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वैसे तो रोहिंग्याओं के अधिकारों की रक्षा करने की ज़ेम्मेदारी म्यांमार सरकार की है लेकिन रोहिंग्या संकट के उचित समाधान तक पहुंचने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है.
8 जून को बांग्लादेश के कॉक्स बाजार जिले के विशाल शिविरों में हुए प्रदर्शनों ने पिछले लगभग छह वर्षों से विस्थापित होकर बांग्लादेश में रह रहे असहाय रोहिंग्याओं की निराशा को ताज़ा कर दिया. विस्थापित लोगों, जिनमें युवा और बुजुर्ग दोनों शामिल हैं, ने नारे लगाए और तख्तियां लहराईं जिन पर लिखा था, “अब और ज़्यादा रिफ्यूजी वाली जिंदगी नहीं चाहिए, छानबीन नहीं चाहिए, जांच-पड़ताल नहीं चाहिए, इंटरव्यू नहीं चाहिए. हम UNHCR के डेटा कार्ड के ज़रिये तुरंत स्वदेश वापसी चाहते हैं. हम अपनी मातृभूमि लौटना चाहते हैं.” “चलो म्यांमार लौटते हैं. स्वदेश वापसी को रोकने की कोशिश न करो.”
जून 2023 की शुरुआत में विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने बांग्लादेश में विस्थापित रोहिंग्याओं के लिए सहायता में कमी का एलान किया और मासिक सहायता की रकम को 10 अमेरिकी डॉलर से घटाकर 8 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति कर दिया.
ये ध्यान देने की बात है कि इन लोगों को आधिकारिक रूप से रिफ्यूजी के तौर पर मान्यता नहीं दी जाती है क्योंकि बांग्लादेश ने 1951 के समझौते या 1967 के रिफ्यूजी प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं कर रखा है. इसके बदले उन्हें जबरन विस्थापित म्यांमार नागरिक (FDMN) कहा जाता है जिसकी वजह से उन्हें शरणार्थियों को मिलने वाले विशेष अधिकार और सुरक्षा नहीं मिल पाती है. लेकिन बांग्लादेश सरकार बहुत ज़्यादा वित्तीय और भौगोलिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद अपनी सीमा के भीतर रहने वाले रोहिंग्या समुदाय के लोगों का समर्थन करने और उनकी देखभाल के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रही है.
दुनिया भर में अलग-अलग संघर्षों और संकट, जैसे कि रूस-यूक्रेन संघर्ष, के बीच रोहिंग्या समुदाय के लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन में कमी आ रही है. जून 2023 की शुरुआत में विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने बांग्लादेश में विस्थापित रोहिंग्याओं के लिए सहायता में कमी का एलान किया और मासिक सहायता की रकम को 10 अमेरिकी डॉलर से घटाकर 8 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति कर दिया. जापान की सरकार ने जून के मध्य में WFP के लिए 4.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर दान के रूप में दिया लेकिन राशन की जरूरत को पूरा करने के लिए 48 मिलियन अमेरिकी डॉलर और चाहिए.
इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी UNHCR और उसके साझेदारों ने इस साल 876 मिलियन अमेरिकी डॉलर के लिए अपील की है. उन्होंने तुरंत मदद की आवश्यकता पर जोर डाला है और चेतावनी दी है कि लगभग आधे रोहिंग्या परिवार खाने-पीने के कम सामान की वजह से पर्याप्त खाना नहीं खा रहे हैं. इसकी वजह से व्यापक स्तर पर कुपोषण, खास तौर पर महिलाओं और बच्चों में, की समस्या खड़ी हो गई है. दुर्भाग्य की बात है कि अभी तक जरूरी रकम का केवल 28 प्रतिशत हिस्सा ही हासिल हो पाया है.
बांग्लादेश में चुनौतीपूर्ण हालात के बीच रोहिंग्या संकट को लेकर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया है. चीन की मदद से बांग्लादेश और म्यांमार के बीच रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेजने को लेकर एक द्विपक्षीय समझौता हुआ है. लेकिन कई विश्लेषकों ने म्यांमार के कदम के पीछे के कारणों को लेकर चिंता जताई है. ऐसा लगता है कि म्यांमार की सैन्य सरकार अगस्त में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय) में होने वाली सुनवाई के पहले रोहिंग्या समुदाय को अपने समाज में मिलाने के लिए अपनी कोशिशों को दिखाना चाहती है. कुछ लोग इस कदम को म्यांमार के द्वारा अपनी छवि बेहतर करने और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों का जवाब देने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं.
बांग्लादेश के शिविरों से रोहिंग्या शरणार्थियों को स्वदेश भेजने का मुद्दा बेहद जटिल और बहुआयामी है. इसको लेकर अलग-अलग कारणों पर सावधानीपूर्वक विश्लेषण की आवश्यकता है. इन कारणों में म्यांमार की हालत, रोहिंग्या समुदाय के लोगों के अधिकार एवं सुरक्षा और एक न्यायसंगत एवं टिकाऊ समाधान की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका शामिल हैं.
15 मार्च को म्यांमार से 17 सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल स्वदेश वापसी के लिए लिस्ट में शामिल किए गए रोहिंग्या समुदाय के लोगों के बारे में जानकारी की पड़ताल करने के लिए बांग्लादेश आया.
स्वदेश वापसी की योजना का जो मसौदा म्यांमार की सरकार ने तैयार किया है उसमें बांग्लादेश से आने वाले लोगों के रहने के लिए 15 गांवों की पहचान की गई है. सरकार आने वाले लोगों को ला पो कॉन्ग ट्रांजिट कैंप में अधिकतम दो महीने के लिए रखेगी. इसके बाद सरकार उन लोगों को दो में से एक पुनर्वास कैंप में भेजेगी जहां उनके लिए पहले से तैयार घर मौजूद हैं. इसके अलावा म्यांमार की सरकार सुरक्षा कर्मियों की तैनाती करेगी ताकि “जिन इलाकों में वापस आने वाले लोग रहेंगे या जहां से वो गुजरेंगे वहां कानून का शासन और सुरक्षा” को कायम रखा जा सके. म्यांमार सरकार ने बार-बार “सुरक्षा चिंताओं” का हवाला रोहिंग्या समुदाय के लोगों पर रखाइन प्रांत में अपने कैंप और गांवों के बाहर जाने के अधिकार पर लगाई गई रोक को सही ठहराने के लिए किया है.
15 मार्च को म्यांमार से 17 सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल स्वदेश वापसी के लिए लिस्ट में शामिल किए गए रोहिंग्या समुदाय के लोगों के बारे में जानकारी की पड़ताल करने के लिए बांग्लादेश आया. योजना के मुताबिक शुरू में म्यांमार रोहिंग्या समुदाय के 1,140 लोगों को वापस लेगा. जानकारी की पूरी तरह जांच करने के बाद उन्होंने स्वदेश वापसी के पायलट प्रोजेक्ट के लिए शुरुआत में 480 रोहिंग्याओं को चुना. इसके बाद 5 मई को 27 लोगों के एक ग्रुप, जिसमें 20 रोहिंग्या शामिल थे, ने म्यांमार के रखाइन प्रांत का दौरा कर स्वदेश वापसी के लिए वहां के माहौल का जायजा लिया. इस प्रतिनिधिमंडल ने वहां के हालात की पड़ताल की.
रोहिंग्या प्रतिनिधिमंडल की यात्रा के दौरान उन्होंने रखाइन प्रांत के मॉन्गदो टाउनशिप में स्थित ला पो कॉन्ग ट्रांजिट कैंप और क्येन चॉन्ग पुनर्वास कैंप का निरीक्षण किया. ये कैंप उन जमीनों पर बने हैं जिन पर पहले रोहिंग्या समुदाय के लोगों का मालिकाना अधिकार था और उन्हें म्यांमार के सुरक्षा बलों ने बर्बाद कर दिया था. ट्रांजिट कैंप के चारों तरफ कंटीले तारों वाली चारदीवारी है. यहां ऐसी सुरक्षा चौकियां हैं जो सित्तवे और सेंट्रल रखाइन प्रांत की दूसरी टाउनशिप में अनुभव की जाने वाली जेल की याद दिलाती हैं. ये योजना रोहिंग्या समुदाय को महज़ एक कैंप से दूसरे कैंप ले जाने की तुलना में ईमानदारी से उन्हें समाज में मिलाने के म्यांमार के इरादे पर सवाल खड़ा करती है.
एक और बिंदु है नेशनल वेरिफिकेशन कार्ड (NVC) को शामिल करना. विस्थापित रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने लगातार घर वापसी की अपनी इच्छा जताई है लेकिन इस शर्त के साथ कि उनकी सुरक्षा, ज़मीन एवं रोज़गार के उनके अधिकार, आने-जाने की स्वतंत्रता और नागरिकता के अधिकार की गारंटी मिले.
NVC म्यांमार की नागरिकता प्रदान नहीं करता और रोहिंग्या समुदाय ने 2019 में ज़बरदस्त ढंग से NVC की प्रक्रिया को ख़ारिज कर दिया था क्योंकि उन्हें लगता है कि ये उन्हें अपने ही देश में विदेशी के तौर पर रखने का एक ज़रिया है. NVC रखने वालों को आने-जाने की बहुत ज़्यादा आज़ादी नहीं दी गई है और इस प्रक्रिया के दौरान रोहिंग्या समुदाय के लोगों को कार्ड स्वीकार करने के लिए धमकियां और दबाव देने का आरोप है.
इसके अलावा म्यांमार में मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता और मानवाधिकार से जुड़ी चिंताओं ने वापस लौटने वालों की सुरक्षा और उनके कल्याण के बारे में काफी संदेह पैदा कर दिया है. 2021 में सैन्य विद्रोह के समय से म्यांमार के सुरक्षा बलों ने “बिना इजाज़त यात्रा” के आरोप में रोहिंग्या समुदाय के अनगिनत लोगों को गिरफ्तार किया है जिनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल हैं.
सैन्य विद्रोह के समय से दो साल बीत जाने के बावजूद कुछ ही शरणार्थी शिविरों में मरम्मत का कोई काम हुआ है. रोहिंग्या शिविरों और गांवों में लोगों के आने-जाने पर अतिरिक्त प्रतिबंध और मदद को रोकने की वजह से पानी और अनाज की कमी बढ़ गई है जिसके कारण रोहिंग्या समुदाय के लोगों की सेहत बिगड़ रही है. पिछले दिनों आए तूफान मोका ने चुनौतियों को और बढ़ा दिया है क्योंकि सैन्य सरकार आपदा का जवाब देने की कोशिशों में बाधा डालती है. इसके कारण शिविर बर्बाद हो गए हैं और बुनियादी सुविधाएं खत्म हो गई हैं.
रोहिंग्या समुदाय ने वर्षों से व्यवस्थात्मक अत्याचार और भेदभाव का सामना किया है. इसका नतीजा जबरन विस्थापन के रूप में निकला. स्वदेश वापसी की किसी भी योजना को रोहिंग्या समुदाय के समाज में एकीकरण की संभावना, मौलिक अधिकारों तक पहुंच और म्यांमार में उनके सम्मान की बहाली पर विचार करना चाहिए. संघर्ष के मूल कारणों के समाधान के लिए व्यापक कोशिश और एक समावेशी एवं सहिष्णु समाज की स्थापना, जो सभी जातीय और धार्मिक समूहों के अधिकारों का सम्मान करे, जरूरी होगी. लेकिन इस तरह के इरादे की कमी है.
वैसे तो रोहिंग्या समुदाय के अधिकारों की रक्षा करने की जिम्मेदारी और जवाबदेही म्यांमार सरकार की है लेकिन रोहिंग्या संकट के एक उचित और टिकाऊ समाधान तक पहुंचने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है.
श्रीपर्णा बनर्जी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज प्रोग्राम में जूनियर फेलो हैं.
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Sreeparna Banerjee is an Associate Fellow in the Strategic Studies Programme. Her work focuses on the geopolitical and strategic affairs concerning two Southeast Asian countries, namely ...
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