Author : Abhijit Singh

Published on Aug 21, 2017 Updated 0 Hours ago

हाल में जिस केंद्रीय तटीय सीमा पुलिस बल की योजना सामने आई है वह क्यों भारत की तटीय सुरक्षा की चिंताओं का सही समाधान नहीं है।

भारत की तटीय सुरक्षा की पहेली

हाल के महीनों की दो घटनाओं ने भारत की तटीय सुरक्षा जरूरतों को फिर से उजागर किया है। इस साल अप्रैल में भारत की समुद्री सुरक्षा एजेंसियों ने मुंबई हार्बर के बेहद करीब आ गए एक रूसी युगल को उनकी नाव के साथ पकड़ा था। ये समुद्री अभियान पर निकले थे और उसी दौरान इनके पास जरूरी सामानों की कमी हो गई और मदद के लिए ये भारतीय तट की ओर बढ़ गए थे। मछुआरों ने जब इस नाव को रोक कर पुलिस को सुपुर्द किया तो अधिकारी इस बात से बेहद हैरान थे कि आखिर इतनी बड़ी नाव पकड़ में क्यों नहीं आई। इस हफ्ते फिर एक विदेशी नाव ने तिरुअनंतपुरम के तट पर एक मछुआरे की नाव को टक्कर मार दी और तेजी से भाग खड़ी हुई। किसी सुरक्षा एजेंसी ने उसके चालक दल को संपर्क करने या उसे पकड़ने की कोशिश नहीं की। इससे पहले जून में कोच्ची में ऐसे ही मार कर भाग खड़े होने के मामले में दो मछुआरों की जान चली गई थी। शुक्र है कि उस मौके पर कोस्ट गार्ड ने दोषी नौका को कब्जे में ले लिया था। हालांकि उससे पहले ही यह सवाल उठने लगा था कि विदेशी नौका भारतीय समुद्री सीमा के इतना करीब कैसे पहुंच गई।

2008 के मुंबई हमलों के बाद से समुद्र तट की सुरक्षा भारत की समुद्री सुरक्षा एजेंसियों की प्राथमिकता में रही है। तटीय सुरक्षा को नए सिरे से व्यवस्थित करने की योजना के तहत बहुत से उपाय उठाए गए हैं और इन उपायों की सफलता का स्तर अलग-अलग है। इसमें तटीय राडार, स्वचालित पहचान तंत्र और नेशनल कमांड एंड कंट्रोल कम्यूनिकेशंस इंटेलीजेंस नेटवर्क (एनसी3आईएन) जैसे अनेक उपाय शामिल हैं।

बेहतर तटीय सुरक्षा की जरूरत इतनी अधिक है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पिछले हफ्ते भारत के समुद्र के निकट के खतरों से जूझने के लिए अलग से एक एजेंसी के गठन के फैसले की घोषणा की है। 2016 में पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनविस ने जिस तटीय सीमा पुलिस बल (सीबीपीएफ) का सुझाव दिया था, उसे गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। यह एजेंसी भारत के समुद्री तट की रक्षा करने में भारतीय तट रक्षक दल (आईसीजी) की मदद करेगी। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक इसका कार्यक्षेत्र भारतीय समुद्री सीमा से आगे तक होगा, जिसमें निकटस्थ इलाके और विशेष आर्थिक क्षेत्र भी शामिल होंगे।

खेद की बात यह है कि प्रस्तावित कदम का ना तो निर्णय सही है और ना ही यह भारत की तटीय सुरक्षा की चुनौतियों को पूरा करने के लिहाज से उपयुक्त है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की घोषणा के मुताबिक ऐसा लगता है कि सरकार नई एजेंसी को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की तर्ज पर ही खड़ा करना चाहती है, जिसे तैयार करने, धन उपलब्ध करवाने और प्रशासन संभालने की जिम्मेवारी नई दिल्ली के पास होगी। लेकिन अब तक इस बात के कोई संकेत नहीं मिले हैं कि इस एजेंसी के गठन के लिहाज से उन सांगठनिक समस्याओं का ध्यान रखा गया हो जो बेहद गहरी हैं। इसमें सबसे खास है इसके पास पुलिस अधिकार की कमी, जिसकी वजह से नई एजेंसी निष्प्रभावी हो सकती है। एक अर्धसैनिक बल के तौर पर सीबीपीएफ के पास ना तो राज्य पुलिस जैसे अधिकार होंगे और ना ही कार्यक्षेत्र। हालांकि मुमकिन है कि नई एजेंसी के पास संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार करने या हिरासत में लेने के अधिकार हों, लेकिन इसके पास मुकदमा दर्ज करने या फिर जांच करने के अधिकार नहीं होंगे।

मुमकिन है कि नई एजेंसी के पास गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने का अधिकार हो, लेकिन वह मामला दर्ज करने या जांच करने में सक्षम नहीं होगी।

गृह मंत्रालय का प्रस्ताव इस लिहाज से भी गलत है कि इसमें मान लिया गया है कि तटीय समुदाय के सदस्यों को तटीय सुरक्षा एजेंसी में आधिकारिक तौर पर शामिल कर लिया जाएगा। इनका विचार है कि उद्यमशील मछुआरों को समुद्री पुलिस कांस्टेबल के तौर पर भर्ती कर लिया जाएगा ताकि वे नौसेना व भारतीय समुद्र तटरक्षक दल (आईसीजी) के रिटायर्ड कर्मियों की मदद कर सकेंगे। लेकिन यह तय करते समय इस बात को भुला दिया गया है कि मछुआरों के बहुत से समुदाय अब भी समुद्री निगरानी और पहचान के प्रयासों को ले कर सशंकित रहते हैं और इनका विरोध करते हैं। बहुत से मछुआरों को अपनी नाव पर ट्रांसपोंडर लगाए जाने को ले कर आशंका रहती है। इन प्रयासों को लागू करने के प्रशासन के प्रयासों का बहुत से मछुआरे खुल कर विरोध भी करते हैं।

ऐसा नहीं कि मछुआरों पर यकीन नहीं किया जा सकता। वे इसको ले कर उदासीन इसलिए रहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि तटीय सुरक्षा व्यवस्था में शामिल होने से उनकी अपनी गतिविधियां ज्यादा से ज्यादा निगरानी में आ जाएंगी। मछुआरे मानते हैं कि सुरक्षा एजेंसियों के साथ तालमेल की बाध्यता उनके लिए नुकसानदेह है, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के पास के मछलियों से भरे इलाके में जाना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा। अगर वे सुरक्षा एजेंसियों के साथ सूचनाएं साझा करते हैं तो उसकी एकमात्र वजह स्थानीय पुलिस का भय है।

तटीय इलाकों में रहने वाले समुदाय जिस तरह पुलिस को सहायता करने के लिए तैयार होते हैं, वैसे भारतीय तटरक्षक दल के लिए उपलब्ध नहीं होते। आईसीजी अधिकारी कहते हैं कि राज्य पुलिस के लोगों की जगह इसलिए नहीं ली जा सकती क्योंकि वे मछुआरों और स्थानीय समुदायों के साथ ज्यादा प्रभावशाली तरीके से संपर्क रख पाते हैं। वे स्थानीय परिस्थितियों और क्षेत्रीय लोकाचार के साथ ही स्थानीय समुदाय के प्रमुख लोगों से संपर्क साधने के लिए जरूरी भाषाई कौशल से भी युक्त होते हैं। आईसीजी अधिकारी स्वीकार करते हैं कि मछलीपालन करने वाले समुदायों के साथ नियमित तालमेल के बावजूद वे अक्सर ऐसी इंसानी खुफिया सूचना हासिल करने में सक्षम नहीं हो पाते जिन पर कोई कार्रवाई की जा सके। बताया जा रहा है कि नई एजेंसी में पुलिस के नामित कर्मचारी होंगे जो खुफिया सूचना जुटाने में उनकी मदद करेंगे, लेकिन तटीय सुरक्षा के लिहाज से राज्य पुलिस की सांस्थानिक जवाबदेही के अभाव में नया ढांचा ज्यादा प्रभावी होने की उम्मीद कम ही है।

सरकार को जल्दी ही यह समझ में आ जाना चाहिए कि सीबीपीएफ के कार्यक्षेत्र को समुद्र में भारत की सीमा से आगे तक बढ़ाने से आईसीजी को पहले से दिए गए कार्यक्षेत्र के दोहराव का खतरा होगा। इससे दोनों के बीच अधिकारक्षेत्र के टकराव का खतरा बढ़ेगा और उससे भी ज्यादा इस बात का खतरा होगा कि किसी मामले के दौरान दोनों एक-दूसरे पर दोष डालने में लग जाएं।

सच्चाई यह है कि राज्य की एजेंसियों की तटीय निगरानी में भूमिका निभाने को ले कर लगातार दिलचस्पी घट रही है।

नए बल को खड़ा करने का कदम उठाते हुए इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि राज्य एजेंसियां तटीय निगरानी में अपनी भूमिका को ले कर लगातार अपनी दिलचस्पी घटा रही हैं। तटीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए राज्य सरकार के कुल खर्च में भारी कमी आ रही है और उनकी ओर से खड़ी की गई सुविधाओं के उपयोग में नहीं लाए जाने के मामले भी बढ़ रहे हैं। इसी तरह राज्य पुलिस एजेंसियां तटीय निगरानी के लिए अपने कर्मियों को लगाने में भी दिलचस्पी नहीं ले रहीं। अक्तूबर, 2016 की नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) रिपोर्ट में बताया गया है कि ओडिशा के तटीय इलाके में निगरानी लगभग 95 फीसदी तक घट गई थी। इसी तरह, महाराष्ट्र में तटीय थानों के 19 प्रस्तावों में से सात में अभी काम शुरू होना भी बाकी है। यहां तक कि प्रशिक्षण का स्तर भी घटा है। तटीय कामों में लगाए गए पुलिस कर्मियों में आधे से भी कम को तटरक्षक बल ने प्रशिक्षित किया है। इससे ज्यादा चिंता की बात है कि जिन लोगों को प्रशिक्षित किया गया है उनमें से 50 फीसदी से ज्यादा को तैरना ही नहीं आता। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जूनियर कर्मचारियों में समुद्री ड्यूटी को ले कर उत्साह की कमी को दोषी ठहराते हैं। लेकिन अधिकारी निजी बातचीत में यह भी मानते हैं कि पुलिस बलों पर वीवीआईपी एस्कोर्ट और राजनीतिक कार्यक्रमों के बंदोबस्त सहित इतनी तरह की जिम्मेवारियां होती हैं कि तटीय निगरानी के लिए उनके पास ना तो ज्यादा ऊर्जा बचती है और ना ही समय।

समग्र रूप से देखें तो नए तटरक्षक पुलिस बल को खड़ा करने का विचार जितना भारतीय तटरक्षक दल की कार्यक्षमता को बढ़ाने के इरादे से उठाया गया है, उससे कहीं ज्यादा राज्य पुलिस एजेंसियों को राष्ट्रीय तटीय सुरक्षा के काम से अलग रखने की कोशिश है। कहा जा रहा है कि राज्य स्तरीय समुद्री पुलिस की जगह केंद्र नियंत्रित एजेंसी को लगा दिए जाने से उद्देश्य पूरा हो जाएगा। इसी वजह से 2016 में दिए गए तटीय पुलिस के मुख्यमंत्री फड़नवीस के प्रस्ताव पर दूसरे तटीय राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी पूरे उत्साह के साथ मुहर लगा दी। हालांकि यह नहीं भूलना चाहिए कि इस योजना को लागू करने से एक और ऐसी एजेंसी तो खड़ी हो जाएगी लेकिन जिस एजेंसी की मदद के लिए इसे खड़ा किया जा रहा है यह भी उसी की तरह उतनी ही सीमाओं में बंधी होगी।

नए तटीय सीमा पुलिस बल के प्रशिक्षण और उपकरणों पर जो अतिरिक्त संसाधन खर्च किए जाएंगे अंत में सभी फिजूल साबित हो सकते हैं। यह स्पष्ट है कि इन नए प्रशिक्षित कर्मियों के पास ना तो वैधानिक शक्ति होगी और ना ही तटीय सुरक्षा को ले कर मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए यह सक्षम होगा। समुद्री मामलों से जुड़े एक शीर्ष प्राधिकरण के नहीं होने से एजेंसियों के आपसी सहयोग को ले कर समस्याएं ही खड़ी होंगी।

दुर्भाग्य से नए तटीय सीमा पुलिस को अधिकार देने से यह खतरा अलग है कि राज्य पुलिस के अधिकार क्षेत्र का संक्रमण हो और मामला और उलझ जाए। चाहे जैसे देखें, केंद्रीय पुलिस बल भारत की तटीय सुरक्षा के द्वंद का कोई समाधान पेश नहीं कर पा रहा।

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