एक डॉलर का आना या बाहर जाना मायने रखता है. लिहाज़ा, यह उचित ही लगता है कि वे पश्चिम या संघर्ष के भागीदारों को नाराज़ नहीं करें. इस मामले में, रूस और यूक्रेन दोनों ही उसके लिए विदेशी मुद्रा उत्पन्न करने के महत्वपूर्ण स्रोत हैं. वे श्रीलंका की कुल पर्यटक आवक में एक चौथाई से ज़्यादा का योगदान देते हैं. इसके अलावा, रूस श्रीलंका से चाय के सबसे बड़े आयातकों में से एक है, और अकेले उससे श्रीलंका को 2020 में 14.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर का राजस्व प्राप्त हुआ था. युद्ध के नतीजे, जैसे यूक्रेन की आर्थिक तबाही और रूस पर प्रतिबंध श्रीलंका को बुरी तरह प्रभावित करेंगे. इतना ही नहीं, ईंधन की कीमतों में वृद्धि, बकाया भुगतान में संभावित देरी और रूसी आयातकों से भविष्य की ख़रीद में धीमेपन ने श्रीलंका को शांति का अनुरोध करने और तटस्थ रहने के लिए मजबूर किया है.
दूसरी तरफ़, बांग्लादेश ने तटस्थता की अनाधिकारिक नीति को चुना है. उसने दोनों पक्षों से संवाद और कूटनीति के रास्ते पर लौटने का आग्रह किया है. यह रुख उसके अपने राष्ट्रीय हितों और रूस के संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन से उपजी असहजता के बीच शायद एक समझौता है.
रूस बांग्लादेश का एक महत्वपूर्ण विकास साझेदार है. न्यूनतम विकसित देश (एलडीसी) के दर्जे से ऊपर उठने और अपनी आर्थिक वृद्धि व ऊर्जा सुरक्षा के वास्ते बांग्लादेश के लिए यह साझेदारी अहम रही है. दोनों देशों का व्यापार अकेले 2020 में 2.4 अरब अमेरिकी डॉलर का था. यह भी उम्मीद थी कि बांग्लादेश इसी महीने रूस की अगुवाई वाले यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के साथ मुक्त व्यापार समझौते के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर दस्तख़त करेगा. इसके अलावा, रूस ने बांग्लादेश को ऊर्जा सुरक्षा बनाये रखने में मदद जारी रखी हुई है. उसकी सरकारी कंपनी गैज़प्रोम के पास बांग्लादेशी गैस क्षेत्रों में कुएं खोदने के लिए कई क़रार मौजूद हैं. बांग्लादेश के पहले नाभिकीय विद्युत संयंत्र के लिए रूस तकनीकी और 90 फ़ीसद से ज़्यादा वित्तीय सहायता भी मुहैया करा रहा है. माना जा रहा है कि संयंत्र की पहली और दूसरी इकाई 2022 और 2023 में उत्पादन शुरू करेंगी. रूस ने बांग्लादेश के सैन्य उपकरण, परिधान और उर्वरक उद्योगों में बड़ा निवेश भी किया हुआ है. रूस पर इस निर्भरता को देखते हुए बांग्लादेश ने अपनी प्रतिक्रिया को आकार दिया है.
नेपाल, भूटान और मालदीव ने एक अलग रुख अपनाया है. आक्रमण शुरू होने के समय से ही रूसी कार्रवाई के प्रति नेपाल कठोर आलोचनात्मक रहा है. उसने संवाद को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया है तथा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन और यूक्रेन के ख़िलाफ़ बल उपयोग के लिए रूस की निंदा की है. भूटान ने कहा कि वह युद्ध के प्रभावों का अध्ययन व आकलन करेगा और यह भरोसा दिलाया कि यूक्रेन में कोई भूटानी नहीं फंसा है. हालांकि, अपने अच्छे पड़ोसी रिश्तों की बात दोहराकर और इस पर ज़ोर देकर कि भूटान और दूसरे छोटे देशों के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों व मूल्यों की रक्षा क्यों बेहद महत्वपूर्ण है, उसने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना रुख स्पष्ट किया. मालदीव का भी इस संकट पर आधिकारिक बयान नहीं है; उसके विदेश मंत्री ने दोनों पक्षों से शांति और राजनीतिक समाधान तलाशने की बात भर कही थी. लेकिन यूएनजीए में हालिया मतदान ने उसके रुख में भी बदलाव की ओर इशारा किया.
नेपाल के रूस और यूक्रेन से संबंध सीमित हैं. हालांकि, यूक्रेन के उलट, रूस ने नेपाल को हेलीकॉप्टर, निवेश और मानवीय सहायता मुहैया करायी है. रूस और नेपाल का कुल व्यापार 2019 में 1.02 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था, और उसी साल बतौर पर्यटक 10,400 रूसियों ने नेपाल की यात्रा की थी. ये सीमित अंत:क्रियाएं भी नेपाल के यूक्रेन के साथ अत्यल्प संबंधों पर भारी पड़ती हैं. इसी तरह, यूक्रेन और रूस के साथ भूटान के रिश्ते भी सीमित ही हैं. लिहाज़ा, रूस के ख़िलाफ़ उनकी प्रतिक्रियाएं उनकी अपनी भौगोलिक स्थिति और चिंताओं की उपज प्रतीत होती हैं. भारत और चीन के बीच स्थित इन राष्ट्रों को एहसास है कि वे शक्ति संघर्ष के केंद्र में हैं. तिब्बत पर चीनी आक्रमण और सिक्किम को भारत में मिलाने की घटनाएं इन हिमालयी राज्यों को अब भी डराती हैं. भारत और चीन द्वारा सीमा के उल्लंघन और अतिक्रमण का आरोप नेपाल लगाता रहता है, और भूटान ने आक्रामक व थोड़ी-थोड़ी करके जमीन हड़पने वाले चीन के साथ अभी तक सीमा निर्धारण नहीं किया है. सही मायनों में, उनके हित संयुक्त राष्ट्र चार्टर और दूसरे छोटे राष्ट्रों की स्वाधीनता को बनाये रखे जाने और उनकी रक्षा में हैं, क्योंकि वे निकट भविष्य में इसी तरह की चुनौतियों का सामना करने का अनुमान लगा रहे हैं.
भारत और चीन द्वारा सीमा के उल्लंघन और अतिक्रमण का आरोप नेपाल लगाता रहता है, और भूटान ने आक्रामक व थोड़ी-थोड़ी करके जमीन हड़पने वाले चीन के साथ अभी तक सीमा निर्धारण नहीं किया है.
रूस और यूक्रेन के साथ मालदीव के संबंध मुख्यत: पर्यटन क्षेत्र तक सीमित हैं. रूस और यूक्रेन दोनों मालदीव को कुल पर्यटकों का 20 फ़ीसद से ज्यादा मुहैया कराते हैं. अकेले 2021 में, मालदीव में रूस से 2,08,000 पर्यटक और यूक्रेन से 23,000 पर्यटक आये. श्रीलंका की तरह, इस युद्ध ने द्वीपीय राष्ट्र मालदीव के लिए भी कोविड के बाद आर्थिक पुनरुद्धार की चिंताओं को जन्म दिया है. लिहाज़ा, इसने उसे तटस्थ रहने और शांति का आग्रह करने के लिए बाध्य किया. हालांकि, यूएनजीए में मालदीव की नीति में बदलाव यह इशारा करता है कि वह हिंद-प्रशांत में तेज़ होती प्रतिस्पर्धा के साथ अपनी संप्रभुता और विदेश नीति का स्थिति-निर्धारण सावधानीपूर्वक कर रहा है.
कुल मिलाकर, इन दक्षिण एशियाई देशों ने यूक्रेन संकट को लेकर प्रतिक्रिया अपने राष्ट्रीय हितों को तरजीह देते हुए दी है. हालांकि, ये प्रतिक्रियाएं कार्यनीतिक प्रकृति की हैं और रूसी आक्रमण से उपजे प्रणालीगत और रणनीतिक बदलावों के बीच राह बनाने में मदद करने में अक्षम हैं. मॉस्को पर कड़े प्रतिबंध इन राष्ट्रों की व्यापार, पर्यटन, आर्थिक वृद्धि, कनेक्टिविटी, ऊर्जा सुरक्षा, विदेशी मुद्रा उत्पन्न करने और सैन्य आधुनिकीकरण की नीतियों को संभवत: जटिल बनायेंगी. इसी तरह, इस संकट ने प्रभाव क्षेत्रों की प्रासंगिकता, सुरक्षा के लिए भू-अर्थशास्त्र पर निर्भरता, तटस्थता की संभावनाओं, गठबंधनों और पश्चिम की क्षमताओं पर बहस को छेड़ा और फिर से शुरू किया है. इन राष्ट्रों के लिए, रूस और उसकी आक्रामकता पर एक रुख इख़्तियार करने से ज्यादा बड़ी चुनौती होगी इन बदलावों और चुनौतियों को समायोजित करना.
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Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with the Strategic Studies Programme’s Neighbourhood Studies Initiative. He focuses on strategic and security-related developments in the South Asian ...
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